कितना सुरक्षित है बोतलबंद पानी?

17 Aug 2014
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बूंद-बूंद से मुनाफे का कारोबार
किस हद तक हो रहा बीआईएस नियमों का पालन


.हममें से लगभग सभी लोग पानी खरीदकर पीना पसंद करते हैं क्योंकि हम समझते हैं कि हम ऐसा पानी पी रहे हैं जो हर लिहाज से सेहतमंद है। पानी को बोतल में बंद कर बूंद-बूंद से पैसा कमाने में लगी देशी विदेशी कंपनियों ने भी विज्ञापनों के जरिए लोगों को यह विश्वास दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है कि वे जो पानी पी रहे हैं वो पूरी तरह से सुरक्षित है। जानकारों का कहना है कि ऐसा नहीं है। हाल के दिनों में कई ब्रांडों के बोतलबंद पानी के नमूनों की जांच में तय मानक से कई गुणा ज्यादा कीटनाशक होने की बात सामने आई है। कई मामलों में तो ये बोतलबंद पानी नलों के पानी से भी खराब साबित हुए हैं। इससे साफ है कि सभी कंपनियां भारतीय मानक ब्यूरों (बीआईएस) के नियमों का पालन नहीं कर रही हैं।

बोतलबंद पानी बनाने में इस्तेमाल किए जाने वाले रसायन लोगों के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डाल रहे हैं। जागरुकता की कमी ने समस्या और बढ़ा दी है। कहीं नल के पानी को बोतलबंद कर मिनरल पानी के नाम पर बेचा जा रहा हो तो कहीं पाउच और बोतलों पर एक्सपायरी डेट तक नहीं है। धड़ल्ले से अमानक स्तर की पाउच और पानी की बोतलों की बिक्री हो रही है। बोतलों में पानी बेचने वाली ज्यादातर कंपनियां भूमि तल या फिर नदी, तालाब आदि से पानी लेती हैं। चिंता की बात तो यह है कि पानी के ये स्रोत पहले से ही कीटनाशक की चपेट में होते हैं। खामियाजा लोगों को भुगतना पड़ रहा है। सरकार ने पानी की गुणवत्ता को सुनिश्चित करने के लिए कुछ मापदंड बना रखे हैं। पर सवाल यह उठता है कि क्या कंपनियां इन नियमों का पालन कर रही हैं? अगर नहीं, तो सरकार इस बारे में क्या कर रही है?

पानी और इससे संबंधित अन्य कई मुद्दों पर जब सजग समाचार परिवर्तन ने पानी परियोजनाओं में दो दशक से भी ज्यादा का अनुभव रखने वाले के. शेषाद्री से बातचीत की तो पता चला कि बोतलबंद या पाउच पानी को लेकर लोगों में भी जागरुकता की कमी है। पेश है बातचीत के मुख्य अंश।

भूमिगत जल के निजीकरण को आप कैसे देखते हैं? क्या इससे बचा जा सकता था?
वैसे तो भारत में बोतलबंद पानी की शुरुआत 1965 में बिसलरी ने मुंबई से की थी लेकिन अमरीका और यूरोप में 19वीं सदी में बोतलबंद पानी का कारोबार शुरू हो गया था। जिस पानी पर कुदरत ने सब को बराबर का हक दिया है उसी पानी को सन 2002 की बनी जलनीति में सरकार ने कुदरत से मिले पानी का मालिकाना हक निजी कंपनियों को दे दिया। देशी वदेशी कंपनियों ने पानी को बोतल में बंद कर बूंद-बूंद से पैसे कमाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। पानी को बोतलबंद कर खनिजयुक्त मिनरल पानी कहकर बेचने लगे। फिर क्या था बोतलबंद पानी का यह अनावश्यक व्यापार तेजी से फैलने लगा।

सरकार ने भी कंपनियों को बढ़ावा देने में कोई कसर नहीं छोड़ी। पानी कुदरत की देन है और इस पर सबका बराबर का हक है। सरकार अगर लोगों तक स्वच्छ पानी पहुंचाने में सफल होती तो आज लाखों लोग बोतलबंद पानी पीने पर मजबूर नहीं होते। भूमिगत जल के निजीकरण की कोई जरूरत नहीं थी।

विदेशों की तुलना में बोतलबंद पानी के कारोबार में भारत की क्या स्थिति है?
बोतलबंद पानी की पहली कंपनी 1845 में पोलैंड के मैनी शहर में लगी। 1845 से आज दुनिया में दस हजार से भी ज्यादा कंपनियां इस धंधे में लगी हुई है। यह कारोबार आज सैंकड़ों अरब डॉलर का हो गया है। बोतलबंद पानी के वैश्विक बाजार का विस्तार और भी तेजी से हो रहा है और यह पिछले पांच साल में 40-45 फीसदी की रफ्तार से बढ़कर 85 से 90 अरब डॉलर तक पहुंच गया है। अकेले भारत की बात करें तो यहां यह कारोबार करीब 15 हजार करोड़ रुपए का है। 2020 तक इस बाजार का आकार 36,000 करोड़ रुपए तक पहुंच सकता है। भारत दुनिया में बोतलबंद पानी का इस्तेमाल करने वाला दसवां सबसे बड़ा देश है। बोतलबंद पानी के कारोबार में देश में करीब 2500 ब्रांड्स हैं, जिनमें से 80-85 फीसदी लोकल हैं। 20 लीटर वाले जार में पानी का बिजनेस करने वालों की हिस्सेदारी 3,500 करोड़ रुपए है और यह 28 फीसदी की रफ्तार से बढ़ रहा है।

क्या पाउच या बोतलबंद पानी किसी को बीमार कर सकता है?
यूं तो सीधे तौर पर यह साबित कर पाना मुश्किल है कि पाउच या बोतलबंद पानी पीने से ही किसी की तबीयत बिगड़ी है लेकिन इस बात से इंकार भी नहीं किया जा सकता है। तबीयत बिगड़ने के लाखों मामलों में कुछ का कारण बोतलबंद पानी भी हो सकता है। दिल्ली, मुंबई, बंगलुरु सहित कई शहरों में बोतलबंद पानी की जांच में उनमें कीटनाशक होने के कई मामले सामने आ चुके हैं। इस बात की बहुत संभावना है कि पेट की गड़बड़ी के हजारों मामले बोतलबंद पानी के कारण हो सकते हैं। ब्रिटेन के वेल्स और इंग्लैंड में हर साल भोजन से तबीयत बिगड़ने के 50 हजार मामले दर्ज किए जाते हैं। इनमें लगभग छह हजार मामलों का कारण बोतलबंद पानी रहता रहा है। कुछ वर्ष पहले विज्ञान और पर्यावरण केंद्र यानि सीएसई ने कई ब्रांडों की बोतलों की जांच में खतरनाक हद तक कीटनाशक रसायन तक पाया था। 34 नमूनों की जांच में कीटनाशकों की मात्रा सामान्य से काफी अधिक मिली। लगभग सभी नमूनों में मुख्य रूप से लिंडन और क्लोर पायरीफोस नाम कीटनाशक पाए गए थे। क्लोर पायरीफोस से कैंसर जैसी बीमारी का खतरा होता है।

जब पानी बनाने का तरीका एक है तब पानी बोतल की कीमतों में फर्क क्यों?
सच तो यह है कि किसी भी ब्रांड के लिए 10 से 12 रुपए से ज्यादा कीमत पर पानी बेचना गलत है। कंपनियां गुणवत्ता, शुद्धता आदि के नाम पर कीमत में फर्क नहीं कर सकती हैं। बोतलबंद पानी बनाने का तरीका एक ही है ऐसे में गुणवत्ता और शुद्धता के नाम पर 12 रुपए से ज्यादा कीमत नहीं वसूली जा सकती है। एक लीटर पानी की कीमत, चाहे वह किसी भी ब्रांड का हो, 20 रुपए करना गलत है।

इस बात में कितनी सच्चाई है कि चलती कार में बोतलबंद पानी नहीं पीना चाहिए?
चलती कार में जब पानी की बोतलें खुलती हैं तो रासायनिक प्रतिक्रियाएं तेज हो जाती हैं। रासायन पानी में घुलने लगते हैं। बोतलबंद पानी में एंटीमनी नामक एक रसायन का इस्तेमाल भी किया जाता है। पानी जितना पुराना होता जाता है, उसमें एंटीमनी की मात्रा उतनी ही बढ़ जाती है। शरीर में जाने से व्यक्ति का जी मिचलाने, उल्टी और डायरिया जैसी समस्याएं हो सकती हैं। अमेरिकी संस्था ‘नेचुरल रिसोर्सेज डिफेंस काउंसिल’ ने अपने एक अध्ययन में इस बात की पुष्टि की है।

बोतलबंद पानी और धूप का क्या रिश्ता है?
धूप सेहत के लिए जितनी आवश्यक है बोतलबंद पानी के लिए उतनी ही खतरनाक है। कंपनियां बोतलों पर यह तो लिख देती हैं कि बोतल को धूप से दूर रखें पर यह नहीं बताती क्यों? दरअसल, प्लास्टिक की बोतलों को मुलायम बनाने के लिए एक खास रसायन पैथलेट्स का इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन जागरुकता की कमी के कारण उपभोक्ता इसका विरोध नहीं कर रहे हैं। यह रासायन लोगों के शरीर के अंदर पहुंच उन्हें नुकसान पहुंचाते हैं। दरअसल सामान्य से थोड़ा अधिक तापमान में आते ही पैथलेट्स पानी में घुलने लगता है और पानी को सेहत के लिए खतरनाक बना देता है। इसका व्यक्ति की प्रजनन क्षमता पर नकारात्मक असर पड़ता है।

पानी खरीदते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
लिक्विड आइटम है तो उसमें लीटर का चिन्ह अवश्य देखें। लीटर का मानक मार्क रनिंग राइटिंग में लिखा अंग्रेजी का अक्षर ‘एल’ है। कैपिटल एल (L) अथवा एलटीआर (LTR) लिखा जाना गलत है। पानी का पाउच या बोतल खरीदते समय एक बार उसकी जांच जरूर कर लें। बिना एक्सपायरी डेट लिखे पानी के पाउच और बोतल ना खरीदें। यदि पानी गुणवत्तापूर्ण नहीं है तो सेहत पर विपरीत प्रभाव पर सकता है।

.ऐसे कई पाउच और बोतलबंद पानी बेचे जा रहे हैं जिन पर बीआईएस (ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्स) का मार्क तो लगा होता है पर उसके मापदंडों का पालन नहीं किया जाता है। उदाहरण के लिए पाउच या बोतल कब एक्सपायर होगा या कब बना इसकी भी जानकारी नहीं छपी होती है। यह अपराध है।

कई कंपनियां भारतीय मानक ब्यूरो के लाइसेंस के बिना आईएसआई मार्क का प्रयोग कर रही है। सही आईएसआई मार्क को पहचानने में गलती नहीं करें।

क्या है आईएसआई मार्क और इसे कौन देता है?
केंद्रीय खाद्य मंत्रालय के अनुसार बोतल या पैकेट आदि में बिकने वाले पानी या मिनरल वाटर की मैन्युफैक्चरिंग, बिक्री और प्रदर्शन बीआईएस प्रमाणन के बिना नहीं की जा सकती है। किसी भी उत्पाद की गुणवत्ता, विश्वसनीयता और सुरक्षा सुनिश्चित करने के बाद बीआईएस उस उत्पाद को थर्ड पार्टी गारंटी के तौर पर आईएसआई मार्क देता है। ग्राहकों की क्वॉलिटी से जुड़ी शिकायतों की जांच-पड़ताल कर उन पर कार्रवाई करना बीआईएस का एक और काम है।

बाजार में असली आईएसआई मार्क से मिलते-जुलते मार्क वाले कई उत्पाद हैं। ग्राहक कैसे पहचाने असली-नकली आईएसआई मार्क को?
असली आईएसआई लोगो आयताकार होता है। इसकी लंबाई और चौड़ाई के बीच 4:3 का अनुपात होता है। इसके ऊपर लिखा होता है नंबर और उसके बाद एक नंबर सब प्रॉडक्ट पर होता है, लेकिन नंबर अलग-अलग होता है। यह नंबर प्रॉडक्ट की कैटिगरी दर्शाता है। निचले हिस्से पर .. के साथ सात डिजिट का लाइसेंस नंबर लिखा होता है। यह नंबर उस यूनिट को पहचानने में मददगार होता है, जहां उसका प्रॉडक्शन हुआ।

क्या पानी व्यापार की कीमत गरीबों और धरती को चुकानी पड़ रही है?
कई अध्ययनों में यह बात सामने आई है कि जिन क्षेत्रों में शीतल पेय बनाने के संयंत्र लगे हैं, वहां के भूजल के स्तर में बहुत तेजी से गिरावट आई है। खामियाजा उस इलाके में रहने वाले लोगों को उठाना पड़ता है। एक बोतल पानी तैयार करने में करीब दो लीटर पानी बर्बाद हो जाता है। इसके बावजूद बाजार में आने वाला बोतलबंद पानी स्वास्थ्य की दृष्टि से पीने योग्य ही है, इस बात की कोई गारंटी नहीं है।

क्या बोतलबंद पानी से दूर रहना चाहिए?
ऐसा भी नहीं है कि सारी कंपनियां नियमों का उल्लंघन कर रही हैं और बोतलबंद पानी सेहत के लिए एक दम से खराब है। जरूरत है तो बोतलबंद पानी को लेकर जागरुक रहने की। जब तक सरकार पानी और सेहत को लेकर बनाए गए नियम, कानून और मानकों को सख्ती से लागू कर इस पर निगरानी नहीं रखेगी तब तक मुनाफाखोरी में लगी है कई कंपनियां लोगों की सेहत से खिलवाड़ करने से बाज नहीं आएंगी। लोगों को भी चाहिए कि वे सही बोतल बंद पानी खरीदें और इसके इस्तेमाल में लापरवाही नहीं बरतें।

एक बार पैक होने के बाद बोतलबंद पानी को कितने समय तक इस्तेमाल किया जा सकता है?
पहले पानी को बंद करने के बाद इसे 6 महीने तक इस्तेमाल किया जाता था। लेकिन ऐसा तभी संभव है जब पानी को रखने के सभी नियमों का पालन किया जाए। एक या दो महीने से ज्यादा पुराना पानी खरीदने से बचना बेहतर होगा।

आईएसआई मार्क वाले किसी उत्पाद की गुणवत्ता से संतुष्ट नहीं होने या उत्पाद पर शक होने से ग्राहक क्या करे?
आईएसआई मार्क वाले उत्पाद की गुणवत्ता के खिलाफ मिलने वाली शिकायतों की जांच के लिए तीन महीने का समय निर्धारित है। इस समय सीमा में सभी तरह की जांच भी शामिल है। आईएसआई मार्क का दुरुपयोग करने वाले शख्स को एक साल की सजा या 50 हजार रुपए तक का जुर्माना या फिर दोनों हो सकते हैं। बीआईएस की देश के कई शहरों में जांच लैब हैं। यहां आप बीआईएस द्वारा तय फीस देकर किसी भी उत्पाद की गुणवत्ता चेक करा सकते हैं। अगर आप आईएसआई मार्क वाले किसी उत्पाद की गुणवत्ता से संतुष्ट नहीं हैं तो बीआईएस को लिख सकते हैं। बीआईएस का बेवसाइट है।

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