मलिन बस्ती में शिक्षा


इन बस्तियों के बच्चे आज भी शिक्षा से काफी हद तक वंचित हैं और वहां की तस्वीर बहुत भयावह है। इस बात की पुष्टि इलाहाबाद मंडल की मलिन बस्तियों के पांच सौ परिवारों के अभिभावकों की शैक्षिक, आर्थिक और व्यावसायिक स्थिति का अध्ययन करने के बाद हो गई।

आधुनिक समय में शिक्षा ज्ञान के साथ ही आर्थिक विकास का रास्ता भी प्रशस्त करती है। यह कहना बिल्कुल सही है कि शिक्षा मनुष्य को बंध्नों से मुक्त करती है। समाज में जन्म आदि कारणों से ढेर सारे बंधन मनुष्यों पर थोप दिए जाते हैं। शिक्षा, इनसे ऊपर उठकर नए जीवन की तरफ अग्रसर करती है। शिक्षा के माध्यम से सामाजिक कुरीतियों और अंध्विश्वास से मुक्ति काफी हद तक संभव है। आजादी के छह दशक गुजरने के बावजूद भी शिक्षा जनसुलभ नहीं बन सकी है। जबकि शिक्षा के नाम पर हर साल करोड़ों रुपए की योजनाएं बनती हैं लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात जैसा ही है। वैसे तो अपने यहां प्राथमिक शिक्षा को मौलिक अधिकार का दर्जा मिला हुआ है। उल्लेखनीय है कि संविधान में संशोध्न करके यह कदम उठाया गया था। पर हकीकत यह है कि यह संशोध्न भी हमारे संविधान के पन्नों में कैद होकर रह गया है।

आज के दौर में शिक्षा बाजारवाद और निजीकरण की भेट चढ़ती जा रही है। शिक्षा दिनोदिन महंगी होकर आम आदमी के पहुंच से बाहर होती जा रही है। गरीब मजदूर और मलिन बस्ती में रहने वाले परिवारों के बच्चों के लिए तो शिक्षा हासिल करना एक सपना बन गया है। मलिन बस्तियों में रहना ही अपने आप में काफी पीड़ादायक है। इन बस्तियों के बच्चे आज भी शिक्षा से काफी हद तक वंचित हैं। इन बस्तियों में मौजूद हालात की यदि पड़ताल की जाए तो तस्वीर बहुत भयावह है। इस बात की पुष्टि इलाहाबाद मंडल की मलिन बस्तियों के पांच सौ परिवारों के अभिभावकों की शैक्षिक, आर्थिक और व्यावसायिक स्थिति का अध्ययन करने के बाद हो गई। कहने की जरूरत नहीं है कि पारिवारिक पृष्ठभूमि का बच्चों के विकास पर गहरा असर पड़ता है।

अध्ययन में यह पाया गया कि अभिभावकों का शैक्षिक स्तर जैसे-जैसे बढ़ता गया उनके बच्चों की शिक्षा के प्रति जागरूकता में भी वृध्दि हुई। जो अभिभावक अध्कि पढ़े-लिखे हैं वे अपने बच्चों की शिक्षा के प्रति अध्कि जागरूक हैं। जिन बच्चों के माता-पिता निरक्षर थे वे अपने बच्चों की शिक्षा के प्रति कम जागरूक पाए गए। पर एक बात संतोष प्रदान करने वाली है कि निरक्षर अभिभावकों का भी शिक्षा के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण है।

अध्ययन के दौरान यह पता चला कि मलिन बस्ती में रहने वाले प्राथमिक स्तर पर शिक्षित अभिभावकों के बीस प्रतिशत बच्चे निरक्षर हैं। ऐसे परिवारों में प्राथमिक शिक्षा ग्रहण करने जाने वाले बच्चों की संख्या 30.58 फीसदी है। इनमें 14.32 प्रतिशत लड़के और 16.26 प्रतिशत लड़कियां हैं। जाहिर है कि यहां पर छात्रओं की संख्या छात्रें से अध्कि है। जबकि पढ़ाई छोड़ने वाले कुल 15.53 प्रतिशत बच्चों में से बालकों का प्रतिशत 10.43 हैं। वहीं दूसरी तरफ बालिकाओं का प्रतिशत 5.09 है।

मलिन बस्तियों में रहने वाले लोगों को सिर्फ शिक्षा के मोर्चे पर ही नहीं बल्कि और भी कई मोर्चों पर बेचारगी का सामना करना पड़ रहा है। मलिन बस्तियों में जीवन बसर कर रहे लोग बुनियादी सुविधाओं जैसे स्वास्थ्य, पानी और बिजली से भी वंचित हैं। प्राथमिक स्तर पर जो बच्चे स्कूल जा रहे हैं, उन्हें इसे आगे ले जाने में अभिभावकों को असफलता ही हाथ लग रही है। प्राथमिक स्तर से ऊपर की शिक्षा में प्रतिशत घटता जा रहा है। हालात की भयावहता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि स्नातक और स्नातकोत्तर तक पहुचने पर उनकी संख्या ना के बराबर ही रह जाती है। हाई स्कूल के स्तर पर चार प्रतिशत और इंटरमीडिएट स्तर पर दो प्रतिशत छात्र ही अपनी शिक्षा जारी रख पाते हैं। सिर्फ एक प्रतिशत छात्र ही स्नातक स्तर की शिक्षा तक पहुंच पाते हैं। इस एक प्रतिशत में भी बीच से पढ़ाई छोड़ने वालाें का सिलसिला जारी रहता है। निरक्षर अभिभावकों की 1.11 फीसदी संतान ही स्नातक पाठयक्रमों में दाखिला ले पाती है। इसमें चौकानें वाली बात यह है कि स्नातक की पढ़ाई मलिन बस्ती से निकली हर लड़की बीच में ही छोड़ दे रही है। एक तरफ तो महिला सशक्तिकरण के नाम पर हर ओर नए-नए प्रयोग किए जा रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ देश के इस तबके की कन्याओं की यह दुर्दशा पूरी व्यवस्था पर ही सवालिया निशान लगा रही है।

बहरहाल, उच्च शिक्षा की देहरी पर पहुंच कर मलिन बस्तियों के नौनिहालों द्वारा इससे दूर जाने के पीछे कारण साफ है कि स्नातक और स्नातकोत्तर स्तर तक पहुंचने पर छात्रें को अपनी रोजी-रोटी की चिंता सताने लगती है। घर का दबाव एवं आर्थिक विपन्नता उन्हें आगे पढ़ने की इजाजत नहीं देती है। ऐसे में मन मार कर उनके सामने वक्त की चक्की में पिसने के अलावा कोई चारा ही नहीं बचता है। आज जरूरत इस बात की है कि मलिन बस्तियों में जिंदगी जी रहे लोगों के विकास के लिए एक समग्र कार्ययोजना तैयार की जाए। तब ही सही मायने में इनका कल्याण हो पाएगा।

(लेखक इलाहाबाद विश्वविद्यालय में शोध् छात्र हैं। यह आलेख उनके द्वारा ‘मलिन बस्ती के बच्चों की शिक्षा का उनके अभिभावकों की शिक्षा एवं व्यवसाय के संबंध् में एक अध्ययन’ पर आधारित है।)
 
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