मेरे लेखन और कला का केवल विषय रहा है नर्मदा - अमृतलाल बेगड़

वर्तमान युग की बढ़ती भागदौड़, आगे बढ़ने की अंधी प्रतियोगिता में जब लोगों के पास अपनों के लिए घर-परिवार, मित्र, रिश्तेदारों के लिए, उनका हाल-चाल लेने की फुर्सत नहीं बच रही है। ऐसे में नदी, जंगल और पेड़ों, प्रकृति का हाल-चाल लेना, उनके साथ समय बिताना, उनसे बात कर उसकी भावाभिव्यक्ति को सार्थक-साकार रूप देना सचमुच आश्चर्य की बात है।

लेकिन मध्य प्रदेश, भोपाल की मुख्य नदी नर्मदा के साथ-साथ उसकी लहर-लहर के साथ कदम मिलाकर चलने वाले अमृतलाल बेगड़ जी ने ये आश्चर्य कर दिखाया है। उन्होंने पूरी नर्मदा की (4,000) चार हजार किलोमीटर लंबी पदयात्रा संपन्न की। आज 84 वर्ष की आयु में भी इनका पहला प्यार और पूजा नर्मदा ही है। जिसकी हर भाव-मुद्रा को बेगड़ जी ने अपने साहित्य और कला का अंग बनाया है। पुराणों में वर्णित है कि नर्मदा शिवपुत्री है। इस नर्मदा को ही विषय बनाकर बेगड़ जी ने तमाम रेखांकित चित्र और साहित्य की सर्जना कर डाली। प्रस्तुत है डॉ. मनोज चतुर्वेदी और डॉ. प्रेरणा चतुर्वेदी द्वारा लिये गये साक्षात्कार का मुख्य अंश:-

डॉ.प्रेरणा चतुर्वेदी .. अमृतलाल जी आप अपने प्रारंभिक जीवन के बारे में कुछ बताएं।
अमृतलाल बेगड़ .. मेरा जन्म 3 अक्टूबर, 1928 को मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले में हुआ। प्रारंभिक शिक्षा गुजरात के कच्छ जिले में, उसके बाद मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले में हुई।

डॉ.प्रेरणा चतुर्वेदी.. आपने कला की शिक्षा कब और कहां से प्राप्त की?
अमृतलाल बेगड़.. मैने सन् 1948 में कालेज की पढ़ाई छोड़कर शांति निकेतन में आचार्य नंदलाल बोस के सानिध्य में 5 वर्षों तक चित्रकला की शिक्षा (आर्ट डिप्लोमा) लिया।

डॉ. मनोज चतुर्वेदी .. क्या आपकी कला प्रदर्शनी भी लगी है?
अमृतलाल बेगड़ .. हां, मुंबई के जहांगीर आर्ट गैलरी, कलकत्ता, दिल्ली, भोपाल, इंदौर और जबलपुर के कई स्थानों पर मेरी एकल चित्र प्रदर्शनियाँ लगी। जिसमें दर्शकों का अपार स्नेह मिला।

डॉ. मनोज चतुर्वेदी .. आपने नर्मदा की पैदल यात्रा या परिक्रमा किस प्रकार की।
अमृतलाल बेगड़ .. मैने नर्मदा की खंड परिक्रमा की। यानि कभी 15 दिन, कभी 20 दिन, कभी 25 दिनों तक की है। इसमें 1000 किलोमीटर तक मेरी पत्नी और बेटा भी साथ चले हैं।

डॉ.प्रेरणा चतुर्वेदी .. नर्मदा परिक्रमा कब शुरू की और कब समाप्त की।
अमृतलाल बेगड़ .. मैने नर्मदा की पैदल परिक्रमा मध्य प्रदेश के जबलपुर में वारी घाट से सन् 1977 में शुरू की और वहीं सन् 2009 में 4,000 किलोमीटर पूरा किया।

डॉ. मनोज चतुर्वेदी .. आप एक दिन में कितना चलते थे?
अमृतलाल बेगड़.. एक दिन में लगभग 12-13 किलोमीटर तक चलता था। चलने के साथ नदी तट पर रहने वाले लोगों से भी बातचीत का क्रम जारी रखा। सचमुच नदी संस्कृति में भारतीय संस्कृति के बीज छिपे हुए हैं नदियां मानव विकास तथा सभ्यता की साक्षी रही हैं। नदियों के किनारे ऋषि-मुनियों ने जप-तप, आसन-प्राणायाम तथा पूजा-अर्चना के माध्यम से सनातन धर्म का संवर्धन किया है। नदी तट पर रहने वाले लोगों से मुझे अपार प्रेम और सद्भाव प्राप्त हुआ। उन्होंने मुझसे कई प्रश्न भी पूछे जिसका यथासंभव मैने जवाब भी दिया।

डॉ. मनोज चतुर्वेदी .. आप अपनी साहित्यिक यात्रा पर प्रकाश डालेंगे।
अमृतलाल बेगड़ .. जी हां मैने गुजराती में 7 पुस्तकें और हिन्दी में 3 पुस्तकें लिखी है। इनके नाम हैं- ‘सौंदर्य की नदी नर्मदा’ , ‘अमृतस्य नर्मदा’ , ‘तीरे-तीरे नर्मदा’। साथ ही 8-10 पुस्तकें बाल साहित्य पर भी लिखीं है। मेरी पुस्तकों के 5 भाषाओं में 3-3 संस्करण निकल चुके हैं। कुछ का तो विदेशी भाषाओं में भी अनुवाद हो चुका है।

डॉ.प्रेरणा चतुर्वेदी .. आपके लेखन और कला का मुख्य विषय क्या रहा?
अमृतलाल बेगड़ .. मेरे लेखन और कला का केवल एक ही विषय रहा है और वह है नर्मदा। यहाँ तक की मेरा व्याख्यान भी नर्मदा विषय पर ही केन्द्रित रहता है।

डॉ. मनोज चतुर्वेदी .. आपने नर्मदा के किन-किन पक्षों को साहित्य और कला में उभारा है?
अमृतलाल बेगड़ .. मुझे नर्मदा का प्राकृतिक, शांत और सौंदर्य अधिक प्रभावित करता है। इसलिये मैने नर्मदा के निकट बसे गाँवों, वहां के ग्रामीण जीवन, आदिवासियों के जनजीवन, उनकी लोक-संस्कृति और लोक-कला को अपने लेखन और कला में विशेषकर उभारने का प्रयास किया है।

डॉ.प्रेरणा चतुर्वेदी .. आपके चित्रों की क्या खास विशेषता रही?
अमृतलाल बेगड़ .. दरअसल, मैने नर्मदा परिक्रमा के दौरान ही अनेक रेखांकन किये। और विशेषकर रंगों का प्रयोग न करके कोलाज में(पेपर कटिंग,पेस्टिंग) चित्र पूरे किये हैं।

डॉ. मनोज चतुर्वेदी.. आपके कृतित्व को किन-किन संस्थाओं ने सम्मानित किया है?
अमृतलाल बेगड़.. मुझे कई राज्य स्तरीय और राष्ट्रीय पुरस्कार मिले हैं। जिनमें से मुख्य हैं-
मध्य प्रदेश शिखर सम्मान (चित्रकला)
शरद जोशी राष्ट्रीय सम्मान (साहित्य)
डॉ. शंकर दयाल शर्मा सृजन सम्मान (साहित्य)
साहित्य अकादमी अवार्ड (साहित्य)
महापंडित राहुल सांस्कृत्यायन सम्मान (साहित्य)
डॉ. विद्यानिवास मिश्र सम्मान (साहित्य)
गुजरात साहित्य अकादमी पुरस्कार (साहित्य)

डॉ. मनोज चतुर्वेदी.. युवाओं के लिये कोई संदेश देना चाहेंगे।
अमृतलाल बेगड़.. देखिये, मेरे गुरू आचार्य नंदलाल बोस ने कहा था कि-जीवन में भले ही सफल मत होना, मगर अपना जीवन सार्थक करना। मेरे गुरूदेव गाँधीवादी विचारधारा से प्रभावित नामी-गिरामी चित्रकार थे। उनके चित्रों में भारत के गाँव, भारत की लोक-संस्कृति, भारतीय संस्कृति तथा भारतीय जीवन मूल्यों को देखा जा सकता है। उन्होंने महात्मा गांधी से प्रभावित होकर कई चित्रों का रेखांकन किया। जबकि आज के चित्रकारों में नकारात्मक रेखांकन दिखाई पड़ता है जो राष्ट्रीय एकात्मता की दृष्टि से ठीक नहीं है।

आज के समय में सब सफल होने के पीछे पड़े हैं मेरा युवाओं के लिये यही संदेश है कि सफलता से बड़ी सार्थकता है, क्योंकि इसी में जीवन की सच्ची अर्थवत्ता है। इसलिये मनुष्य को अपना जीवन सार्थक बनाना चाहिए, सफलता स्वयं मिलेगी।

डॉ. मनोज चतुर्वेदी.. मकबूल फिदा हुसैन के संबंध में कुछ कहना चाहेंगे?
अमृतलाल बेगड़ .. देखिये, मकबूल फिदा हुसैन ने डॉ. राम मनोहर लोहिया के कहने पर सकारात्मक रेखांकन किया था। लेकिन इधर के वर्षों में उनके चित्रों पर व्यवसायिकता का प्रभाव देखा जा सकता है। खैर, अब इस बात को यही पर रहने देने की जरूरत है।

डॉ. मनोज चतुर्वेदी.. आप अध्यापन, अध्ययन तथा लेखन जैसी मूल कलाओं में सिद्धहस्त हैं। क्या कारण है कि भारतीय समाज में समय-समय पर अराष्ट्रीय तत्व सिर उठाने लगते हैं?
अमृतलाल बेगड़ .. कला, साहित्य तथा पत्रकारिता द्वारा राष्ट्रीयता के प्रचार-प्रसार से ही अराष्ट्रीयता पर विजय पाया जा सकता है। राष्ट्रीय आंदोलन, जेपी आंदोलन और कुछ हद तक 1992 में भी राष्ट्रीयता की भावना का प्रचंड प्रकटीकरण हुआ था। गंगा, सरस्वती, सिंधु, यमुना, सतलुज, सरयू इत्यादि नदियों से भारत तथा भारतीय संस्कृति की पहचान है। अत: हमें नदी संस्कृति को अपने जीवन से जोड़ने की जरूरत है ज्योंहि हम नदियों से जुड़ेंगे, हमारी चिंतनधारा नदियों की तरह कलकल प्रवाहित होने लगेगी। मेरे चित्रों में इन्हीं बिंदुओं को छूने का यथासंभव प्रयास किया गया है।

प्रेरणा चतुर्वेदी .. युवा पीढ़ी और नदियों पर कार्य कर रहे लोगों को कोई संदेश देना चाहेंगे?
अमृतलाल बेगड़ .. यह धरती मेरी माता है तथा हम सभी इसकी संतान है यह भाव हमें मां तथा मातृभूमि से जोड़ता है। अत: उपरोक्त भावनाओं का विकास ज्यों-ज्यों होगा। त्यों-त्यों भारत, भारतीय तथा मानवता मजबूत होगी।

डॉ. मनोज चतुर्वेदी .. दो शब्द।
अमृतलाल बेगड़ .. भारत माता की जय!

लेखक हिन्दुस्थान समाचार में कार्यकारी फीचर संपादक तथा स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर डी.लिट् कर रहें हैं।
लेखिका, कहानीकार, कवयित्री, मनोवैज्ञानिक सलाहकार तथा संपादन से जुड़ी हैं।

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