खाने की प्लेट में ई-कोलाई बेक्टीरिया

10 Sep 2011
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ई-कोलाई बैक्टीरिया से बढ़ता खतरा
ई-कोलाई बैक्टीरिया से बढ़ता खतरा

बेहतर सेहत के लिए भोजन की थाली में सलाद, हरी सब्ज़ियाँ और फलों का होना जरूरी है पर अब यह थाली भी हर तरह से सुरक्षित नहीं रही। पिछले दिनों दुनिया के 16 देशों के लगभग 3100 लोगों को इसी वजह से बीमार होना पड़ा, उनमें से 31 लोगों की मौत भी हो गई। इसके लिए जिम्मेदार था ई-कोलाई नाम का एक खतरनाक बेक्टीरिया, जिसकी भूमिका यहां किसी जासूसी कहानी के खलनायक की तरह रही। कच्ची सब्जियां, जो ई-कोलाई (ईस्चेरिचिया कोली) नामक जानलेवा कीटाणुओं से संक्रमित थीं, उन्हें ही खाने से वे सब लोग बीमार पड़े थे। सबसे पहले संक्रमित स्पेनी खीरा को इसके लिए मुख्य तौर पर जिम्मेदार माना गया था पर अब जैविक तौर पर अंकुरित अनाज (स्प्राउट्स) से भी, बेक्टीरिया ग्रस्त होने के कारण, लोग बीमार होने लगे हैं।

 

 

पूरे यूरोप में दहशत


दहशत की वजह से लोगों ने पूरे यूरोप में सब्ज़ियाँ खानी कम कर दी हैं। बाजारों में सब्जियों की खपत कम हो गई है। खाद्य एवं पोषाहार वैज्ञानिकों के अनुसार अंकुरित अनाजों, खीरे, टमाटरों तथा अन्य सलादों में ऐसे कीटाणुओं का संक्रमण 'फार्म से फॉर्क' (खेतों से कांटे चम्मच) तक के सफर के दौरान ही किसी स्टेज पर हो रहा होगा। ई-कोलाई काफी हानिकारक बेक्टीरिया है, जो सीधे आंतों को नुकसान पहुँचाता है। इससे खूनी दस्त होने का खतरा पैदा हो जाता है। बीमारी जब खतरनाक बन जाती है तो किडनी फेल हो जाती है और दौरे पड़ने लगते हैं। अंत में रोगी कोमा में चला जाता है और उसकी मौत हो जाती है।

 

 

 

 

शक कृषि फार्मों पर


जब इस तरह के लक्षण वाले रोगी बड़ी तादाद में जर्मनी के अस्पतालों में भर्ती होने लगे, तो वहां के स्वास्थ्य अधिकारियों ने बीमारी की जड़ तक पहुंचने की कोशिश की। इन रोगियों के माध्यम से डॉक्टरों की टीम उन रेस्तरांओं में पहुंची, जहां उन्होंने खाना खाया था। वहां से वे उन कृषि फार्मों तक पहुंचे, जहां से इन होटलों को सब्जी और सलाद जैसी चीजें सप्लाई की गई थीं। इतना तो स्पष्ट था कि अपराधी बेक्टीरिया ने इसी सफर के दौरान खेत से इंसानी जीभ द्वारा पेट तक घुसपैठ की थी। ऐसा समझा जा रहा है कि प्रदूषित मिट्टी, गंदे जल से सिंचाई या प्रदूषित बीजों के ही कारण ये चीजें प्रदूषित हुईं। ऐसा प्रदूषण फार्म के आसपास रहने वाले जानवरों, गंदे पानी के रिसाव या कूड़े की वजह से हो सकता है।

यूरोपियन सेंटर फॉर डीजिज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के वैज्ञानिकों का कहना है कि ई-कोलाई का यह खतरा अब विश्वव्यापी बन चुका है और खासतौर पर जर्मनी में इसकी रिपोर्ट अधिकतम हुई है। इसकी ज्यादातर शिकार महिलाएं हैं और ऐसा क्यों है, यह अभी तक पता नहीं चल सका है।

जर्मनी में यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल मुंस्टर के डॉ. हेल्गे कार्च ने इस बेक्टीरिया के फैलने के पीछे छुपे राज की पहचान की कोशिश की है। उनका विचार है कि यह एंटीबॉयोटिक प्रतिरोधी क्षमता वाला 'हाईब्रिड बेक्टीरिया' है, जो अपने मूल बेक्टीरिया 'माता-पिता' से भी ज्यादा खतरनाक बन चुका है। उनके इस रहस्योद्घाटन ने जैविक खेती में प्रयोग की जा रही तमाम प्रणालियों पर सवाल खड़ा कर दिया है। यह कृषि विज्ञान का एक कड़वा सच है कि जैविक खाद्य प्राय: ई-कोलाई बेक्टीरिया से संक्रमित होते हैं या उनके संक्रमित होने की आशंका हमेशा बरकरार रहती है। अब ई-कोलाई के फैलने की इस तरह की घटनाओं ने इस तथ्य पर हमें पुन: सचेत किया है।

ऑर्गेनिक फूड या जैविक खाद्य आमतौर पर जानवरों की खादों से उर्वरा शक्ति प्रदान करते हैं और ई-कोलाई भी इन्हीं जगहों पर पनपता है। उपरोक्त यूरोपियन सेंटर के अनुसार ऐसे बेक्टीरिया, स्तनपायी जंतुओं की निचली आंतों में पाए जाते हैं। जर्मनी में ई-कोलाई बेक्टीरिया के फैलने की खास वजह जैविक फार्म में खादों के माध्यम से या सिंचाई आपूर्ति में सीवेज लीकेज या उन उत्पादों/खादों को प्रयोग करने वाले मजदूरों के हाथों से फैले हैं।

इंग्लैंड के यूनीवर्सिटी ऑफ बेडफोर्ड में माइक्रोबायोलॉजी के प्रोफेसर डॉ. जोनाथन फ्लेचर बताते हैं कि यदि गाय के गोबर को उर्वरक के तौर पर प्रयोग किया जाता है तो इस बात की पूरी आशंका है कि सब्ज़ियाँ भी हानिकारक बेक्टीरिया से संक्रमित होंगी। अत: उन सब्जियों की सफाई अर्थात उन्हें धोने का कठोर प्रावधान अवश्य होना चाहिए।

उल्लेखनीय है कि कई अध्ययनों से यह तथ्य उजागर हुआ है कि दूसरों की तुलना में जैविक सब्जियों पर ई-कोलाई का उच्च स्तर पाया जाता है। यह वाकई खतरे की घंटी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सलाह दी है कि शौच जाने के बाद तथा खाने से पहले अपने हाथ सभी को अच्छी तरह जरूर धोने चाहिए। खासतौर पर कच्ची सब्जियों, फलों व सलादों को खाने से पहले साफ व ताजे पानी से धोना जरूरी है। अच्छी तरह पकी या भुनी सब्जियों को खाना उचित है।

भारत जैसे देश में ई-कोलाई के फैलने की आशंका अधिक है, क्योंकि अधिकतर भारतीय किसान नॉन-कंपोस्ट जीव-जंतुओं की जैविक खादों जैसे गोबर का ही इस्तेमाल करते हैं। इसके अलावा सिंचाई के लिए पानी की आपूर्ति भी अक्सर प्रदूषित नदियों से ही की जाती है।

 

 

 

 

यमुना किनारे की फसल


केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार यमुना में हानिकारक बेक्टीरिया की संख्या काफी ज्यादा होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार अधिकतम सिंचाई के पानी में बेक्टीरिया की संभावित संख्या 500 एमपीएन प्रति 100 मिली. से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। जबकि वास्तविकता यह है कि यमुना में हानिप्रद कीटाणुओं की यह संख्या 2,300,000,000 (एमपीएन) प्रति 100 मिली. है। दिल्ली के यमुना तटों के खेतों में इसी प्रदूषित पानी को, बिना ट्रीटमेंट के ही इस्तेमाल किया जाता है लेकिन सिर्फ दिल्ली ही नहीं, पूरे भारत की कृषि व्यवस्था ई-कोलाई बेक्टीरिया से संक्रमित होने के कगार पर है।

 

 

 

 

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