कश्मीर का पानी

जम्मू कश्मीर की केवल 34.7 प्रतिशत आबादी को नलों के जरिए पीने का साफ पानी उपलब्ध है, जबकि बाकी की 65.3 प्रतिशत आबादी को हैंडपंप, नदियों, नहरों तालाबों और धाराओं का असुरक्षित और अनौपचारिक पानी मिलता है। ऐसे में भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय के पेयजल एवं स्वच्छता विभाग के 2011-2022 की रणनीतिक योजना के अनुसार वर्ष 2017 तक, 55 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों को पाइपों के जरिए पानी उपलब्ध करवा देने का दावा दिवास्वप्न सा ही लगता है।

शायद ही यह जमाना उस जमाने से बेहतर है जब हिंदुस्तान अंग्रेजों की गुलामी में था। ग्रामीण क्षेत्रों की हालत को देखकर आज भी आजादी से पहले का वक्त याद आ जाता है जब बिजली, पानी, सड़क, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाओं का अभाव था।

आजादी के 67 सालों के बाद भी ग्रामीण क्षेत्रों की स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है। बदला है तो सिर्फ समय का चक्र। जम्मू प्रांत के सीमावर्ती क्षेत्रों में आज भी विकास की किरन नहीं पहुंच पाई है। केंद्र सरकार की ओर से इन क्षेत्रों में विकास के पहिए को गति देने वाली योजनाएं यहां पहुंचते-पहुंचते दम तोड़ देती हैं।

हिंदुस्तान और पकिस्तान की सरहद पर होने की वजह से खतरे में रहने वाले पुंछ जिले की मेंढ़र तहसील के बालाकोट, संजोट, रेलां, खलादरमन आदि इलाके किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। सरहद पर होने की वजह से यह इलाके अकसर समाचार पत्रों की सुर्खियां बनते रहते हैं।

इन क्षेत्रों में रह रहे लोगों को सरहद पर रहने का गम तो मिला लेकिन साथ में केंद्र और राज्य की पूर्ववर्ती सरकारों की अनदेखी का सामना भी करना पड़ा जिन्होंने यहां के लोगों की समस्याओं को जानने की तनिक भी कभी कोशिश नहीं की। सरहद पार से होने वाली गोलाबारी में यहां के लोग अपनी जान माल का नजारा पेशा करते रहते हैं।

जम्मू एवं कश्मीर के अलावा शायद ही देश के दूसरे क्षेत्रों में रह रहे लोगों को इस तरह की परेशानी का सामना करना पड़ रहा हो जिन कठिन परिस्थितियों में यहां के लोग जीवन गुजार रहे हैं। इन सारी कठिनाईयों के बावजूद यहां के लोग तमाम मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं।

पुंछ जिले की तहसील मेंढ़र के सरहदी इलाकों में गर्मियों के दिनों में पानी की समस्या एक विकराल रूप ले लेती है क्योंकि गर्मियों के दिनों में चश्मों से पानी या तो कम निकलता है या फिर सूख जाता है। मेंढ़र के सीमावर्ती क्षेत्रों में आबाद लोगों को दो किलोमीटर दूर से सरों पर पानी के बर्तन रखकर पानी लाना पड़ता है।

21 वीं सदी में भी यहां के लोगों की कठिनाईयां कम होने के बजाय बढ़ रही हैं। स्थानीय लोगों ने बताया कि मूलभूत सुविधाओं में सबसे बड़ी समस्या पानी की है लेकिन हमें सबसे ज्यादा पानी से ही महरूम रखा गया है।

गोहलद मोहल्ला नावनी की रहने वाली एक स्थानीय महिला तनवीर बी ने बताया कि पानी उचित मात्रा में न मिलने की वजह से हमें तरह-तरह की मुश्किलात का सामना करना पड़ता है क्योंकि यह इलाका सरहद पर आबाद है। सरहद पर होने की वजह से फैन्स से आधा किलोमीटर की दूरी पर माइन्स लगाए गए हैं।

इसके बावजूद हम अपनी जान हथेली पर रखकर पानी लेने के लिए जाते हैं। उन्होंने आगे बताया कि हम ने बरसात के पानी को इकट्ठा करने के लिए गड्ढे खोदे हुए हैं। जब भी बारिश होती है तो पानी गड्ढों में इकट्ठा हो जाता है जो माल मवेशियों के लिए इस्तेमाल होता है।

अगर दो तीन महीने बारिश नहीं होती है तो हम अपने माल मवेशियों को बेचने पर मजबूर हो जाते हैं। इससे हमें काफी नुकसान होता है। अपनी बेबसी का इजहार करते हुए उन्होंने यह भी बताया कि 2009 के चुनाव में विधान परिषद के डिप्टी चेयरमैन जावेद राणा यहां आए थे और उन्होंने वोट की खातिर जनता से झूठे वादे किए थे।

जावेद राणा ने कहा कि अगर तुम मुझे वोट दोगे तो, मैं कामयाब हूं या न हूं, आपको वाटर लिफ्ट जरूर दिलवाऊंगा। मगर उनके वादे भी खाक में मिल गए। उन्होंने साफ-साफ यह बात कहीं कि कोई वोट मांगने की खातिर यहां न आए। यहां पर मैंने जितने भी लोगों से बात की सभी ने पानी की समस्या को सबसे बड़ी समस्या करार दिया।

पिछले साल एक दैनिक अखबार में छपी राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम की एक रिपोर्ट के अनुसार जम्मू कश्मीर की केवल 34.7 प्रतिशत आबादी को नलों के जरिए पीने का साफ पानी उपलब्ध है, जबकि बाकी की 65.3 प्रतिशत आबादी को हैंडपंप, नदियों, नहरों तालाबों और धाराओं का असुरक्षित और अनौपचारिक पानी मिलता है।

ऐसे में भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय के पेयजल एवं स्वच्छता विभाग के 2011-2022 की रणनीतिक योजना के अनुसार वर्ष 2017 तक, 55 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों को पाइपों के जरिए पानी उपलब्ध करवा देने का दावा दिवास्वप्न सा ही लगता है।

राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल योजना ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल की समस्या को दूर करने के मकसद से शुरू की गई थी लेकिन बालाकोट, धराटी जैसे दूरदराज इलाकों में इस स्कीम की हकीकत खुल जाती है।

सूत्रों के मुताबिक राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम के तहत सरकार को बिना कवर हुए या आंशिक रूप से कवर किए गए स्थानों को सुरक्षित पीने का पानी उपलब्ध करवाना होता है, पानी की गुणवत्ता बढ़ानी होती है, ग्रामीण स्कूलों को कवर करना होता है, परियोजनाओं को सही दिशा देने के अलावा स्रोतों एवं प्रणालियों की स्थिरता को बनाए रखना होता है और योजनाओं का प्रबंधन सुनिश्चित करना होता है।

इस रिपोर्ट में ताजातरीन अधिकारिक आंकड़ों का उल्लेख भी किया गया है जिसके अनुसार, राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम के तहत कवर किए जाने वाले 14,028 परिवारों में से पिछले चार सालों में केवल 8525 परिवारों को ही पीने का साफ पानी मिल पाया है जबकि 5504 परिवार अभी पीने के साफ पानी से वंचित हैं।

पीने के पानी को तरसते सरहद पर बसे यह लोग तय ही नहीं कर पा रहे हैं कि उनके लिए क्या ज्यादा खतरनाक है, सरहद पार से होने वाली गोलाबारी या उनकी अपनी सरकार की उनके प्रति उपेक्षा।

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