कृषि में जल संरक्षण तकनीकें - एक काव्यात्मक प्रस्तुतीकरण

21 Jan 2020
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कृषि में जल संरक्षण तकनीकें - एक काव्यात्मक प्रस्तुतीकरण
कृषि में जल संरक्षण तकनीकें - एक काव्यात्मक प्रस्तुतीकरण

सारांश

भारतवर्ष में भूमि एवं जल प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है, किन्तु बढ़ती हुई जनसंख्या का दबाव और मानव द्वारा अनावश्यक रूप से प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करने के कारण प्रति व्यक्ति भूमि एवं जल की उपलब्धता घटी है। जल संसाधन की समृद्धता और निरंतर उपलब्धता बनाए रखने के लिए जल संरक्षण तकनीक की जानकारी होना अनिवार्य है। इस पत्र में ऐसी दस जल संरक्षण तकनीकों, जो प्रायोगिक प्रक्षेत्र में जाँची व परखी गई हैं, और जो सामाजिक रूप से स्वीकार्य, आर्थिक रूप से वहन योग्य, तकनीकी दृष्टि से व्यवहार्य, पर्यावरण के लिए हानिरहित, मनोवैज्ञानिक रूप से प्रभावशाली, आसानी से कार्यािन्वत हो पाने वाली सरल, उत्तम व स्थायी हैं, का चयन करके काव्यात्मक रूप में प्रस्तुतीकरण किया गया है। 

Abstract

Water and land resources are available in plenty in India. But due to increasing population pressure and
undue exploitation of natural resources, per person availability of land and water has decreased. In order to maintain continuous availability and long term sustainability of water resources, it is important to know water conservation techniques. In this paper, ten water conservation techniques (those are well tested and implemented at experimental farm, socially acceptable, economically viable, technically feasible, environmentally harmless, psychologically impressive, easily implementable, simple, sound and sustainable) have been selected and presented in poetic manner in Hindi.

परिचय

जल कृषि उत्पादन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। इसके बिना जीव जन्तु या वनस्पति में जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है। जल पृथ्वी पर पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध था, परंतु निरंतर बढ़ती जनसंख्या के दबाव के कारण और जल के लिए कारखानों, शहरी व घरेलू मांगों में बढ़त के कारण कृषि के लिए जल की उपलब्धता दिन प्रति दिन कम होती चली जा रही है। भारत विश्व के कुल भौगोलिक क्षेत्र का मात्र 2.5 प्रतिशत है, परंतु इस पर विश्व की लगभग 17 प्रतिशत आबादी तथा 18 प्रतिशत पशुधन का बोझ है। एक आंकललन के अनुसार, देश में उपयोग हेतु उपलब्ध जल संसाधन कुल उपलब्धता का लगभग 4 प्रतिशत है। प्राचीनकाल में भी जल के महत्व के पहचाना गया था जैसा कि नारद स्मृति, एकादश, 19 में दृष्टिगोचर होता है। जल के बिना अन्न का एक दाना भी उत्पन्न नहीं हुआ, लेकिन जलाधिक्य से अनाज सड़ भी जाते हैं। अन्न की वृद्धि के लिए बाढ़ भी उतनी ही हानिकारक है जितना दुर्भिक्ष। आज करीब अस्सी देशों में निवास करने वाली विश्व की चालीस प्रतिशत आबादी जल के गंभीर संकट से जूझ रही है। अतः जल का संरक्षण व सदुपयोग करना अत्यन्त आवश्यक है, अन्यथा भविष्य में यह समस्या और विकराल रूप धर लेगी और आगे आने वाली पीढ़ियाँ हमको माफ नहीं करेंगी। यदि कुछ जल संरक्षण तकनीकों को कृषि में अपनाया जाए तो कम जल का सक्षम उपयोग कर अधिक कृषि उत्पादन प्रकट किया जा सकता है। इस विषय पर मैंने काव्यात्मक शैली में अपनाने योग्य दस महत्वपूर्ण जल संरक्षण तकनीकों का चयन किया है, जिनको अपनाकर किसान भाई जल संरक्षित करते हुए अपनी उपज बढ़ा सकते हैं। यह जल संरक्षण तकनीकें हैं -

  1. धान के खेत में मेडबंदी द्वारा वर्षा जल संरक्षण।
  2. नहर के कुशल प्रचालन, रख-रखाव व सहभागिता द्वारा जल संरक्षण।
  3. उचित पंपिंग सेट व भूमि के चयन करके भूजल का सक्षम उपयोग करके जल संरक्षण।
  4. नहर व भूजल का संयुक्त उपयोग करके जल उत्पादकता में वृद्धि।
  5. खारे व मीठे जल का संयुक्त उपयोग करके जल संरक्षण व जल उत्पादकता में वृद्धि
  6. जल संरक्षण के लिए उचित सिंचाई विधि का चयन
  7. जल संरक्षण के लिए मल्चिंग या पलवार का उपयोग
  8. बलुई व केवाल मिट्टी में सिंचाई के तरीके में परिवर्तन करके जल संरक्षण
  9. लेज़र लेंड लेवेलिंग द्वारा जल संरक्षण
  10. जल के बहुआयामी उपयोग/समेकित कृषि प्रणाली अपनाकर जल संरक्षण

ये सभी जल संरक्षण तकनीकें, वैज्ञानिकों द्वारा देश के विभिन्न स्थानों पर प्रयोग करके सफलतापूर्वक सिद्ध की जा चुकी हैं और इनका न केवल जल संरक्षण वरन उत्पादन वृद्धि व जल उत्पादकता वृद्धि में अभूतपूर्व योगदान रहा है, तो प्रस्तुत हैं ये जल संरक्षण तकनीकें काव्यात्मक शैली में - 

(1)
जल तो है सीमित संसाधन, जल संरक्षण अपनाना होगा
कैसे हो जल का सदुपयोग, यह सबको समझाना होगा
भारत में विश्व के भूभाग का है लगभग ढाई प्रतिशत
यहाँ निवास करती जनसंख्या, विश्व की सत्तरह प्रतिशत
और यहाँ पशुधन भी है ज्यादा, विश्व का अठारह प्रतिशत 
पर सब के पोषण को उपलब्ध जल है, मात्र चार प्रतिशत
कितना दबाव इस जल पर है, यह सबको बतलाना होगा 
जल तो है सीमित संसाधन, जल संरक्षण अपनाना होगा
कैसे हो जल का सदुपयोग, यह सबको समझाना होगा 

(2)
वर्षा का पानी अनमोल, न बहने दें यूँ हीं बेकार 
करें इसका भंडारण, दें तालाब पोखरों को आकार
धान के खेत भी हैं वर्षा जल भंडारण का प्रकार 
नौ इंच ऊंची मेड़ बनायें, करें वर्षा जल संचय साकार
धान की उपज बढ़ाकर, भूजल स्तर भी उठाना होगा
जल तो है सीमित संसाधन, जल संरक्षण अपनाना होगा
कैसे हो जल का सदुपयोग, यह सबको समझाना होगा

(3) 
नहर का जल भी उत्पादन वृद्धि में, देता है अद्भुत योगदान
जब होता कुशल संचालन, प्रबंधक आवश्यकता का रखता ध्यान
सही समय पर उचित मात्रा में जल, उत्पादकता वृद्धि को वरदान
कम करने को नहर जल घास, उचित रखरखाव बस एक निदान
जल उपभोक्ताओ व प्रबंधकों के बीच, आपसी सहयोग बढाना होगा 
जल तो है सीमित संसाधन, जल संरक्षण अपनाना होगा
कैसे हो जल का सदुपयोग, यह सबको समझाना होगा

(4)
भूजल ही जल का ऐसा स्रोत है, जो भूमि के नीचे छिपा हुआ है
कब, कितना, कहाँ, कैसे मिल सकेगा, इसका न सबको ज्ञान हुआ है
वैज्ञानिक बताएंगे परीक्षण करके, कि सही भूमि का चयन हुआ है
और उचित पंप, पाइप, इंजन का जल आहरण में चुनाव हुआ है
भूजल बहुत कीमती है, इसका सक्षम उपयोग सिखलाना होगा
जल तो है सीमित संसाधन, जल संरक्षण अपनाना होगा
कैसे हो जल का सदुपयोग यह सबको समझाना होगा 

(5)
वर्षा विलंब से होने पर, धान भी देर से दोपा जाता
धान पकता देर से, और गेहूँ विलंब से बोया जाता 
समय से बीज न बोने से, फसलोत्पादन घट जाता
रोहिणी में नर्सरी लगाने से, भूजल उपयोग हो जाता
नहर भूजल संयुक्त उपयोग को, किसानों तक पहुँचाना होगा 
जल तो है सीमित संसाधन, जल संरक्षण अपनाना होगा
कैसे हो जल का सदुपयोग, यह सबको समझाना होगा 

(6)
खारे पानी से सिंचाई का मित्रों, फसलोत्पादन पर पड़ता दुष्प्रभाव 
किसान फिर भी करते हैं सिंचाईं, क्योंकि मीठे पानी का है अभाव
खारे और मीठे पानी को मिलाकर, सिंचाई से होगा अच्छा प्रभाव 
फसलोत्पादन भी बढ़ जाएगा, अ©र फसल का मिलेगा अच्छा भाव
खारे मीठे के संयुक्त उपयोग को किसानों तक पहुँचाना होगा 
जल तो है सीमित संसाधन, जल संरक्षण अपनाना होगा
कैसे हो जल का सदुपयोग, यह सबको समझाना होगा 

(7)
सिंचाई के हैं कई तरीके, कहाँ कौन-सा तरीका उपयुक्त रहेगा
खेत की आकृति, ढाल, मिट्टी, मौसम एवं फसल यह तय करेगा
जल का स्रोत व उपलब्धता भी, सिंचाई विधि को प्रभावित करेगा
ड्रिप, स्प्रिंकलर और सोलर पंप से, जल का दक्षतापूर्ण उपयोग रहेगा
कैसे करें सही सिंचाई विधि का चुनाव, यह सबको बतलाना होगा
जल तो है सीमित संसाधन, जल संरक्षण अपनाना होगा
कैसे हो जल का सदुपयोग, यह सबको समझाना होगा

(8)
मिट्टी में जल रहे संरक्षित, इसके करने होंगे प्रयास
वाष्पीकरण को रोकने का, मल्चिंग ही है उपाय खास
फसल अवशेष या प्लास्टिक बिछाने से, उगती नहीं घास
पौधा भी अच्छा फलता है, क्योंकि जल रहता है आसपास
इसलिए मल्चिंग तकनीकी को, किसानों तक पहुँचाना होगा
जल तो है सीमित संसाधन, जल संरक्षण अपनाना होगा
कैसे हो जल का सदुपयोग, यह सबको समझाना होगा

(9)
बलुई मिट्टी में मित्रों, जल का बहुत रिसाव होता है
और केवाल मिट्टी में जल, कम अवशोषित होत है 
बलुई मिट्टी में कम, पर कई बार जल देना होता है
केवाल मिट्टी में ज्यादा, पर कम बार जल देना होता है
मिट्टी की किस्म के अनुसार, जल प्रबंधन अपनाना होगा
जल तो है सीमित संसाधन, जल संरक्षण अपनाना होगा
कैसे हो जल का सदुपयोग, यह सबको समझाना होगा

(10)
भूमि समतलीकरण द्वारा भी, जल घास कम हो जाता है
फसल  को मिलता बराबर पानी, उत्पादन भी बढ़ जाता है
लेज़र लेंड लेवलिंग लाभकारी है, अनुभव तो यही बताता है
जल की बचत और उत्पादन में वृद्धि, किसको नहीं सुहाता है
तो लेज़र लेंड लेवलिंग तकनीकी, किसानों तक पहुँचाना होगा
जल तो है सीमित संसाधन, जल संरक्षण अपनाना होगा
कैसे हो जल का सदुपयोग, यह सबको समझाना होगा

(11)
केवल फसलोत्पादन से, जल उत्पादकता हो गई अल्प
इसको बढाने के लिए, अब तलाशने होंगे नये विकल्प
जल के कई बार उपयोग का, अब करना होगा संकल्प
मछली, मुर्गी, बत्तख पालन सह फल सब्जी उत्पादन प्रकल्प
जल के बहुआयामी उपयोग को, किसानों तक पहुंचाना होगा
जल तो है सीमित संसाधन, जल संरक्षण अपनाना होगा
कैसे हो जल का सदुपयोग, यह सबको समझााना होगा
 

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