खट्टा मीठा : अमरख

28 Oct 2016
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खट्टे-मीठे स्वाद से युक्त पाँच धारियों वाला ‘अमरख’ का फल भारतीय जनमानस में गहराई से जुड़ा हुआ है। भारतीय मूल के इस फल की चर्चा रामायण जैसे ग्रन्थ में भी मिलती है। यह आनुष्ठानिक कार्यों में भी प्रयुक्त होता है। आधुनिक युग में समुद्री आहारों को सजावटी रूप देने में भी इसे प्रयोग किया जाता है। इसके कच्चे फल को काट कर मूली, सेलेरी और सिरका के साथ मसाला मिलाकर बने स्वादिष्ट व्यंजन के रूप में भी खाया जाता है। इसके फल के गूदे से जैम-जेली बनाई जाती है। इसे काटकर बनने वाला अचार और मुरब्बा अत्यन्त स्वादिष्ट और जायकेदार होता है।

अमरखयद्यपि अमरख का मूल स्थान भारतीय उप महाद्वीप का श्रीलंका या हिन्देशिया है, लेकिन विश्व के अनेक देशों में इसका वृक्ष उगाया जाता है। दुनिया के अनेक क्षेत्रों के निवासी भी कई तरह के व्यंजनों में इसका इस्तेमाल करते हैं। आस्ट्रेलिया के लोग कच्चे अमरख की सब्जी बनाकर खाते हैं। चीन के लोग मछली के साथ पके इसके व्यंजन को बड़ी रुचि से खाते हैं। थाई लोग इसके फल को काटने के बाद उबालकर झींगा मछली के साथ तलकर खाते हैं। जमैका में इसके पके फल को आम के कच्चे फल की तरह सुखाकर खटाई के लिये संरक्षित कर लिया जाता है, जिसे बाद में आवश्यकतानुसार प्रयोग किया जाता है। मलेशियाई लोग इसे अकेले या सेब, चीनी और लौंग के साथ उबालकर खाते हैं। भारत में इसके फल को पतला-पतला काटने के बाद उसकी चटनी बनाकर भोजन के साथ खाया जाता है। भारतीय बच्चे इसके फल को चटकारे लेकर खूब खाते हैं।

स्वाद और जायके के साथ ही इसके फल में विटामिन एंटिआक्सीडेटिक तत्व भी प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। विश्लेषकों ने अमरख के 100 ग्राम खाने योग्य गूदे में 9.38 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 1.04 ग्राम प्रोटीन, 0.33 ग्राम लिपिड तथा 2.80 ग्राम खाद्य रेशे की उपस्थिति पाई है। इसके फल में मानव के लिये जरूरी सभी तरह के एमीनों अम्ल पाये जाते हैं। इसके फल में एलानिन, लाइसिन और सेरीन के साथ ही विटामिन सी और पोटैशियम तथा कई तरह के खनिज तत्वों की भरपूर मात्रा पाई जाती है। इसके फल के रस में रोगकारी एस्किरीचिया, क्लेबसियेल्ला, स्यूडोमोनास और स्टैफिलोकोकस श्रेणी के बैक्टीरियारोधी गुण भी पाये जाते हैं। इसके कच्चे और पके फल में साधारण जैविक अम्ल के अतिरिक्त ऑक्सैलिक अम्ल, टार्टरिक अम्ल, मेलिक अम्ल, फाइटोग्लुटेरिक अम्ल तथा सुकिनिक अम्ल जैसे विशिष्ट श्रेणी के अम्ल भी पाये जाते हैं।

सामान्यतया हिन्दी भाषी क्षेत्रों में कमरख नाम से चर्चित इस फल को अंग्रेजी में स्टार फ्रूट (Star Fruit) कहा जाता है। इसका वानस्पतिक नाम एबेरोवा केरम्‍बोलालिन (Aberroa carambolalimn) है। यह आक्जैलिडेसी (Oxalidaceae) परिवार की वनस्पति है। इसे तेलुगू में अंबानमकाया, तमिल में थनबरथम, मराठी और कोंकणी में कारमबुल, मलयाली में चतुर पल्ली-वैरापुल्ली, कन्नड़ में करपक्षी हनु, गुजराती में कमरख, बांग्ला और उड़िया में इसे कामरंगा कहते हैं।

अमरख मुख्य रूप से उपोष्ण और ऊष्ण कटिबन्धीय जलवायु की वनस्पति है। वनस्पति वैज्ञानिकों का मत है कि इसका प्रौढ़ पेड़ कुछ समय हिमबिन्दु (शून्य डिग्री सेल्शियस) की ठण्डक को भी सह लेता है। भारत के मैदानी हिस्सों में चलने वाली लू जैसी गर्म हवा में भी इसका वृक्ष फलता-फूलता और विकास करता है। इसका पेड़ समुद्र से 1200 मीटर की ऊँचाई तक हिमालय की तलहटी वाले क्षेत्र में सफलता पूर्वक उगने के साथ फलता-फूलता है।

अमरख का वृक्ष पोषक तत्वों से युक्त जलोढ़ मिट्टी में विकसित होकर अच्छा विकास पाता है। बाढ़ के पानी की रुकावट वाली भूमि इसके लिये उपयुक्त नहीं होती। यह मन्द गति से बढ़ने वाला पर्णपाती श्रेणी का 6 से 9 मीटर की ऊँचाई तक बढ़ने वाला वृक्ष है। इसके तने से ढेरों शाखाएँ निकलती हैं। इसकी ऊपरी पत्तियों वाला हिस्सा झाड़ की तरह गोलाई लिये हुए होता है। इसके पौधे में चार से पाँच साल की आयु में फल आने लगते हैं। इसकी पत्तियाँ सर्पिल, व्यवस्थित, एकान्तर क्रम में 15 से 20 सेमी. लम्बी और शिखर पर घनी हो जाती हैं। इसके पुष्प गुच्छों में लम्बे छरकीनुमा छड़ीदार पतली शाखाओं पर अगल-बगल से निकलते हैं। इसके पुष्प 6 मिमी. चौड़े बैगनी धारीयुक्त गुलाबी रंग के अत्यन्त आकर्षक होते हैं।

यद्यपि कमरख के पेड़ पर फूल पूरे वर्ष भर आते रहते हैं लेकिन उपोष्ण कटिबन्ध वाले क्षेत्र में जहाँ इसमें अप्रैल से जून तक फल लगते हैं, वहीं ऊष्ण कटिबन्धीय जलवायु में अक्टूबर से दिसम्बर के बीच इसमें फल आते हैं। इसके फल की लम्बाई 6 से 15 सेमी. और चौड़ाई 9 सेमी. तक की होती है।

इसके फल लम्बाई में पाँच पहल वाली पहलदार या उठी हुई नुकीली धारी वाले होते हैं। इसके फल की धारियों को कोणीय दिशा में पतला काटने पर उनका आकार तारों के जैसा पंचकोणीय या षटकोणीय दिखाई पड़ता है। इसके इसी आकार के कारण ही कई लोग इसे ‘स्टार फ्रूट’ भी कहते हैं। इसका कच्चा फल हरे रंग का चमकदार होता है जो पकने पर पीला या नारंगी रंग का हो जाता है। इसके फल के ऊपर अत्यन्त पतले छिलके का आवरण होता है। इसी पतले छिलके के नीचे रसदार कुरकुरा हल्का और गाढ़ा पीला पारभासी गूदा होता है। इसके गूदे में रेशा नहीं होता। कमरख के फल के गूदे से आक्सैलिक अम्ल सरीखी गन्ध आती है। इसका स्वाद अत्यधिक खट्टा होने के साथ ही मीठा भी होता है। इसके खट्टे-मीठे और छोटे-बड़े आकार के फलों वाली अलग-अलग प्रजातियाँ पाई जाती हैं।

इसका बड़े आकार वाला फल छोटे आकार वाले फल की अपेक्षा कम खट्टा होता है। छोटे आकार के इसके फल में अम्ल अधिक मात्रा में पाया जाता है जबकि बड़े आकार वाले फल में अम्ल कम होता है। मीठा कहे जाने वाले इसके फल में भी चीनी की मात्रा चार प्रतिशत से अधिक नहीं होती। यद्यपि भारत सहित भारतीय उपमहाद्वीप के मैदानी क्षेत्र में मुख्य रूप से इसका फल सितम्बर से जनवरी तक तैयार हो जाता है। लेकिन दक्षिण एशिया, आस्ट्रेलिया और अमेरिका में इसकी फलत बारह मास होती है। इन क्षेत्रों के फल उत्पादक इसके फल का संग्रह सितम्बर से नवम्बर के बीच कर लेते हैं। इसके अच्छी तरह पके फल स्वत: पेड़ों से गिर पड़ते हैं लेकिन उत्पादक बिक्री के लिये इसके पुल को तोड़कर एकत्र करते हैं।

विभिन्न प्रकार के भोज्य उपयोगिता के साथ ही दुनिया के कई भागों के लोग इसके पेड़ के विभिन्न हिस्सों को औषधीय कार्य में भी प्रयोग करते हैं। ब्राजील के लोग एक्जिमा और सोरायेसिस के उपचार के लिये इसे प्रयोग में लेते हैं। कम्बोडियाई लोग इसके फूल और मुलायम पत्ते को पीसकर बनाये गये लेप का प्रयोग त्वचा रोगों के साथ ही दर्द निवारण में भी करते हैं। चीनी लोग इसकी मुलायम पत्तियों और फलियों को पीसकर चेचक के दानों पर लगाते हैं। दुनिया के कई हिस्सों में दाद और खुजली से निजात पाने के लिये भी इसका प्रयोग किया जाता है।

भारत में आयुर्वेदिक चिकित्सक अमरख के फल को मूत्राशय और गुर्दे की समस्याओं में मूत्रवर्द्धक के रूप में प्रयोग करते हैं। इसके सूखे फल और रस का प्रयोग ज्वर निवारण के लिये होता है। इसके फल का पित्त सम्बन्धी समस्याओं, पेट के फूलने और दस्त में भी प्रयोग होता है। बवासीर की शिकायत में इसके सूखे फल को पानी के साथ पीसकर लेते हैं।

इसके फल के प्रयोग से लार का प्रवाह बढ़ जाता है जिससे भोजन के पूर्व इसके सेवन से भूख बढ़ती है। शराब और भाँग के नशे की खुमारी को उतारने में भी इसका प्रयोग किया जाता है। इसका फूल पेट के कीड़ों को खत्म कर देता है। इसके ताजे बीज के प्रयोग से छोटे बच्चों वाली महिलाओं में दूध की मात्रा बढ़ जाती है। यह पेडू और गर्भाशय के रक्त प्रवाह में वृद्धि करता है।

इसके फल के उपयोग में सावधानी बरतने की आवश्यकता है। इसमें पाया जाने वाला आक्सैलिक अम्ल गुर्दे के रोगी और गुर्दे में पथरी की समस्या वाले व्यक्ति को हानि पहुँचा सकता है। इसके फल का रस कई दवाओं के अलावा कोशिकाओं के एंजाइमों पर विपरीत प्रभाव डालता है।

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