खाद्य सुरक्षा से पोषण सुरक्षा की ओर


बच्चों एवं वयस्कों में रतौंधी तथा महिलाओं में अनीमिया हमारे देश में बड़ी चुनौती है जिसके निवारण हेतु सरकार कितने सरकारी कार्यक्रम एवं शिविर करती है परंतु उचित परिणाम प्राप्त नहीं हो रहे हैं। आज समय की माँग है कि किसानों को पारम्परिक किस्मों के बजाय उन्नत एवं पौष्टिक फसल किस्मों का उत्पादन करना चाहिए जिससे महत्त्वपूर्ण पोषक तत्व (विटामिन ए, विटामिन सी, आयरन, जिंक, बीटा कैरोटीन, लाईकोपीन इत्यादि) स्वयं ही भोजन चक्र में शामिल हो जाएँ तथा अलग से पोषण हेतु दवाइयाँ न लेनी पड़े तथा भोजन मात्र पेट भरने का साधन नहीं वरन पोषक तत्वों से भरपूर हो।

खाद्य सुरक्षा का अर्थ, देश के हर नागरिक तक भोजन उपलब्धता को समझा जाता है जबकि खाद्य सुरक्षा केवल देश के नागरिकों तक भोजन पहुँचाना नहीं वरन भोजन द्वारा उचित मात्रा में पोषक तत्वों की उपलब्धता भी है। खाद्य सुरक्षा की अवधारणा व्यक्ति के मूलभूत अधिकार को परिभाषित करती है। अपने जीवन के लिये हर किसी को निर्धारित पोषक तत्वों से परिपूर्ण भोजन की जरूरत होती है। महत्त्वपूर्ण यह भी है कि भोजन की जरूरत नियत समय पर पूरी हो। मानव अधिकारों की वैश्विक घोषणा (1948) का अनुच्छेद 25(1) कहता है कि हर व्यक्ति को अपने और अपने परिवार का बेहतर जीवन-स्तर बनाने, स्वास्थ्य की स्थिति प्राप्त करने का अधिकार है जिसमें भोजन, कपड़े और आवास की सुरक्षा शामिल है। खाद्य एवं कृषि संगठन (एफ.ए.ओ.) ने 1965 में अपने संविधान की प्रस्तावना में घोषणा की कि मानवीय समाज की भूख से मुक्ति सुनिश्चित करना उनके बुनियादी उद्देश्यों में से एक है।

खाद्य उत्पादन की वृद्धि का सीधा सम्बन्ध समाज की खाद्य सुरक्षा की स्थिति से नहीं है, देश के उत्पादन में जो वृद्धि हुई है उसमें गैर-खाद्यान्न पदार्थों जैसे तेल, शक्कर, दूध, मांस, अण्डे, सब्जियाँ और फल का हिस्सा कुल उपभोग का 60 फीसदी है। ऐसी स्थिति में यदि हम चाहते हैं कि लोगों तक खाद्य पदार्थों की सहज पहुँच हो तो इन गैर-खाद्यान्न पदार्थों के बाजार को नियंत्रित करना होगा। यह महत्त्वपूर्ण है कि 1951 से अब तक देश के खाद्यान्न उत्पादन में पाँच गुना बढ़ोत्तरी हुई है पर गरीब की खाद्य सुरक्षा अभी सुनिश्चित नहीं हो पाई है। सारणी-1 से स्पष्ट होता है कि 2001-02 से 2012-13 की समयावधि में अनाज की प्रति व्यक्ति उपलब्धता बढ़ी है पर साथ में कुपोषण एवं महिलाओं में अनीमिया की समस्या भी गम्भीर होती जा रही है।

खाद्य असुरक्षा ने भारत के नागरिकों के स्वास्थ्य पर गम्भीर असर डाला है। यह विडम्बनापूर्ण है कि भारत देश जहाँ आर्थिक उन्नति तेजी से हो रही है एवं जिसका उत्पादन 2646 लाख टन हो वो देश अपने देशवासियों के बीच घर कर चुकी कुपोषण की समस्या का समाधान न कर पा रहा हो। विश्व के 27 प्रतिशत कुपोषित लोग भारत में रहते हैं, अभी भी भारत का 1/3 भाग गरीबी रेखा से नीचे है जो दो वक्त की रोटी के लिये मोहताज है तथा गोदामों में रखा 5 करोड़ टन अनाज बिना गरीबों तक पहुँचे हुए सड़ता है। यही नहीं भारत में किसान कृषि त्यागना चाहते हैं।

जनगणना 2011 के अनुसार भारत में 15.87 करोड़ बच्चे हैं जिनमें 8.29 करोड़ लड़के एवं 7.58 करोड़ लड़कियाँ हैं (सारणी-2)। भारत में प्रतिवर्ष 2.5 करोड़ नए बच्चों का जन्म होता है। इस हिसाब से भारत विश्व में सबसे अधिक बच्चों का देश है जहाँ विश्व का हर पाँचवाँ बच्चा भारत में रहता है परंतु भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर चलाये गये अनेक स्वास्थ्य कार्यक्रमों के बावजूद भारत विश्व के 40 प्रतिशत कुपोषित बच्चों का देश है जहाँ हर साल 25 लाख बच्चे कुपोषण के कारण मर जाते हैं। फलस्वरूप भारत देश विश्व के सर्वाधिक कुपोषित देशों जैसे बांग्लादेश, इथोपिया एवं नेपाल के साथ खड़ा नजर आता है।

 

सारणी 1 : भारत में खाद्यान्न और दाल की सकल उपलब्धता

खाद्यान्न और दाल की सकल उपलब्धता वर्ष

उपलब्ध मात्रा (मिलियन टन)

प्रति व्यक्ति एकल उपलब्धता (ग्राम प्रतिदिन)

 

अनाज

दालें

अनाज

दालें

कुल खाद्यान्न

2001

145.6

11.3

386.2

32.0

458.0

2002

175.9

13.6

458.7

35.4

417.0

2003

159.3

11.3

408.5

29.1

437.6

2004

169.1

14.2

426.9

35.8

462.7

2005

157.3

12.7

390.9

31.5

422.4

2006

168.8

13.3

412.8

32.5

445.3

2007

169.0

14.7

407.4

35.5

442.8

2008

165.9

17.6

394.2

41.8

436.0

2009

173.7

15.8

407.0

37.0

444.0

2010

173.8

15.3

401.7

35.4

437.1

2011

180.1

18.9

410.6

43.0

453.1

2012

181.0

18.4

408.6

41.7

450.3

2013

210.3

18.8

468.9

41.9

510.8

स्रोत : भारत सरकार का आर्थिक सर्वेक्षण 2014-15

 

स्वतंत्रता दिवस के अपने भाषण में पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने उल्लेख किया कि “कुपोषण की समस्या राष्ट्रीय स्वास्थ्य के लिये शर्म की बात है ...मैं पूरे राष्ट्र से अनुरोध करता हूँ कि वे अपनी मेहनत से कुपोषण को अगले पाँच वर्षों में जड़ से मिटा दें।”

 

सारणी - 2 : भारत में बाल कुपोषण का ब्यौरा

कुल बाल जनसंख्या

15.87 करोड़ बच्चे (8.29 करोड़ लड़के एवं 7.58 करोड़ लड़कियाँ)

जन्म दर

2-5 करोड़ प्रतिवर्ष

बाल उत्तरजीविता

1-75 करोड़ प्रति वर्ष

बाल मृत्यु दर

80 लाख प्रतिवर्ष

लिंग अनुपात

914/1000 (जनगणना 2001 में लिंग अनुपात 927/1000 था)

नवजात शिशु मृत्यु दर

47 प्रति 1000 नवजात शिशु

पाँच वर्ष के भीतर मृत्यु दर

59 प्रति 1000 बालक

कम वजन के साथ जन्मे शिशु

55 लाख प्रतिवर्ष

कम वजन दर (पाँच वर्ष के भीतर)

42-5 प्रतिशत

अनीमिया दर

79 प्रतिशत (6-35 माह के बालक)

प्रतिरक्षण दर (पोलियो व अन्य हेतु)

44 प्रतिशत (कुल बच्चों का)

स्रोत : जनगणना 2011 एवं राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण - 3

 

टाइम्स ऑफ इंडिया (2015) के अनुसार पूरे विश्व में अकेले भारत में 5 साल के भीतर के शिशुओं की सर्वाधिक मृत्यु दर (22 प्रतिशत) है जिसमें से 50 प्रतिशत शिशुओं (5 साल के भीतर) की मृत्यु का कारण कुपोषण है। विश्व बैंक के अनुसार भारत में कम भार के शिशु सर्वाधिक हैं जिसका कारण कुपोषण है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2015 के अनुसार भारत कुपोषण के कारण विश्व में सर्वाधिक भूख वाले 20 देशों की श्रेणी में आता है। भारत में 52 प्रतिशत शादीशुदा महिलाओं को अनीमिया है तथा औसतन प्रति मिनट एक बच्चा कुपोषण के कारण मृत्यु को प्राप्त हो रहा है। यही नहीं भारत की 14 प्रतिशत महिलाएँ तथा 18 प्रतिशत पुरुष ओबेसिटी (मोटापा) के शिकार हैं।

भारत में प्रति व्यक्ति औसतन कैलोरी खपत ग्रामीण क्षेत्रों के लिये 2233 तथा शहरों के लिये 2206 है जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में 2400 तथा शहरों में 2200 कैलोरी खपत से नीचे वाले व्यक्तियों को गरीबी-रेखा से नीचे रखा गया है यानी अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को उचित कैलोरी नहीं मिल पा रही है। यही नहीं देश में 40 प्रतिशत बच्चों एवं 60 प्रतिशत महिलाओं में कई महत्त्वपूर्ण पोषक तत्वों की कमी है जो उनके बौद्धिक एवं शारीरिक विकास पर गहरा असर डाल रहा है। खाद्य सुरक्षा एवं पोषण, भारतीय नागरिकों के स्वास्थ्य से सीधा जुड़ा है तथा कृषि, खाद्य सुरक्षा एवं पोषण दोनों पर ही असर डालता है। पर भारत की कृषि आज चौतरफा चुनौतियों तथा सम्भावनाओं से घिरी हुई है जहाँ नीतिधारकों को कृषि में कुछ ऐसे बदलाव लाने होंगे जिससे देश के स्वास्थ्य क्षेत्र में कुपोषण की समस्या को सुलझाया जा सके।

अच्छी पोषण एवं शारीरिक स्थिति विकास का एक महत्त्वपूर्ण सूचक है। यद्यपि राष्ट्रीय-स्तर पर विभिन्न नीतियों के माध्यम से महिलाओं एवं बच्चों के पोषण के लिये कई प्रयास किए जा रहे हैं परंतु कुपोषण अभी भी विद्यमान है। भारत में पाँच साल से कम उम्र के 43.5 प्रतिशत बच्चे एवं 50 प्रतिशत महिलाएँ कुपोषण एवं अनीमिया (रक्त की कमी) का शिकार हैं। कुपोषण एवं अल्पपोषण का शिकार ग्रामीण समुदायों की महिलाएँ एवं बच्चे ज्यादा हैं जहाँ आहार विविधता सीमित है। कुपोषण बच्चों में कम बुद्धि व अंधापन का एक कारण है तथा महिलाओं में अनीमिया का महत्त्वपूर्ण कारक है। कुपोषण एवं अल्पपोषण हमारे अस्तित्व, विकास, स्वास्थ्य, उत्पादकता और आर्थिक स्थिति को प्रभावित करता है। प्राथमिक रूप से कुपोषण के मुख्य कारक महिलाओं में ऊर्जा की कमी, जन्म के समय शिशु का कम वजन, विटामिन ए, लौह तत्व एवं आयोडीन की कमी आदि हैं।

पोषण सम्बन्धी शिक्षा एवं संतुलित आहार की जानकारी की कमी कुपोषण को बढ़ावा देती है। इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च ने एक व्यक्ति के लिये कितना पोषण जरूरी है, उसे कैलोरी के अनुसार मापदंड तय किया है। आईसीएमआर के मुताबिक एक औसत भारतीय के लिये भारी काम करने वालों के लिये रोजाना 2400 कैलोरी प्रति व्यक्ति और कम शारीरिक श्रम करने वाले लोगों के लिये 2100 कैलोरी पोषण जरूरी है। पोषण सुरक्षा का मतलब यह भी है कि किसी भी व्यक्ति को अपने जीवन-चक्र में ऐसे विविधतापूर्ण पर्याप्त मात्रा में भोजन की पहुँच सुनिश्चित होना जिसमें जरूरी कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, सूक्ष्म पोषण तत्व की उपलब्धता हो। कुपोषण को भोजन की उपलब्धता और उसके वितरण के नजरिए से देखा जाना आवश्यक है।

आहार का सेहत पर बहुत असर पड़ता है। हम जो भी खाते हैं उसका सीधा प्रभाव हमारी सेहत पर पड़ता है। ऐसे में जरूरी हो जाता है कि हमारा आहार संतुलित हो। संतुलित आहार शरीर का निर्माण ही नहीं करता, बल्कि इसका उचित चुनाव औषधि का काम करके हमें रोगों से बचाता और उनसे लड़ने की ताकत देता है। एक स्वस्थ जीवन हेतु संतुलित आहार का अंतर्ग्रहण अत्यंत आवश्यक है। प्रत्येक खाद्य वर्ग से उचित मात्रा में खाद्य पदार्थों को आहार में सम्मिलित कर व्यक्ति अपने आहार को संतुलित बना सकता है। आहार के संतुलित होने के लिये यह आवश्यक है कि उसमें सभी पोषक तत्वों की मात्रा उचित रूप में उपस्थित हो। पोषक तत्वों में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, खनिज लवण, विटामिन तथा जल सम्मिलित हैं। एक स्वस्थ एवं संतुलित आहार में बीमारियों को रोकने, हमें उत्तम स्वास्थ्य स्थिति प्राप्त करने तथा हमारे जीवन की गुणवत्ता में वृद्धि करने की शक्ति होती है।

 

सारणी - 3 : इंडियन कौंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च के मुताबिक 5 सदस्य परिवार के लिये मासिक जरूरत

सदस्य

अनाज (किलो)

दाल (किलो)

खाद्य तेल (ग्राम)

औसत मेहनत करने वाला पुरुष

14.4

2.7

1050

औसत मेहनत करने वाली महिला

10.8

2.25

900

1-6 वर्ष का बच्चा

5

1.1

675

7-12 वर्ष का बच्चा

9

1.8

750

बुजुर्ग

9

1.8

675

कुल

48.2

9.65

4050

स्रोत : हैदराबाद स्थित इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च द्वारा प्रकाशित (न्यूट्रिशनल वैल्यू ऑफ इंडियन फूड्स) रीप्रिंट 2004

 

एक व्यक्ति को आहार में कौन-कौन से खाद्य पदार्थ शामिल करने चाहिए इसके लिये हम फूड गाइड पिरामिड का संदर्भ ले सकते हैं। इस पिरामिड में विभिन्न खाद्य पदार्थ दर्शाए गए हैं। पिरामिड में जो खाद्य पदार्थ सबसे नीचे दिये गये हैं, वह सर्वाधिक आवश्यक और शरीर के विकास के लिये सबसे लाभकारी भी है।

चुनौतियाँ एवं अवसर


1. छोटी होती हुई कृषि जोत एवं खाद्य उत्पादन का संकट
वर्तमान में कृषि हमारे देश के सकल घरेलू उत्पाद में 13.7 प्रतिशत का योगदान देती है (1990 में कृषि का योगदान 30 प्रतिशत था)। भारतीय कृषि में 85 प्रतिशत से ज्यादा छोटे व सीमांत किसान हैं जिनके पास 2 हेक्टेयर से कम कृषि भूमि है। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में औसतन उपलब्ध कृषि जोत केवल 1.15 हेक्टेयर है जो लगातार हो रहे निर्माण कार्य के कारण घटती जा रही है। जहाँ एक ओर कृषि उपलब्ध भूमि घटती जा रही है वहीं दूसरी तरफ खाद्य पदार्थों की माँग बढ़ती जनसंख्या के कारण और बढ़ती जा रही हैं जिससे खाद्य सुरक्षा का संकट देश के सामने खड़ा हो गया है। भारत जो जनसंख्या में 2025 में चीन को पीछे छोड़ देगा उसे पूर्ण खाद्य सुरक्षा हेतु सन 2050 तक अपना खाद्य उत्पादन लगभग दोगुना करना होगा जो घटते हुए कृषि जोत के कारण एक दुर्गम लक्ष्य है।

 

सारणी 4 : भारत में सन 2050 में विभिन्न खाद्य पदार्थों की माँग

विभिन्न खाद्य पदार्थों की माँग

2010-11

2050

जनसंख्या (करोड़)

122.46

165

औसतन कैलोरी (किलो कैलोरी/व्यक्ति)

2500

3000 से अधिक

अनाज (करोड़ टन)

24

40

फल एवं सब्जियाँ (करोड़ टन)

20

54

दूध (करोड़ टन)

12

37.5

स्रोत : भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (2015) : विजन 2050

 

ऐसे में कृषि वैज्ञानिकों को अपने शोध से उत्पादन के साथ-साथ उत्पादकता को बढ़ाना होगा। फसलों (खासतौर पर फल एवं सब्जियाँ) की कटाई के बाद होने वाले नुकसान को न्यूनतम करना होगा तथा प्राकृतिक संसाधन (जल, मिट्टी इत्यादि) का संरक्षण करते हुए छोटे किसानों को संयुक्त कर उन्नत एवं नवीनतम कृषि तकनीकों का प्रसार करना होगा।

2. खाद्य उत्पादन तथा कुपोषण
हमारे देश में अधिकतर लोग शाकाहारी भोजन पसंद करते हैं जिससे उनकी पोषण सुरक्षा में विभिन्न फसलों की अत्यधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। विभिन्न तरह के पोषक तत्वों से भरपूर अनाज, फल व सब्जियों के उपभोग में वृद्धि से कम कीमत में ग्रामीण क्षेत्र के लोगों की पोषण सुरक्षा की जा सकती है। हमारे देश में कुपोषण व कम पोषण से होने वाली बीमारियों की वजह से सब्जियों का काफी महत्त्व है। सब्जियाँ हमारे भोजन को आसानी से पचने योग्य, संतुलित तथा पोषणयुक्त बनाती हैं। कुपोषण को सुधारने के लिये डाइटीशियन प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 300 ग्राम सब्जी का उपयोग आवश्यक बताते हैं। सब्जियों में पोषक तत्व जैसे विटामिन, लवण व स्वास्थ्य जैव रसायन प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं (सारणी-5) जिनके कारण इनका खाद्य, स्वास्थ्य व पोषण सुरक्षा में विशेष महत्त्व है। दैनिक आहार में सब्जियों का अधिक मात्रा में उपभोग से स्वास्थ्य बेहतर होता है। सब्जी फसलों की खेती से हम सीमित भूमि पर कम समय में अधिक उत्पादन ले सकते हैं जिससे कृषि पद्धति की उत्पादकता में काफी वृद्धि होती है तथा किसानों को अधिक लाभ मिलता है। बढ़ती हुई जनसंख्या के लिये दैनिक भोजन में सब्जियों की पर्याप्त मात्रा उपलब्ध कराने के लिये उत्पादन व उत्पादकता वृद्धि अति आवश्यक है। इसके लिये उन्नत किस्मों व संकर प्रजातियों एवं उत्पादन तकनीकों का उपयुक्त वातावरण के अनुसार उचित उपयोग आवश्यक है।

 

सारणी 5 : विटामिन व लवणों से भरपूर सब्जी फसलें

पोषक तत्व

सब्जी फसलें

विटामिन ए

गाजर, पालक, चौलाई, करी पत्ता, धनिया पत्ता, केल

विटामिन बी

मटर, मिर्च, लहसुन, धनिया पत्ता

विटामिन सी

शिमला मिर्च, बंदगोभी, करेला, चौलाई, पालक, खरबूजा, टमाटर

कैल्शियम

चौलाई, पालक, मेथी, प्याज, ब्रोकली, केल

लौह तत्व

चौलाई, पालक, मेथी

आयोडीन

भिंडी, प्याज, एसपेरागस

 

आज भारत खाद्य उत्पादन में स्वावलम्बी तो हो गया है पर कुपोषण की समस्या को हल नहीं कर पाया जो भारत के भविष्य के लिये सबसे हानिकारक सिद्ध हो सकता है। पारम्परिक फसल किस्मों जिनको गरीबों का भोजन समझा जाता था, आज उनके प्रसार का वक्त आ गया है। पोषक एवं पारम्परिक फसलें जैसे ज्वार, बाजरा का उत्पादन बढ़ने के साथ-साथ कृषि वैज्ञानिकों को पोषण को ध्यान में रखते हुए बायो फोर्टिफाइड फसलों/किस्मों के उत्पादन को बढ़ावा देना होगा जिनमें स्वास्थ्यवर्द्धक पोषक तत्व उपस्थित हो। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अंतर्गत कई अनुसंधान संस्थानों ने फसलों की पोषण वर्धक किस्मों का निर्माण किया है जिनका प्रसार आज समय की माँग है। इस कदम से खेत से भोजन की थाली तक का सफर पोषक तत्व के साथ तय किया जा सकता है जिससे कुपोषण को दूर करने में निश्चित ही सहायता मिलेगी।

 

सारणी 6 : भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित पोषणयुक्त फसलों की उन्नत किस्में

फसल

किस्म का नाम

पोषण स्तर

गेहूँ

एच आई 8627 (मालवकीर्ति)

एच आई 8663 (पोषण)

एच डी 4672 (मलवरतना)

एच डी 2932 (पूसा गेहूँ)

एच आई 8498 (मालवशक्ति)

एच आई 8713 (पूसा मंगल)

एच आई 1563 (पूसा प्राची)

विटामिन ए का समृद्ध स्रोत

दलिया सूजी एवं पास्ता बनाने के लिये समर्थ

दलिया एवं सूजी बनाने के लिये समर्थ

जिंक का समृद्ध स्रोत

दलिया एवं सूजी बनाने के लिये समर्थ

बीटा कैरोटीन, आयरन एवं जिंक का समृद्ध स्रोत

आयरन, कॉपर एवं जिंक का समृद्ध स्रोत

चना

पूसा 372 (देशी)

पूसा चमत्कार (बी जी 1053) (काबुली)

दाल एवं बेसन बनाने के लिये समर्थ

भोजन हेतु उत्कृष्ट, पकने में सक्षम

मसूर

पूसा वैभव

आयरन का समृद्ध स्रोत

गाजर

पूसा वसुधा

पूसा रुधिरा

पूसा नयन ज्योति

बीटा कैरोटीन, लाइकोपीन एवं खनिज का समृद्ध स्रोत

करोटीनौएड्स का समृद्ध स्रोत

जड़ें बीटा कैरोटीन का समृद्ध स्रोत

सरसों सब्जी हेतु

पूसा साग 1

विटामिन सी एवं कैरोटीन का समृद्ध स्रोत

सरसों तेल हेतु

पूसा सरसों 29 (एल ई टी 36)

पूसा सरसों 21 (एल ई एस 127)

पूसा करिश्मा (एल ई एस 39)

पूसा सरसों 30 (एल ई एस 43)

बहुत कम ईरुसिक एसिड

ईरुसिक एसिड <2%

ईरुसिक एसिड <2%

0% ईरुसिक एसिड

आम

पूसा श्रेष्ठ

पूसा प्रतिभा

पूसा लालिमा

पूसा पीताम्बर

विटामिन सी एवं कैरोटीन का समृद्ध स्रोत

विटामिन सी एवं कैरोटीन का समृद्ध स्रोत

विटामिन सी एवं कैरोटीन का समृद्ध स्रोत

विटामिन सी एवं कैरोटीन का समृद्ध स्रोत

अंगूर

पूसा नवरंग

एंटी ऑक्सीडेंट का समृद्ध स्रोत

स्रोत : भारतीय कृषि अनुसंधान संधान (2014), उच्च उत्पादकता एवं लाभ हेतु उन्नत कृषि प्रौद्योगिकियाँ, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली

 

बच्चों एवं वयस्कों में रतौंधी तथा महिलाओं में एनीमिया हमारे देश में बड़ी चुनौती है जिसके निवारण हेतु सरकार कितने सरकारी कार्यक्रम एवं शिविर करती है परंतु उचित परिणाम प्राप्त नहीं हो रहे हैं। आज समय की माँग है, कि किसानों को पारम्परिक किस्मों के बजाय सारणी-6 में उल्लिखित उन्नत एवं पौष्टिक फसल किस्मों का उत्पादन करना चाहिए जिससे महत्त्वपूर्ण पोषक तत्व (विटामिन ए, विटामिन सी, आयरन, जिंक, बीटा कैरोटीन, लाईकोपीन इत्यादि) स्वयं ही भोजन चक्र में शामिल हो जाएँ तथा अलग से पोषण हेतु दवाइयाँ न लेनी पड़े तथा भोजन मात्र पेट भरने का साधन नहीं वरन पोषक तत्वों से भरपूर हो।

3. उर्वरक तथा कीटनाशकों से मृदा तथा मानव स्वास्थ्य को खतरा
फसलों के अच्छे एवं तुरंत उत्पादन हेतु किसानों द्वारा अंधाधुंध उर्वरक एवं कीटनाशकों का उपयोग हो रहा है जिसने ना सिर्फ मृदा को अनुपजाऊ कर दिया है वरन लोगों के स्वास्थ्य पर गहरा कुप्रभाव डाला है। केंद्रीय कीटनाशक बोर्ड तथा पंजीकरण समिति के अनुसार 2014 के अंत तक भारत में 256 कीटनाशकों का पंजीकरण हुआ है जिनमें से सबसे अधिक इन कीटनाशकों का उपयोग पंजाब, हरियाणा तथा उत्तर प्रदेश में हो रहा है। भारतीय कृषि रसायन (कीटनाशक, खरपतवारनाशक, फफूँदीनाशक) का व्यापार लगभग 3.8 बिलियन यूएस डॉलर है जिसमें सबसे अधिक उत्पादन कीटनाशकों का होता है। आँकड़ों को देखने पर पता चलता है कि आजादी के बाद पिछले 50 सालों में उर्वरक तथा कृषि रसायनों का उपयोग 170 गुना बढ़ा है (1950 में उर्वरक उपयोग 0.55 किलोग्राम/हेक्टेयर था जो अब 90.12 किलोग्राम/हेक्टेयर है। उर्वरक के साथ-साथ कीटनाशकों का उपयोग 1971 में 24305 टन से बढ़कर 1994-95 में 61357 टन हो गया है, जिसके पश्चात भारत सरकार द्वारा चलाए एकीकृत कीट प्रबंधन कार्यक्रम द्वारा कीटनाशकों का उपयोग घटकर 43590 टन हो गया। भारत में 51 प्रतिशत खाद्य पदार्थों में कीटनाशक रसायनों के अवशेष पाए गये हैं तथा इन अंधाधुंध रसायनों के उपयोग से कीटनाशकों का जहर हमारे खाद्य चक्र में आ गया जिससे सिरदर्द, एलर्जी से लेकर कैंसर जैसी भयानक बीमारियाँ सामने आ रही हैं।

कृषि में आज जैविक खेती को अपनाने की आवश्यकता तो है पर प्रश्न यह खड़ा होता है कि क्या भारत देश बढ़ती खाद्य उत्पादन की माँग को जैविक खेती के आधार पर ही पूरा कर पाएगा तथा जैविक खेती द्वारा फसल को हानि करने वाले कीटों का प्रबंधन कैसे होगा। एकीकृत कीट प्रबंधन कार्यक्रम को और बढ़ावा देने की आवश्यकता है तथा किसानों को भी कीटनाशकों के उचित उपयोग हेतु जागरूक करने की राष्ट्रीय-स्तर पर पहल होनी चाहिए।

पंजाब में हरितक्रांति के दौरान कृषि रसायनों का सर्वाधिक उपयोग किया गया। पंजाब सरकार के अनुसार पिछले 5 सालों में 34,430 व्यक्तियों की मृत्यु का कारण कृषि रसायनों द्वारा जनित कैंसर है। केरल के किसानों द्वारा खजूर की खेती में एंडोसल्फान लगातार उपयोग होने के कारण कितने ही शिशु जन्म से ही दिमागी तौर पर अस्वस्थ पैदा हो रहे हैं। कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने हाल में जारी अपनी रिपोर्ट में 20618 खाद्य पदार्थों का निरीक्षण किया जिसमें अधिकारियों ने पाया कि 18.7 प्रतिशत खाद्य पदार्थ में कीटनाशक अवशेष सुरक्षित सीमा से ज्यादा हैं तथा 12.5 प्रतिशत खाद्य पदार्थों में बैन कर दिये गये कीटनाशकों के अवशेष हैं जो सिरदर्द, एलर्जी, जनन रोग, मानसिक रोग एवं कैंसर कर सकते हैं।

कृषि से उत्पन्न होता है भोजन और भोजन स्वास्थ्य का सबसे महत्त्वपूर्ण स्तम्भ है। बढ़ती हुई आबादी, संसाधनों का ह्रास, मृदा का घटता स्वास्थ्य एवं कुपोषण ने खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कृषि के समक्ष गम्भीर चुनौतियाँ खड़ी की हैं जिनका हल कृषि की उन्नत तकनीकों एवं नवीनतम कृषि प्रसार द्वारा सम्भव है जिसके लिये कृषि वैज्ञानिकों, प्रशासनिक अधिकारियों एवं नीतिधारकों को साथ मिलकर कदम बढ़ाना होगा तब भारत कुपोषण मुक्त एवं खाद्य सुरक्षित असर के मायने में एक स्वस्थ देश बनेगा।

(लेखक द्वय क्रमशः वैज्ञानिक, कृषि प्रसार सम्भाग, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली तथा वैज्ञानिक, कृषि प्रौद्योगिकी आकलन एवं स्थांतरण केंद्र, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली हैं।)ई-मेल : girijeshmahra22@gmail.com

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