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कुचिला

कुचिला वृक्ष की एक जाति का नाम है जो लोगेनियेसी (Loganiaceae) कुल का है और जिसे स्ट्रिक्नोस नक्स-बोमिका (Strychnos nux vomica) कहते हैं। यह दक्षिण भारत, विशेषत: मद्रास, ट्रावंकोर, कोचीन तथा कोरोमंडल तट में अधिक पाया जाता है। कारस्कर, विषतिंदुक, कुपीलु और लोकभाषा में कुचिला, काजरा तथा नक्स आदि नामों से प्रसिद्ध है।

इसके वृक्ष बड़े और सुंदर होते हैं। पत्र चमकीले, 2'-4' बड़े, पत्रशिराएँ स्पष्ट और करतलाकार, पुष्प श्वेत अथवा हरितश्वेत और फल गोल और पकने पर भड़कीले नारंगी वर्ण के होते हैं। श्वेत और अत्यंत तिक्त, फलमज्जा के भीतर गोल, चिपटे, बिंबाभ (Discoid) और लोमयुक्त बीज होते हैं। चिकित्सा के लिए इन बीजों का ही शोधन के बाद व्यवहार किया जाता है।

कुचिला तिक्त, दीपनपाचन, कटुपौष्टिक, नियतकालिक-ज्वर आवर्तघ्न (Anti-Periodic), बल्य और बाजीकर होता है। इससे शरीर के सब अवयवों की क्रियाएँ उत्तेजित होती हैं। नाड़ी संस्थान के ऊपर इसकी विशेष क्रिया होती है। मस्तिष्क के नीचे जीवनीय केंद्रों और पृष्ठवंश की नाड़ियों पर विशेष उत्तेजक क्रिया होती है। शीतज्वर, आमाश्य तथा आँतों की शिथिलता, हृदयोदर, फुफ्फुस के तीव्र रोग तथा अर्दित एवं अर्धांग वात आदि नाड़ियों के रोगों में जो गतिभ्रंश और ज्ञानभ्रंश होता है उसमें कुचिला दिया जाता है।

कुचिला घोर विषैला द्रव्य है। इसमें स्ट्रिक्नीन और ब्रूसीन दो तीव्र जहरीले ऐल्कालायड रहते हैं। अधिक मात्रा में सेवन करने से धीरे धीरे धनुर्वात के लक्षण हो जाते हैं और अंत में श्वासावरोध से मृत्यु हो जाती है। (बच्चन सिंह)

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