केशव की मेहनत से जिंदा हो उठा सूखा तालाब
2 September 2011


नागपुर। पानी का संकट आज की एक बड़ी समस्या है। नदियां प्रदूषित हैं, कुएं, बावड़ी और तालाब जैसे पानी के प्राकृतिक स्रोत सूख रहे हैं। ऐसे में पानी की ज़रूरत को पूरा करने के लिए उसके बेहतर इस्तेमाल को लेकर आम लोग क्या कर सकते हैं? सिटिज़न जर्नलिस्ट इसके लिए एक खास मुहिम छेड़ी- जल है तो कल है के जरिए।

नागपुर के वलनी गांव के लोगों ने तालाबों की ज़रूरत को समझा है, यही वजह है कि वहां के लोग पिछले 26 साल से अपने गांव के एक तालाब को बचाने का संघर्ष कर रहे हैं। सिटिज़न जर्नलिस्ट केशव दमभरे वलिनी गांव के ही रहने वाले हैं। उन्होंने बताया कि किस तरह प्रशासन की लापरवाही का शिकार बने एक तालाब को पिछले 26 साल से गांव वाले दोबारा जीवित करने की कोशिश में लगे हैं।

19 एकड़ की सरकारी ज़मीन पर बना ये तालाब दो सौ साल पुराना है। 1983 से पहले तक इस तालाब का पानी 12 गांवों की जरूरतें पूरी करता था लेकिन 1983 में गांव वालों को पता चला की जिस तालाब को वो अपना समझ रहे हैं, दरअसल उस तालाब का 14 एकड़ हिस्सा बेचा जा चुका है और उस हिस्से में गांव वालों के आने पर पाबंदी लगा दी गई है। ये काम किया था दूसरे गांव के एक ज़मींदार ने।कुछ गांव वाले तालाब पर ज़मींदार की मालकियत की बात मान गए लेकिन केशव को इस बात पर विश्वास नहीं हुआ कि आखिर कैसे कोई तालाब के हिस्से कर सकता है। इस सिलसिले में केशव ने एसडीएम को एक शिकायती पत्र लिखा। लेकिन एसडीएम ने भी शिकायत पर गैर करना ज़रूरी नहीं समझा।

लेकिन केशव ने हार नहीं मानी, आखिर गांव के पानी का सवाल था। ज़मींदार के इस फर्जीवाड़े को लेकर केशव ने सूचना के अधिकार के तहत तहसीलदार से जवाब मांगा। केशव ने सवाल किया कि आखिर इस तालाब का मालिक कौन है। जवाब में तहसील दार ने हमें 1912 के रिकॉर्ड दिए जिसमें साफ लिखा था कि 19 एकड़ के इस तालाब की मालिक सरकार है।

सच सामने आते ही केशव में लड़ने की हिम्मत आ गई। उन्होंने तहसीलदार, एस.डी.ओ, यहां तक की कलेक्टर से भी न्याय की गुहार लगाई। सबको कई शिकायती पत्र लिखे लेकिन किसी ने उनकी नहीं सुनी।तालाब का 5 एकड़ का हिस्सा जो जंमीदार ने नहीं बेचा था गांव वाले अब उसी पर निर्भर थे लेकिन 1997 में उस हिस्से का पानी भी सूखने लगा और प्रशासन की तरफ से उसका रखरखाव भी नहीं हो रहा था। हर तरफ से परेशान होने के बाद हम गांव वालों ने खुद ही तालाब की देख रेख करने का फैसला किया। पिछले पांच साल से हम हर साल इस 5 एकड़ तालाब की खुदाई खुद मिलकर कर रहे हैं।

इस तालाब की मिट्टी बहुत उपजाऊ है इसलिए खुदाई में जो मिट्टी निकलती है उस मिट्टी को किसान खरीद कर अपने खेतों में डाल देते हैं इससे खुदाई का खर्चा भी निकल जाता है और किसानों को उपजाऊ मिट्टी भी मिल जाती हैं। 5 साल में अब तक यहां की खुदाई पर 7 लाख रुपए खर्च हो चुके हैं।केशव की मेहनत का नतीजा ये हुआ कि तालाब में पानी का स्तर बढ़ने लगा। अब जब गर्मियों में कहीं पानी नहीं होता तब सभी 12 गांव के पशु इसी तालाब में पानी पीने के लिए आते हैं।

जंमीदार के फर्जीवाड़े को लेकर केशव की लड़ाई अभी भी जारी है और वो सिटिज़न जर्नलिस्ट की टीम के साथ इस सिलसिले में बात करने के लिए कलेक्टर के पास भी गए। डीसी का कहना था कि जब सरकार के नाम तालाब है तो अब तक कार्रवाई क्यों नहीं हुई।
 

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