क्यों आवश्यक है अपने पर्यावरण एवं प्रकृति का संरक्षण

प्रकृति के सफाईकर्मी के रूप में देखे जाने वाले गिद्ध, चील एवं कौवों की प्रजाति संकटग्रस्त हो चुकी हैं। जिससे जानवरों के लाशों के निस्तारण की समस्या में भी वृद्धि हुई है। फूलों का रस चूसने वाले कीट पतंगें नहीं होंगे तो परागण में समस्या होगी जिससे प्राकृतिक रूप से जंगलों में पेड़ नहीं पनपेंगे। वृक्षों की कमी के कारण पहाड़ों में मिट्टी खिसकने की समस्या में भारी वृद्धि होगी एवं जरा-सी बरसात भी व्यापक विनाश का कारण बन जाएगी। कीटनाशकों एवं उर्वरकों के प्रयोग से भूमि की उर्वरा शक्ति में व्यापक कमी होगी। अपने पर्यावरण की अनदेखी करना एवं विकास के लिए अंधी दौड़ में आगे निकलने की चाहत अब चीन के लिए भारी पड़ रही है। पूरी दुनिया में अपने सस्ते सामान बेचने के लिए चीन में पर्यावरण मानकों की घोर अनदेखी की गई। जिसका दुष्प्रभाव दिखना शुरू हो चुका है।

नदियां औद्योगिक रसायनों के अवजल के कारण प्रदूषित हो गई हैं, बेतहाशा वनों का विनाश किया जा रहा है। वायु प्रदूषण में व्यापक वृद्धि हुई है। भारी भूस्खलन एवं बाढ़ की समस्या में वृद्धि हुई है। कृषि में कीटनाशकों के व्यापक प्रयोग ने प्राकृतिक संतुलन को अपार क्षति पहुंचाई है।

मधुमक्खियों समेत अनेक कीटों की प्रजातियां समाप्त हो गई हैं या हो रही हैं जिनका प्राकृतिक रूप से परागण करने में महत्वपूर्ण योगदान होता था। आज स्थिति इतनी विषम हो चुकी है कि चीन के कुछ भागों में परागण का कार्य मानवीय श्रम से किया जा रहा है। ऐसे फलों के लिए जिनका परागण वायु द्वारा संभव नहीं हो पाता उन्हें प्राप्त करने के लिए अब चीन में यह पद्धति अपनानी पड़ रही है।

फूलों से पराग एकत्र कर के एक-एक पुष्प का कृत्रिम परागण करना पड़ रहा है। एक कृषि मजदूर एक दिन में जहां अधिकतम एक या दो वृक्षों के पुष्पों में परागण की प्रक्रिया को पूरी कर रहे हैं एवं इसके लिए मजदूरी पा रहे हैं, वहीं प्राकृतिक रूप से यह कार्य एक मधुमक्खी मुफ्त में एक दिन में अनेक वृक्षों का परागण कर देती थी।

इन विषम स्थिति से हमें सबक लेते हुए अपने पर्यावरण एवं प्राकृतिक व्यवस्था में छेड़छाड़ से बचना चाहिए। यह सोच कि अपने बुद्धिमत्ता के बल पर मानव अनेक समस्याओं का हल निकालने में सक्षम है, हमें सुरक्षा का एहसास दे सकती है, परंतु इस बात पर भी विचार करना होगा कि प्रकृति द्वारा हमें जो कुछ भी सहजता से उपलब्ध हो सकता है उसके लिए कृत्रिम तकनीकी का इस्तेमाल एवं धन खर्च करना कितना सही होगा? जो फल हमें प्रकृति द्वारा सहज ही उपलब्ध हो सकते हैं उसके लिए कृत्रिम परागण करने की स्थिति आने देना क्या अत्यंत श्रम साध्य नहीं है?

अभी जंगलों, बगीचों में हमें मुफ्त में जो प्रकृति प्रदत्त फल मिल रहे हैं, प्रकृति से छेड़छाड़ के कारण परागण न हो सकने से हमें भविष्य में नहीं मिलेंगे। हो सकता है भविष्य में नदियां, तालाब आदि जलस्रोत दिखें लेकिन नदियों आदि का जल बिना ट्रिटमेंट के हमारे किसी काम का न हों। सिंचाई तक के लिए हमें ट्रीटेड जल का प्रयोग करना पड़ेगा।

जल के अत्यंत प्रदूषित होने के कारण जलीय जीव समाप्त हो जाएंगे जिससे प्राकृतिक रूप से प्रदूषण निवारण संभव ही नहीं होगा। अभी हमारे पास विशाल समुद्र हैं, उनमें जलीय जीवों की अनेकानेक प्रजातियां हैं जो प्रदूषकों को निस्तारित करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। उन दिनों की कल्पना कीजिए जब समुद्र भी प्रदूषण की पराकाष्ठा पर पहुंच जाएंगे तब क्या होगा?

प्रकृति के सफाईकर्मी के रूप में देखे जाने वाले गिद्ध, चील एवं कौवों की प्रजाति संकटग्रस्त हो चुकी हैं। जिससे जानवरों के लाशों के निस्तारण की समस्या में भी वृद्धि हुई है। फूलों का रस चूसने वाले कीट पतंगें नहीं होंगे तो परागण में समस्या होगी जिससे प्राकृतिक रूप से जंगलों में पेड़ नहीं पनपेंगे। वृक्षों की कमी के कारण पहाड़ों में मिट्टी खिसकने की समस्या में भारी वृद्धि होगी एवं जरा-सी बरसात भी व्यापक विनाश का कारण बन जाएगी।

कीटनाशकों एवं उर्वरकों के प्रयोग से भूमि की उर्वरा शक्ति में व्यापक कमी होगी। कृत्रिम टेक्नोलॉजी से युक्त फार्मों, फैक्ट्रियों में उगाई गई फसल, सब्जियां एवं फल कितने लोगों का पेट भरेंगी वह भी किस कीमत पर? हर कार्य के लिए हमें सिर्फ और सिर्फ टेक्नोलॉजी पर निर्भर रहना पड़ेगा और इसके लिए धन का व्यापक इस्तेमाल भी करना होगा। समाज में अमीर लोग ही रहेंगे क्या? प्रकृति की व्यवस्था को समाप्त करना उचित है क्या?

सोने का अंडा देने वाली मुर्गी की कहानी हमने सुनी है जो प्रतिदिन एक ही सोने का अंडा देती थी। एक साथ सारा सोने का अंडा प्राप्त करने की लालसा ने मुर्गी को ही समाप्त कर दिया एवं सोने के अंडे भी नहीं मिले। प्रकृति भी सोने के अंडे देने वाली मुर्गी के समान है जो समय विशेष में अपनी क्षमता के अनुसार ही हमें अपना उत्पाद देने में सक्षम है। यदि हम एक साथ उसका दोहन करना चाहेंगे तो वह समाप्त हो जाएगी। सोचिये जरा!!

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