खुशहाली की भगीरथी बहा रही है माही


देश में हरित क्रान्ति की श्रृंखला में माही बजाज सागर परियोजना एक अनमोल कड़ी है। विश्व की बडी नदियों ने कई प्राचीन सभ्यताओं को जन्म दिया है किन्तु वागड प्रदेश में बहने वाली गंगा रूपी माही नदी ने एक ऎसी आधुनिक सभ्यता को जन्म दिया जो आदिवासियों के उत्थान की गाथा तो कहती ही है, क्षेत्र के विकास का संगीत भी सुना रही है।

आज माही बांध के कारण बांसवाड़ा में पानी और हरियाली की कोई कमी नहीं है, अधिकांश भूभाग पर खेतों में साल में तीन बार फसलें लहलहाने लगी हैं। अकेली माही की वजह से यहां लोगों के घर-द्वार से लेकर परिवेश तक में हरियाली और खुशहाली का सुकून पसरने लगा है।

वर्ष 1971 में योजना आयोग, भारत सरकार द्वारा अनुमोदित अन्तर्राज्यीय बहुद्देशीय एवं बहुआयामी परियोजना के अन्तर्गत माही नदी पर बना बाँध अभियान्तिरकी एवं तकनीकि दृष्टि से आधुनिक विकास का उत्कृष्ट एवं सशक्त स्तंभ है।

किसी समय राजस्थान में काला पानी कहे जाने अत्यन्त पिछड़े और सीमावर्ती जनजाति बहुल दक्षिणांचल में माही बांध ने विकास के कई-कई सूरज उगा दिए हैं। इससे आदिवासी क्षेत्रों में पिछड़ेपन का कलंक दूर हुआ है और दूरगामी विकास के स्वप्न आकार ले रहे हैं। माही की बदौलत यहां की जनजातियों का अपने परंपरागत जीवन के प्रति दृष्टिकोण बदला है और उनमें एक अनूठा आत्मविश्वास जगा है।

मध्य प्रदेश के धार जिले से निकल कर पर्वतीय अंचलों के बीच से बह कर बांसवाड़ा जिले में प्रवेश करने वाली इस विराट माही नदी पर निर्मित बाँध ने क्षेत्र की काया पलट दी है।

विकट भौगोलिक परिस्थितियों में अनवरत नहरों एवं अन्य निर्माण कार्य को जारी रखते हुए माही की नहरों से वर्ष 1984 में प्रथम बार सिंचाई हेतु जल प्रवाहित किया गया तब वागड़ प्रदेश की गरीब जनता की खुशी व उत्साह का पार नहीं रहा एवं उनके सपने साकार होते नजर आये। अब वे ही स्वप्न लोक जीवन में सुनहरे रंग भरने लगे हैं।

बांसवाड़ा जिला मुख्यालय से 16 किलोमीटर उत्तर-पूर्व में पहाड़ियों के बीच माही नदी पर बने इस बाँध की कुल लम्बाई 3.10 किलोमीटर है जिसमें से 2.60 किलोमीटर मिट्टी का बांध एवं 0.42 किलोमीटर पक्का बाँध बनाया गया है। अधिशेष वर्षा जल निकासी हेतु बांध में 16 गेट लगाये गये हैं जिससे अधिकतम 9 लाख घनफुट प्रति सेकेण्ड की गति से जल निस्तारित किया जा सकता है।

जल संग्रहण की परिप्रेक्ष्य में माही बाँध राज्य का सफलतम उपक्रम है इसी संदर्भ में वर्ष 1986 तथा 1989 में क्रमशः जल विद्युत गृह प्रथम (2 गुणा 25 मेघावाट) एवं द्वितीय विद्युत गृह (2 गुणा 45 मेघावाट) से विद्युत उत्पादन प्रारम्भ किया गया।

अब तक इन दोनों से करोड़ों रुपए का बिजली उत्पादन हो चुका है। एक पावर हाउस बांसवाड़ा से करीब 8 किलोमीटर दूर है जिसे पांच नंबर के नाम से जाना जाता है। जबकि दूसरा पावर हाउस बागीदौरा क्षेत्र के लीलवानी में स्थित है।

माही बांध उत्तर-पूर्व में है जबकि माही बांध का जलभराव क्षेत्र बांसवाड़ा जिला मुख्यालय से कुछ किलोमीटर की दूरी पर उत्तर से लेकर पूर्वी छोर तक पसरा हुआ है। इसी जल भराव क्षेत्र से पांच नम्बर कहे जाने वाले विद्युत गृह प्रथम में पानी आता है जो बिजली पैदा करने के बाद भूमिगत विशाल सुरंग के माध्यम से बांसवाड़ा शहर से तीन किलोमीटर पूर्व में बने कागदी पिक अप वियर जलाशय में आता है जहां से दांयी और बांयी मुख्य नहरों से इसका सिंचाई के लिए जिले में वितरण होता है। दांयी मुख्य नहर की लम्बाई 72 किलोमीटर तथा बांयी मुख्य नहर की लम्बाई 40 किलोमीटर है। इन मुख्य नहरों में प्रवाहित होता हुआ पानी वितरिकाओं और धोरों से होकर खेतों में पहुंचता है और खलिहानों को समृद्ध करता है। बांयी मुख्य नहर का पानी बागीदौरा क्षेत्र के लीलवानी नामक बांध में पहुंचता है जहां विद्युत गृह द्वितीय में यह पानी बिजली का उत्पादन करने के बाद फिर नहरों के जरिये खेतों तक पहुंचता है। दो मुख्य विद्युत गृह के अलावा दाई मुख्य नहर के पानी से 29 किमी एवं 64 किमी पर दो लघु पम्प बिजलीघर भी है जो सिंचाई के दौरान विद्युत उत्पादन करते हैं।

इस प्रकार बिजली और सिंचाई दोनों गतिविधियों में माही का एक-एक बूंद नवीन सृजन का इतिहास रच रही है। अपने विस्तार चरणों में माही का पानी उन सभी स्थानों तक पहुंचाने की योजना है जहां सिंचाई की और कोई माकूल सुविधा नहीं है। इस दृष्टि से माही का पानी भूंगड़ा, जगपुरा और आनंदपुरी क्षेत्रों तक पहुंच चुका है। इससे माही सिंचित क्षेत्र में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है।

डूंगरपुर के खेतों तक पहुंच

माही का पानी डूंगरपुर जिले के किसानों तक पहुंचाने के लिए भीखा भाई माही नहर का काम लगातार जारी है। इसके लिए दाई मुख्य नहर दुर्गम पहाड़ियों को चीरती हुई एवं छोटे-मोटे नदी नालों को पाटती हुई समीपवर्ती डूँगरपुर जिले में प्रवेश करती है।

इसकी कुल लम्बाई 125 किलोमीटर है जो गुजरात सीमा पर जाकर समाप्त होती है। सागवाड़ा नहर से पानी पहुँचाने के लिए माही नदी के अलावा जाखम नदी एवं सोम नदी को भी पार करना होता है। इसके लिए नदियों की छाती पर साईफन बनाये गए हैं। जगपुरा में नदी पर 1260 मीटर लम्बे आर.सी.सी. एक्वाडक्ट का निर्माण कार्य किया गया है।

भीखा भाई सागवाड़ा नहर को जलापूर्ति करने के लिए 29.30 किलोमीटर लम्बाई में दाई मुख्य नहर, 19.50 किलोमीटर लम्बाई में नरवाली वितरिका तथा 12.50 किलोमीटर लम्बाई में जगपुरा नहर की जल प्रवाह क्षमता को बढ़ाने का कार्य किया गया है। कुल 125 किलोमीटर सागवाड़ा नहर में 8 किलोमीटर तक का क्षेत्र माही परियोजनान्तर्गत अवस्थित है एवं शेष लम्बाई में नहर को छोटे-मोटे भागों में विभक्त कर लघु सिंचाई योजनान्तर्गत पूर्ण करने का राज्य सकार का मानस है। इसके पहले चरण में लघु सिंचाई परियोजना मंजूर हुई। इसमें नहर के 20.11 किलोमीटर तक का क्षेत्र समाहित किया गया। यह माना गया है कि इससे 1920 हैक्टेयर अतिरिक्त क्षेत्र में सिचाई सुविधा का विस्तार होगा। इस योजना में जाखम नदी एवं सोम नदी पर आर.सी.सी.एक्वाडक्ट का कार्य भी सम्मिलित है

बाई मुख्य नहर प्रवाहित जल को आनन्दपुरी क्षेत्र में पहुँचाने की दृष्टि से अनास नदी पर भूमिगत साईफन का निर्माण किया गया और नहरों का निर्माण पूरा कर आनंदपुरी क्षेत्र तक माही का पानी पहुंचा दिया गया है। इसके लिए आम्बादरा माईनर पर ढाई करोड़ लागत की सुरंग भी बनायी गई है।

माही परियोजना से संबंधित 41 किलोमीटर लम्बाई वाली भूंगड़ा नगर का प्रादुर्भाव माही बजाज सागर मुख्य बाँध से हुआ है। इससे भूंगड़ा तथा घाटोल क्षेत्र के कई गांवों में आदिवासियों के खेत समृद्धि की चादर सजाने लग गए हैं। इससे इलाके में हरियाली छाई है। माही का पानी प्रतापगढ़ जिले के पीपलखूंट व अन्य इलाकों तक पहुंचाने की योजना भी है।

माही परियोजनान्तर्गत वर्ष 1983-84 से सिंचाई सुविधा उपलब्ध करवाई जा रही है जिसमें वर्ष दर वृद्धि हो रही है। मोटे तौर देखा जाए तो अब तक माही परियोजना से अरबों का कृषि उत्पादन हो चुका है। बिजली उत्पादन इससे पृथक है।

माही परियोजना की वजह से न सिर्फ सिंचाई पानी और बिजली बल्कि जनजीवन के हर क्षेत्र पर इसका सीधा और अपरोक्ष प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। इससे बांसवाड़ा जिले में पेयजल की समस्याओं का समाधान हुआ है और भूमिगत जलस्तर में बढ़ोतरी हुई है। इस वजह से भीषण अकाल के बावजूद पानी की कोई कमी नहीं रहती। माही की वजह से पर्यटन, डेयरी व पशुपालन, मत्स्य पालन जैसे कई क्षेत्रों में खुशहाली का मंजर सामने आया है। अब माही बांध के जल भराव क्षेत्र के किनारे सुपर ताप बिजलीघर बनने जा रहा है जो बांसवाड़ा के विकास में चार चाँद लगा देगा। इससे यहां रोजगार मिलेगा, रेल सुविधा का लाभ मिलेगा और बांसवाड़ा आने वाले समय में दुनिया में आर्थिक और सामाजिक विकास की रफ्तार पाने वाले इलाकों में शुमार होगा।
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