मैला प्रथा : एक कड़वा सच

आपकी और हमारी सुबह पूजा, नमाज़ से शुरू होती है। लेकिन हमारे समाज के एक वर्ग का सुबह मैला उठाने से शुरू होता है। भारतीय समाज के एक वर्ग को एस्कवेंचर कहकर उन्हें अलग-थलग कर दिया गया और ये बदलाव पीढ़ी दर पीढ़ी झेलते जा रही है। परंपरा से इन्हीं जातियों के लोग मलमूत्र साफ करने या निपटाने का काम करते आ रहे हैं। सदियों से घरों में मैला उठाने का काम इन्हीं जातियों के महिलाओं के ज़िम्मे रहा है। बचपन से इन्हें इस काम में लगा दिया जाता है और ये सिलसिला शादी के बाद भी होता है। इस सच्चाई से आज भी इंकार नहीं किया जा सकता कि बहुत से वादों, इरादों और कानून के बावजूद भी ये प्रथा बदस्तूर जारी है। जारी है इनका शोषण जो आज भी ऐसी जिंदगी जीने को मजबूर हैं जो किसी भी लिहाज से भले मालूम नहीं पड़ती। आज भी एक ऐसा कार्य हमारे बीच मौजूद है जो समाज का तिरस्कार और अपमान सहने को मजबूर है। वे अपने काम को नियती और किस्मत का लेखा मानकर करते जाते हैं। नहीं समझ आते हैं उन्हें अनुच्छेद -17, 341 और 342 जिसमें उनके लिए विशेष योजनाओं और सुविधाओं के लिए व्यवस्था बनाने के लिए बात कही गई है।

More Videos