कोसी: स्नेह के स्पर्श से जी उठी

30 Dec 2010
0 mins read

इंसानी करतूतों से पल-पल मरती कोसी के लिए उम्मीद की लौ करीब-करीब बुझ चुकी थी। कभी कोसी नदी की इठलाती-बलखाती लहरों में मात्र स्पंदन ही शेष था। यह तय था कि नदी को जीवनदान देना किसी के वश में नहीं। इन हालात में कोसी को संजीवनी देने का संकल्प लिया इलाके की मुट्ठीभर ग्रामीण महिलाओं ने। नतीजतन आज कोसी के आचल फिर लहरा रहा है। आसपास के इलाके में हरियाली लौट आई है।

पर्यावरण को लेकर बहस-मुबाहिसों का दौर जारी है। सरकारें योजनाएं बना रही हैं, करोड़ों रुपये पानी की तरह बहाए जा रहे हैं। सेमिनार में विद्वतजन भारी भरकम वैज्ञानिक शब्दावली में पर्यावरण संकट पर चिंता जताते हैं। बावजूद इसके जल, जंगल और जमीन सिकुड़ते जा रहे हैं। इन सबको आइना दिखा रही हैं कुमाऊं के अल्मोड़ा जिले के कौसानी की ग्रामीण महिलाएं। बेशक ये बहनें ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं, वैज्ञानिकों की भाषा उनकी समझ से परे है। बस, उनमें थी तो ललक, अपनी जीवनदायनी संगनी को जिंदगी की। वो कोसी जो सदियों से न केवल प्यास बुझाती रही, बल्कि खेतों को सींच हरा-भरा भी करती रही।

दरअसल, कोसी उत्तराखंड की उन नदियों में से है जो ग्लेशियरों से नही निकलती। यही वजह रही कि तेजी से कटते पेड़ और अतिक्रमण से कोसी के अस्तित्व पर संकट खड़ा हो गया। जो गाड-गदेरे [छोटी-छोटी नदिया और नाले] कोसी को लबालब रखते थे, वे सूख गए। इससे स्थिति और भी भयावह हो गई। कुमाऊं विश्वविद्यालय के एक अध्ययन के मुताबिक 1995 में अल्मोड़ा के पास कोसी का प्रवाह 995 लीटर प्रति सेकेंड था, 2003 में यह घटकर केवल 85 लीटर प्रति सेकेंड रह गया। इतना ही नहीं कोसी के स्त्रोत क्षेत्र में भी रिचार्ज केवल 12 प्रतिशत ही रह गया था, जबकि वैज्ञानिकों का मानना है कि नदी का रिचार्ज कम से कम 31 प्रतिशत हो, तभी वह बची रह सकती है। यहा तक कि 2003 में अल्मोड़ा के डीएम ने कोसी के पानी से सिंचाई पर रोक लगा दी।

इन हालात में आगे आई कौसानी के लक्ष्मी आश्रम की गाधीवादी नेत्री बसंती बहन। कोसी के दुख से द्रवित बंसती बहन ने इसे पुनर्जीवन देने की ठानी, लेकिन ये सब इतना आसान नहीं था। कहते हैं जहा चाह, वहा राह। उन्होंने महिलाओं की मदद लेने का निश्चय किया और शुरू हुआ कोसी को बचाने का अभियान। बोरारौ और कैड़ारौ घाटियों के ल्वेशाल, छानी, बिजौरिया, कपाड़ी जैसे आसपास के गावों में जाकर जागरूकता की अलख जगाई गई। नदी के आसपास के इलाके में बाज, भीमल आदि के स्थानीय पौधे रोपे। यह भी ध्यान रखा कि पेड़ ग्रामीणों को चारा भी मुहैया कराएं। सात साल के अथक प्रयास रंग लाए। लक्ष्मी आश्रम से जुड़ी गाधी शाति प्रतिष्ठान की अध्यक्ष राधा बहन और बसंती बहन का कहना है कि सरकारें जनता को भरोसे में लेकर नदियों के पुनर्जीवन के लिए प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन के लिए कार्यक्रम चला जल संबंधी नीतिया बनाएं तो देश की तमाम नदियों के संकट को हल किया जा सकता है।
 

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading