खुद को भी होगा बदलना

23 Nov 2018
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वायु प्रदूषण
वायु प्रदूषण

नई दिल्ली: सर्दियों की शुरुआत के साथ भारत के शहरी क्षेत्रों में हवा की गुणवत्ता खराब होने लगती है, ऐसे में इस बात पर बहस तेज होने लगती है कि इस खतरे को कम करने के लिये निजी वाहनों पर प्रतिबन्ध लगाया जाए या नहीं। लोगों की उम्मीदें भी इसी विचार पर टिकी हैं चूँकि वाहनों, उद्योगों और मानव निर्मित उत्सर्जन के कारण लोगों के साथ-साथ घर के अन्दर की आबो-हवा प्रदूषित हो जाती है और लोग श्वसन सम्बन्धी बीमारियों की चपेट में आने लगते हैं।

केवल सरकार नहीं जिम्मेदार

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा सबसे खराब वायु गुणवत्ता सूचकांक शहरों की सूची में कम-से-कम 15 भारतीय शहर आते हैं। आईआईएचएमआर यूनिवर्सिटी, जयपुर के पर्यावरण विशेषज्ञ डॉ. पंकज गुप्ता का कहना है कि सार्वजनिक परिवहन प्रणाली की कमजोरियों और ट्रैफिक की समस्या अचानक से बढ़ने जैसी बातों पर सवाल उठाना भी सही है। हालांकि, वायु गुणवत्ता में खराबी तेजी से और व्यापक रूप से समुदायों को दुर्बल बनाती है। आबादी के पैमाने पर व्यक्तिगत स्वास्थ्य प्रभावित होने की सम्भावना है। लेकिन क्या इस बदलाव के लिये एकमात्र जिम्मेदारी और कर्तव्य सरकारों और नियामक एजेंसियों की ही है? डॉ. पंकज का कहना है कि व्यक्तिगत रूप में, हम जिस तरह से करियर, पैसा, सम्बन्ध और दूसरी चीजों का चुनाव करते हैं। ठीक उसी तरह से क्या हम प्रदूषण को कम करने वाली चीजों को करने की कोशिश करते हैं, एक ईमानदार नागरिक होने के नाते हम इस समस्या को खत्म करने की जिम्मेदारी से दूर क्यों भाग रहे हैं? क्या मौजूदा सरकारों को सभी बीमारियों के लिये दोषी ठहराया जा सकता है?

निजी परिवहन के विकल्पों की तलाश हो

एक विकासशील राष्ट्र होने के नाते पर्यावरण सुधार की नागरिकों की अपनी भी कुछ जिम्मेदारी है जिसे हमें निभाना होगा। डॉ. पंकज का मानना है कि अगर हम सामाजिक अनुबन्ध में हमारी भूमिका को स्वीकार करना चाहते हैं, तो हमें निजी परिवहनों की बजाय विकल्पों को तलाश करने के लिये पहल करनी होगी। आस-पास की जगहों जैसे कि कार्यालय, बाजार या अन्य जगहों पर जाने के लिये या तो आप समय से पहले निकल लीजिए या फिर साइकिल से या पैदल जाए। उदाहरण के लिये नियमित रूप से साइकिलिंग ने यूरोपीय देशों में कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन को 1.4 से 3.0% तक कम कर दिया है। यह जीवाश्म ईंधनों पर हमारी निर्भरता को कम करने में मदद करता है, पेट्रोल और डीजल पर अतिरिक्त खर्च को भी कम करता है और इसका उपयोग हम घर के अन्य कामों के लिये भी कर सकते हैं, इसके अलावा वायु प्रदूषण में कमी के कारण स्वास्थ्य सम्बन्धी बीमारियाँ भी नहीं होंगी और हम स्वस्थ भी रहेंगे।

किसानों को प्रशिक्षित करने की जरूरत

इसी तरह, किसानों और खेतिहर जो खेतों में बचे हुए अवशेषों को जलाते हैं उनको भी शिक्षित करने की जरूरत है ताकि उनको यह पता चल सके कि वे जो कर रहे हैं इसका कितना गम्भीर परिणाम हो सकता है साथ ही इससे किस तरह से कृषि की उत्पादकता में भी कमी आती है।

औद्योगिक इकाइयों वाले भी रखें ध्यान

उपनगरीय क्षेत्रों और टियर 2 और टियर 3 शहरों में चल रही औद्योगिक इकाइयों के छोटे उद्योग मालिकों और प्रबन्धकों को यह भी पता होना चाहिए कि कैसे उनके प्रदूषण और घातक उत्सर्जन कैसे उनके खरीदारों को नुकसान पहुँचा रहे हैं, जिससे बाद में उन्हें अपने संसाधनों को बदलने के लिये मजबूर किया जा सके और स्थिति बेहतर हो सके।


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