मौत के मुआवजे पर मजा करना चाहता है मध्य प्रदेश

मध्य प्रदेश के किसान पुत्र शिवराज सिंह चौहान की सरकार के गृह मंत्री उमाशंकर गुप्ता द्वारा मध्य प्रदेश विधानसभा में ऐसा आंकड़ा प्रस्तुत किया है जिससे पता चलता है कि मध्य प्रदेश सरकार किसानों के मौत के नाम पर मुआवजा लेकर मौज करना चाहता है।

मध्य प्रदेश विधानसभा में प्रस्तुत सरकारी आंकड़े को ही अगर सत्य माना जाए तो प्रदेश में हर माह 29 यानी एक वर्ष में 348 किसानों ने आत्महत्या की है। प्रदेश सरकार एक वर्ष में आत्महत्या करने वाले 348 किसानों में से सिर्फ आठ की आत्महत्या की वजह कर्ज व फसल की बर्बादी मानती है, यानी शेष 340 किसानों ने अन्य कारणों से आत्म हत्या की है। जबकि राज्य सरकार ने किसानों को मुआवजा देने के लिए केंन्द्र से 2400 करोड़ रु. की मांग कर चुका है।

विधानसभा में कांग्रेस के कार्यकारी नेता प्रतिपक्ष चौधरी राकेश सिंह द्वारा पूछे गए सवाल के जवाब में राज्य के गृह मंत्री उमाशंकर गुप्ता ने बताया कि एक फरवरी 2010 से एक फरवरी 2011 तक कुल 348 किसानों ने आत्महत्या की है। वहीं उनका दूसरा दावा यह है कि पांच सालों के दौरान प्रदेश में 5 हजार 838 किसानों ने आत्महत्या की है। ये आंकड़े वर्ष 2006 से दिसम्बर 2010 तक के हैं। इनमें से सिर्फ आठ किसानों ने कर्ज और फसल बर्बाद होने की वजह से आत्महत्या की है। शेष आत्महत्याओं के कारण नशे की लत, मानसिक स्थिति ठीक न होना तथा बीमारियां बताए गए हैं। सरकार की ओर से गृह मंत्री के जवाब में बताया गया है कि एक वर्ष की अवधि में सबसे ज्यादा 88 किसानों ने अलीराजपुर में आत्महत्या की है। वहीं झाबुआ में 67, छतरपुर में 43, पन्ना में 41, खरगोन में 39, अशोक नगर में 26, गुना व भोपाल में सात-सात, बुरहानपुर व विदिशा में छह-छह, उज्जैन व सीहोर में चार-चार, दमोह में तीन, रायसेन में दो और मंदसौर, छिंदवाड़ा, सागर तथा बालाघाट में एक-एक किसान ने आत्महत्या की है। उधर कांग्रेस पार्टी का मानना है कि यदि सरकार की निगाह में पाले और तुषार से सिर्फ आठ किसानों की ही मौत हुई है तो राज्य सरकार द्वारा केन्द्र से 2400 करोड़ रु. की मांग करना कहां तक जायज है? पार्टी ने सरकार द्वारा किसानों की आत्महत्याओं को लेकर बताये गये कारणों को भी दिवंगत किसानों व उनके परिजनों के जख्मों पर नमक छिड़कने की अभद्र हरकत माना है।

कांग्रेस के विधायक तुलसी सिलावट ने अपनी एक ध्यानाकर्षण सूचना के माध्यम से आरोप लगाया कि प्रदेश सरकार ने पिछले दस माह में करीब 65 हजार किसानों पर बिजली चोरी के झूठे प्रकरण दर्ज किए हैं और वह किसानों के गिरफ्तारी वारंट जारी करने में लगी है। उन्होंने कहा कि पश्चिम क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी इंदौर में 43 हजार 346, पूर्व क्षेत्र कंपनी में 12 हजार 533 और मध्य क्षेत्र कंपनी के अंतर्गत 9 हजार 940 किसानों पर विद्युत चोरी के मामले बनाए गए हैं। इन किसानों पर 43 करोड़ रूपए की राशि बकाया बताकर यह कार्रवाई की जा रही है। अधिक राशि का बिल देने के कारण सदमे से दो लोगों की मौत भी हुई है। उन्होंने सरकार से किसानों के खिलाफ दर्ज मामले वापस लेने की मांग की।

उल्लेखनीय है कि प्रदेश में जब असमय बरसात के दौरान पड़े आले और पाले के बाद किसानों की फसल बर्बाद हुई थी तब कर्ज लेकर खेती करने वाले किसानों ने कर्जदारों के दबाव में आत्म हत्या करनी शुरू कर दी। ऐसे क्षण में इस मामले को किसी ने गंभीरता से नहीं लिया। लगातार बढ़ती किसानी आत्महत्या को स्यंभू जैविक बाबा प्रदेश के कृषिमंत्री ने किसानों का पिछले जन्म का पाप बताया है। उन्होंने कहा कि लगातार किसानों ने खाद और केमिकलयुक्त दवाओं को डालकर धरती मां को बीमार करने का जो पाप किया है उसी का परिणाम है कि धरती मां फसल खराब कर रही है और उनका पुत्र यानी कि किसान मरने को मजबूर है। यानी उसकी आत्महत्या में किसी की जिम्मेदारी नहीं। न राज्य की, न केन्द्र की, न खाद-बीज बनाने वाली कंपनियों की, न नीति-निर्माताओं की और न बदलती प्रकृति की। दूसरी व्याख्या उन संघियों, एन.जी.ओ., सरकारी कारिदों या तथाकथित् जैविक और प्राकृतिक खेती के पूजकों की है जो कहते हैं कि हमने जल-जंगल-जमीन से जो छेड़छाड़ की उसी का परिणाम है ये त्रासदी। मतलब साफ है कि सबकुछ उस पापी किसान का ही किया धरा है। जबकि किसान और उसका खेत, बीज, खाद, सिंचाई, पैदावार उसके दाम और बाजार हमेशा सत्ता से नियंत्रित होते रहे हैं।

असल में पाप-पुण्य की समझ ही खेती को धार्मिक कर्मकांड बना देने से निकली है। तभी तो प्रदेश के कृषि विभाग की वेबसाईट भरपूर अवैज्ञानिकता फैलाते हुए बताती है कि इस मुहूर्त या नक्षत्र में फलां वस्तु बोने से इतना फायदा होगा, इल्ली का प्रकोप होने पर खेत में हवन करने पर इल्ली खत्म नहीं बल्कि भाग जाती है। प्रदेश का सिंचाई विभाग वॉटरशेड को शिवगंगा कह कर सिंचाई करने की बात करता है।

आश्चर्य है कि इस पापी किसान के मरने की खबरें भी उन ईलाकों या जिलों से ज्यादा आ रही हैं जो या तो मुख्यमंत्री या कृषिमंत्री के गृह और राजनैतिक क्षेत्र हैं। जहां से ये लोग इसी पापनी किसान के दम पर चुनाव जीतते आ रहे हैं। कितना दुखद है कि जिस कर्जे को माफ करने की बात केन्द्र और राज्य की सरकारें पिछले कुछ सालों से लगातार करती आई हैं वही कर्जा आज भी किसानों के गले का फंदा बना हुआ है। जबकि कई करोड़ रुपये इस किसान के कर्ज के नाम पर घोषित हो चुके हैं। वहीं पिछले दो सालों में केन्द्र और राज्य की सरकारें इसी झूठे आश्वासन और नारों के दम पर फिर से चुन कर आ गई। अभी तक मध्यप्रदेश किसान आत्महत्या के मामले में तीसरे पायदान पर था पर पिछले पन्द्रह दिन की रफ्तार बताती है कि प्रदेश शीघ्र ही पहले नहीं तो दूसरे नंबर पर आने को तैयार है।

कांग्रेस प्रवक्ता के.के. मिश्रा कहते है कि किसानों की आत्म हत्या विषयक राज्य सरकार द्वारा दिये गये उक्त बयान बेहद आपत्तिजनक, प्रदेश के अन्नदाताओं तथा उनके परिजनों का अपमान है। मसलन, मृतक किसानों को पागल, शराबी, नपुंसक, पुत्र अथवा स्वयं की शादी नहीं होना, अवैध संबंध, पुरानी चोट से परेशान होना, साले की शादी न होना, प्रेम प्रसंग, पत्नी वियोग, अचानक कुएं में गिरना, मंदबुद्धी, बैलगाड़ी का बंटवारा और रास्ते का विवाद होना जैसे अगंभीर कारण बताए गए हैं वे बेहद बेतुके और हास्यास्पद होकर दिवंगत किसानों और उनके परिवारों के जख्मों पर नमक छिड़क रहे हैं। आश्चर्य तो इस बात का है कि राज्य सरकार ने आदिवासी बाहुल्य झाबुआ और अलीराजपुर में क्रमश: 67 व 88 किसानों की मौत को स्वीकारा है। वहां केन्द्र की करोड़ों रु. की योजनाएं व उपयोजनाएं जारी है, स्वयं मुख्यमंत्री ने इन जिलों को गोद लेने की बातें कई बार दोहराई हैं। यही नहीं छतरपुर व पन्ना जिले में भी क्रमश: 43 व 41 किसानों की मौतों को स्वीकारा गया है, वहां बुंदेलखंड पैकेज केन्द्र द्वारा जारी किया गया है। ऐसी सूरत में करोड़ों रु. की राशि/पैकेज/योजनाओं और उपयोजनाओं को कौन निगल रहा है, राज्य सरकार को स्पष्ट करना चाहिए। उन्होंने मुख्यमंत्री से मांग की है कि वह किसानों की मौतों से जुड़े इस अहम् मुद्दे को वे सिर्फ केंद्र से करोड़ों रु. की राशि झूठ बोलकर हड़पने व केंद्र पर दोषारोपण करने का मुद्दा न बनाये और प्रदेश में किसानों द्वारा की जा रही आत्महत्याओं जैसी गंभीर त्रासदी पर न केवल श्वेत-पत्र जारी करें, बल्कि प्रदेश के सभी मान्यता प्राप्त राजनैतिक दलों की बैठक भी आहूत करें, ताकि किसानों के प्रति उनका वास्तविक प्रेम परिलक्षित हो सके।

अब देखना है कि आत्महत्या करते उस दरिद्र और गरीब किसान या उसके परिवार तक इस घोषणाओं का कितना अंश पहुंच पाता है। क्योंकि इन भारी लाभों की घोषणा से जिनके चेहरे खिल उठे हैं उनमें सरकारी कारिंदे, अफसर, सहकारी नेता, सत्ता पार्टी का राजनैतिक कार्यकर्ता और इन सबको साधने वाला गांव या क्षेत्र का बिचैलिया। जिनसे गुजरकर इस राशि का अंश उस पीडि़त तक पहुंचेगा। यानी मरे हुए के परिवार तक राशि पहुंचना भी हमारी व्यवस्था में इतना सरल नहीं। ताजा उदाहरण केन्द्र सरकार की ऋण माफी योजना का है जिसमें 60 हजार से अधिक अपात्रों का ही कर्ज माफ कर दिया गया। विधानसभा का हंगामा, विभिन्न जांच रपट, विरोधी दलों की अपील और मीडिया के खुलासे के बाद पता चला कि मध्यप्रदेश में 200 करोड़ रुपये ऐसे लोगों में बांट दिये गये जिनका खेती से या नुकसान से कोई लेना-देना नहीं है। 30 सितंबर 2010 को सामने आयी रपट बताती है कि 2 लाख 14 हजार 129 किसानों के, 245 करोड़ 72 लाख 14 हजार 353 रुपये के कर्ज माफी आवेदन पास हुए थे। जिसमें 60 हजार 188 दावे बोगस पाये गये। इनमें कई सारे तो कार, जीप, मोटरसाईकिल आदि के ऋण माफ कर दिये गये। और असल पात्र को ऐसी योजना का पता ही नहीं। आज प्रदेश के जिन गांवों में आत्महत्या हुई है उनमें से कई ऐसी किसी योजना के बारे में नहीं जानते।

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading