मन्त्रियों की कबड्डी लीग

23 Jan 2016
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यह साफ हो चुका है कि पर्यावरण मन्त्री प्रकाश जावड़ेकर और गंगा संरक्षण मन्त्री उमा भारती के बीच सबकुछ ठीक नहीं है। इसे यूँ समझिए कि गंगा दशा–दुर्दशा पर कोई भी सवाल उमा भारती की ओर ही उछाला जाता है क्योंकि उनके मन्त्रालय का नाम गंगा संरक्षण मन्त्रालय है।

लेकिन गंगा पर सबसे ललचाई नजर पर्यावरण मन्त्रालय की है। पिछले दिनों जब पर्यावरण मन्त्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में लिखकर दिया कि वह गंगा पर बाँध परियोजनाओं पर आगे बढ़ना चाहता है। (इस कॉलम में काफी पहले ही ये आशंका जताई गई थी) तो उमा भारती का सब्र का बाँध टूट गया, इसका हरगीज ये मतलब नहीं कि गंगा मन्त्रालय बाँध विरोध में है।

भारती तो कई दफा सार्वजनिक मंचों से कह चुकी हैं कि वे बाँध बनाए जाने के पक्ष में हैं। लेकिन मन्त्रालय की नाकामी और कुछ कर ना दिखाने के आरोपों को झेलते–झेलते भारती परेशान हो गई हैं।

उन्होंने पर्यावरण मन्त्रालय को मेल लिखकर कहा कि गंगा सम्बन्धी मुद्दों पर गठित अन्तर मन्त्रालयी समूह का फैसला और पर्यावरण मन्त्रालय के हलफनामें में विरोधाभास है।

भारती इस मामले को थोड़ा टालना चाहती थीं। मामला साफ है पर्यावरण को ताक पर रखकर सरकार गंगा पर कई परियोजनाएँ शुरू करना चाहती है लेकिन विरोध सिर्फ उमा भारती को झेलना पड़ता है।

पर्यावरण मन्त्रालय ने अपर गंगा बेसिन में बनने वाले 6 बड़े प्रोजेक्ट में से तीन को हरी झंडी दे दी है, दो बाँधों को भी डिज़ाइन में कुछ परिवर्तन के साथ आगे बढ़ने को कहा है और सिर्फ एक बाँध को पर्यावरण स्वीकृति मिलने का इन्तजार है।

नितिन गडकरी और प्रकाश जावड़ेकर जैसे मन्त्री पर्दे के पीछे रहकर गंगा दोहन की नीति को जोर-शोर से आगे बढ़ा रहे हैं। जावड़ेकर पर्यावरण क़ानूनों को पलीता लगाने की पूरी तैयारी कर चुके हैं और सड़क परिवहन मन्त्रालय गंगा पर जलपरिवहन के लिये कई बैराज बनाने की दिशा में आगे बढ़ रहा है।

बहरहाल अब भारती के विरोध के बाद आनन-फानन में पर्यावरण मन्त्रालय ने गंगा को प्रदूषित करने वाले 150 कारखानों को बन्द करने का आदेश जारी कर दिया। मीडिया को खासतौर पर ये बताया गया कि कार्रवाई पर्यावरण मन्त्रालय ने की है।

आरोप है कि इन कारख़ानों ने ऑनलाइन मानिटरिंग सिस्टम नहीं लगवाया था हालांकि जहाँ ये सिस्टम लगे हैं वहाँ काम नहीं कर रहे हैं। सिस्टम लगाने वालों में ज्यादातर सार्वजनिक उपक्रम की इकाइयाँ है जहाँ जाकर औचक निरीक्षण करने की परम्परा ही नहीं है।

गंगा पथ पर 764 इकाइयाँ हैं जो प्रदूषण के लिये जिम्मेदार हैं। इन कारख़ानों से पाँच सौ मिलियन लीटर से ज्यादा सीवेज गंगा में डाला जाता है, अब पर्यावरण मन्त्रालय का दावा है कि ऑनलाइन मॉनिटरिंग सिस्टम लागू करने से इसमें करीब 125 मिलियन लीटर की कमी आ गई है।

ये एक भद्दा मज़ाक है, मानो कह रहे हों कि खुश हो जाओ मैं आपको रोज चार बार चाकू मारने के बजाय तीन बार ही मारुँगा। क्या दुनिया की पवित्रतम नदी की कीमत पर इन सभी कारख़ानों को कहीं और नहीं स्थापित किया जा सकता?

पिछले कई दिनों से मातृसदन में स्वामी शिवानंद गंगा में खनन के विरोध में अनशन पर बैठे हैं। पिछले साल राज्य सरकार ने वादा किया था कि गंगा किनारे खनन पर पूरी तरह रोक लगा दी जाएगी, लेकिन विकास के घोड़े पर सवार सरपट दौड़ती सरकार ने जब केदारनाथ हादसे से कोई सबक नहीं लिया तो शिवानंद के अनशन से उन्हें क्या फर्क पड़ेगा?

सरकार गंगा के लिये जान देने वाले निगमानन्द और नागनाथ जैसे सन्तों की सूची कितनी लम्बी करना चाहती है? शिवानंद ने भारती से लेकर प्रधानमन्त्री तक से मिलकर उनसे खनन बन्द कराने की अपील की, लेकिन राज्य और केन्द्र दोनों को खनन से ज्यादा अर्द्ध कुम्भ की राजनीति लुभा रही थी। सभी पक्ष कुम्भ को लेकर बयानबाज़ी कर रहे हैं लेकिन गंगा आँचल में खनन से हो रहे घावों की चिन्ता ना केन्द्र को है ना ही राज्य को।

बहरहाल प्रकाश जावड़ेकर ने सफाई देते हुए कहा कि भारती और उनके बीच कोई मनमुटाव नहीं है। हो सकता है इस मामूली विरोध के बाद सभी मन्त्री एक साथ कदमताल करते नजर आएँ, आखिर गंगा से कई आर्थिक हित जुड़े हुए हैं।
 

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