किसानों की शंकाओं का समाधान करे सरकार

अफसोस तो इस बात का है कि किसानों के नाम से जारी सरकारी योजनाओं का लाभ उन तक नहीं पहुँच पाया है। ज्यादातर योजनाएँ किसानों की बजाय दलालों के लिए वरदान साबित हुई हैं। गाँवों में सड़क से लेकर बिजली-पानी की मूलभूत सुविधाओं का अभाव देखा गया है। रोजगार के साधन आज भी नहीं है।

भारत कृषि प्रधान देश है। किसान अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। किसानों के जरिए से सभी का पेट भरता है। इसलिए उसे अन्नदाता पुकारा जाता है। आजादी के बाद से आज तक किसानों के नाम पर सिर्फ राजनीति हो रही है। आज भी देश में लगभग 50 प्रतिशत लोग कृषि से जुड़े हैं। लगभग 60 प्रतिशत खेतों में आज भी पानी नहीं पहुँच पाता है। ऐसे में किसान आज भी लचार है। कृषि सिंचाई योजना का लाभ अब भी किसानों को नहीं मिल पा रहा है।

किसानों की योजना के नाम पर मूर्ख बनाया गया है। कहीं कृषि ऋण पर, तो कहीं मुफ्त सिंचाई के नाम पर। किसान आज भी ठगे जा रहे हैं। योजना परियोजना के नाम पर हर सरकारों ने किसानों की भूमि को भी छीनने का प्रयास किया है। विकास के लिए अगर खंडहर और बंजर जमीनों, कंक्रीट और पत्थर के मकान बन जाएँगे तो किसानों में नीरसता और बढ़ेगी। आजादी के बाद आज तक किसानों के हित में ज्यादा कुछ नहीं किया गया। बल्कि व्यवस्था बदलती रही हैं।

अमीर जमीनदार होते जा रहे हैं। जमीनदार बेघर हो रहे हैं। तथाकथित किसान नेता भी किसानों को न्याय के संघर्ष के बहाने अपने सियासी मकसदों को साध रहे हैं। किसान आन्दोलन के जरिए सदा अपनी राजनीति को चमकाते नजर आते रहें हैं देश में कितने संगठन या नेता है जो किसानों के हित का दवा कर सकते हैं। ये किसानों को जमीन वापस नहीं दिला सके।

आज भी खाद,पानी,बीज की अवश्यकता है। उसे राजनीति और नेतागिरी से कोई मतलब नहीं है। अफसोस तो इस बात का है कि किसानों के नाम से जारी सरकारी योजनाओं का लाभ उन तक नहीं पहुँच पाया है। ज्यादातर योजनाएँ किसानों की बजाय दलालों के लिए वरदान साबित हुई हैं। गाँवों में सड़क से लेकर बिजली-पानी की मूलभूत सुविधाओं का अभाव देखा गया है। रोजगार के साधन आज भी नहीं है। अगर खेती करने योग्य जमीन छिनी जाती है, तो बेचारा किसान क्या करेगा। क्योंकि खेती ही उसका मुख्य व्यवसाय है।

सरकार खेती योग्य जमीन को अधिगृहित करती तो आने वाले समय में देश में खाद्यान का संकट खड़ा हो जाएगा। जिससे देश में भुखमरी भी फैल सकती है। क्योंकि अपने देश जनसंख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। रोजगार के साधन छिनने पर लोगों के पास दो ही रास्ते बचते हैं। एक तो अपराध दूसरा आत्महत्या। 1995 से 2014 के बीच लगभग तीन लाख किसान आत्महत्या कर चुका है।

पिछली सरकार में जो भूमि-अधिग्रहण बिल था उसमें जबरन जमीन लिए जाने की स्थिति को रोकने के लिए कानूनी रास्ता था, जबकि नये प्रावधान ने उस रास्ते को रोक दिया है। बिना अनुमति के जमीन लेना जायज नहीं। इस प्रावधान को सरकार ठीक करे। किसान की मन्जूरी से जमीन ली जाए। सरकार की प्राथमिकता में किसान होना चाहिए। क्योंकि भारत को आज स्थिति में लाने वाले यही हैं। उनकी सहमति का कोई महत्त्व नहीं रहेगा। किसानों की उपेक्षा करके हम विकास के वास्तविक लक्ष्यों को प्राप्त नहीं कर सकते।

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