महाकुंभ : मोक्ष की कामना
23 February 2013

सनातन धर्म और आस्था के दुनिया का सबसे बड़ा संगम है प्रयाग महाकुंभ। कुंभ अर्थात संचय करना। कुंभ का कार्य है सभी को अपने में समाहित कर लेना, नानत्व को एकत्व में ढाल देना, जो ऊबड़-खाबड़ है उसको भी आत्मसात कर आकार दे देना। घट में अवघट का अस्तित्व विलीन हो जाये तब घट अर्थात कुंभ की सार्थकता है। लोक हमेशा अमृत के कुंभ की स्मृति रखता है। हमारे विचार, हजारों पदार्थ, इस कुंभ में समाकर अमर हो जाते हैं। यह कुंभ नहीं महाकुंभ है। यह देश का महाकुंभ है। हमारी अस्मिता का महाकुंभ है। संस्कृति का महाकुंभ है। सनातन धर्म का महाकुंभ है। एक घट में सर्वस्व समाहित है। देव और दानवों के मंथन के दौरान समुद्र से निकले अमृत कुंभ की रक्षा सूर्य, चन्द्र, गुरू और शनि के विशेष प्रयासों से हुई थी। चंद्रमा ने कुंभ को गिरने से, सूर्य ने फूटने से, बृहस्पति ने दैत्यों से तथा शनि ने इन्द्रपुत्र जयंत के भय से रक्षा की थी। अमृत कलश से बिंदु पतन के दौरान जिन राशियों में सूर्य, चंद्रमा, गुरु, और शनि की स्थिति थी उन्हीं राशियों में इनके होने पर कुंभ होता है। सूर्य चन्द्र के मकर राशि में तथा चंद्रमा के साथ गुरू वृष राशि में बारह वर्ष बाद आता है। यह कुंभ प्रयाग में पड़ता है। शनि का योग महत्वपूर्ण माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि हजार अश्वमेध यज्ञ तथा सौ वाजपेय यज्ञ करने तथा लाख बार भूमि की प्रदक्षिणा करने कार्तिक में हजार बार स्नान करने माघ में सौ बार स्नान करने तथा बैशाख में करोड़ बार नर्मदा में स्नान करने का जो महाफल प्राप्त होता है वह महाकुंभ में एक बार स्नान मात्र से ही प्राप्त हो जाता है।

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