मेवात में जोहड़

महात्मा गाँधी का ‘मेवात में जोहड़’ पुस्तक महात्मा द्वारा अपने जीते जी मेवात के लिए किए गए समर्पण की दास्तान है। उन्होंने यह मान लिया था, कि मेरे शरीर से ज्यादा जरूरी है भारत में सद्भावना के साथ जीना। इसे स्थापित करने हेतु समर्पण की जरूरत है। जैसे क्षत्राणियाँ अपने राज्य को बचाने हेतु अपने पति को निर्मोही बनाकर युद्ध हेतु जौहर करती थीं। उन्हेें यदि युद्ध में पराजय का आभास हो जाए तो भी वे अपने राज्य की आन-बान -शान बचाने के लिए दुश्मन को पस्त करने या उसे सफल नहीं होने देने के लिए जौहर रचती थीं।

सबको समान जीवन दिलाने हेतु बापू शहीद नहीं हुए। बल्कि उन्होंने जौहर किया था। जौहर जीत के अहसास से किया जाता है। हार होने पर भी लगे रहे, तो भी उन्हें जीत का आभास करके अन्तिम क्षण तक अपने राष्ट्र का गौरव बचाना ही उनका लक्ष्य रहा है। बापू ने मेवात में यही किया है। अपने अन्तिम क्षण का उन्हें पता था, फिर भी अधिक शक्ति से दिल्ली के पास पूर्वी पंजाब ‘मेवात’ की साम्प्रदायिक आग को शान्त किया। अपनी समझ और शक्ति से मेवात को उजड़ने से बचाने में लगा दी। पूर्वी पंजाब के प्रधानमंत्री श्री गोपीचन्द्र भार्गव सहित सरदार पटेल और नेहरू जी को बराबर इसे बचाने में लगाया। वे अपने अन्तिम दिनों में अपने को कमजोर तो मानने लगे थे।

बापू ने पूरा जौहर किया। जो आज भी जारी है। उनकी प्रेरणा उनकी तरंगों से प्रभावित बहुत से लोग उनके रास्ते पर आज भी चल रहे हैं। मैं भी अपने बचपन और तरूणाई को उनके जौहर से प्रभावित मानता हूँ। तभी तो उन्हीं के रास्ते अनजाने ही चल पड़ा। समाज की समझ और उन्हीं के निर्णय से ही ग्राम स्वावलम्बन और उजड़े गाँवों को बसाने हेतु पानी के कार्य में जाकर जुट गया।

शुरू में श्री गोकुल भाई भट्ट, श्री सिद्धराज ढड्डा जी और एल.सी.जैन का साथ मिला। न्यायमूर्ति श्री तारकुंडे, श्री कुलदीप नैयर हमारे शिविरों में आकर हमारे जौहर में शामिल होते थे। ठाकुर दास बंग, लोकेन्द्र भाई, रामजी भाई, विनय भाई, हरिभाई, अमरनाथ भाई, तेजसिंह भाई ये सब हमारे साथ मेवात में घूमे। इन्होंने 1986 में 30 जनवरी से 12 फरवरी तक मेरे साथ पहली मेवात-यात्रा की। फिर हमने ‘गाँधी चुनौती यात्रा आयोजित की’।

इब्राहिम खान, शान्तिस्वरूप डाटा, गंगा बहन जी मेरे साथियों के साथ जुड़कर यात्राएँ करने लगें और बस लोगों में हम पर विश्वास धीरे-धीरे बढ़ने लगा। अनुपम मिश्र ने हमारी ‘जोहड़ यात्रा’ में प्रभाष जोशी और चंडीप्रसाद भट्ट जी को जोड़ दिया। अनिल अग्रवाल और सुनीता नारायण तो स्वर्गीय राजीव गाँधी को ग्राम पंचायत को सशक्त और सुदृढ़ बनाने के लिए हमारे क्षेत्र का अध्ययन करने और हमसे बात कराने लाये थे। इन सबकी मेवात यात्राओं से हमारे जोहड़ यात्रा कार्य नाम पाने लगा था।

ग्राम को साझे श्रम-संगठन के बिना बनाना सम्भव नहीं था। इसलिए समाज का संगठन बनाने के लिए रात-दिन उन्हीं के साथ रहकर जौहर हेतु अहसास कराना पड़ता था। समाज के जौहर से ही जोहड़ बनता है। आज भी जौहर और जोहड़ एक दूसरे के पूरक हैं। शहीद या सती तो अकेले होते हैं। इसलिए आसान होता है। लेकिन जौहर साझा अभिक्रम और साझी संकल्प शक्ति से साझे लक्ष्य के लिए होता है। बापू तो साझे थे। साझा ही सोचकर सब करते थे। चरखा जैसा निजी काम भी उन्होंने साझा हित- राष्ट्रहित बनाकर चरखे के लिए जौहर किया था।

हमने तो केवल जोहड़ जैसे पहले से साझे जोहड़ को जौहर बनाया है। बेपानी मेवात व खारे मेवात में जोहड़ से मीठा पानी बनाया।

यह सब काम बापू के तरीके से ही सम्भव हुआ। पेड़ और पानी तो मेवात से आजादी के आन्दोलन के समय ही बिगड़ने लगा था। यहाँ के राजा, जमींदार सभी इसे बिगाड़ने पर अड़े थे, हमारी जमीन और जंगल का राष्ट्रीयकरण हो रहा है। हम मनमर्जी कर लें। इससे कुछ लाभ कमा सकें तो कमा लें। इसलिए पहले से बचे ‘जंगल’ इस समय बेरहमी से कटवाए।

बापू का ध्यान उस तरफ कटते जंगलों पर नहीं गया क्योंकि तब पेड़ से पहले इनसान बचाना उनका लक्ष्य था। जोहड़ इनसान के लिए जरूरी है। इसलिए गाँव के जोहड़ों पर उनका ध्यान जरूर गया। उन्होंने जोहड़ों के रख-रखाव और सफाई पर कई बार गाँवों में लोगों से कहा था। तालाब-जोहड़ों की सफाई भी कराई थी। गुजरात के उनके घर और राजकोट पोरबन्दर येे सब मेवात जैसे ही जल संकट के क्षेत्र हैं। इसलिए उन्हें जोहड़ की जरूरत और महत्त्व का अहसास था। इसीलिए जोहड़ के निर्माण जौहर को समझते थे। तभी तो जोहड़ की सफाई आदि का आभास उन्हें हो गया और ग्राम स्वावलम्बन कार्यों की सूची में जोहड़ भी शामिल कर लिया गया।

सर्वोदय और भूदान में जोहड़ों पर कुछ काम हुए लेकिन बस औपचारिक काम की तरह से ही किए गए। जबकि जोहड़ को जौहर की जरूरत होती है। तरूण भारत संघ के कार्यकर्ताओं ने जोहड़ को जौहर की तरह लिया। ग्राम समुदाय के सामूहिक निर्णय से स्थान चयन निर्माण की विधि -विधान सभी कुछ साझा श्रम, समझ, शक्ति से निर्मित जोहड़ इक्कीसवीं शताब्दी में भी खरा और जरूरी बन गया क्योंकि आज धधकते ब्रह्मांड और बिगड़ते मौसम के मिजाज का समाधान जोहड़ ही है। जोहड़ समाज को जोड़ता है।

जल के लिए होने वाले विश्व युद्ध से बचने का शान्तिमय समाधान करनेवाली व्यवस्था का नाम ‘जल जौड़ है’ उसे ही जोहड़ कहते हैं। यह बढ़ती जनसंख्या-जनजल जरूरत पूरी करने वाली विकेन्द्रित व्यवस्था है। समता, सरलता, सादगी से सबको जीवन देनेवाली बिना पाइप की जल व्यवस्था है।

बापू ‘हिन्दू स्वराज्य’ में भावी संकट का समाधान विकेन्द्रित व्यवस्था द्वारा बताते हैं। जोहड़ वही विकेन्द्रित व्यवस्था है। इसे तोडऩेवाले अंग्रेजी राज को तो बापू ने जीते जी हटा दिया था। लेकिन अंग्रेजीयत नहीं हटी थी। इसे हटाने हेतु हमें देशज ज्ञान का सम्मान जोहड़ परम्परा को जीवित करके ही किया जा सकता है। वही काम बापू के बाद मेवात में तरूण भारत संघ ने रेणू, जमूरी, देवयानी, कजोडी, गुलाब, किस्तूरी, मीना, राजेश, सत्येन्द्र, सुलेमान, कन्हैया, जगदीश, गोपाल, छोटेलाल, वोदन इब्राहिम, सलीम रहमत अयूब, रामेन्द्र, सीताराम और मौलिक जैसे स्थानीय युवाओं को तैयार करके की है।

मेवात की पानी, परम्परा और खेती का वर्णन बापू के जौहर से जोहड़ तक किया है। बापू कुदरत के करिश्मे को जानते और समझते थे। इसलिए उन्होंने कहा था ‘‘कुदरत सभी की जरूरत पूरी कर सकती है लेकिन एक व्यक्ति का लालच कभी पूरा नहीं कर सकती।’’ वे कुदरत का बहुत सम्मान करते थे। उन्हें माननेवाले भी कुदरत का सम्मान करते हैं। मेवात में उनकी कुछ तरंगें काम कर रही थीं। इसलिए मेवात में समाज श्रम से जोहड़ बन गए। मेवात में बापू का जौहर जारी है। यह पुस्तक बापू के जौहर को मेवात में जगाएगी। इस पुस्तक लेखन में मेरे मेवात के बहुत से साथियों ने मद्द की है। मैं बेनाम ही उनका आभार प्रकट करता हूँ। अनुपम मिश्र, योगेन्द्र यादव, डॉ. सद्दीक अहमद ने मेवात से सम्बन्धित सामग्री जुटाने में मदद की है। अन्त में डॉ.सविता सिंह जी की मदद का स्मरण भी जरूरी है। यह पुस्तक मेवात के अपने देशज ज्ञान और शब्दों से रचित है। आशा है, पूरे भारत, देश -दुनिया को महात्मा के मेवात जौहर की कहनी बताने में सफल सिद्ध होगी।

शंकर नगर, मेन रोड रायपुर (छत्तीसगढ़), साभार देशबन्धु

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading