क्या टाइटन पर जीवन है


पृथ्वी के बाहर किसी अन्य पिण्ड पर जीवन की उपस्थिति की संभावना हम पृथ्वीवासियों को सदा से रोमांचित करती रही है। इस विषय में कहीं से आई, कोई भी सूचना हमारा ध्यान आकर्षित करती है। पृथ्वी से भिन्न जीवन की उपस्थिति की संभावनों के कारण उपग्रह टाइटन आजकल चर्चा में है टाइटन के अपारदर्शी वायुमंडल को भेद कर उसकी सतह तक पहुँचे प्रोब हुयजेंस द्वारा जुटाई गई सूचनाओं के विश्लेषण के आधार पर व्यक्त इस संभावना ने विज्ञान जगत में एक जोरदार बहस प्रारंभ कर दी है। कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि टाइटन की सतह पर पृथ्वी से भिन्न प्रकार की जीवन उपस्थित है तो वैज्ञानिकों का दूसरा समूह तथ्यों की पूर्ण पुष्टि होने तक किसी भी प्रकार का अटकलबाजी नहीं करने की सलाह दे रहा है।

टाइटन हमारे सौरमंडल के अद्भुत ग्रह शनि का चंद्रमा है। शनि के 60 से अधिक चंद्रमाओं में से यह सबसे बड़ा है। यह पृथ्वी के चंद्रमा से तो बहुत बड़ा है ही मजे की बात यह है कि यह उपग्रह बुद्ध ग्रह से भी बड़ा है। टाइटन हमारे सौरमंडल के सबसे बड़े उपग्रह बृहस्पति के चंद्रमा गनीमीड के लगभग बराबर है। अपने बड़े आकार के कारण टाइटन ने सन 1655 में ही खगोलशास्त्रियों का ध्यान अपनी ओर खींच लिया था। इसे सर्वप्रथम देखने का श्रेय डच खगोलशास्त्री क्रिस्टीयान हुयजेंस को दिया जाता है।

सक्रिय है नदी तंत्र


टाइटन की सबसे बड़ी विशेषता उसका सघन एवं विस्तृत वायुमंडल है। वायुमंडल मूलत: नाइट्रोजन से बना है इसमें 98.4 प्रतिशत नाइट्रोजन, 1.4 प्रतिशत मीथेन तथा शेष में हाइड्रोजन, कार्बन मोनोऑक्साइड आदि गैसें पायी जाती हैं। वायुमंडल टाइटन की सतह से 975 किलोमीटर ऊँचाई तक फैला है। टाइटन पर वायुदाब पृथ्वी की तुलना में 45 प्रतिशत अधिक है। वायुमंडल का घनत्व भी पृथ्वी की तुलना में अधिक है। कम गुरुत्वबल तथा सघन वायुमंडल के कारण पंख जैसी कोई युक्ति लगा कर मनुष्य टाइटन के आकाश में उड़ भी सकता है। टाइटन के वायुमंडल में बादल की उपस्थिति तथा बिजली चमकने की घटनाएँ वहाँ पृथ्वी जैसे मौसम का अहसास कराती हैं। अभी हाल में प्राप्त एक चित्र में टाइटन पर एक नदी तंत्र देखा गया है। टाइटन के उत्तर गोलार्द्ध में स्थित यह नदी अपने स्रोत से निकल कर लगभग 400 किलोमीटर दूरी तय कर एक समुद्र में गिरती है। टाइटन की इस नील नदी में जल के स्थान पर तरल इथेन व मीथेन बहती है। पृथ्वी के बाहर किसी सक्रिय नदी तंत्र देखे जाने की यह प्रथम घटना है।

कास्सीनी हुयजेन्स मिशन की सफलता से पूर्व टाइटन की सतह के विषय में अधिक जानकारी नहीं जुटाई जा सकी थी। टाइटन के वायुमंडल में उपस्थित विशिष्ट प्रकार का धूम्र उसे लगभग अपारदर्शक बना देता है। इस कारण पृथ्वी की तुलना में मात्र एक प्रतिशत सूर्य का प्रकाश टाइटन की सतह तक पहुँच सकता है। इतने कम प्रकाश के कारण दूर से इसकी सतह को देख पाना संभव नहीं होता था। कास्सीनी हुयजेन्स मिशन का उपयोग कर इसकी सतह तक पहुँच कर ही जानकारी जुटाई जा सकी है।

.कास्सीनी हुयजेन्स मिशन अमेरिका की संस्था नासा, यूरोपियन स्पेस एजेंसी तथा इटली स्पेस एजेंसी की साझा योजना है। मिशन के सात उद्देश्य निर्धारित किए गए हैं जिनमें से दो टाइटन संबंधित हैं। पहला टाइटन के आकाश में बादलों तथा धुंध की बदलती स्थिति का अध्ययन करना तथा दूसरा टाइटन की सतह के भूगोल का निर्धारण करना। कास्सीनी-हुयजेन्स मिशन को अक्टूबर 1997 में अंतरिक्ष में भेजा गया। मिशन के दो भाग कास्सीनी व हुयजेन्स को जोड़ कर बना था। इनको अलग-अलग उद्देश्यों के लिये विकसित किया गया था। कक्षा में चक्कर लगाने वाले कास्सीनी यान का निर्माण नासा द्वारा किया गया। इसका नामकरण इटली व फ्रांस की दोहरी नागरिकाता वाले खगोलशास्त्री गीयोवान्नी डोमेनिको कास्सीनी की याद में किया गया। मिशन के प्रोब भाग, जिसे मुख्य यान से अलग होकर नीचे टाइटन की सतह तक जाना था, निर्माण यूरोपियन स्पेस एजेंसी द्वारा किया गया। डच खगोलशास्त्री किस्टीयान हुयजेन्स के नाम पर इसे हुयजेन्स नाम दिया गया। मिशन ने ग्रहों के मध्य से लंबी यात्रा तय कर 7 वर्ष बाद एक जुलाई 2004 को शनि की कक्षा में प्रवेश किया। दिसम्बर 2004 में टाइटन पर गुजरते हुए मिशन ने हुयजेन्य प्रोब को अपने से अलग कर टाइटन को अंतरिक्ष में छोड़ दिया। धीरे-धीरे नीचे उतरता हुआ हायजेन्स 14 जनवरी 2005 को टाइटन के वायुमंडल में पहुँचा तथा ढाई घंटे बाद उसकी सतह पर उतरा। इतने समय आकाश में रहते हुए हुयजेन्स के यंत्रों ने टाइटन के वायुमंडल के विभिन्न भागों की गहराई से जाँच की। एकत्रित सूचनाओं को 350 चित्रों के साथ कास्सीनी को भेजा जहाँ से उन्हें पृथ्वी पर भेज दिया गया। उन सूचनाओं के विश्लेषण से ही टाइटन के विषय में नए तथ्य सामने आ रहे हैं।

जीवन की संभावना ?


.जर्नल इकारस में प्रकाशित शोध पत्र में बताया गया है कि टाइटन के वायुमंडल में हाइड्रोजन अणुओं का प्रवाह ऊपर से नीचे की ओर होता है। सतह पर आते-आते हाइड्रोजन के अणु लुप्त हो जाते हैं। जोहन्स होपकिन्स विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक डारेल स्ट्रोबेल ने मिशन में लगे इंफ्रारेड स्पेक्ट्रोमीटर तथा आयन व न्यूट्रल मास स्पेक्ट्रोमीटर की सहायता से शनि तथा टाइटन के वायुमंडल का अध्ययन कर यह सूचना जुटाई है। स्ट्रोबेल ने अपने शोध पत्र में टाइटन के वायुमंडल में विभिन्न ऊँचाई पर हाइड्रोजन की सांद्रता की जानकारी ज्ञात की। उनका अनुमान था कि वायुमंडल में हाइड्रोजन की सांद्रता सभी जगह एक सी होगी तथ्य विस्मयकारी थे, क्योंकि हाइड्रोजन की सांद्रता नीचे की ओर कम होती जाती है तथा सतह पर शून्य। आंकड़ों को गलत नहीं माना जा सकता। क्योंकि बार-बार जाँचने पर हाइड्रोजन की सांद्रता नीचे की ओर घटती हुई पाई गई है। परिणाम पर आश्चर्य प्रकट करते हुए डारेल स्ट्रोबेल कहती हैं कि यह ऐसा है मानो आप पाइप से पानी जमीन पर डाल रहे हैं और पानी नीचे नहीं जाकर गायब होता जाता है।

हाइड्रोजन सतह के नीचे किसी गुफा में जाकर एकत्रित होती नहीं फिर कहाँ जाती हैं? इसका एक संभावित कारण टाइटन की सतह पर उपस्थित मीथेन पर आधारित जीवों द्वारा उसका उपयोग करना हो सकता है मगर ऐसे जीवों की उपस्थिति की पुष्टि अभी तक नहीं हो पाई है। जर्नल ऑफ जियोग्राफिकल रिसर्च में प्रकाशित एक अन्य पत्र में बताया गया है कि टाइटन की सतह पर एसीटायलीन गैस नहीं पाई गई है टाइटन के ऊपरी वायुमंडल में सूर्य के प्रकाश के प्रभाव के कारण मीथेन के अणु अपघटित होकर एसीटायलीन व हाइड्रोजन गैसें बनती हैं। अनुमान था कि एसीटायलीन नीचे जाकर टाइटन की सतह पर एकत्रित हो जाती होगी। कास्सीनी के अनुसंधान दल से जुड़े ज्योग्राफीकल सर्वे के रोजर क्लार्क ने दृश्य तथा इंफ्रारेड मेपिंग स्पेक्ट्रोमीटर से जाँच की तो उन्हें यह जानकर आश्चर्य हुआ कि टाइटन की सतह पर एसीटायलीन गैस नहीं थी।

2005 में क्रिस मेकके तथा मोफेट फील्ड केलिफ द्वारा मेथेनोजन जीवन की कल्पना की थी। जिस तरह पृथ्वी पर जल में जलीय जीवन पाया जाता है इसी तरह टाइटन पर मीथेन की झीलों में मेथेनोजन जीवन की कल्पना की गई थी। नासा के अनुसंधान केंद्र से जुड़े इन वैज्ञानिकों का अनुमान था कि टाइटन पर यदि जीवन है तो वह एसीटायलीन को भोजन तथा हाइड्रोजन को श्वसन में गैस के रूप में उपयोग करता होगा जैसे पृथ्वी के जीव ग्लूकोज व ऑक्सीजन का करते हैं। पृथ्वी के जीव कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ते हैं। टाइटन के जीव मीथेन का उत्पादन करते होंगे। टाइटन के वायुमंडल के अध्ययन से प्राप्त जानकारी मेथेनोजन जीवन की कल्पना की पुष्टि करती प्रतीत होती है।

हुयजेंस पर जीवन या जीवन से जुड़े जैविक अणुओं की उपस्थिति जानने की कोई व्यवस्था नहीं थी। अत: किसी भी विषय में निश्चय पूर्वक कुछ नहीं कह कर मात्र अनुमान ही लगाए जा सकते हैं। क्रिस मेकके अब तक प्राप्त जानकारी को टाइटन पर जीवन की उपस्थिति के रूप में देखने के पक्ष में नहीं है। उनका मानना है आंकड़े सीधे एकत्रित किए हुए नहीं होकर कम्प्यूटर सिमूलेशन आधारित हैं। टाइटन की सतह पर हाइड्रोजन व एसीटायलीन की अनुपस्थिति का श्रेय किसी अजैविक घटक को देने का प्रयास भी किया गया है। कहा गया है कोई उत्प्रेरक हाइड्रोजन व एसीटायलीन को पुन: मीथेन में बदलने का कार्य कर रहा हो। टाइटन के-183 डिग्री सेंटीग्रेड तापक्रम पर यह कार्य किसी महान रसायन इंजिनियरिंग से कम नहीं लगता।

टाइटन पर जीवन की उपस्थिति की कहानी यहीं पर समाप्त नहीं होती। कहानी को एक नया मोड़ दिया है अरियोना विश्वविद्यालय की साराह होर्स्ट ने। प्रसिद्ध विज्ञान कथा लेखक कार्ल सांगा का मानना है हम जितनी मात्रा में धरती की संतान हैं आकाश भी लगभग उतना ही हक हम पर रखता है। साराह हर्स्ट सांगा के कथन को प्रमाणित करती लगती है। बच्चों की विज्ञान पुस्तकों में अब तक हम यह ही लिखते रहे हैं कि प्रथम जीव की उत्पत्ति समुद्र में जमा प्रारंभिक घोल में हुई होगी। साराह हर्स्ट कह रही हैं कि जीवन की बुनियाद आकाश में रखी गई होगी तथा वर्षा के साथ सतह पर आई होगी।

टाइटन के आकाश में क्या और कैसे कुछ घटित हो रहा है, यह जानने के प्रयास साराह ने किए तो विस्मयकारी तथ्य सामने आए हैं। साराह और उनके दल ने मिलर व यूरे के ऐतिहासिक प्रयोग को टाइटन के संदर्भ में दोहराया है। मिलर के उपकरण में टाइटन के वायुमंडल में उपस्थित गैसें नाइट्रोजन, मीथेन तथा कार्बन मोनोऑक्साइड भर कर उन पर रेडियो तरंगों को ठीक उसी तरह बरसने दिया जिस तरह टाइटन के वायुमंडल में सूर्य का प्रकाश बरसा करता है। प्रयोग के अंत में उन्होंने पाया कि नली में जीवन के घटक अमीनों अम्ल तथा जीवन को नियंत्रित करने वाले न्यूक्लियोटाइडों का संश्लेषण हो गया है। इस प्रयोग से पहली बार यह तथ्य सामने आया कि जीवन के लिये अब तक अनिवार्य माने जाने वाले जल की अनुपस्थिति में जीवन के घटकों का निर्माण संभव है।

.हमारे सौरमंडल में टाइटन अपने जैसा अकेला पिंड है। इस पर रेत के टीले हैं तो द्रव मीथेन से भरी झीले भी हैं। उपग्रह चारों ओर से नाइट्रोजन तथा मीथेन का सघन आवरण है। कुल मिला कर वर्तमान टाइटन पृथ्वी के आदि रूप में दिखा रहा है। पृथ्वी का वह रूप जब यहाँ जीवन की उत्पत्ति भी नहीं हुई थी। अंतर है तो इतना कि टाइटन पर पानी के स्थान पर द्रव मीथेन पाई जाती है। सौरमंडल में पृथ्वी के अतिरिक्त टाइटन ही वह पिंड है जिसकी सतह पर कोई तरल उपस्थित है।

साराह हार्स्ट ने प्रयोग की प्रेरणा के विषय में कहा कि कास्सीनी हुयजेन्स मिशन से प्राप्त सूचनाओं से ज्ञात हुआ कि टाइटन के वायुमंडल में कई प्रकार के बड़े अणु उपस्थित हैं तो हमारे मन में यह जानने कि जिज्ञासा हुई कि वे अणु कौन से हैं? इसकी जानकारी किसी के पास नहीं थी। हमने अपने स्तर पर अणुओं का पता करने के लिये ही यह प्रयोग किया। साराह के दल ने परिचित अणुओं के कम्प्यूटर कोड का उपयोग अपरिचित अणुओं को पहचानने के लिये किया। उन्हें तालाश तो अमीनों अम्लों तथा न्यूक्लियोटाइडों की थी मगर सार्थक परिणाम की उम्मीद कम ही थी। अनमने मन से इंटर बटन दबाने पर कम्प्यूटर ने अणुओं को पहचान कर उनके नाम छापने शुरू किए तो रुकने का नाम ही नहीं लिया।

अविश्वसनीय परिणाम देख कर विचार आया कि कहीं भूल तो नहीं हो गई? पुन: जाँच की वही परिणाम थे। कहीं कोई भूल नहीं हुई थी। मिलर की नली में 5000 प्रकार के अणु उपस्थित थे। लगता था कार्बन, नाइट्रोजन, हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन के परमाणु जितने प्रकार से विन्यासित हो सकते थे उतने ही प्रकार के अणु बन गए थे। इनमें दो अमीनों अम्ल तथा पाँच न्यूक्लियोटाइड उपस्थित थे। अब प्रश्न यह था कि टाइटन की सतह पर यह सब कैसे होता होगा? इस प्रश्न का उत्तर कास्सीनी यान द्वारा जुटाई एक अन्य जानकारी से होता है। टाइटन के साथी, शनि के एक अन्य उपग्रह एन्सेलेड्स की सतह से छलककर पानी की बौछारें टाइटन के वायुमंडल में पहुँचती रहती है। अनुसंधानकर्ताओं ने प्रमाण जुटाए हैं कि जलवाष्प के विघटन से उत्पन्न ऑक्सीजन एक शृंखला अभिक्रिया को प्रारंभ करती है जो जीवन के घटक अणुओं के निर्माण के साथ समाप्त होती है। इस आधार पर कहा जा सकता है कि टाइटन के वायुमंडल में जो बड़े हैं वे अमीनों अम्ल व न्यूक्लियोटाइड हो सकते हैं।

टाइटन पर जीवन की उपस्थिति को लेकर एक अन्य विचार भी है। इस विचार के अनुसार टाइटन पर जीवन स्वतंत्र रूप से विकसित नहीं हुआ है। टाइटन पर जीवन (यदि है तो) सूक्ष्म बीजाणुओं के रूप में पृथ्वी से ही गया है। अंतरिक्ष की विपरीत परिस्थतियों को सहन कर जीवन के सूक्ष्म बीजाणु के रूप में एक आकाशीय पिंड से दूसरे तक सुरक्षित पहुँच सकने की संभावना को ध्यान में रख कर ही यह बात कही गई है। पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति को समझाने हेतु भी पेर्न्स्पमिया परिकल्पना दी जाती है। इस परिकल्पना पर विचार करने में एक परेशानी यह है कि पृथ्वी व टाइटन की जलवायु एक दूसरे से एकदम भिन्न हैं। एक पिंड के जीव दूसरे पिंड पर जीवित रहना संभव नहीं लगता।

कास्सीनी मिशन के 2008 में समाप्त होने से पूर्व ही इसे कास्सीनी इक्वीनोक्स मिशन के रूप में 2010 तक बढ़ा दिया गया था। अब उसे कास्सीनी सोलस्टिस मिशन के रूप में 2017 तक बढ़ा दिया गया है। इस अवधि में कास्सीनी यान कई बार टाइटन पर से उड़ान भरेगा तथा सूचनाएँ पृथ्वी पर भेजेगा। बहुत संभव है कि कोई निर्णायक जानकारी मिल जाये। पृथ्वी पर प्रथम जीव की उत्पत्ति के कई अनसुलझे प्रश्नों के उत्तर भी टाइटन से मिलने की संभावना है। कई देशों के वैज्ञानिक उत्साह से टाइटन के रहस्यों को जानने में जुटे हैं। टाइटन पर रोबोटिक उपकरण भेजकर उसकी झील के पेंदे तक जाकर जीवन तलाशने की तैयारियाँ चल रही हैं। पृथ्वी के बाहर जीवन की उपस्थिति की पुख्ता जानकारी प्राप्त करने की जिज्ञासा हमें भी टाइटन की ओर टकटकी लगाए रहने को प्रेरित करती रहेगी।

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