मौसम वैज्ञानिक यंत्र और उनका उपयोग

सभ्यता के विकास के साथ पूरे विश्व में वैज्ञानिक प्रगति हो रही है। कई विकसित देशों में तो वैज्ञानिक प्रगति और आविष्कारों को लेकर आपसी प्रतिस्पर्धा की स्थिति आ गई है। इस प्रसंग में यह ध्यान देने की बात है कि मौसम विज्ञान के क्षेत्र में कई देशों के द्वारा गहन अनुसंधान और अन्वेषण के कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। मानसून संबंधी अनुसंधान के मामले में केवल सोवियत संघ वाले एशियाई देश ही नहीं बल्कि अमेरिका और यूरोपीय देशों की भागीदारी भी रही है। मौसम सदैव अपना रंग बदलता रहता है, विशेषकर भारत - जैसे मानसूनी प्रकार की जलवायु वाले देश में मौसम में होने वाला अचानक परिवर्तन कोई नई बात नहीं है। मौसम में बदलाव दिन-प्रतिदिन नहीं, बल्कि कभी तो कुछ घंटों में हो जाता है। अभी सुनहली धूप खिली है कि कुछ घंटों में ही आसमान में बादल छाने लगे और रिमझिम वर्षा होने लगी।

मौसम तथा उससे निर्धारित होने वाली जलवायु के लिए कुछ मूल तत्व हैं जिनमें तापमान आर्द्रता, वायु का दबाव या वायुभार, पवन तथा उसके बहाव की दिशा, बादल, वर्षा आदि प्रमुख है। किसी स्थान या क्षेत्र के लिए मौसम की जानकारी प्राप्त करने के उद्देश्य से वैज्ञानिकों ने कई प्रकार के यंत्रों को बनाया है।

वैज्ञानिक यंत्रों की सहायता से केवल मौसम की जानकारी ही नहीं मिलती है, बल्कि मौसम का पूर्वानुमान भी लगाया जाता है। मौसम संबंधी जानकारी देने वाली विद्या को मौसम विज्ञान कहा जाता है। जिन यंत्रों के सहारे मौसम के विभिन्न तत्वों की जानकारी ली जाती है, उन्हें मौसम वैज्ञानिक यंत्र कहते हैं।

किसी भी मौसम के लिए तापमान सबसे महत्वपूर्ण अवयव है। वातावरण में ताप की स्थिति को मापने वाले यंत्र को तापमापी या थर्मामीटर कहते हैं। तापमापी यंत्र का निर्माण इस मौलिक सिद्धांत के अनुसार किया गया है कि विभिन्न पदार्थों पर तापमान के परिवर्तन की भिन्न प्रक्रिया होती है। तापमापी की नली में जिस पदार्थ का इस्तेमाल किया जाता है, वह पारा होता है या अलकोहल। शीशे की नली में रखा हुआ यह पदार्थ गर्म होने पर तेजी से फैलता है और ऊपर की ओर चढ़ता है। इसके विपरीत ठंडक होने पर अधिक सिकुड़ता है। इस प्रक्रिया के परिणामस्वरूप कांच की नली में यह द्रव ताप अधिक होने पर ऊंचा उठकर अधिक तापमान की सूचना देता है। ताप कम होने पर यह द्रव सिकुड़ता है और नीचे की ओर उतरकर कम तापमान का संकेत देता है। द्रव की इस नली पर अंशों में (डिग्री) अंक बने रहते हैं, जिन्हें पढ़कर तापमान का पता चलता है।

मुख्यतः तापमान को ‘सेल्सियस’ या ‘फारेनहाइट’ के अंशों (डिग्री) में अभिव्यक्त किया जाता है। ये तापमान मापी अलग-अलग प्रकार के होते हैं, जिनके नाम क्रमशः इनके आविष्कर्ताओं - सेल्सियस तथा फारेनहाइट के व्यक्तिगत नामों के अनुसार रखे गए हैं। भारत में दशमलव प्रणाली के अनुसार बने सेल्सियस तापमापी का उपयोग अधिक किया जाता है। तापमान में पानी जमने (हिमांक) तथा पानी उबलने (क्वथनांक) की स्थिति को विशेष महत्व दिया जाता है। सेल्सियस के अनुसार सागर तल पर बर्फ या हिमबिंदु को 0 डिग्री (शून्य अंश) तथा पानी उबलने की स्थिति को 100 डिग्री (एक सौ अंश) की मान्यता दी गई है। जबकि मनुष्य के शरीर का सामान्य तापमान 37 डिग्री से 0 डिग्री माना जाता है।

किसी स्थान पर तापमान सदैव एक-सा नहीं रहता, बल्कि सदैव बदलता रहता है। रात-दिन के 24 घंटों में अधिकतम और न्यूनतम तापमान की जानकारी के लिए एक विशेष प्रकार के तापमापी यंत्र का उपयोग किया जाता है जिसे सिक्स का अधिकतम-न्यूनतम तापमापी कहा जाता है।

धरती पर वातावरण के भार को मापने के लिए जिस यंत्र का उपयोग किया जाता है, उसे वायुदाबमापी या बैरोमीटर कहा जाता है। साधारणतः वायुदाबमापी यंत्र में पारे का उपयोग किया जाता है। अब आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक यंत्रों से, बिना पारे के इस्तेमाल से, वायुभार को मापने की प्रक्रिया आरंभ की जा चुकी है।

मौसम की जानकारी के लिए वायुभार के साथ ही हवा के बहाव की स्थिति का ज्ञान भी आवश्यक है। स्थिर वायु जैसे ही गतिमान होती है तो उसे हवा पवन कहते हैं। वातावरण में पवन तथा उसकी प्रवाह दिशा की जानकारी प्राप्त करने के लिए पवन सूचक या पवन दिशा दर्शक यंत्र (विंड वेन) का उपयोग किया जाता है। पवन की गति के साथ ही यह यंत्र पवन की बहाव दिशा की सूचना भी देता रहता है। अब आधुनिक मौसम विज्ञान केंद्रों में पवन वेग मापी यंत्रों के साथ इलेक्ट्रॉनिक यंत्र तथा कंप्यूटर लगा दिए गए हैं जिससे पवन की बदलती बहाव दिशा और गति का लेखा-जोखा स्वचालित रूप में होता रहता है।

यह एक मान्य वैज्ञानिक तथ्य है कि मौसम की स्थिति के उचित विश्लेषण के लिए वातावरण में व्याप्त आर्द्रता की जानकारी का विशेष महत्व है। सामान्य रूप में आर्द्रता का मतलब किसी वायु राशि में जलवाष्प की स्थिति से है।

वायु में आर्द्रता को दो प्रकार से अभिव्यक्त किया जाता हैः
1. निरपेक्ष आर्द्रता
2. सापेक्षिक आर्द्रता।

मौसम में आर्द्रता की जानकारी के लिए सामान्यतः सापेक्षिक आर्द्रता की बात की जाती है। सापेक्षिक आर्द्रता को प्रतिशत में अभिव्यक्त किया जाता है, जिससे निश्चित तापमान पर वायु में आर्द्रता धारण करने की क्षमता और उसमें वर्तमान आर्द्रता का संकेत मिलता है।

इसके लिए आर्द्र तथा शुष्क बल्ब तापमापी यंत्र का उपयोग किया जाता है। इस आर्द्रता मापी (हाइग्रोमीटर) में यदि आर्द्र बल्ब का तापमान तेजी से कम होने लगता है तो आर्द्रता की स्थिति बहुत कम मानी जाती है। यदि तापमान अधिक कम नहीं हो रहा है तो यह वायु में आर्द्रता अधिक होने का संकेत है।

मौसम, विशेषकर अपने देश भारत के मौसम में, वर्षा को अधिक महत्व दिया जाता है। जैसा कि उल्लेख किया जा चुका है। बादलों से जल वर्षा के अलावा हिमपात, ओले आदि भी प्राप्त होते हैं। खुले आसमान से गिरने वाली जल वर्षा को मापने के लिए जिस यंत्र का इस्तेमाल किया जाता है उसे वर्षामापी (रेन गेज) कहते हैं।

वर्षामापी यंत्र को खुले स्थान में या मैदान में रखकर उपयोग में लाते हैं। यह वास्तविक रूप में एक बर्तन हैं। जिसमें वर्षा का जल संचित होता है। इसी जल को 24 घंटों के बाद एक अलग पात्र में डालकर माप लिया जाता है। जल वर्षा की मात्रा को मिलीमीटर में अभिव्यक्त किया जाता है।

सभ्यता के विकास के साथ पूरे विश्व में वैज्ञानिक प्रगति हो रही है। कई विकसित देशों में तो वैज्ञानिक प्रगति और आविष्कारों को लेकर आपसी प्रतिस्पर्धा की स्थिति आ गई है। इस प्रसंग में यह ध्यान देने की बात है कि मौसम विज्ञान के क्षेत्र में कई देशों के द्वारा गहन अनुसंधान और अन्वेषण के कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।

मानसून संबंधी अनुसंधान के मामले में केवल सोवियत संघ वाले एशियाई देश ही नहीं बल्कि अमेरिका और यूरोपीय देशों की भागीदारी भी रही है। इनका सम्मिलित प्रयास मोनेक्स के रूप में फलदायक रहा है। आधुनिक वैज्ञानिक युग में मौसम विज्ञान के पारंपरिक यंत्रों के अलावा ‘राडार टोही विमान’ जैसे कई अधुनातन यंत्र विकसित किए गए हैं, जिनसे मौसम, विशेषकर मानसून की गतिविधि संबंधी तथ्यगत और चित्रात्मक जानकारी प्राप्त को जाने लगी है। इस क्षेत्र में राडार यंत्र के साथ कंप्यूटर जोड़ दिए जाने से कम समय में ही महत्वपूर्ण परिणाम मिलने लगे हैं।

मानसून पवन का आगमन, उसकी प्रवाह दिशा, गति आदि का विवरण तटीय क्षेत्रों में स्थापित मौसम वैज्ञानिक केंद्रों और राडार से सहज में ही मिलने लगे है। यही नहीं, मानसून पवन से प्रभावित हिंद महासागर के क्षेत्र अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में उत्पन्न होकर गतिशील होने वाले चक्रवातीय तूफानी की जानकारी राडार के द्वारा समय पर मिलने लगी है, जिससे कि इन तूफानों से होने वाले नुकसान से बचाव किया जा सकता है। इस दिशा में राडार यंत्र काफी प्रभावी तथा उपयोगी साबित हो रहे हैं। अब राडार युक्त विमान भी बनने लगे हैं जिनके द्वारा धरती से ऊपर 10 से 25 किमी. तक की वास्तविक परिस्थितियों का पता लगाया जा सकता है।

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