कला का बदलता स्वरूप

22 Feb 2019
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देवलालीकर
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वाल्मीकि टाइगर रिजर्व (फोटो साभार - द टेलीग्राफ)वन्यजीवों व पर्यावरण को लेकर सरकारी तंत्र की गम्भीरता जगजाहिर है। इस देश ने ‘विकास’ के लिये वन्यजीवों व पर्यावरण के साथ खिलवाड़ हर दौर में देखा है और अब भी गाहे-ब-गाहे दिख ही जाता है।

राज्य से लेकर केन्द्र की सरकार में इनको (वन्यप्राणियों) को लेकर निष्ठुरता दिखती है।

वन्यजीवों की अनदेखी और उनकी सुरक्षा, संरक्षण को लेकर लापरवाही का बड़ा नमूना बिहार में दिखा है। करीब डेढ़ दशक से बिहार की सत्ता पर काबिज नीतीश सरकार ने वन्यजीवों की देखभाल के मामले में नई मिसाल पेश कर दी है। इसका खुलासा हुआ है बीते दिनों बिहार विधानसभा में पेश की गई कंट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल ऑफ इण्डिया यानी कैग (सीएजी) की रिपोर्ट में।

बिहार सरकार ने राष्ट्रीय उद्यानों व वन्यजीव अभयारण्यों को लेकर जो ‘कारनामा’ किया है, उसका वर्णन सीएजी को अपनी रिपोर्ट में कई पन्नों में करना पड़ा है। रिपोर्ट बताती है कि किस तरह बिहार सरकार अभयारण्यों का प्रबन्धन और वन्यजीवों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में किस तरह विफल रही।

बिहार में कुल छह वन्यजीव अभयारण्य और पाँच पक्षी अभयारण्य हैं। इनका दायरा 3378 वर्ग किलोमीटर तक फैला हुआ है। इन अभयारण्यों में प्रख्यात वन्यजीव अभयारण्य वाल्मीकि टाइगर रिजर्व, मुंगेर स्थित भीमबाँध अभयारण्य, गया का गौतमबुद्ध अभयारण्य, कैमूर व रोहतास में स्थित कैमूर अभयारण्य, नालंदा का राजगीर अभयारण्य, बेतिया का उदयपुर अभयारण्य, बरैला झील सलीम अली पक्षी अभयारण्य, कांवर झील पक्षी अभयारण्य, कुशेश्वर स्थान पक्षी अभयारण्य, नागी बाँध पक्षी अभयारण्य और नक्ती बाँध पक्षी अभयारण्य शामिल है।

इसके अलावा 60 किलोमीटर में फैला हुआ विक्रमशिला गंगा डॉल्फिन अभयारण्य भी है। यानी कुल मिलाकर बिहार में 12 अभयारण्य हैं।

अभयारण्यों के अलावा करीब 3400 वर्ग किलोमीटर में फैला वनक्षेत्र है, जो अधिसूचित है। वन क्षेत्र और अभयारण्यों को मिलाकर कुल अधिसूचित प्राकृतिक वनक्षेत्र 6845 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। यह क्षेत्र बिहार के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 7.27 प्रतिशत है।

कुशेश्वर स्थान पक्षी अभयारण्यकुशेश्वर स्थान पक्षी अभयारण्य (फोटो साभार - दरभंगा ऑनलाइन)कैग ने वर्ष 2012 से लेकर वर्ष 2017 के बीच पर्यावरण व वन विभाग द्वारा इन अभयारण्यों में प्रतिपादित गतिविधियों का मूल्यांकन किया, जिसमें कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आये हैं।

कैग की रिपोर्ट के अनुसार, वाल्मीकि टाइगर रिजर्व को छोड़ दें, तो बाकी 11 अभयारण्यों में से किसी में भी ऐसे कर्मचारियों की कोई नियुक्ति नहीं हुई, जो वन्यजीवों की सुरक्षा और संरक्षण सुनिश्चित कर सकें। रिपोर्ट से पता चला है कि क्षेत्रीय वन प्रमंडल खुद ही अपने नियमित काम के अलावा सुरक्षा संरक्षण का जिम्मा भी सम्भालते हैं। यानी कि इन वनों में वन्यजीवों की देखभाल भगवान भरोसे ही छोड़ दी गई।

रिपोर्ट में बताया गया है कि भारतीय वन सेवा के क्षेत्र में कर्मचारियों की 34 प्रतिशत और बिहार वन सेवा क्षेत्र में कर्मचारियों की 66 प्रतिशत कमी रही। यही नहीं, अभयारण्यों में सबसे अहम भूमिका निभाने वाले फॉरेस्ट रेंज अफसर, वनपाल, वन रक्षक जैसे कर्मचारियों की भी भारी कमी थी।

कैग रिपोर्ट में कहा गया है, ‘स्वीकृत बल के 80 प्रतिशत की कुल कमी ने प्रत्यक्ष रूप से दिन-प्रतिदिन के संरक्षण उपायों जैसे घास भूमि प्रबन्धन, अग्निरेखा प्रबन्धन, निगरानी व पर्यवेक्षण आदि को प्रभावित किया। मार्च 2017 तक वन संरक्षक के अधिकार क्षेत्र जो आदर्श रूप से लगभग 500 हेक्टेयर होना चाहिए, वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के मामले में 4500 हेक्टेयर हो गया।’ मतलब कि जिस वन संरक्षक का अधिकार क्षेत्र महज 500 हेक्टेयर में होना चाहिए था, कर्मचारियों की कमी के कारण उसे अपने अधिकार क्षेत्र से 9 गुना अधिक क्षेत्रों को देखना पड़ा। ऐसे में जाहिर है कि काम प्रभावित हुआ होगा।

कैग ने वन्यजीवों को लेकर बरती गई लापरवाही का बिंदुवार वर्णन किया है। कैग की रिपोर्ट में कहा गया है, ‘राज्य सरकार ने पिछले 20 वर्षों के दौरान किसी भी क्षेत्र में कर्मियों की स्थायी नियुक्ति नहीं की थी। अग्र पंक्ति के कर्मचारियों की अत्यधिक कमी के कारण विभाग ने आकस्मिक कर्मचारी को काम में लगाया। अधिकांश अप्रशिक्षित ग्रामीणों को खोजी, शिकार विरोधी दल, गश्ती आदि कामों में लगाया गया, जिस कारण सुरक्षा व संरक्षण की गुणवत्ता और प्रभावशीलता प्रभावित हुई।’

कैग की रिपोर्ट के अनुसार मार्च 2017 तक बिहार में भारतीय वन सेवा के कुल स्वीकृत पद 74 थे, जिनमें से महज 49 पदों पर नियुक्ति हुई। शेष 25 पद खाली रहे।

इसी तरह बिहार वन सेवा के कुल स्वीकृत पद 64 थे। लेकिन, महज 23 पदों पर ही नियुक्ति हुई। 45 पद रिक्त रहे। वन रेंज पदाधिकारी, वनपाल और वनरक्षकों के पद भी रिक्त पड़े हुए थे।

कैग रिपोर्ट में बताया गया है कि वनरक्षक के 2017 स्वीकृत पद थे, लेकिन तैनाती केवल 230 पदों पर ही हुई।

कांवर झील पक्षी अभयारण्यकांवर झील पक्षी अभयारण्यभारतीय वन सेवा, बिहार वन सेवा, वन रेंज पदाधिकारी, वनपाल और वनरक्षक के कुल स्वीकृत 2824 पदों में से 617 पदों पर ही नियुक्ति की गई। दिलचस्प ये है कि भारतीय वन सेवा के 25 पद रिक्त थे, लेकिन नियुक्त 49 अधिकारियों में से सात अधिकारियों की तैनाती वन से जुड़े कार्यों के लिये नहीं थी। बल्कि वे केन्द्र/राज्य सरकार के विभागों में प्रतिनियुक्ति पर थे। इसका मतलब ये है कि 49 में से सात अधिकारी वन का कार्य नहीं देख रहे थे।

कैग रिपोर्ट में बताया गया है कि प्रमंडल स्तर पर भी स्वीकृत पदों की तुलना में नियुक्ति बहुत कम हुई। वाल्मीकि टाइगर रिजर्व में रेंज पदाधिकारी, वनपाल और वन संरक्षक के कुल 215 पदों में से महज 37 पदों पर ही नियुक्ति हुई थी। अन्य पाँच वन्यजीव अभयारण्यों में कुल स्वीकृत 832 पदों में से 151 पदों पर ही नियुक्ति की गई थी।

सभी 12 अभयारण्यों में स्वीकृत पदों की बात करें, तो कुल पद 1371 थे जिनमें से 269 पद ही भरे गए थे। कैग रिपोर्ट में लिखा गया है, ‘अत्याधुनिक स्तर पर कर्मचारियों की गम्भीर कमी के कारण मार्च 2017 तक वनरक्षकों का अधिकार क्षेत्र 5 किलोमीटर के आदर्श क्षेत्र से बढ़कर 45 वर्ग किलोमीटर हो गया। विभाग ने दैनिक मजदूरों को वाल्मीकि टाइगर रिजर्व में खोजी के रूप में शिकार-रोधी दल, गश्त कार्यों इत्यादि में लगाया। वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के सुरक्षा कार्यों में स्थानीय ग्रामीणों को वन्यजीव प्रबन्धन में बिना प्रशिक्षण के अनुबन्ध पर लगाया गया।’

वर्ष 2012-2017 के दौरान वाल्मीकि टाइगर रिजर्व में दैनिक मजदूरों की तैनाती 292 से 557 के बीच थी। हालांकि, नियमानुसार अनुबन्धित कर्मचारियों का अग्र पंक्ति के कर्मचारियों के रूप में प्रतिस्थापन नहीं हो सकता है। राज्य सरकार ने कर्मचारियों की किल्लत से संरक्षण और सुरक्षा कार्यों के प्रभावित होने की बात स्वीकार की है।

बिहार सरकार ने कैग को बताया कि वर्ष 2014 में रिक्त पदों को भरने की कार्रवाई शुरू की गई थी। इसका जिम्मा बिहार लोक सेवा आयोग, बिहार कर्मचारी चयन आयोग को दिया गया था और नियुक्ति प्रक्रिया दिसम्बर 2017 तक पूरी होनी है।

कैग ने इस जवाब से असन्तोष जाहिर किया और अपनी रिपोर्ट में कहा, ‘विभाग का जवाब तर्गसंगत नहीं है क्योंकि 2012 से पहले अभयारण्यों में बड़ी संख्या में वैकेंसी मौजूद थीं और विभाग ने खाली पदों को भरने के लिये देर से कदम उठाया।’

रिपोर्ट में आगे लिखा गया है, ‘ऐसा कोई साक्ष्य नहीं था कि विभाग ने इसके लिये बिहार लोक सेवा आयोग/बिहार कर्मचारी चयन आयोग के साथ कोई मामला उठाया था। आगे यह देखा गया कि बिहार लोक सेवा आयोग और बिहार कर्मचारी चयन आयोग में प्रक्रियागत विलम्ब और बिहार कर्मचारी चयन आयोग द्वारा परीक्षा रद्द करने के कारण भर्ती प्रक्रिया में देरी हुई।’

रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि किसी भी अभयारण्य में सुरक्षा कार्यों के लिये आवश्यक उपकरण नहीं थे।

अभयारण्यों में सुरक्षा उपायों की कमी, शिकार-रोधी शिविर या कैम्प नहीं होने और अपर्याप्त कर्मचारियों की तैनाती के कारण ही वाल्मीकि टाइगर रिजर्व में वन्यजीवों पर हमले की वारदातें भी हुईं। वर्ष 2015-2016 में यानी एक वर्ष की अवधि में ही बाघों के शिकार के चार मामले सामने आये थे।

अन्य वन्यजीवों के शिकार के मामलों को जोड़ दें, तो बहुत चिन्ताजनक तस्वीर उभर कर सामने आती है।

कैग की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2013-2014 में (वन्यजीवों के) शिकार के तीन मामले दर्ज किये गए थे, जो वर्ष 2014-2015 में बढ़कर छह हो गए। वर्ष 2015-2016 में वाल्मीकि टाइगर रिजर्व में शिकार के मामले 12 दर्ज किये गए, जो वर्ष 2016-2017 में बढ़कर 28 पर पहुँच गए थे। कैग की रिपोर्ट बताती है कि प्रबन्धन इस बात से पूरी तरह बेखबर था कि वाल्मीकि टाइगर रिजर्व में गश्त और सुरक्षा के जो इन्तजाम थे, वे नाकाफी थे। यह खुलासा अपने आप में इस बात का सबूत है कि प्रशासन वन्यजीवों की सुरक्षा को लेकर गम्भीर नहीं था।

राज्य के अभयारण्यों के प्रबन्धन के लिये राज्य सरकार की तरफ से प्रबन्धन योजना सौंपी जाती है, जिसके आधार पर केन्द्र सरकार हर अभयारण्य को आर्थिक मदद देती है। यह योजना राज्य का पर्यावरण व वन विभाग तैयार करता है। यह आर्थिक मदद हर साल मिलती है।

इस मामले में कैग रिपोर्ट से जानकारी मिली है कि ज्यादातर अभयारण्यों की प्रबन्धन योजनाएँ दी ही नहीं गईं, जिस कारण इनके लिये केन्द्र सरकार की तरफ से बहुत मामूली फंड जारी किया गया। और ऐसा एक-दो साल नहीं बल्कि 2012 से 2017 तक लगातार हुआ।

बिहार में मौजूद 12 अभयारण्यों में से महज तीन अभयारण्यों की ही प्रबन्धन योजनाएँ दी गईं, जिनके आधार पर 187.64 करोड़ रुपए की आर्थिक मदद दी गई। अन्य नौ अभयारण्यों के लिये कोई प्रबन्धन योजना नहीं दी गई, लिहाजा केन्द्र सरकार की तरफ से इनकी सुरक्षा और संरक्षण के लिये पाँच वर्षों में महज 5.54 करोड़ रुपए दिये गए।

विक्रमशिला गंगा डॉल्फिन अभयारण्यविक्रमशिला गंगा डॉल्फिन अभयारण्य (फोटो साभार - द थर्ड पोल)विक्रमशिला गंगा डॉल्फिन अभयारण्य को लेकर भी यही रवैया रहा। गंगा डॉल्फिन को केन्द्र सरकार ने अक्टूबर 2009 में ही राष्ट्रीय जलीय पशु घोषित किया था। लेकिन, राज्य सरकार की तरफ से प्रबन्धन योजना नहीं भेजी गई, जिस कारण केन्द्र की तरफ से कोई सहायता नहीं मिली। अलबत्ता, बिहार सरकार ने डॉल्फिन मित्र के रूप में आकस्मिक कर्मचारियों की नियुक्ति के लिये 43 लाख रुपए आवंटित किये थे।

फंड आवंटित नहीं होने को लेकर राज्य सरकार ने हास्यास्पद तर्क दिया है कि चूँकि वाल्मीकि टाइगर रिजर्व, कैमूर और भीमबाँध में जैवविविधता ज्यादा है और इनका दायरा भी बड़ा है, इसलिये इनके लिये ज्यादा फंड मिले और बाकियों को कम। कैग ने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा है कि प्रबन्धन योजनाएँ नहीं होने के कारण ही नौ अभयारण्यों को निधि से वंचित रहना पड़ा।

कैग की रिपोर्ट यह भी बताती है कि वाल्मीकि टाइगर रिजर्व से होकर गुजरने वाली रेलवे लाइन पिछले पाँच वर्षों में दो दर्जन से ज्यादा जानवरों की मौत का कारण बनी।

दरअसल, इस टाइगर रिजर्व से होकर गुजरने वाली रेलवे लाइन पर दिन में ट्रेन की रफ्तार 40 किलोमीटर प्रति घंटा और रात में 25 किलोमीटर प्रति घंटा रखने का नियम है। लेकिन, इस नियम का बिल्कुल भी पालन नहीं किया गया।

बताया जाता है कि केन्द्रीय पर्यावरण व वन मंत्रालय और राष्ट्रीय व्याघ्र संरक्षण प्राधिकरण समय-समय पर इस तरह (ट्रेन की रफ्तार) के दिशा-निर्देश जारी करते रहते हैं। लेकिन, बिहार के पर्यावरण व वन विभाग तथा रेलवे ने इस दिशा-निर्देश का पालन नहीं किया। इससे टाइगर रिजर्व से होकर ट्रेनें तेज रफ्तार में गुजरीं, जिस कारण 2006 से 2017 तक बाघ, गैंडा, मगरच्छ समेत 63 जंगली जानवरों की मौत हो गई।

केवल 2012-2017 के बीच ही दो दर्जन जानवर तेज रफ्तार ट्रेन की चपेट में आ गए।

कैग की रिपोर्ट में यह खुलासा भी हुआ है कि वर्ष 2012 से लेकर 2017 के बीच अभयारण्यों में बाघों के अलावा किसी भी जंगली जानवर का वार्षिक आकलन नहीं किया गया।

विशेषज्ञ बताते हैं कि जंगली जानवरों का वार्षिक आकलन बहुत जरूरी होता है क्योंकि इस आकलन से यह पता चल पाता है कि भोजन और चारे की आवश्यकता कितनी है। कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि शिकारी जानवरों के आकलन की अनुपस्थिति के कारण भोजन और चारे की आवश्यकता का निर्धारण नहीं किया जा सका।

कैग की रिपोर्ट इन अभयारण्यों में मानवजनित दबाव की ओर भी इशारा करती है, जो चिन्ता का सबब है।

उल्लेखनीय हो कि मानवजनित दबाव के कारण वन्यजीवों व मानव के बीच टकराव बढ़ता है।

कैग रिपोर्ट में बताया गया है कि वाल्मीकि टाइगर रिजर्व का मुख्य क्षेत्र 26 गाँवों से घिरा हुआ है, जो करीब 82 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में पसरा हुआ है। इन गाँवों की कुल आबादी करीब 24538 है। इसी प्रकार कैमूर और भीमबाँध अभयारण्यों के मुख्य क्षेत्र में 92 गाँव हैं।

इन गाँवों के लोगों की गतिविधियाँ कहीं-न-कहीं वन्यजीवों को प्रभावित करती हैं। बताया जाता है कि इन गाँवों को स्थानान्तरित किये जाने की बात थी, लेकिन इस दिशा में भी कोई काम नहीं हुआ।

कैग रिपोर्ट बताती है कि इन गाँवों को स्थानान्तरित करने की कोई योजना तैयार नहीं की गई।

कैग रिपोर्ट में कहा गया है, ‘वनों पर निर्भर गाँवों की उपस्थिति ने वन्यजीव पर भारी मानवजनित दबाव और ग्रामीणों को पुनर्स्थापित करने में मुख्य वन्यजीव वार्डन की विफलता का संकेत दिया।’

रिपोर्ट के मुताबिक, विभाग ने स्वीकार किया कि वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के मामलों में गाँवों के पुनर्स्थापन के लिये कार्य सूची बाघ संरक्षण योजना (वर्ष 2012-2023) में शामिल है, फिर भी गाँवों के पुनर्स्थापन की योजना अभी तैयार नहीं की गई है। इसे आगे स्वीकार किया गया कि गाँवों के पुनर्स्थापन के लिये व्यवहार्यता का आकलन कैमूर और भीमबाँध वन्यजीव अभयारण्य में नहीं किया गया था।’

कैग रिपोर्ट में बुनियादी ढाँचे के विकास के कारण वन्यजीवों पर पड़ रहे मानवजनित दबाव का भी जिक्र किया गया है।

वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के बीच से गुजरने वाली रेलवे लाइन के बारे में तो ऊपर जिक्र किया चा जुका है, अन्य पाँच वन्यजीव अभयारण्यों में से चार में राष्ट्रीय राजमार्ग या गाँवों को जोड़ने वाली सड़कों के चलते वन्यजीवों पर असर पड़ा है। कैग रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2012 से 2017 के दौरान कैमूर में पाँच जानवर और भीमबाँध वन्यजीव अभयारण्य में एक जानवर सड़क हादसे की चपेट में आ गए। लेकिन, विभाग की तरफ से एहतियाती कार्रवाई का कोई संकेत कैग को नहीं मिला है।

कैग ने अपनी रिपोर्ट में विभाग को सलाह दी है कि वह बिहार सरकार और केन्द्र सरकार की मदद से गाँवों को पुनर्स्थापित करने के लिये समयबद्ध योजना तैयार करे और जंगली जानवरों को सड़क/रेल दुर्घटनाओं से बचाव के लिये कम-से-कम गति सीमा बनाए रखे। इसके अलावा कैग ने गश्त अथवा शिकार-रोधी शिविर या चौकी स्थापित करने वायरलेस नेटवर्क स्थापित करने व अन्य सुरक्षा उपकरणों के इस्तेमाल की सलाह दी है।

 

 

 

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