लोकसभा चुनाव से पहले लोगों का जनघोषणा पत्र

27 Dec 2013
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वन नीति में वनों पर आधारित उद्योग लगे। चीड़ के जंगलों को चरणबद्ध तरीके से नियंत्रित किया जाए। बांझ व बुरांस जैसी प्रजाति को विकसित किया जाए। पशुपालन विकसित करना जरूरी है। जंगली फलदार वृक्ष विकसित होंगे तो जंगली पशुओं का आक्रमण घटेगा। फल पट्टी विकसित करना अनिवार्य है। लोकतंत्र में पंचायतों का अपना आधार और अस्तित्व है। ग्राम पंचायत, क्षेत्र पंचायत, जिला पंचायत के साथ-साथ न्याय पंचायतों को भी विकसित किया जाए। उत्तराखंड में लोकसभा चुनाव नज़दीक आ रहे हैं, सामाजिक संगठनों व सिविल सोसायटी के सक्रिय साथी जनता की ओर से जन घोषणा पत्र जारी करने के लिए जन संवाद प्रारंभ कर रहे हैं। उत्तराखंड में इस तरह के प्रयास पहले भी हुए, लेकिन लंबे समय तक इसको आगे नहीं बढ़ाया जा सका है। लेकिन राजनीतिक दलों के बीच में बहस का विषय समय-समय पर जन संगठनों से जुड़े लोगों ने बनाया है। लोकसभा चुनाव 2014 के पूर्व जन संवाद के माध्यम से जनता के अनुभवों से ऐसा जन घोषण पत्र बने जिसमें जनता को अपनी ताकत का अहसास हो, इस बात को लेकर 22 दिसम्बर 2013 को माउंटेन क्लैक्टिव द्वारा नगरपालिका परिषद उत्तरकाशी के सभागार में एक बैठक का आयोजन किया गया है। इस बैठक में सामाजिक संगठनों, महिलाओं, सभी राजनीतिक दलों के प्रतिभागियों ने मिलकर लोकसभा चुनाव से पहले एक जनघोषणा पत्र बनाने पर चर्चा प्रारंभ कर दी है। राजनीतिक दलों के घोषणा पत्र तैयार होने से पहले जनघोषणा पत्र सभी दलों को जनता की ओर से दिशा निर्देश करने के लिए बनाया जा रहा है। वर्तमान में राजनीतिक परिदृश्य में जिस तरह के बदलाव तेजी से सामने आने लग गए हैं, उसे देखते हुए जनता की आवाज़ को अब नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है। उत्तरकाशी की इस पहली बैठक में निर्णय हुआ कि टिहरी लोकसभा को ध्यान में रखते हुए एक पहला जनघोषणा पत्र तैयार किया जाएगा। जिसे उत्तराखंड के सभी लोकसभा क्षेत्रों तक पहुंचाने का प्रयास किया जाएगा।

बैठक के प्रारंभ में पिछले अनुभवों के अनुसार जन घोषणा का एक प्रारुप प्रतिभागियों को दिया गया और उनसे आवश्यक सुझाव लेने के लिए चर्चा प्रारंभ की गई। सर्वप्रथम बैठक में उपस्थित लोगों का स्वागत हिमला बहन ने किया है। उन्होंने विषय प्रवेश करते हुए जन घोषणा पत्र के उद्देश्यों पर विस्तार पूर्वक चर्चा की है। उन्होंने कहा कि आन्दोलन समूहों, पंचायत प्रतिनिधियों, स्वयंसेवी संगठनों तथा बुद्धिजीवियों के साथ आयोजित वार्ताओं, बहसों तथा संवाद के दौरान जो प्रारुप तैयार किया गया है। जिसमें वर्तमान स्थितियों के आधार पर आगामी लोकसभा चुनाव-2014 से पहले सभी प्रमुख राजनैतिक दलों के अध्यक्षों को इस आशा के साथ सौंपा जाएगा कि जनता के इस घोषणा पत्र पर सभी दल विचार करें और अपने-अपने दलों के घोषणा पत्र में इसे स्थान देंगे। जिन सामूहिक प्रयासों के तहत जनघोषणा पत्र को तैयार किया जाएगा, वही सामूहिक प्रक्रिया चुनावों के दौरान एवं चुनावों के बाद अगले पांच वर्ष तक विभिन्न राजनैतिक दलों एवं सरकार के साथ मिलकर संवाद व निगरानी के लिए काम करने की आवश्यकता होगी। विभिन्न वक्ताओं ने कहा कि जनघोषणा पत्र इसलिए लाया जा रहा है कि पिछले 12 वर्षों में उत्तराखंड राज्य की जमीनी सच्चाईयों की अनदेखी हुई है। चुनाव होने के बाद उत्तराखंड में राजनेताओं ने आम आदमी के साथ संवाद नहीं किया है। जबकि जनता की भी राजनेताओं के प्रति जवाबदेही मात्र वोट देने तक ही सीमित नहीं होनी चाहिए थी। राजनीतिक दलों द्वारा जो चुनावी घोषणा की जाती है उसकी प्राथमिकता चुनाव के बाद में भुला दी जाती है। इसकी सच्चाई यह है कि उत्तराखंड राज्य निर्माण के बाद पंचायती राज एक्ट, मजबूत पुनर्वास नीति, आपदा प्रबंधन, जलवायु परिवर्तन का सामना करने के लिए कोई आशाजनक स्थिति सामने नहीं आई है। यह महसूस किया गया कि यह पहल समय पर यदि हुई तो समाज की समस्याएं और विकट बन सकती है।

मातली की पूर्व प्रधान श्रीमति पूनम नौटियाल एवं राजेश्वरी नौटियाल ने कहा कि सभी राजनैतिक दलों को जनता के इस जन घोषणा पत्र का स्वीकार करके इसे अपनी-अपनी पार्टियों के घोषणा पत्र में शामिल करना चाहिए। उन्होंने कहा कि संविधान ने प्रत्येक नागरिक को मतदान का अधिकार दिया है। उस नागरिक के मतदान से जो प्रतिनिधि चुनकर जाता है उसे जनता की बात को सुनना चाहिए। उन्होंने कहा कि प्रत्येक राजनीतिक दल जनता को लुभाने के लिए बड़ी-बड़ी घोषणाएं करते हैं लेकिन चुनाव जीतने या हारने पर ये राजनीतिक पर्टियां अपने घोषणा पत्र को भूल जाते हैं। घोषणा करने और घोषणा पत्र को पूरा करने में भारी अंतर होता है। जन प्रतिनिधि को जनता के घोषणा पत्र के अनुसार कार्य करना चाहिए। तभी वह सच्चा जन प्रतिनिधि कहा जा सकता है।

बहुजन समाज पार्टी के पूर्व जिलाध्यक्ष पन्ना लाल शाह ने जनता के घोषणा पत्र का सर्मथन करते हुए कहा कि सभी पार्टियों को इस जन घोषणा पत्र को पूरी तरह से अपना घोषणा पत्र मान लेना चाहिए। उन्होंने चिंता जाहिर करते हुए कहा कि आज के जनप्रतिनिधि तो जनता से वोट खरीद कर, शराब बांटकर, जाति, धर्म, भाई- भतीजावाद, क्षेत्रवाद, के नाम पर बोट मांगते हैं और उसी के आधार पर चुनाव जीतते हैं। इससे सवाल यह उठता है कि ऐसी स्थिति में उनसे शत-प्रतिशत जन घोषणा पत्र को लागू करने की अपेक्षा कैसे करेंगे? पिछले 65 वर्षों से जनप्रतिनिधि चुनकर भेज रहे हैं। उनके घोषणा पत्र समाज के बीच में पहुँचते भी हैं, लेकिन एक भी घोषणा को पूरा नहीं किया जाता, आम आदमी आज भी जैसे का तैसा है। बल्कि वह और कमजोर हो गया है। मंहगाई इतनी तेजी से बढ़ रही है कि गरीब आदमी का जीना दूभर हो गया है। राजनेता, योजनाकार जनाकाँक्षाओं के विपरीत बैठक कर घोषणा पत्र तैयार कर रहे हैं, जबकि लोगों की राय पूछकर ही घोषणा पत्र बनाना चाहिए।

जनघोषणा पत्रभारतीय जनता पार्टी के पूर्व जिलाध्यक्ष एवं राज्य आंदोलनकारी श्री मुरारी लाल भट्ट ने कहा कि जनता का जागरुक होना जरूरी है। उनका सुझाव था कि जन घोषणा पत्र की सार्थकता तभी है। जब इसमें प्रतिनिधित्व करने वाले व्यक्ति हेतु एक सार्थक नियमावली बने सामाजिक प्रतिनिधियों का लोकतंत्र के हिसाब से वर्गीकरण करके, रायसुमारी से नेतृत्व उभारा जाए। डाक्टर, वकील, कृषक, विद्यार्थी प्रतिनिधि, अध्यापक, आदि के साथ बैठक निरंतर की जाए। वीपीएल सर्वे को पुनः व्यवहारिक एवं व्यवस्थित बनाया जाना चाहिए। जल नीति पाईपों पर आधारित न होकर स्रोतों पर आधारित हों। सभी को पानी निशुल्क मिलना चाहिए। पानी प्रकृति का निशुल्क उपहार है। इसे जनता को भी निशुल्क मिलना चाहिए। वन नीति में वनों पर आधारित उद्योग लगे। चीड़ के जंगलों को चरणबद्ध तरीके से नियंत्रित किया जाए। बांझ व बुरांस जैसी प्रजाति को विकसित किया जाए। पशुपालन विकसित करना जरूरी है। जंगली फलदार वृक्ष विकसित होंगे तो जंगली पशुओं का आक्रमण घटेगा। फल पट्टी विकसित करना अनिवार्य है। लोकतंत्र में पंचायतों का अपना आधार और अस्तित्व है। ग्राम पंचायत, क्षेत्र पंचायत, जिला पंचायत के साथ-साथ न्याय पंचायतों को भी विकसित किया जाए। शिक्षा के कारण ही आज उत्तराखंड मे अफरा-तफरी मची है। निजी शिक्षण संस्थानों को या तो समाप्त किया जाए या शिक्षा को निजी हाथों में सौंप कर सरकार अपने को किनारे रखें। क्योंकि सरकारी विद्यालयों का व्यय भार दून स्कूल से कम नहीं है।

शराब पर पूर्ण प्रतिबंध लगे। कानून व्यवस्था पर जो खर्चा हो रहा है, अपराधों का जो ग्राफ है, राजस्व की आय उसके मुकाबले कुछ भी नहीं है। जो दंगे फसाद शराब के कारण होते हैं, उस आय को राजस्व मानकर पतन के रास्ते खोले जा रहे हैं। शराब पर प्रतिबंध लगाकर चुनाव सुधार कार्यक्रम पर सांसद और विधायक निधि पर नागरिक अधिकारों पर आमूल-चूल परिवर्तन आ जाएगा। भ्रष्टाचार का कीड़ा पूरे देश को खाए जा रहा है। इस पर प्रतिबंध हेतु लोकपाल पास हो गया है। लोकायुक्त की नियुक्ति की जाए।

जिला पंचायत सदस्य गाजणा क्षेत्र के दिनेश नौटियाल ने कहा कि यह विषय केवल जनता को जागरुक करने का नहीं है। बल्कि सभी राजनैतिक दलों एवं उनकी सरकारों को जागरुक करने का भी है। उनका सुझाव था कि राजनैतिक दल जनपक्षीय होना चाहिए। वीपीएल सर्वे अधिकांश गाँवों में गलत हुआ है जिसके उनके पास कई प्रमाण मौजूद है। उनका सुझाव था कि वीपीएल परिवारों का सर्वे सही मानक के आधार पर होना चाहिए। जंगली जानवरों से काश्तकारों की खेती बड़े पैमाने पर नष्ट की हो रही है। वन विभाग को इन जंगली पशुओं को वापस जंगल में भेजने की योजना बनानी चाहिए। पशु अस्पताल के नाम पर पशुओं के लिए सचल चिकित्सा तो है, लेकिन बीमार पशुओं के लिए भर्ती केन्द्रों की व्यवस्था नहीं है। इसका जिक्र राजनैतिक दलों के घोषणा पत्र में होना चाहिए। आपदा मंत्रालय का काम आपदा से निपटने का होता है। लेकिन प्रदेश में आपदा से निपटने के लिए कोई नीति नहीं है। आपदा के लिए पहाड़ी और मैदानी क्षेत्रों के लिए एक ही नियम हैं जबकि पहाड़ और मैदान की भौगोलिक स्थिति अलग-अलग है। उनका मानना है कि विधायक और सांसद निधि भ्रष्टाचार की निधि है। उत्तराखंड में पंचायत राज एक्ट नहीं है उसे तत्काल रूप से बनाया जाना चाहिए। संविधान के अनुसार जो विभाग पंचायतों को दिए गए हैं उनको तत्काल प्रभाव से पंचायतों को सुपुर्द करना चाहिए, यह घोषणा पत्र का हिस्सा होना चाहिए। दिनेश नौटियाल ने कहा कि त्रिपुरा के मुख्यमंत्री के आदर्श से राजनीतिक दलों को सीखना चाहिए। उन्होंने कहा कि वहाँ के मुख्यमंत्री आम आदमी की तरह सब्जी खरीदने जाता है और स्वयं ही पीड़ित व्यक्ति के घर सहज रूप में पहुँच जाता है।

अधिवक्ता त्रिभुवन सिंह ने सुझाव दिया है कि राजनीति में परिवार वाद पर पूर्ण तरह से रोक लगनी चाहिए। उन्होंने कहा कि इससे कई योग्य व्यक्ति जन प्रतिनिधित्व की मुख्य धारा से छूट रहे हैं। महिलाओं और बच्चों के अधिकार के बारे में भी जन घोषणा पत्र में शामिल किया जाना चाहिए। उत्तराखंड में सबसे ज्यादा आपदा आती है। राज्य में कोई भी विकास योजनाएं शुरू करने से पहले उस क्षेत्र के समस्त ग्रामवासियों सामाजिक कार्यकर्ताओं, बुद्धिजीवियों के साथ इसी प्रकार आपदा प्रबंधन से पूर्व भी जन सुनवाई होनी आवश्यक है।

पूर्व जिला पंचायत सदस्य एवं भारतीय जनता पार्टी की पूर्व जिलाध्यक्ष स्वराज विद्वान ने सुझाव दिया कि आपदा प्रभावितों का सही से मूल्यांकन होना चाहिए। उत्तराखंड मे जड़ी-बूटियों का अथाह भंडार है इसको रोज़गार का जरिया होना चाहिए। इसके संवर्धन एवं संरक्षण की नीति होनी चाहिए। युवाओं के लिए अलग नीति होनी चाहिए। उत्तराखंड में नदियों के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए अलग से एक निदेशालय होना चाहिए। केन्द्र सरकार को तत्काल रूप से हिमालय नीति लागू करनी चाहिए। प्रदेश के लोगों को न्याय के लिए नैनीताल जाना पड़ता है। गढ़वाल क्षेत्र के लिए हाईकोर्ट की एक शाखा देहरादून या हरिद्वार में होनी चाहिए।

सामाजिक कार्यकर्ता किशन सिंह पंवार ने कहा कि प्रजातंत्र जनता का, जनता के लिए जनता का शासन है। लेकिन अब इसका स्वरूप विकृत होता जा रहा है मनरेगा के नाम पर लोगों को साल भर में 7- 10 दिन का रोज़गार ही दिया जा रहा। लोगों के जॉब कार्ड तो बना दिए गए हैं लेकिन काम नहीं मिल रहा है। उनका सुझाव था कि मनरेगा का सही क्रियान्वयन एवं इसकी सही मानीटिरिंग के लिए घोषणा पत्र में शामिल किया जाना चाहिए। राजनीतिक दलों को जातिवाद क्षेत्रवाद से हटकर काम करना चाहिए।

पूर्व प्रधानाचार्य श्री कन्हैया लाल नौटियाल ने कहा कि जनतंत्र अब भीड़तंत्र में परिवर्तित होता दिखाई दे रहा है कोई भी कर्मचारी, अधिकारी, राजनेता अपनी ज़िम्मेदारी का सही निर्वहन नहीं कर रहा है। उन्होंने कहा कि देश में शिक्षा के नाम पर सर्व शिक्षा अभियान, रमसा जैसी महत्वपूर्ण योजनाएं शिक्षा के क्षेत्र में सुधार लाना चाहती है। लेकिन दुर्भाग्य है कि हमारे देश में कई ऐसे विद्यालय हैं जहां अध्यापक ही नहीं है। उनका सुझाव था कि जन घोषणा पत्र में शिक्षा में सुधार तथा उपरोक्त योजनाओं के सही मूल्यांकन के लिए किसी स्वतंत्र कमेटी का निर्माण होना चाहिए। प्रस्तावित जनघोषणा पत्र में बी.पी.एल. सर्वे, जलनीति, वन नीति, जंगली जानवरों से सुरक्षा, भू-नीति, पंचायती राज एक्ट, शिक्षा एवं स्वास्थ्य, बाल अधिकार/ बाल संरक्षण, महिला नीति, विधायक/सांसद निधि, चुनाव सुधार, रोज़गार, नागरिकता के अधिकार, जल विद्युत परियोजनाएं, आयोगों की क्रियाकलापों की सुनिश्चिता, कृषि, हिमालय नीति, भ्रष्टाचार, आपदा प्रबंधन, पुनर्वास नीति आदि कई विषयों पर जनघोषणा पत्र में जनता की आवाज़ को बुलंद किया जाना चाहिए। इसको राजनीतिक दलों के घोषणा पत्र में शामिल करने के लिए दबाव समूह का गठन किए जाने की आवश्यकता है।

जनघोषणा पत्रजिला कांग्रेस के जसवंत सिंह बिष्ट ने कहा कि राजनीतिक दल घोषणा पत्र तो बनाते हैं लेकिन उसे पूरा कौन करेगा, यह हमेशा एक प्रश्न चिन्ह बना रहता है। उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार में लिप्त लोगों पर समाज की लगाम लगनी चाहिए।

दिलसौड़ गांव की महिला नेत्री शीला देवी ने कहा कि जन घोषणा पत्र में समाज में महिलाओं की भागीदारी को सुनिश्चित करने की पहल होनी चाहिए। कहा कि महिला जनप्रतिनिधि केवल नाम मात्र की रह गई है महिला जनप्रतिनिधि को निर्णय का अधिकार नहीं है। उसके पति या घरवाले ही महिला प्रतिनिधि के ज़िम्मेदारी का वहन करते हैं। यहां तक कि बीडीसी के बैठक में भी महिला जनप्रतिनिधि का पति, बेटा या ससुर ही अपने को जनप्रतिनिधि की हैसियत से बैठक में भाग लेने जाते हैं। कई प्रस्तावों पर वे स्वयं ही महिला प्रतिनिधि के हस्ताक्षर तक कर देते हैं। उनका सुझाव था कि महिला जनप्रतिनिधि के क्रियाकलापों के लिए जन घोषणा पत्र में अलग से गाइड लाइन होनी चाहिए। उनका यह भी सुझाव था कि प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण एवं संवर्धन महिलाएं ही करती हैं अतः गांव के प्राकृतिक संसाधनों को महिलाओं के अधिकार में होना चाहिए। अजीम प्रेमजी फ़ाउंडेशन के श्री जगमोहन सिंह कठैत ने कहा कि लोकतंत्र में लोगों की सुनी जानी आवश्यक है परन्तु जब लोगों की अनसुनी होती है तब लोकतंत्र नहीं कहा जा सकता है। यह भी सोचना जरूरी है कि हमारा क्षेत्र शस्वत लोक क्षेत्र कैसे बने। पहाड़ों के संदर्भ में कहें तो यहाँ के लिए क्वालिटी की जरुरत है, क्वाँटिटि की नहीं, अर्थात यहाँ पर जो भी विकास हो वो टिकाऊ हो, किंतु भारी भरकम न हो। यहाँ यदि कुछ टिकाऊ है तो वह है प्राकृतिक सौंदर्य और पर्यावरण इन्हीं का सही प्रयोग होना चाहिये।

बैठक के मुख्य अतिथि प्रो. वीरेन्द्र पैन्यूली ने कहा कि उत्तराखंड जैसे पर्वतीय राज्य में पिछले पंचवर्षीय योजनाओं में आपदा प्रबंधन, जल एवं महिला केन्द्रित विकास को नियोजित तरीके से नकारा गया है। प्राकृतिक संसाधनों के दुरुपयोग से उत्तराखंड में बार- बार आपदा से तबाही हो रही है। स्थानीय छोटे किसानों हेतु जन वितरण प्रणाली दोषपूर्ण तरीके से कार्यरत रही है। स्थानीय संसाधनों पर आधारित रोजगारों की पहल राज्य में बहुत की गई है, लेकिन इस दिशा में नाम मात्र के प्रयास भी नहीं किए गए हैं। जिसके कारण लाखों युवा राज्य छोड़कर पलायन कर गए हैं। इसी तरह आपदा से बचने का कोई रोड मैप जनता के सामने नहीं है। उनका सुझाव था कि जन घोषणा पत्र में विज्ञान और तकनीकी का इस्तेमाल जनता के परंपरागत तरीकों से सीखकर शामिल किया जाना चाहिए। लोक सुनवाई और लोकमंचों का भी प्रसार जनघोषणा पत्र में शामिल किया जाना चाहिए। घोषणा पत्र आश्वासन पत्र नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि घोषणा पत्र में जनता को महशूष हों कि वे मालिक हैं और प्रतिनिधि उनके नौकर हैं। उन्होंने कहा कि विज्ञान और तकनीकि के रूप में पारंपरिक तरीकों का विकास हो। लोक सुनवाई लोक मंचों पर होनी चाहिए। राजनीतिक दलों के घोषणा आश्वासन नहीं बल्कि कार्य रूप में परिणत होने चाहिए। बैठक के सुझावों के अनुसार जनघोषणा पत्र के प्रारुप को अंतिम रूप देने पर सहमति बनी है। जब यह जनघोषणा पत्र पूर्ण रूप से तैयार किया जाए तो इसे जनता के बीच में लाकर स्थान-स्थान पर राजनैतिक दलों को सौंपना चाहिए और उनसे संवाद निरंतर जारी रहे तभी इसकी सार्थकता बनी रहेगी। इस संबंध में प्रो. वीरेन्द्र पैन्यूली के विचार के अनुसार जनघोषणा पत्र को जनता की राय के लिए भी खुला करना चाहिए, ताकि शेष बातों पर भी लोग मुखर रूप से आगे आ सकें।

इस बैठक में महिला उत्थान संस्था ब्रह्मखाल से कर्ण सिंह, सामाजिक कार्यकर्ता देव बधानी, संदीप उनियाल, पूर्व प्रधान राजेश्वरी देवी, सुरेन्द्र प्रसाद नौटियाल, माउन्टेन क्लैक्टिव के सदस्य आलोक त्रिपाठी के अलावा मातली, दिलसौड़, चिणाखोली, बौन, पंजियाला, अठाली, जुगुल्डी, मनेरा, उत्तरकाशी के 150 से अधिक महिला-पुरुषों ने भाग लिया है।

जन-घोषणा पत्र - 2014 एक प्रारुप


विभिन्न अभियानों, आन्दोलन समूहों, पंचायत प्रतिनिधियों, स्वयंसेवी संगठनों तथा बुद्धिजीवियों के साथ हुई वार्ताओं, बहसों तथा संवाद के दौरान यह जनघोषणा पत्र बनाया गया है। इस दस्तावेज़ को आगामी लोकसभा चुनाव-2014 से पहले सभी प्रमुख राजनैतिक दलों के अध्यक्षों को इस आशा के साथ सौंपा जाएगा कि जनता के इस घोषणा पत्र पर सभी दल विचार करेंगे और अपने-अपने संबंधित दलों के घोषणा पत्र में इसे स्थान देंगे। जिन सामूहिक प्रयासों के तहत इस जनघोषणा पत्र को तैयार किया गया है, वही सामूहिक प्रक्रिया चुनावों के दौरान एवं चुनावों के बाद अगले पांच वर्ष तक विभिन्न राजनैतिक दलों एवं सरकार के साथ संवाद व निगरानी का कार्यक्रम चलाएगी।

यह जन घोषणा पत्र क्यों?


1. पिछले 12 वर्षों में उत्तराखंड में और 65 वर्षों में देश में हम वोट ही देते रहे हैं। विकास में आम आदमी की भागीदारी शून्य ही रही हैं।
2. चुनाव होने के बाद आम आदमी और राजनेता के बीच संवाद शून्य ही रहता है।
3. ऐसी कोई भी व्यवस्था नहीं है जिसमें चुनाव होने से पहले विभिन्न राजनैतिक दल आम जन के सहयोग से अपने घोषणा पत्र पर चर्चा करते हों।
4. ऐसी कोई भी आंकलन की प्रक्रिया नहीं है जो राजनैतिक दलों के सत्ता में आने के बाद, उनके योगदान की समीक्षा की जा सकती हो।
5. जनता की राजनेताओं के प्रति जवाबदेही मात्र वोट देने या न देने तक ही सीमित नहीं होनी चाहिए। जनता को अपनी आवश्यकताओं/प्राथमिकताओं को पुरजोरों से चुनावी घोषणा का हिस्सा बनाने में होनी चाहिए।
6. नीतियों पर पुनः विचार कर स्थानीय जलवायु व खेती पर बल देना चाहिए। स्थानीय व छोटे किसानों की पी.डी.एस. के साथ ही पब्लिक कलेक्शन सिस्टम पर भी चिंतन करना चाहिए।
7. स्थानीय फसल व फल, उत्तराखंड की पहचान है। इनके प्रोत्साहन के अलावा स्थानीय काश्तकारों के उत्पादन को खरीदने की सुनिश्चिता राज्य में नहीं है।
8. किसी भी उद्योग को प्रोत्साहन देने से पहले आम आदमी की उद्योगों में हिस्सेदारी व भागीदारी तय की जानी चाहिए।
9. ग्रामीण विकास को अहम प्राथमिकता देते हुए वैज्ञानिकों, सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं अर्थशास्त्रियों की एक समिति गठित कर ग्रामीण विकास की निरंतर दिशा, प्रगति पर चर्चा होनी चाहिए।
10. सभी बड़ी योजनाएं ज्यादातर वो जिसमें ऋण चुकाना पड़ता है, पर जनसुनवाई होनी चाहिए। इसके बाद ही ऋण वाली योजनाओं की संस्तुति होनी चाहिए। इस प्रक्रिया के द्वारा पर्यावरण जैसे गंभीर सवालों पर फिजूलखर्ची से बचा जा सकता है।
11. पर्यावरण रपट हर वर्ष तैयार की जानी चाहिए और पर्यावरण को केन्द्र में रखकर ही विकास योजनाओं को अमल में लाना चाहिए।
12. आवंटित विकास धन का 70 प्रतिशत गाँवों पर खर्च करना होगा।
13. वन, नदियां धरोहर हैं। इनके समुचित संरक्षण व विकास ग्रीन बेल्ट के अनुसार कार्य रूप में लाना चाहिए।
14. ऊर्जा के विकेन्द्रित व वैकल्पिक साधनों पर केन्द्रित होकर सुरंग आधारित बांधों पर निर्भरता को घटाने की शुरूआत करनी चाहिए।

प्राकृतिक संसाधनों के स्थान पर प्राकृतिक संपदा कहा जाए तथा इसके लिए सह अस्तित्व मूलक योजना बनाई जाए जिसमें प्राकृतिक संपदा के संरक्षण व सदुपयोग की नीति सुनिश्चित की जाए। जल, जंगल, जमीन के लिए पृथक-पृथक नीतियाँ बनाने से पहले इनकी एकीकृत नीति पर विचार किया जाएगा-

बी.पी.एल. सर्वे


1. केन्द्र सरकार द्वारा बी.पी.एल. सर्वे मानक को निरस्त किया जाएगा।
2. बी.पी.एल. सर्वे के लिए पर्वतीय क्षेत्रों की विषम परिस्थितियों के अनुकूल मानक तय करे जिससे कि वास्तविक लाभार्थी बी.पी.एल. श्रेणी में आएगा।

जलनीति


1. प्रत्येक जीवन को पानी निःशुल्क मिलेगा।
2. जल पर स्थानीय जनता का स्वामित्व रहेगा, उसे इसके संरक्षण, संवर्द्धन में स्थानीय परंपरा, संस्कृति व ज्ञान के आधार पर विकास की योजना बनाने की स्वायत्तता रहेगी।
3. किसी गांव अथवा नगर के पास पानी का उपयोग बाहरी क्षेत्रों के लिए करने से पहले संबंधित पंचायतों/निकायों की आपसी स्वीकृति अनिवार्य होगी।
4. पानी से संबंधित विभाग गांव, क्षेत्र व जिला पंचायतों की विकेन्द्रित व्यवस्था के साथ विलीन हो जाएंगे।
5. जल संरक्षण के लिए यह आवश्यक होगा कि स्थानीय जल संस्कृति व ज्ञान के आधार पर संवर्धन हो, चाल-खाल, मेड़बंदी, ट्रेक निर्माण, वर्षा जल संग्रहण, चौड़ी पत्ती के वृक्षों का रोपण आदि हो। जलस्रोत संरक्षण में सीमेंट की दीवारों के निर्माण पर प्रतिबंध रहेगा।
6. ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के लिए न्यूनतम 100 लीटर प्रति व्यक्ति/मवेशी प्रतिदिन पेयजल और घरेलू उपयोग के पानी का अधिकार दिया जाएगा।
7. जल, जंगल, जमीन पर निजी कंपनियों अथवा निवेश के नाम पर आने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर प्रतिबंध रहेगा।

वन नीति


1. प्रत्येक गांव में पंचायती वनों का परिसीमन किया जाएगा, जिसका क्षेत्रफल गांव की आबादी के अनुसार तय किया जाएगा। वन पंचायतों का गठन आरक्षित वनों से किया जाएगा इसके लिए प्रथम श्रेणी के उन वनों को प्राथमिकता दी जाएगी, जिन्हें 1964 में आरक्षित वनों में मिला दिया गया था। वन पंचायतें पूर्णतः स्वायत्त इकाइयां होंगी जिनमें वन विभाग की भूमिका मात्र तकनीकी सलाहकार की होगी। प्रत्येक गांव का अपना वन होगा।
2. आरक्षित एवं संरक्षित क्षेत्रों में जनता के परंपरागत अधिकारों की पुर्नबहाली की जाएगी तथा नए संरक्षित क्षेत्रों का गठन केवल मानव हस्तक्षेप विहीन क्षेत्रों में ही किया जाएगा। जंगलों में लघु वन उपज को निकालने एवं विपणन का अधिकार ग्राम सभाओं के पास होगा। संरक्षित क्षेत्र (वन) 10 वर्षों से अधिक नहीं होना चाहिए।
3. अनुसूचित जनजाति एवं अन्य परंपरागत वन निवासी (वन अधिकारी की मान्यता) अधिनियम 2006 को राज्य में प्रभावी ढंग से लागू किया जाएगा तथा अन्य परंपरागत वन निवासी शब्द को स्पष्ट रूप से परिभाषित करते हुए समूचे पर्वतीय क्षेत्र को इसमें शामिल किया जाएगा। ताकि आपदा प्रभावितों को भी वनभूमि पर आवास बनाने की स्वीकृति दी जा सकें।
4. वन पंचायत नियमावली 2005 को तत्काल खारिज किया जाएगा तथा वन संरक्षण अधिनियम 1980, वृक्ष अधिनियम 1976, वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 तथा उत्तरांचल वन अधिनियम (संशोधित) 2001 में आवश्यक जनपक्षीय संशोधन किए जाएंगे।

जनघोषणा पत्र

जंगली जानवर


पर्वतीय क्षेत्रों में जंगली सूअर, बंदर, लंगूर, भालू सहित समस्त जानवरों एवं पक्षियों द्वारा की जा रही क्षति को मुआवज़े के दायरे में लाया जाए तथा सूअरों द्वारा किए जा रहे नुकसान पर दी जा रही मुआवजा राशि को बढ़ाया जाए। इन जानवरों से फसल सुरक्षा हेतु कृषि भूमि की घेराबंदी की जाए। जंगली जानवरों को नियंत्रण में रखने के लिए राज्य सरकार एवं स्थानीय समुदाय नियंत्रक भूमिका में रहेंगे।

भू-नीति


1.समान भू-नीति लागू की जाएगी।
2. बेनाप भूमि को वन भूमि के दायरे से बाहर कर उसे ग्राम पंचायत को सौंपा जाए। भूमि की पैमाइश करवाई जाएगी।
3. महिलाओं को किसान का दर्जा दिया जाएगा।
4. जमींदारी उन्मूलन कानून में आवश्यक संशोधन किया जाएगा।
5. ग्राम पंचायत के समस्त भू-अभिलेखों को ग्राम पंचायत/नगर पंचायत के पास रखने का नियम बनाया जाएगा।
6. सीलिंग एक्ट को प्रभावी ढंग से लागू किया जाए। सीलिंग से प्राप्त भूमि को भूमिहीनों में बांटने के लिए भूमि बैंक का गठन किया जाएगा।
7. प्रत्येक वयस्क को स्वतंत्र परिवार मानकर उसे न्यूनतम 63 नाली भूमि आवंटित की जाएगी।
8. कृषि भूमि या बागवानी योग्य भूमि का गैर कृषि व्यावसायिक उपयोग हेतु पूर्ण रूप से प्रतिबंधित रहेगा।
9. भूमि बन्दोबस्त व स्वैच्छिक चकबन्दी का कार्य अविलम्ब शुरू किया जाएगा।
10. पर्वतीय क्षेत्र में कृषि जोत का रकबा बढ़ाने के लिए वृक्षहीन भूमि का रकबा वन विभाग के कब्जे से मुक्त कर राजस्व विभाग के नाम पर दी जाएगी। जिसके द्वारा भूमिहीनों को भूमि दी जा सकें।
11. थारू, बोक्सा व वन राजि, वन गूजर, वन टोंगिया जैसी जनजातियों का जो हिस्सा लगातार पुस्तैनी ज़मीन से वंचित हो रहा है उनकी भूमि तथा भूमि सुधार पर ध्यान दिया जाएगा।
12. पंचायती राज संस्थाओं को अपनी सीमा में बेनाप भूमि के पट्टे व लीज देने का अधिकार होगा।
13. पर्वतीय क्षेत्र पर्यटन व फल पट्टी की दृष्टि से महत्वपूर्ण जमीनों की एकमुश्त खरीद/बिक्री पर रोक लगे तथा पिछले दस वर्षों में किए गये सौदों को निरस्त किया जाएगा।

पंचायत


तत्काल पंचायती राज एक्ट बनाया जाएगा जिसमें जनता के लोकतांत्रिक अधिकारों को सुनिश्चित किया जाएगा। इस एक्ट में गांव संबंधी सारी योजना एवं निर्णय ग्राम सभा स्तर पर लिए जाएं। क्षेत्र एवं जिला स्तरीय निर्णय क्रमशः क्षेत्र पंचायत एवं जिला पंचायत स्तरों पर लिए जाएं। इन योजनाओं के लिए धन उपलब्ध करवाने की जिम्मेदारी राज्य सरकार की हो। पंचायतों में महिला बजटिंग का प्रावधान होना चाहिए। ग्राम पंचायत/क्षेत्र पंचायत/न्यायपंचायत/जिला पंचायत उम्मीदवारों व प्रतिनिधियों के लिए प्रशिक्षण की व्यवस्था दो माह तक होनी चाहिए। पटवारी, पंचायतमंत्री, पतरौल और पर्यटन गांव की व्यवस्था में सौंपे जाएंगे।

शिक्षा एवं स्वास्थ्य


शिक्षा एवं स्वास्थ्य समाज कल्याण के विषय हैं, इन्हें किसी भी कीमत पर निजी हाथों में नहीं सौंपा जाएगा। सभी को निःशुल्क एवं अनिवार्य रूप से समान एवं गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा सुनिश्चित कराना राज्य का दायित्व होगा तथा कुल बजट का कम से कम 30 प्रतिशत अनिवार्य रूप से शिक्षा पर खर्च किया जाएगा तथा बच्चे का तात्पर्य 0 से 18 वर्ष तक की उम्र से माना जाएगा। प्रारंभ से माध्यमिक तक की शिक्षा को सरकार तत्काल अनिवार्य रूप से अपने हाथों में लेगी। दोहरी शिक्षा प्रणाली बंद की जाएगी व समान शिक्षा को बढ़ावा दिया जाएगा।

न्याय पंचायत स्तर पर स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध करवाई जाएगी, जहां चिकित्सकों एवं स्वास्थ्य सुविधाओं की पर्याप्त मात्रा में उपलब्धता होंगे।

बाल अधिकार/बाल संरक्षण:


1. सभी 0-18 आयु वर्ग के बच्चों को अनिवार्य शिक्षा दी जाएगी।
2. बाल आयोग, बाल नीति का प्रावधान किया जाएगा।
3. किशोर न्यायिक बोर्ड की मज़बूती का प्रावधान सुनिश्चित किया जाएगा।
4. आदिवासी , दलित, अल्पसंख्यक, अनुसूचित जाति/ जनजाति के छात्र-छात्राओं के लिए केन्द्र व राज्य सरकार द्वारा दी जाने वाली छात्र वृतियां एवं अन्य कानूनी सुविधाओं की सुनिश्तिता होगी।
5.सभी गाँवों में आंगनबाड़ी केंद्रों की व्यवस्था की जाएगी तथा आंगनवाड़ी केन्द्रों में भवनों की सुनिश्चिता होगी। आंगनबाड़ी केन्द्र को साधन सम्पन्न बनाया जाएगा।
6. सभी सरकारी/ गैर सरकारी विद्यालयों में भेदभाव मुक्त शिक्षण व्यवस्था की जाएगी।
7. प्रत्येक थानें में बाल कल्याण अधिकारी की तैनाती की जाएगी।
8. सभी जनपदों में बाल सुधार गृह स्थापित किए जाएंगे।
9. बाल साहित्य अकादमी का गठन होगा तथा बाल साहित्य प्रकाशन हेतु प्रोत्साहन दिया जाएगा।

महिला नीति


राज्य सरकार मजबूत महिला नीति बनाएगी तथा महिलाओं के लिए बने कानून का प्रभावी ढंग से क्रियान्वयन किया जाएगा साथ ही राजनीतिक दल अपनी पार्टी में 50 प्रतिशत महिला उम्मीदवार घोषित करेंगे। शराब से उत्तराखंड की जनता विशेषकर महिलाएं त्रस्त हैं। एक निश्चित समय में शराबबन्दी का लक्ष्य निर्धारित किया जाएगा। इसके लिए हर वर्ष शराब की दुकानों की संख्या कम की जाएगी।

विधायक/सांसद निधि


1. पिछले दस वर्षों में सरकारी व्यय जिस तेजी से बढ़ रहा है यह अति चिंता का विषय है। लालबत्तियों के वितरण पर यथासम्भव अंकुश लगाया जाएगा।
2. भारतीय संविधान में विधायक एवं सांसद को लोक की संज्ञा दी गई है। अतः संविधान की मर्यादा को ध्यान में रखते हुए उनके भत्ते तथा मानदेय आम जनता के जीवन स्तर के समकक्ष रखे जाएंगे। बिहार की तर्ज पर विधायक निधि को समाप्त किया जाएगा तथा यह राशि सीधे पंचायतों के सुपुर्द होगी।

चुनाव सुधार:


1. मतदाताओं को उम्मीदवार की नापसंदी के लिए मतदान वोटिंग मशीन में एक बटन प्रत्याशियों को खारिज करने का प्रावधान होगा।
2. राइट टू रिकॉल का प्रावधान ग्राम पंचायत से लेकर विधान सभा, लोकसभा, राज्यसभा में होगा।
3. चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों का जीवनवृत चुनाव आयोग की बेवसाइट/प्रत्याशी चुनाव क्षेत्र के सभी बूथों पर चस्पा किया जाएगा।

रोजगार


1. रोजगार नीति का आधार परिवार केन्द्रित योजना होगी।
2. प्रत्येक नागरिक का न्यूनतम व अधिकतम मेहनताना सुनिश्चित होगा।
3. प्रत्येक वयस्क नागरिक की योग्यता के अनुसार रोज़गार गारंटी सुनिश्चित होगा। स्वावलम्बन को बढ़ावा देने वाली आर्थिकी, उद्योग व उत्पादन को बढ़ावा दिया जाएगा।
4. मनरेगा में 200 कार्यदिवस व 250 रु. मजदूरी की गारंटी सुनिश्चित की जाएगी।
5. पुरूष व महिलाओं की समान मजदूरी नियम सख्ती से लागू होगा।
6. उद्यानों की लीज सहकारी समितियों को दी जाएगी। उक्त सहकारी समिति में शेयर धारकों की 70 प्रतिशत संख्या स्थानीय रहेगी।
7. मजबूत जनपक्षीय कृषि नीति बनाई जाएगी।
8. पर्यटन स्थानीय लोगों की आजीविका व विकास का आधार बनेगी। राज्य इसके लिए एक पर्यटन नीति का निर्माण करेगी।

नागरिकता के अधिकार


1. सरकार ऐसा कानून लाएगी कि लोगों द्वारा कही जाने वाली बातों को सरकार गंभीरता से सुने तथा उस पर अमल करे।
2.नागरिकों की सुरक्षा के लिए पूर्ण रूप से गारंटी दी जाएगी।

जल विद्युत परियोजनाएं


1. सुरंग आधारित जलविद्युत परियोजनाओं पर रोक व प्रतिबंध लगेगा। इसके स्थान पर छोटी-छोटी नहर आधारित सूक्ष्म जलविद्युत परियोजनाओं को बढ़ावा दिया जाएगा। इसके लिए ग्राम पंचायतों से लेकर जिला पंचायतों के द्वारा जल विद्युत उत्पादक समितियों के माध्यम से विद्युत ऊर्जा तैयार की जाएगी। इसके अनुरूप छोटे-छोटे स्थानीय ग्रिड बनाए जाएंगे। इसके मॉडल उत्तराखंड में जहां-जहां पर लोगों ने तैयार किए हैं, उससे भी सीख ली जाएगी। स्थानीय युवकों को इससे चल सकने वाले कुटीर उद्योग-धन्धों से रोज़गार दिया जाएगा। पलायन रोकना भी इसका मुख्य उद्देश्य रहेगा।
2. जल, जंगल, जमीन के अधिकार स्थानीय ग्राम सभाओं को सौंपा जाएगा।
3. प्रदेश सरकार निजीकरण के स्थान पर सामुदायीकरण बढ़ाने का काम करेगी।

आयोगों की क्रियाकलापों की सुनिश्चिता


सभी आयोग जिसमें मानवाधिकार आयोग, महिला आयोग, अनु. जनजाति आयोग, अनुजाति आयोग को सशक्त बनाकर उनके कार्यों का क्रियावयन को सुनिश्चित किया जाएगा तथा सभी आयोगों को बहाल किया जाएगा।

कृषि


1. उत्तराखंड राज्य में 13 प्रतिशत कृषि भूमि है, जिसमें 4 प्रतिशत सिंचित भूमि है किंतु 1966 के बाद आज तक भूमि पैमाइश नहीं होने से कृषि सुदृढ़ीकरण नहीं हो सकी है। अधिकांश सरकारी व निजी भवनों का निर्माण कृषि भूमि पर किया जा रहा है। जिससे उत्तराखंड में कृषि भूमि सीमित होती जा रही है।
2. वर्ष 2011 में निर्मित कृषि नीति को पुनः संशोधित कर जनपक्षीय बनाया जाएगा।
3. कृषि भूमि का कई सालों से पैमाइश नहीं किया गया है, सभी कृषि भूमि की पैमाइश की जाएगी।
4. कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगाया जाएगा।
5. पर्वतीय क्षेत्र में परंपरागत बीजों के संरक्षण के लिए नीति बनाई जाएगी तथा क्षेत्र में जैविक खाद उद्यानीकरण को बढ़ावा दिया जाएगा।
6. पर्वतीय क्षेत्र में स्वैच्छिक चकबंदी को बढ़ावा दिया जाएगा।
7. कृषि भूमि में औद्योगीकरण को पूर्ण रुप से प्रतिबंध किया जाएगा।
8. सिंचाई साधनों के वैकल्पिक प्रयोगों को बढ़ावा दिया जाएगा।
9. जंगली जानवरों से कृषि क्षति के लिए कृषि नीति में सशक्त प्रावधान किए जाएंगे।
10. भौगोलिक क्षेत्र के आधार पर कृषि के बीज, खाद के अनुसंधान की कार्यवाही सुनिश्चित की जाएगी।

1. टिहरी लोक सभा क्षेत्र में मुख्य रूप से पहाड़ी क्षेत्र आता है। चिर-स्थायी विकास के लिए जो भी नीति बने उसमें पहाड़ के स्वभाव को ध्यान में रखा जाय। यहां चीजें व्यापक नहीं बल्कि छोटी व गुणवत्ता पूर्ण होती (quantity नहीं quality) हैं। यहां पर चीजें सुखी जीवन के लिए संभव है भोग विलासिता के लिए नहीं। (life for happiness not for luxuries)।

2. निर्माण कार्य- पहाड़ का स्वभाव है कि वह खुद तो व्यापक है परन्तु चीजें यहां छोटी ही होती है और गुणवत्ता से परिपूर्ण होती है। इसलिए यहां पर जो भी निर्माण कार्य हों- भवन हो, बांध हो, सड़को हों आदि सभी छोटे हों परन्तु उच्च कोटि की गुणवत्तायुक्त हों।

3. उद्योग- उद्योग के स्थायित्व के लिए दो चीजें महत्वपूर्ण होती है- कच्चे माल की उपलब्धता एवं तैयार माल हेतु उपभोक्ता। पहाड़ पर व्यापक पैमाने पर उद्योग लगाने के लिए न तो कच्चा माल है और न ही उसके उपभोक्ता यहां पर उपलब्ध हैं। यदि कोई यहां पर खनन एवं जंगल को व्यापक पैमाने पर देखकर इस पर आधारित उद्योग की बात करता है तो वह चिर-स्थायी विकास के विरोध में ही होगा। इसलिए यहां पर जो व्यापक स्तर पर है वह है पहाड़ का सौंदर्य और पहाड़ से जुड़ी आस्थाएं।

4. इसलिए यहां पर साहसिक पर्यटन एवं धार्मिक पर्यटन को ही व्यापक आजीविका के रूप में देखना चाहिए या कहें कि इसके इर्द-गिर्द हमें विकल्पों की तलाश करनी चाहिए। नए-नए प्राकृतिक पर्यटक स्थलों की खोज एवं उसके संरक्षण व संवर्धन पर ध्यान देने की आवश्यकता है।

5. पर्यटन - पर्यटन को लेकर फिर से बुनियादी सिद्धांत पर ध्यान देने की आवश्यकता है कि अति व्यापक स्तर पर पर्यटक न आएं। यहां के भूगोल की लोगों को सहन करने की क्षमता को ध्यान में रखते हुए गंगोत्री, यमुनोत्री तथा इसके दूसरे पर्यटक स्थलों के लिए वर्ष भर में पर्यटकों की संख्या को निश्चित किया जाए जिसके लिए सभी लोग पूर्व में ही आवेदन करें। पहले आओ पहले पाओ के साथ-साथ इसके लिए निश्चित ही विभिन्न आधारों पर आरक्षण की व्यवस्था भी की जाए।

6. शिक्षा- शिक्षा की गुणवत्ता पर ध्यान दिया जाए। प्रत्येक प्राथमिक विद्यालय में शिक्षा अधिकार अधिनियम के अनुसार कम से कम दो शिक्षक सुनिश्चित किए जाएं। भौगोलिक स्थिति व लोगों के पलायन को ध्यान में रखते हुए छोटे-छोटे कस्बों में आवासीय विद्यालय स्थापित किए जाएं ताकि जिन गाँवों बच्चों की संख्या बहुत कम हो गई है वहां पर कक्षा 3 तक के विद्यालय हों और आगे की पढ़ाई आवासीय विद्यालयों में निशुल्क दी जाए।

7. स्वास्थ्य- स्वास्थ्य की व्यवस्था को सुदृढ़ किया जाए। इसके लिए जो परंपरागत नुस्खे, स्थानीय जड़ी-बूटियां रही है उनका वैज्ञानिक विधि से प्रमाणीकरण किया जाए और उसके लिए व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाए ताकि लोग स्वास्थ्य को लेकर काफी हद तक स्वावलम्बी हो सकें अर्थात हर छोटी-मोटी बीमारी के लिए अस्पतालों पर निर्भर न रहें।

8. वानिकी- वानिकी यहां की आजीविका का अच्छा स्रोत हो सकता है। विभिन्न किस्म के फलों को उगाने पर प्रयोग किए जाएं। इससे जहां एक ओर आजीविका चलेगी वहीं दूसरी ओर पर्यावरण भी ठीक रहेगा।

हिमालय नीति


हिमालय नीति बनवाने हेतु केन्द्र सरकार पर दबाव बनाया जाएगा।

भ्रष्टाचार रोकना


1. विदेशों में जमा काला धन वापस लाया जाएगा।
2. सिटीजन चार्टर में छूटे विषयों को सम्मिलित किए जाने का प्रावधान किया जाएगा।
3. भ्रष्टाचार से मुक्ति के लिए लोक आयुक्तों को अधिकार /साधन सम्पन्न बनाया जाएगा।

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