क्लोरिनयुक्त पेयजल में ट्रायहैलोमिथेन की उपस्थिति पर अध्ययन

जल जनित रोगों की रोकथाम में क्लोरीन एक महत्वपूर्ण विसंक्रामक के रूप में उपयोग में लाया जाता है। पेय जल के शुद्धिकरण हेतु क्लारीन का उपयोग भारत में लंबे समय से किया जा रहा है। क्लोरिन जल में उपस्थित कार्बनिक यौगिक (फ्लविक एवं ह्रयूमिक एसिड) से क्रिया कर विसंक्रामक उत्पाद का निर्माण करती है जो ट्रायहैलोमीथेन होते हैं जिनमें प्रमुखतः क्लोरोफार्म, डाइक्लोरोब्रोमीथेन, डाइब्रोमोक्लोरीमीथेन एवं ब्रोमोफार्म है। समय-समय पर किये गये वैज्ञानिक अध्ययन यह दर्शाते हैं कि ट्रायहैलोमिथेन का मानव स्वास्थ्य पर विपरीत असर होता है। कुछ विषय विज्ञान अध्ययन इसे केंसर कारक की श्रेणी में भी रखते हैं। अतः विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा (क्लोरोफार्म-200 माईक्रोग्राम/ली., डाइक्लोरोब्रोमीथेन 60 माइक्रोग्राम/लिं., डाइब्रोमोक्लोरोमीथेन-100 माइक्रोग्राम/लि. एवं ब्रोमोफार्म-100 माइक्रोग्राम/लि.) एवं पर्यावरण नियंत्रण एजेंसी द्वारा (टोटल ट्रायहैलोमिथेन-100 माइक्रोग्राम/लि.) ट्रायहैलोमिथेन की पेयजल में सीमा निर्धारित की है।

म.प्र. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा पेयजल स्रोतों में ट्रायहैलोमिथेन की उपस्थिति की जांच हेतु विधि विकसित की गई है। वर्ष 2006 में इन्दौर शहर में प्रदायित पेयजल में ट्रायहैलोमिथेन की उपस्थिति पर अध्ययन किया गया। इस हेतु अपरिष्कृत, उपचारित एवं प्रदायित पेयजल में ट्रायहैलोमिथेन की उपस्थिति का आंकलन किया गया। पेयजल में ट्रायहैलोमिथेन की उपस्थिति विश्व स्वास्थ्य संगठन एवं ई.पी.ए. द्वारा निर्धारित मापदंडों के अनुरूप पाई गई ।

इस रिसर्च पेपर को पूरा पढ़ने के लिए अटैचमेंट देखें

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading