कहानी रालेगण सिद्धी की

विकास का अनूठा रास्ता अपनाकर रालेगण सिद्धी ने पहले महाराष्ट्र में, फिर भारत तथा आज विश्व में एक मुकाम बना लिया है। अब यह गाँव एक उदाहरण बन गया है क्योंकि अत्यंत कठिन परिस्थितियों से उबरकर अब यह एक उन्नत और आदर्श गाँव हो गया है। इस गाँव को देखने के लिए लोग देश-विदेश से आते रहते हैं।महाराष्ट्र में एक गाँव है रालेगण सिद्धी जो अहमदनगर जिले के पारनेर तालुके में पुणे से लगभग 80 कि.मी. दूर पुणे-औरंगाबाद राजमार्ग पर 4 कि.मी. अंदर छोटी-छोटी टेकरियों के बीच बसा है। आज से कुछ वर्ष तक यह गाँव भी आम भारतीय गाँव की तरह निर्धनता, अशांति, अज्ञानता, दुख, बेचैनी एवं बीमारियों के जाल में फंसा था। यहाँ वर्षा बहुत कम, महज 300-600 मि.मी. औसत होती थी। टेकरियाँ नंगी और पथरीली होने के कारण यहाँ पानी रुकता नहीं था। भूमि में पत्थर के टुकड़े होने एवं मैदानों और खेतों की मेड़ों में झाड़ नहीं होने के कारण उपजाऊ मृदा बड़ी तेजी से पानी के बहाव के साथ बहकर नाले में चली जाती थी। अतः खेतों में अन्न नाममात्र को ही होता था। पशुओं को चरने के लिए चारे की भी कमी थी। पीने का पानी पूरा नहीं पड़ता था जो आसपास के गाँवों से लाना पड़ता था। गाँव के लोग रोजी-रोटी के लिए आसपास के समृद्ध गाँवों या शहरों की ओर चले जाते थे। कुछ लोग अपनी रोजी-रोटी शराब बनाकर और बेचकर चलाते थे, जिनकी संख्या 25-30 के करीब थी। यहाँ कुछ पान की दुकानें थीं जिनमें बीडी-सिगरेट तथा तम्बाकूमिश्रित गुटका बिकता था। गाँव के लोग बीड़ी-सिगरेट तथा गुटका के अभ्यस्त हो गए थे। लोगों का जीवन-स्तर दयनीय था।

कुल 1982 की जनसंख्या एवं 971.56 हेक्टेयर क्षेत्रफल वाले इस दीन-हीन गाँव रालेगण सिद्धी में सामाजिक सरोकार रखने वाला 'अन्ना हजारे' नामक एक व्यक्ति आगे आया और गाँव का विकास शुरू हुआ। अन्नाजी के नेतृत्व में गाँव में सहयोग, समरसता, समझदारी और श्रमदान के अनूठे प्रयोग ने टिकाऊ विकास की एक सुप्रबंधित रणनीति द्वारा क्षेत्र विकास के साथ सामुदायिक विकास का सुंदर समन्वय प्रस्तुत किया।

अन्ना हजारे वर्ष 1965 के युद्ध के बाद सेना छोड़कर गाँव आ गए। गाँव आने के पश्चात वह गाँव की दयनीय स्थिति को देखते हुए गाँव के लोगों से गाँव के विकास के बारे में चर्चा करने लगे, मगर गाँव के लोग उनकी बात सुनने तक के लिए तैयार नहीं थे। वे कष्टों के कारण टूट चुके थे और काम से वापस आने पर मनोरंजन के लिए नशा-पानी में मस्त रहते थे। गाँव के विकास हेतु लोगों का सहयोग आवश्यक था। इसके लिए अन्नाजी ने लोगों का विश्वास जीतने के लिए सर्वप्रथम गाँव में स्थित पुराने मंदिर की मरम्मत अपने भविष्य-निधि से प्राप्त पैसों से करा दी। मंदिर के पुनरूद्धार से लोगों का विश्वास अर्जित करके लोगों को अपने साथ जोड़कर, उन्हें समझाकर गाँव के विकास के बारे में चर्चा आरंभ की ताकि लोग अपनी रोजी-रोटी गाँव में ही कमा सकें।

सर्वप्रथम अन्नाजी ने वर्षा के पानी को अधिकाधिक मात्रा में रोकने के उपायों की चर्चा की। गाँव वालों ने एकमत से अपनी सहमति दी। गाँव वालों ने अन्नाजी के नेतृत्व में खुद ही गाँव की जरूरत के अनुसार योजनाएँ बना लीं और उन पर अमल आरंभ किया। मगर लोगों के पास पर्याप्त पैसा नहीं था। अतः उन्होंने श्रमदान से कार्य करने का संकल्प किया और कार्य शुरू कर दिया। मगर शराब बेचने और पीने के कारण श्रमदान का कार्य कमजोर रहा। अन्नाजी ने गाँव के लोगों से सलाह-मशविरा की और कहा कि शराब उनकी सबसे बड़ी दुश्मन है। शराब के कारण गाँव का प्रत्येक घर एवं कीमती पैसा बर्बाद हो रहा था और लोग आलसी तथा कामचोर हो रहे हैं। शराब गाँव के विकास में बाधक साबित हो रही थी। अतः उन्होंने शराब बनाने, बेचने और पीने पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय लिया। परिणामतः गाँव वालों ने शराब का धंधा बंद कर दिया। साथ ही बीड़ी-सिगरेट तथा गुटखा बेचना भी बंद हो गया। उत्साहित गाँव वालों ने इस नशीले पदार्थों की होली जलाई।

सर्वप्रथम अन्नाजी ने वर्षा के पानी को अधिकाधिक मात्रा में रोकने के उपायों की चर्चा की। इसके बाद जनसहयोग से जल संरक्षण कार्य संचालित किया गया। इसके लिए 'चोटी से घाटी' नामक अभियान चलाया गया। बहते पानी को रोकना तथा रुके पानी को भूमि के अंदर भेजना।इसके बाद जनसहयोग से जल संरक्षण कार्य संचालित किया गया। इसके लिए 'चोटी से घाटी' (रिज टू वैली) नामक अभियान चलाया गया। बहते पानी को रोकना तथा रुके पानी को भूमि के अंदर भेजना—यह मंत्र टेकरियों के ढाल पर पेड़-पौधे लगाकर, खाइयाँ खोदकर, सख्ती से चराईबंदी लागू करके तथा पत्थरों, मिट्टी से बाँध (गल्ली लग) बनाकर पूरे मनोयोग तथा श्रमदान द्वारा अपनाया गया। इससे जल-बहाव समय 2 घंटे से बढ़कर 12 घंटे हो गया। परिणामस्वरूप, भूमि के अंदर जल-रिसाव बढ़ा और भूमि-कटाव रुका। जहाँ 8-10 कुओं में तीन माह मुश्किल से पानी मिलता था, 55 हेक्टेयर भूमि में केवल एक बरानी फसल होती थी तथा गर्मी में पीने का पानी भी नहीं रहता था, वहीं अब 500 हेक्टेयर में दो-दो फसलें ली जाती हैं; 100 कुओं में वर्ष भर पानी रहता है। टेकरियाँ हरी-भरी हो गईं और चारे की घास आवश्यकता से अधिक होने लगी। पैदावार बढ़ी, दुग्ध उत्पादन बढ़ा और गाँव में आर्थिक समृद्धि आई।

उचित वाटरशेड द्वारा जल संरक्षण, उचित फसल चक्र द्वारा जल का उचित उपयोग सुनियोजित करके तथा वैज्ञानिक तरीके अपनाकर मृदा-कटाव, गोबर की खाद डालकर जल तथा जमीन का संरक्षण किया गया। लोगों को समझा-बुझाकर चराईबंदी का कड़ाई से पालन किया गया। कम उत्पादक पशुओं के स्थान पर उत्तम नस्ल के पशुओं का वैज्ञानिक तरीके से पालन करके जानवरों का तथा वृक्षारोपण और जल संरक्षण द्वारा जमीन का संरक्षण किया गया। वहाँ की भूमि प्याज के लिए उपयुक्त थी। अतः वे प्याज उगाने लगे और आज यह गाँव 50 लाख रुपए तक के प्याज बाहर भेजता है। जिनके पास जमीन नहीं है उन्हें अन्य धंधा करने हेतु प्रेरित किया गया। अतः ऐसे लोग अकेले या समूह बनाकर छोटे-छोटे धंधे करने लगे। लोगों की आय अब इतनी अच्छी हो गई है कि वहाँ हर घर में टेलीविजन सेट, फोन तथा अन्य सुविधाएँ उपलब्ध हैं।

यहाँ प्राथमिक शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया गया। गाँव वालों ने बिना किसी बाहरी सहयोग और सहायता से 25 लाख रुपए की लागत से 'यादव बाबा विद्यालय' के भवन तथा छात्रावास का निर्माण कर डाला। कम खर्च में इतना बड़ा कार्य करने से लोगों का आत्मविश्वास बढ़ा और उनके मनोबल में वृद्धि हुई। इस विद्यालय की विशेषता यह है कि यहाँ उन छात्रों को दाखिला दिया जाता है जिन्हें अन्यत्र प्रवेश नहीं मिलता। अर्थात फेल हुए बच्चों को यहाँ सहर्ष दाखिल किया जाता है। बाहर के बच्चों के लिए छात्रावास की व्यवस्था है।

विकास कार्यों के साथ यहाँ के लोगों की विचारधारा भी बहुत विकसित हो गई है। आपस में भाईचारा इतना अधिक बढ़ गया है कि वहाँ जाति प्रथा लगभग टूट-सी गई है। यहाँ शादियाँ सामूहिक रूप से एक ही मंडप के नीचे संपन्न की जाती हैं और विवाह-भोज भी सामूहिक होता है। गाँव के तरूण-मंडल द्वारा प्रतिवर्ष 2 अक्टूबर को 'ग्राम माता' तथा 'ग्राम पिता' के रूप में पूजा तथा सम्मान देना, बीते वर्ष के दौरान गाँव में जन्में सभी बच्चों का बिना भेदभाव के नए कपड़े सिलवाना, गाँव के नाम को रोशन करने वाले युवकों, बच्चों (बोर्ड परीक्षा या खेलों में) को पुरस्कृत करना आदि कार्यक्रम रखा जाता है। परिणामस्वरूप गाँववासी प्यार के बंधन में बंध जाते हैं।

गाँव वालों ने सौर ऊर्जा की मदद से बिजली की व्यवस्था कर ली है। इनका उत्साह और उद्यम देखकर सरकार और बाहरी संस्थाएँ इनकी मदद हेतु आगे आने लगी हैं। यहाँ एक प्रशिक्षण केन्द्र भी स्थापित किया गया है जिसमें ग्राम-विकास का प्रशिक्षण दिया जाता है।

विकास का अनूठा रास्ता अपनाकर रालेगण सिद्धी ने पहले महाराष्ट्र में, फिर भारत तथा आज विश्व में एक मुकाम बना लिया है। अब यह गाँव एक उदाहरण बन गया है क्योंकि अत्यंत कठिन परिस्थितियों से उबरकर अब यह एक उन्नत और आदर्श गाँव हो गया है। इस गाँव को देखने के लिए लोग देश-विदेश से आते रहते हैं। अन्नाजी की सफलता से प्रेरित होकर अन्य प्रदेश के लोग भी उन्हें मार्गदर्शन देने हेतु बुलाने लगे। वह न केवल देश में, वरन विदेश में भी सम्मान पाने लगे हैं।

आइए, रालेगण सिद्धी से प्रेरणा लेकर हम सभी अन्नाजी के पथ पर चलकर महात्मा गाँधी के ग्राम स्वराज के सपने को साकार कर भारत को गौरवशाली बनाने के कार्य में प्रयासरत हों।

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