खोल दें बूंदों का खजाना

10 Dec 2008
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भास्कर न्यूज, इंदौर। पांच लोगों के औसत परिवार को प्रतिदिन १२0 लीटर पानी की आवश्यकता होती है। शहर में मौजूद पारंपरिक जल स्रोतों का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया जाए तो निगम द्वारा आने वाले समय में तीन दिनों में पानी देने की घोषणा रद्द हो सकती है। जरूरत है सिर्फ इनकी जलस्रोतों की सफाई के बाद इन्हें निगम की वाटर सप्लाई से जोड़ने की।

पुराने इंदौर में, हर थोड़ी दूर पर कोई न कोई कुआं, बावड़ी नजर आ जाता है। यदि इन सभी को दुरुस्त कर लिया जाए तो इस पूरे क्षेत्र में नगर निगम की वॉटर सप्लाई सिस्टम की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। पांच से अधिक शहरों व कई गावों में पानी की समस्या से निपटने के लिए काम कर रहे ढास ग्रामीण विकास केन्द्र के ट्रस्टी राहुल बैनर्जी कहते हैं ये काम बहुत ही आसान है। प्रतिदिन के 1 से 2 हजार रुपए में किसी भी छोटे कुएं को साफ किया जा सकता है। इसमें समय भी दो-तीन दिन से ज्यादा नहीं लगता। यदि हम कुएं की पंपिंग टेस्ट कर लें तो उस बावड़ी या कुएं की फ्लो कैपेसिटी का भी पता चल जाएगा। जलस्रोत के आसपास के क्षेत्र में वाटर हार्वेस्टिंग कर ली जाए तो फिर जल संकट फटक भी नहीं सकता। वाटर हॉर्वेस्टिंग भी बहुत ही कम खर्च में की जा सकती है।

 

कई हाथ उठे


शुक्रवार को सिटी भास्कर ने पारंपरिक जलस्रोतों की खोज-खबर ली थी। इसके बाद कई लोग आगे आए हैं। आजाद नगर के रहवासी अब्दुल वहाब खान कहते हैं हमारी कॉलोनी में तो पानी आता है, लेकिन पड़ोस की कॉलोनियों के लोग पीने के पानी के लिए भी इधर-उधर भटकते हैं। क्षेत्र के कुओं की अनदेखी के कारण ये स्थिति आई है। कुओं की सफाई और रिचार्ज कराने के लिए शासन कोई भी पहल करेगा तो क्षेत्र के सभी रहवासी हरसंभव मदद करने के लिए तैयार है। सुखलिया के रहवासी मनोज रघुवंशी कहते हैं गर्मी के दिनों में पानी के लिए काफी भटकना पड़ता था लेकिन इस बार तो ठंड से ही पानी कम मिलने लगा। अगर पुराने कुओं को साफ करने के साथ ही नए कुएं बनाने की योजना पर भी काम होना चाहिए।

भागीरथपुरा निवासी अजीत कुलकर्णी का कहते हैं कुदरत के अनमोल खजाने पानी को हमने अपनी लापरवाही के कारण यूं ही बहा दिया। जब इसकी कमी हुई तो हमें इसकी कीमत पता चली। अभी भी पहल की जाए तो कम से कम जरूरत पूर्ति पानी तो बचाया ही जा सकता है। पंचकुइया सामाजिक ट्रस्ट के संरक्षक महंत लक्ष्मण दास कहते हैं निजी बोरिंग व कुओं का तुरंत अधिग्रहण होना चाहिए। कुओं और बावड़ियों के पुर्नउद्धार में ज्यादा खर्च भी नहीं आता और इनका मेंटेनेंस भी आसान है। यदि समाज जागरूक हो जाए और मिलकर पानी का उपयोग करें तो समस्याएं खुद-ब-खुद हल हो जाएगी।

 

लो कॉस्ट तकनीक से साफ करें पानी


वेटलैंड तकनीक पर उज्जैन में लंबे समय से काम कर रहे प्रो. एस. के. बिल्लौरे ने बताया जू के पास गंदे नाले व अन्य जगह वेटलैंड का प्रयोग किया जा सकता है। नालों की लंबाई के हिसाब से सिस्टम की संख्या घटाई व बढ़ाई जा सकती है। 1 जगह सिस्टम लगाने पर करीब 10 लाख का खर्च आएगा इसके बाद किसी तरह के पॉवर व खर्च की जरूरत नहीं है। जिसमें हर रोज 80 हजार लीटर पानी को साफ किया जा सकता है। इससे भूमि में साफ जल पहुंचेगा। यह प्रक्रिया 1 साल में पूरी हो सकती है शुरूआत नाले के स्लज निकालने से होगी। घास लगाने से खूबसूरत लैंडस्केप बनेगा, जिसमें पक्षी भी आएंगे। प्रो. बिल्लौरे ने जू के पास के खान नाले के लिए प्रोजेक्ट बनाया था, जिसे पूरा करने में निगम ने दिलचस्पी नहीं दिखाई।

 

जगाना होगा खोया अहसास


पाइप लाइन सप्लाई या बोरिंग उतने कारगर नहीं हो सकते, जितने कुएं या बावड़ियां। ये सीधे समाज से जुड़ी होती हैं। आने वाले जलसंकट से निपटने के लिए हमें परंपरागत जल स्रोतों के प्रति खो चुके हमारे एहसास को फिर से जगाना होगा। समाज के जुड़ने से ही हम इनको सुरक्षित व कारगर बना सकते हैं।

हर व्यक्ति को समझना होगा कि ये कुएं-बावड़ी हमारी विरासत हैं। पहले बावड़ियों और कुएं का इस्तेमाल हर रोज होता था इसलिए उनकी सफाई की जरूरत नहीं पड़ी। इससे जलस्रोत का प्रवाह बना रहता था। पाइप लाइन सप्लाई में यह ध्यान नहीं रखा गया जहां ऐसे जलस्रोत थे वहां पाइप से पानी नहीं देना चाहिए था। अभी भी उम्मीद खत्म नहीं हुई है। राजस्थान में कई स्थानों पर पारंपरिक जलस्रोत पुनर्जीवित किए गए है, मप्र में भी ऐसा हो सकता है।

साभार - भास्कर - खोल दें बूंदों का खजाना

 

 

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