कल के लिये जल बचाएँ (Essay on ‘Save water today for tomorrow’ in Hindi)


मणिपुर में तालाबों में पानी एकत्र कर सीढ़ीदार खेतों की सिंचाई की गई। बिहार और झारखण्ड में वर्षाजल के संरक्षण हेतु आहर-पईन प्रणाली प्रचलित थी, इस पद्धति से ढालू जमीन से निकलकर बहने वाले बाढ़ के पानी को तालाबों में एकत्र किया जाता था, जिसे ‘आहर’ कहा जाता था। पहाड़ी नदियों के पानी को खेतों तक पहुँचाने के माध्यम को ‘पईन’ कहा जाता है। इसी प्रकार छत्तीसगढ़ में वर्षा को ध्यान मे रखते हुए उपयुक्त फसलों का चुनाव किया गया। यहाँ पेयजल, निस्तारण और खेती में पानी की जरूरत को देखते हुए गाँव-गाँव में तालाब बनवाए गए। जल ही जीवन है। मानव शरीर की रचना पंच तत्वों से हुई है, जिसमें जल का अपना अलग महत्त्व है। मनुष्य के शरीर की नसों में बहने वाले खून का पानी से गहरा सम्बन्ध है। अथर्ववेद में कहा गया है कि-

अपो वृत्रं विवासं षराहन् प्रावत ते वनं पृथिवी सचेताः।
प्रणां सि समुद्रीयापयैनोः पतिर्भवः छवसा शूर घृष्णों।।


इस देववाणी का तात्पर्य है कि हे साहसी शूर पुरुष! व्यर्थ बहकर समुद्र में जाने वाले पानी को बाँध बनाकर, रोककर, नहरों में भेजकर, शेष बचे हुए पानी को समुद्र में जाने दिया जाये अर्थात पानी की बूँद-बूँद का उपयोग करें। वेदों में उल्लेख किया गया है कि भूमि को जल चाहिए और जल को वन, अर्थात पानी से सिंचाई बिना कृषि अधूरी है। समय बदलता जा रहा है। मानसून धोखा देने लगा है, कभी अति वृष्टि कभी अल्प वृष्टि, कहीं, सूखा, कहीं बाढ़, पर्यावरण के असन्तुलन का यह परिणाम है।

मनुष्य हो, पशु हो या फसलें हों- सभी को पानी की जरूरत होती है। जल संकट को देखते हुए जल संरक्षण के प्रति जागरुकता होना जरूरी है। आँकड़ों से ज्ञात होता है कि वर्ष 1951 में प्रतिव्यक्ति पानी की उपलब्धता 5,177 घन मीटर थी, जो कि वर्ष 2001 में 1820 घन मीटर पर आकर सीमित हो गई है। जिसके लिये वर्ष 2050 में प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता 1140 घनमीटर बचेगी, क्योंकि जनसंख्या तेजी से बढ़ती जा रही है।

वर्ष 2001 में भारत की जनसंख्या 102.7 करोड़ थी, जो कि वर्ष 2025 में 139.4 करोड़ होने का अनुमान है, वर्ष 2025 में जल की उपलब्धता 1341 घनमीटर बचेगी। यह जनसंख्या वर्ष 2050 में 164.0 करोड़ हो जाएगी। कृषि विकास में सिंचाई का महत्त्वपूर्ण योगदान है, यदि फसल को जरूरत के समय पानी मिल जाता है तो कृषि विकास को कोई नहीं रोक सकता। भारत में कृषि की उत्पादकता 2 से 2.5 टन प्रति हेक्टेयर है, जिसे उन्नत सिंचाई साधनों द्वारा 3.5 से 4.0 टन तक बढ़ाया जा सकता है।

जल की आवश्यकता


जल की आत्मनिर्भरता की दृष्टि से भारत संसार में दूसरे स्थान पर आता है। सर्वेक्षण से ज्ञात हुआ है कि नल की टोंटी से एक-एक बूँद पानी टपकता है, यदि उसमें बाल्टी लगाकर जल संग्रहण किया जाये तो वर्ष भर में दस हजार लीटर पानी टपकता है, यदि उसमें बाल्टी लगाकर जल संग्रहण किया जाये तो वर्ष भर में दस हजार लीटर पानी एकत्र हो सकता है। इसलिये बूँद-बूँद का संग्रहण कर पानी बचाइए।

 

तालिका-1ः भारत में प्रतिव्यक्ति जल की उपलब्धता (करोड़ घन मीटर)

वर्ष

जनसंख्या (करोड़)

प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता (घन मीटर)

1951

36.1

5,177

1955

39.5

4,732

1991

84.6

2,209

2001

102.7

1,820

2025

139.4 (अनुमानित)

1,341

2050

164.0 (अनुमानित)

1,140

स्रोत - कुरुक्षेत्र, फरवरी 2011

 

मनुष्य को प्रतिदिन 45 लीटर पानी की जरूरत होती है, जबकि पशुओं को प्रतिदिन 15 से 155 लीटर तक पानी की जरूरत होती है। भैंस को 155 लीटर, गाय-बैल को 135 लीटर, बकरी-भेड़ को 8 लीटर, घोड़ा-ऊँट को 45 लीटर और सुअर को 15 लीटर पानी की प्रतिदिन जरूरत होती है। बढ़ती हुई जनसंख्या को देखते हुए पानी की जरूरत दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। पहले जहाँ 50 फुट जमीन के नीचे पानी निकल आता था, वहाँ अब 500 फुट से ज्यादा नलकूप हेतु खुदाई की खुदाई की जाने लगी है।

तालिका-2 से स्पष्ट होता है कि भारत में विभिन्न प्रकार के उद्योगों के लिये प्रति वर्ष 4000 करोड़ घन मीटर पानी की खपत होती है।

 

तालिका-2 : भारत में पानी की वार्षिक खपत (करोड़ घन मीटर)

उद्योग

उद्योगों से निकसित जल

वर्षिक खपत

थर्मल पावर प्लांट

2700.07

3515.74

अभियांत्रिकी

155.13

201.99

पल्प एवं पेपर

69.57

90.58

कपड़ा

63.73

82.98

इस्पात

39.68

51.66

शक्कर

14.97

19.49

उर्वरक

5.64

7.35

अन्य

24.13

31.41

योग

3072.92

4001.20

स्रोतः एकीकृत जल संसाधन विकास योजना का राष्ट्रीय आयोग, जल संसाधन मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली

 

लगातार वनों के घटते क्षेत्रफल और प्रकृति से की गई छेड़छाड़ के कारण वर्षा अनियमित होने लगी है। जल संग्रहण की ओर नागरिकों द्वारा कम ध्यान दिया जा रहा है। वर्ष 1990 में 5100 करोड़ घन मीटर पानी की खपत थी, वह वर्ष 2010 में बढ़कर 6930 करोड़ घन मीटर हो गई, यह खपत वर्षा 2025 में बढ़कर 9420 करोड़ घन मीटर हो जाने का अनुमान लगाया गया है।

जल संरक्षण


आदिकाल से जल संरक्षण के लिये तरह-तरह के प्रयास किये जा रहे हैं, जिसका उल्लेख वेदों में किया गया है। चन्द्रगुप्त मौर्य के शासन काल में (ईसा से 321 वर्ष पहले) भारत में किसान, तालाब और बाँध से सिंचाई करते थे। वे उस समय भी वर्षा की महत्ता, मिट्टी के प्रकारों और जल प्रबन्धन के तरीकों को अच्छी तरह समझते थे। राजा भोज ने ग्यारहवीं शताब्दी में भोपाल के पास बड़ा तालाब बनवाया था, जो कि तकनीकी दृष्टि से उपयुक्त था। इस तालाब का पानी लगभग 65 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में फैला था। भोपाल के इस तालाब के बारे में आज भी कहा जाता है:

ताल है भोपाल ताल, और सब तलैया


जल संरक्षण के लिये भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार विभिन्न प्रकार की पद्धतियाँ अपनाई जा रही हैं। हिमालय के समीप रहने वाले लोगों ने स्रोतों और झरनों के पानी को रोका, जल मार्ग बनाकर एक स्थान से दूसरे स्थान तक 15 किलोमीटर की दूरी तय कर पानी पहुँचाया। नागालैंड की ढालू भूमि में मृदा संरक्षण ‘जाबे’ पद्धति अपनाई। निकोबार द्वीप समूह में आदिवासियों ने बाँसों की सहायता से जल संग्रहण किया, जिससे पेयजल की समस्या का हल निकला। मणिपुर में तालाबों में पानी एकत्र कर सीढ़ीदार खेतों की सिंचाई की गई। बिहार और झारखण्ड में वर्षाजल के संरक्षण हेतु आहर-पईन प्रणाली प्रचलित थी, इस पद्धति से ढालू जमीन से निकलकर बहने वाले बाढ़ के पानी को तालाबों में एकत्र किया जाता था, जिसे ‘आहर’ कहा जाता था। पहाड़ी नदियों के पानी को खेतों तक पहुँचाने के माध्यम को ‘पईन’ कहा जाता है। इसी प्रकार छत्तीसगढ़ में वर्षा को ध्यान मे रखते हुए उपयुक्त फसलों का चुनाव किया गया। यहाँ पेयजल, निस्तारण और खेती में पानी की जरूरत को देखते हुए गाँव-गाँव में तालाब बनवाए गए। छत्तीसगढ़ में आज भी 1567 सिंचाई जलाशय और 45 हजार से अधिक ग्रामीण तालाब हैं।

 

तालिका -3 भारत में पानी की वार्षिक आवश्यकता

क्षेत्र

1990 करोड़ घन मी.

प्रतिशत

2010 करोड़ घनमीटर

प्रतिशत

2025 करोड़ घनमीटर

प्रतिशत

सिंचाई उद्योग +

4600

90.20

5,360

77.34

6880

73.03

ऊर्जा

340

6.66

41.9

6.04

800

8.49

अन्य

160

3.41

115.01

16.62

27.40

29.08

योग

5100

100.00

6,930

100.00

9,420

100.00

स्रोतः एकीकृत जल संसाधन विकास योजना का राष्ट्रीय आयोग, जल संसाधन मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली

 

प्रदूषित होने से बचाएँ जल


शहरों में गन्दगी, कचरे, कीटनाशकों, फफूंद नाशकों के अन्धाधुन्ध उपयोग कारखानों के अपशिष्टों से जल प्रदूषित होता जा रहा है। जल को स्वच्छ रखने के लिये उसे गन्दगी, कीटनाशकों, फफूंदनाशकों और कारखानों के अपशिष्टों के सम्पर्क से दूर रखना होगा। बढ़ती हुई आबादी की जल सम्बन्धी जरूरत को पूरा करने के लिये भागीदारी से जल प्रबन्धन करना होगा, जैसे-

1. ऐसी फसलें बोई जाएँ जिन्हें कम पानी की जरूरत हो, कम सिंचाई होने पर भी अधिक लाभ प्राप्त हो।
2. फसलों की खेती हेतु फसल-चक्र अपनाएँ।
3. फसलों में सिंचाई हेतु टपक (Drip) और फव्वारा (Sprinkler) सिंचाई पद्धति अपनाएँ।
4. शहरों में आवास गृहों, कार्यालयों के छत के पानी को भूमि के नीचे उतारने के लिये ‘वाटर हार्वेस्टिंग’ अपनाएँ।
5. शहरों में पानी की बर्बादी रोकें। पानी को व्यर्थ न बहने दें।

भारत सरकार के जल संसाधन मंत्रालय द्वारा केन्द्रीय जलनीति के प्रभावी क्रियान्वयन हेतु भूजल उपलब्धता, भूजल अनुमान एवं प्रबन्धन पद्धति और परम्परागत, जल स्रोतों की जानकारी हेतु प्रबन्धन सूचना पद्धति तैयार की जा रही है, जिस पर एक क्लिक करने से इंटरनेट से जल संसाधनों की जानकारी मिल सकेगी।

सह प्रध्यापक (कृषि अर्थशास्त्र)प्रचार अधिकारी
कृषि महाविद्यालय, रायपुर- 492006(छत्तीसगढ़)

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