मार दिया जाए या छोड़ दिया जाए

19 Feb 2017
0 mins read

केन्द्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मन्त्रालय ने नीलगाय और जंगली सूअर को नाशक जीव घोषित करते हुए बिहार में एक साल के लिये इन्हें मारने की छूट दे दी है। नीलगाय ने अफीम की खेती के लिये प्रसिद्ध मध्य प्रदेश के नीमच जिले के किसानों के नाक में भी दम कर रखा है। कुंदन पांडेय ने नीमच के पावटी गाँव के सरपंच कमल राठौर और मंदसौर के सांसद सुधीर गुप्ता से इसी समस्या को लेकर उनका नजरिया जानने की कोशिश की है।

 

“नीलगायों ने किसानों की नाक में दम कर रखा है। इस गम्भीर समस्या का एकमात्र समाधान नीलगायों को मार डालना ही है। यदि इसमें कोई कानूनी दिक्कत हो तो कम-से-कम इनकी नसबंदी तो की ही जा सकती है, ताकि कुछ सालों बाद इनकी आबादी घट जाए” - कमल राठौर, सरपंच, पावटी (नीमच)

 

नीलगाय इस क्षेत्र के लिये बहुत बड़ी समस्या बन गई है। ये पहले तो बस फसल ही बर्बाद करती थी, लेकिन अब हिंसक भी हो गई हैं। गाँव के पालतू मवेशी यदि अकेले मिल जाएँ तो नीलगाय उन पर हमला करने से भी नहीं चूकती। इन नीलगायों का प्रकोप पूरे साल रहता है। करीब चार सौ परिवारों वाले इस गाँव में अफीम से लेकर लहसुन, धनिया, सरसों और चने की खेती होती है। मौसम की मार से जो फसल बच जाती है, उसे नीलगाय बर्बाद कर देती है। इस तरह किसानों को दोहरा नुकसान उठाना पड़ रहा है।

इस क्षेत्र के किसानों ने कई बार धरना-प्रदर्शन कर इस समस्या से निजात दिलाए जाने के लिये गुहार लगाई। भोपाल तक गए, कृषि मन्त्री से मिले, लेकिन इसका कोई नतीजा नहीं निकला। कृषि मन्त्री ने समझाया कि यह केवल मध्य प्रदेश की समस्या नहीं है, बल्कि पूरा देश इससे जूझ रहा है। कई स्तर पर इस समस्या को उठाया जा चुका है। लेकिन कोई समाधान नहीं निकला।

हमारा पूरा गाँव नीलगाय से परेशान है। नीलगाय हमेशा झुंड में आती है इसलिये अधिक खतरनाक होती है। आलम यह है कि किसानों को हर रात कम-से-कम तीन बार अपने खेत पर रखवाली करने जाना पड़ता है। हालात चाहे कैसे भी हों- बरसात हो रही हो, घर में कोई बीमार हो या कड़ाके की ठंड व कोहरा हो, किसान को खेत के चक्कर लगाने ही पड़ते हैं। आमतौर पर नीलगाय के झुंड या तो रात को बारह बजे से पहले आते हैं या भोर में तीन बजे के बाद। इनके रास्ते भी तय हैं। इसलिये इन पर अंकुश लगाना कोई मुश्किल काम नहीं है।

 

“बिना किसी नीति के नीलगायों को मारने की छूट देने का अपना एक जोखिम है। ऐसा न हो कि पूरे क्षेत्र में बमुश्किल चार-पाँच नीलगाय हों और लोग उनके पीछे पड़ जाएँ। इसलिये एक समिति बननी चाहिए जो सभी पक्षों पर विचार करे और इस मुद्दे पर निर्णय ले” - सुधीर गुप्ता, सांसद मंदसौर

 

नीलगाय की वजह से पूरा मंदसौर क्षेत्र, जिसके अन्तर्गत नीमच भी आता है, काफी परेशान है। यह जानवर पूरे इलाके के लिये बड़ी मुसीबत बनकर आया है। इनका स्थायी निवास जंगल है, लेकिन अब ये शहर-बस्ती की तरफ आ गए हैं। नीलगाय को लेकर एक अध्ययन होना चाहिए- जैसे यह जानवर जंगल में क्या खाना-पीना पसंद करता है, वैसी वनस्पति और आहार वहाँ बचे भी हैं कि नहीं? क्यों नीलगाय भागकर खुले में आ रही है?

अगर आज इनको नहीं रोका गया तो आने वाले समय में स्थिति और भी बुरी हो जाएगी। खासकर किसानों के लिये जरूरी है कि नीलगाय को फिर से जंगल में बसाया जाए और इन्हें जंगलों में लौटने के लिये प्रोत्साहित किया जाए। फौरी तौर पर पंचायत स्तर पर निर्णय लिया जाना चाहिए। मेरी समझ से सरकार को ‘नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल’ के निर्देशों के आधार पर एक समिति बनानी चाहिए। यह समिति सुनवाई करे जिसमें किसान, वन विभाग, पर्यावरण प्रेमी आदि सभी पक्षों को शामिल किया जाए। फिर समिति जो भी निर्णय करे वैसी कार्यवाही हो। मेरे विचार से तो एक समिति जिलास्तर पर भी बननी चाहिए, जिसमें जिला कलेक्टर, जनप्रतिनिधि, पर्यावरणविद, वन विभाग के अधिकारी और सरपंच शामिल हों।

यही समिति निर्णय ले कि नीलगायों को कहीं ले जाना है या मारना है। अगर समिति तय करे तो नीलगाय को बिना मारे भी आसानी से हटाया जा सकता है। सरकार के पास इसके लिये संसाधनों की कोई कमी नहीं है।

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading