कृत्रिम न्यूरल तंत्र


कृत्रिम न्यूरल तंत्रों का विकास लगभग 70 वर्ष पूर्व प्रारम्भ हुआ। इनका प्रयोग प्रथम बार 1943 में मुक्क्ल्लोच और पिट्स ने किया था किंतु संगणक सुविधाओं के न होने कि वजह से उनका प्रयोग 20वीं सदी के अंतिम वर्ष तक न के बराबर था। इसकी अभिप्रेरणा वैज्ञानिकों की उस सोच का परिणाम थी जिसमें कृत्रिम बुद्धि के विकास का विचार था। उन्हें यह जानने की उत्सुकता थी कि एक मानव मस्तिष्क भले ही एक संगणक से गति में परास्त हो जाये किन्तु उसकी विचार प्रक्रिया और संज्ञानात्मक कार्यों की क्षमता किसी भी बोधगम्य संगणक से अधिक कैसे है? जो कार्य एक संगणक नैनो सेकेंड में करता है उसी कार्य को करने के लिये मस्तिष्क मिलीसेकेंड लेता है फिर भी मस्तिष्क की सुपरिचित चीजों को पहचानने की क्षमता अद्वितीय है। एक बालक का मस्तिष्क भी अपनी माँ का चेहरा और आवाज सहजता से पहचान सकता है जबकि यही कार्य करने के लिये अच्छे से अच्छे संगणक फेल हो जाते हैं। मस्तिष्क की यह अद्भुत क्षमता सूचना प्रसंस्करण के संगठन व्यवस्था का परिणाम है। मानव मन में हमेशा से यह प्रश्न थे कि -

- कौन से ऐसे काम हैं जिन्हें मशीनें मनुष्यों से बेहतर कर सकती है ?
- कौन से ऐसे काम हैं जिन्हें मनुष्य मशीनों से बेहतर कर सकता है?
- कौन से ऐसे काम हैं जिनमें दोनों निपुण हैं?
- कुछ सीखने का क्या मतलब होता है?
- कुछ सीखने की प्रक्रिया बुद्धिमता से किस प्रकार संबंधित है?
- क्या कभी कोई ऐसी मशीन का आविष्कार होगा जो बुद्धिमान हो?

इन्हीं प्रश्नों का उत्तर खोजने के लिये मनुष्य ने ऐसी मशीनों का आविष्कार करने का प्रयास किया जो-

- उदाहरण से सीख सके
- वर्गीकरण कर सके
- अनुकूलन कर सके
- साहचर्य स्मृति का प्रयोग कर सके

जैविक न्यूरॉन


एक सामान्य मस्तिष्क में लगभग 100 करोड़ नर्व कोशिकायें होती हैं जिन्हें न्यूरान कहा जाता है। एक न्यूरान दूसरे न्यूरानो से लगभग 10,000 अंतर्ग्रंथन (Synapses) से जुड़े रहते हैं। यह विशेषता मस्तिष्क को एक विशाल समानांतर प्रक्रमण तंत्र (Processing System) बनाती है। यही नहीं इतना विशाल होने पर भी मानव मस्तिष्क अधिकतम 100 hz की दर काम करता है जबकि एक समान्य संगणक (Computer) कई सौ ऑपरेशन 1 सेकेण्ड में करता है।

कृत्रिम न्यूरल तंत्रमस्तिष्क की कम्प्यूटेशनल एक नर्व कोशिका अथवा एक न्यूरान होती है। एक न्यूरान के निम्नलिखित भाग होते हैं -

- डेन्ड्राइट (जहाँ से न्यूरान इनपुट पाता है)
- कोशिका का शरीर
- तंत्रिकाक्ष (Axon) (जहाँ से न्यूरान आउटपुट देता है)।

एक न्यूरान डेन्ड्राइट पर हजारों इनपुट ग्रहण करता है और यह सारे इनपुट जुड़े होते हैं। यदि जोड़ एक दहलीज (Threshold) से ज्यादा होता है तो न्यूरान एक प्रवाह में क्षणिक परिवर्तन (Spike), एक विद्युत स्पन्द (Pulse) पैदा करता है जो न्यूरान कोशिका के शरीर एवं तंत्रिकाक्ष (Axon) से होते हुए दूसरे न्यूरान के डेन्ड्राइट तक पहुँचता है और इसी प्रकार से सूचना मस्तिष्क में अग्रसारित होती है। मस्तिष्क कि इसी संरचना जिसमें -

- समांतर सूचना प्रक्रम
- बुनियादी इकाई में उच्च डिग्री की संयोजकता (Connectivity)
- क्षरण सहने की क्षमता (यदि कोई भाग क्षतिग्रस्त हो तो भी बाकी भाग काम करते रहेंगे)
- स्वत: सीखने की क्षमता का अनुसरण करते हुए कृत्रिम न्यूरल तंत्र का आविष्कार किया गया।

कृत्रिम न्यूरल तंत्र


कृत्रिम न्यूरल तंत्रकृत्रिम न्यूरल तंत्र सूचना को संसाधिक करने वाला ऐसा तंत्र है जो मानव मस्तिष्क की सीखने की पद्धति का अनुसरण करते हैं। जैविक मस्तिष्क में सूचना की प्रसंस्करण बहुत ही सामान्य ईकाइयों जिन्हें न्यूरान कहते हैं, में होता है। यह न्यूरान आपस में जुड़े होते हैं और इनके बीच सूचना का आदान प्रदान संकेतों के आधार पर होता है। एक सामान्य कृत्रिम न्यूरान को एक इकाई भी कहा जाता है। यह बाहरी स्रोत से इनपुट पाता है और हर एक इनपुट के साथ एक विशिष्ट भार संधिबद्ध करता है। इन इनपुट का इनके विशिष्ट भारों के साथ जोड़ एक फलन से होते हुए आउटपुट में परिवर्तित हो जाता है जो अन्य इकाई का इनपुट बन जाता है।

कृत्रिम न्यूरल तंत्रभारित जोड़ को शुद्ध इनपुट कहते हैं और फलन को सक्रियण फलन (Activation Function) कहते हैं। इसी प्रकार की कई इकैयान मिलकर कृत्रिम न्यूरल तंत्र का निर्माण करती हैं।

कृत्रिम न्यूरल तंत्रइस प्रकार का तंत्र एक ब्लैक बॉक्स के तरह काम करता है। केवल हर न्यूरान के भारों को बदल कर किसी प्रकार के इनपुट से इचिक आउटपुट पाया जा सकता है। कृत्रिम न्यूरल तंत्र सभी प्रकार के आरेखीय संबंधों को मॉडल कर सकता है और यही इसकी सफलता का राज है।

कृत्रिम न्यूरल तंत्र का आर्किटेक्चर


एक कृत्रिम न्यूरल तंत्र में सामान्यता एक इनपुट परत होती है जो बाहर से इनपुट ग्रहण करती है और एक आउटपुट परत होती है जो आउटपुट प्रदान करती है। इन परतों के बीच एक या उससे अधिक गुप्त परतें भी होती हैं। हर परत में कई कृत्रिम न्यूरान होते हैं। यह सभी परतें आपस में गुथी होती हैं। इन गुथी हुई परतों की संरचना के आधार पर कृत्रिम न्यूरल तंत्र दो प्रकार के होते हैं -

1. फीड फोरवर्ड तंत्र (Feed Forward Network) - इस प्रकार के तंत्र में सूचना का प्रवाह केवल एक ही दिशा में होता है जो कि इनपुट परत से आउटपुट परत की दिशा में होता है।

कृत्रिम न्यूरल तंत्र2. रिकरेंट तंत्र (Recurrent Network) - इस प्रकार के न्यूरल तंत्र में सूचना कई दिशा में प्रवाहित हो सकती है अर्थात एक ही परत के न्यूरोन में संबंध हो सकता है।

कृत्रिम न्यूरल तंत्र

कृत्रिम न्यूरल तंत्र का प्रशिक्षण

कृत्रिम न्यूरल तंत्रों का एक प्रमुख पहलू भारों को अद्यतन (Update) करने की प्रक्रिया है जिसे कृत्रिम न्यूरल तंत्र का प्रशिक्षण कहा जाता है। यह दो प्रकार से किया जा सकता है-

1. अधीक्षण प्रशिक्षण (Supervised Learning) - इस पद्धति में एक न्यूरल तंत्र को इनपुट और आउटपुट दोनों नमूने दिये जाते हैं जिन्हें पाकर कृत्रिम न्यूरल तंत्र भारोन का निर्धारण करता है।

2. बिना अधीक्षण प्रशिक्षण (Unsupervised Learning) - इस पद्धति में एक न्यूरल तंत्र स्वयं ही इनपुट नमूने के आधार पर भारोन का निर्धारण करता है।

कृत्रिम न्यूरल तंत्र के प्रशिक्षण में बहुत सी बातों का ध्यान रखना पड़ता है। जैसे कि भारोन को किस दर से बदला जाये। यदि यह दर अधिक होगी तो तंत्र घाटा फलन (Loss function) के वैश्विक न्यूनतम से आगे निकल सकता है और यदि यह कम होती है तो वैश्विक न्यूनतम तक पहुँचने में बहुत समय लग सकता है। भारों को किस दर से बदला जाये यह एक महत्त्वपूर्ण निर्णय होता है।

कृत्रिम न्यूरल तंत्र के उपयोग


कृत्रिम न्यूरल तंत्र अब लगभग बहुत प्रकार के शोध में प्रयोग किये जा रहे हैं। बिजली इंजीनियर इनका प्रयोग संकेत प्रक्रमन (Signal Processing) और नियंत्रण सिद्धांत (Control Theory) में कर रहे हैं। कंप्यूटर इंजीनियर इन तंत्रों को विकसित करने के लिये आवश्यक हार्डवेयर और इन तंत्रों के उपयोग से रोबोट बनाने को लेकर उत्साहित हैं। वो इनका प्रयोग कृत्रिम बुद्धिमत्ता और प्रतिरूप अभिज्ञान (Pattern Recognition) कि क्षमता के अनुसार कठिनाइयों का हल ढूंढने में कर रहे हैं। प्रायौगिक गणितज्ञ इनका प्रयोग प्रतिरूपण मॉडलिंग के क्षेत्र में कर रहे हैं, खासकर उन स्थितियों में जब चरों के बीच में सटीक संबंधों का ज्ञान नहीं होता है। इसी प्रकार इनका प्रयोग वित्त, दवा, इंजीनियरिंग, भूविज्ञान और भौतिकी में भी बढ़ता जा रहा है। इन तंत्रों का प्रयोग आरेखीय फलन की मॉडलिंग में अत्यंत उत्तम है। यह कृपणता (Parsimony) की समस्या का निदान कर सकते हैं।

कृत्रिम न्यूरल तंत्रों का प्रयोग रोगों का पूर्वानुमान लगाने के लिये भी हो रहा है। इनका प्रयोग शेयर बाजार के पूर्वानुमान के लिये भी किया जाता है। यह शेयरों की पूर्व मूल्यों एवं आर्थिक संकेतों के आधार पर शेयर का मूल्य निर्धारित कर सकते हैं। बैंक कृत्रिम न्यूरल तंत्र के आधार पर कर्ज मांगने वालों का वर्गीकरण कर सकते हैं। कृत्रिम न्यूरल तंत्रों की मदद से ग्राहकों की आयु शिक्षा, नौकरी और उनकी देनदारियों के आधार पर उसकी कर्ज चुकाने की क्षमता का आकलन किया जा सकता है। किसी इंजन की हालत की निगरानी करने का काम भी कृत्रिम न्यूरल नेटवर्क कर रहे हैं। इनका प्रयोग शब्दों के उच्चारण करने, लोगों की आवाज पहचानने आदि में भी किया जा रहा है।

सांख्यिकी के क्षेत्र में भी कृत्रिम न्यूरल तंत्रों का प्रयोग बढ़ता जा रहा है। सांख्यिकी की बहुत सारी पारंपरिक तकनीकें बहुत से मान्यताओं जैसे प्रसमन्यता (Normality), रैखिकता (Linearity), और इनपुट चर की स्वतंत्रता पर आधारित होती हैं। कृत्रिम न्यूरल तंत्र इन मान्यताओं के अपूर्ण होने पर भी सफलता पूर्वक कार्य कर सकते हैं। कृषि के क्षेत्र में तो यह मान्यताओं समान्यत: कभी भी पूर्ण नहीं होती। अत: कृत्रिम न्यूरल तंत्रों का प्रयोग कृषि के क्षेत्र में भी शुरू हो चुका है, जैसे-

- जीआईएस द्वारा प्राप्त जानकारी के आधार पर वनों की मैपिंग एवं वर्गीकरण
- पौधों के रोगों का सटीक पूर्वानुमान
- जलवायु परिवर्तन
- फसलों के बाजार मूल्य का पूर्वानुमान करना

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