मर्यादा बचाने को घर-घर में हो शौचालय

15 Sep 2012
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महिलाओं की मर्यादा की बात मुंडेरी तक ही सीमित नहीं रही, बल्कि इसकी भनक आसपास के गांवों को भी लग गई और कुछ ही समय में आसपास के कई ग्राम पंचायतों में अगुवा बहिनी बनकर महिलाएं स्वयं के घरों में शौचालय बनवाने के साथ-साथ दूसरे को भी प्रेरित करने का काम करने लगी हैं। शौचालय बनाने के लिए मंदिर में शपथ लेना बाध्यकारी नहीं है, बल्कि यह प्रतीकात्मक है, जिसकी जिस ईश्वर में आस्था है, वह उनकी शपथ ले रहा है। ‘‘गांव की नई नवेली दुल्हन दिन के उजाले में या घर आए मेहमानों के सामने किसी के सामने नहीं निकलती, पर जब शौच के लिए उसे खुले खेत, नदी या तालाब किनारे जाना पड़ता है, तो वह न केवल उसके लिए बल्कि पूरे घर के लिए अपमानजक स्थिति होती है। घर में शौचालय का होना सिर्फ स्वास्थ्य एवं स्वच्छता का मुद्दा नहीं हैं, बल्कि महिलाओं के सम्मान का मामला है।’’ मध्यप्रदेश के शिवपुरी जिले के मुंडेरी गांव की पुष्पा का यह उद्गार कोई भाषण नहीं है, बल्कि उस अभियान की अवधारणा है, जिसका बीजारोपण पिछले साल 2 अक्टूबर को स्थानीय स्तर पर शिवपुरी जिले में किया गया था। इस अवधारणा को मध्यप्रदेश में राज्य स्तर पर अपनाया गया है, जिसे मर्यादा अभियान नाम दिया गया है।

मध्यप्रदेश में समग्र स्वच्छता अभियान के तहत खुले में शौच करने की आदतों को खत्म करने एवं घर-घर में शौचालय बनाने के लिए सरकार ने एक अनूठी पहल करते हुए मर्यादा अभियान की शुरुआत की है। मर्यादा अभियान अपने नाम से ही यह बयां करने में सक्षम है कि अभियान से मर्यादा जुड़ी हुई है। यह मर्यादा है घर की बहू-बेटियों की, उनके सम्मान एवं गरिमा की, जिन्हें खुले में शौच के कारण विभिन्न असुरक्षाओं के साथ-साथ असम्मानजनक स्थितियों से गुजरना पड़ता है। घर की मर्यादा को बचाने के सूत्र वाक्य के साथ लोगों की मानसिकता में परिवर्तन की संभावना बढ़ गई है एवं लोग इस बात से सहमत हो रहे हैं कि घर में शौचालय होना चाहिए। मर्यादा अभियान के तहत गरीब परिवारों, अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के सभी परिवारों एवं सीमांत किसानों के घरों में शौचालय बनाने के लिए राज्य सरकार द्वारा आर्थिक मदद दी जा रही है। एक शौचालय निर्माण के लिए 9 हजार 900 रुपए की आर्थिक मदद तय की गई है, जिसमें केंद्र सरकार का अंश 3 हजार 200 रुपए, राज्य सरकार का अंश 1 हजार 400 रुपए, हितग्राही का अंशदान 900 रुपए एवं महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना से 4 हजार 400 रुपए का अंशदान दिया जा रहा है।

भारत की जनगणना 2011 के अनुसार मध्यप्रदेश के 70 फीसदी परिवार खुले में शौच करता है। आंकड़ों के अनुसार राजधानी भोपाल की 25 फीसदी परिवार के लोग खुले में शौच करते हैं। प्रदेश के अन्य बड़े शहरों ग्वालियर, उज्जैन, जबलपुर एवं इंदौर की स्थिति भी अच्छी नहीं है। प्रदेश में समग्र स्वच्छता अभियान पहले से ही चल रहा है। समग्र स्वच्छता अभियान में स्वास्थ्य एवं स्वच्छता का हवाला देकर लोगों को शौचालय बनाने के लिए प्रेरित किया जाता था, पर उसमें लोगों ने ज्यादा रुचि नहीं दिखाई। पर अब इसे मर्यादा के साथ जोड़ दिया गया है, ताकि अधिक से अधिक लोग घरों में शौचालय बनाने के लिए प्रेरित हो सकें।

समग्र स्वच्छता अभियान के राज्य समन्वयक जॉन किंग्सली ए.आर. कहते हैं, ‘‘महिलाएं सोना-चांदी पहनती हैं, बहुएं घर से बाहर नहीं निकलती, किशोरियां गांवों में ज्यादा बाहर नहीं घुमती, पर शौच के लिए उन्हें अपमानजनक स्थिति से गुजरना पड़ता है। खुले में शौच उनकी इज्जत का सवाल है। ऐसे में शौचालय को बनवाने का संकल्प भी तो उन्हें ही लेना चाहिए। इस सोच के साथ ही मर्यादा अभियान की पहल की गई है।’’

मर्यादा से जुड़ी एक अनूठी पहल शिवपुरी में देखने को मिलता है। शिवपुरी जिले की मुंडेरी गांव की 9 महिलाओं ने 2 अक्तूबर 2011 को एक अनूठी पहल की थी, जिसमें गांव की समझदार महिलाओं को ‘‘अगुवा बहिनी’’ बनाया गया एवं वे समग्र स्वच्छता अभियान के तहत घरों शौचालय बनाने के लिए अगुवा की भूमिका में आ गईं। अगुवा बहिनी का काम होता है, उन महिलाओं को समझाना जिनके घर शौचालय नहीं है। गांव के मंदिर के पास अगुवा बहिनी उस महिला के हाथ में रक्षा सूत्र बांध कर ईश्वर का शपथ दिलाती है, ‘‘मैं, ............ईश्वर की शपथ लेती हूं कि मैं अपने बच्चों के स्वास्थ्य एवं स्वच्छता की खुशहाली के लिए तथा अपने घर की सभी महिलाओं, लड़कियों की मर्यादा को बचाने के लिए खुले में शौच न जाने हेतु घर में एक शौचालय का निर्माण कराऊंगी। शौचालय निर्माण होने के बाद जब सभी घर के सदस्य शौचालय का उपयोग करने लगेंगे तब इस रक्षासूत्र को कलाई से निकालूंगी एवं 5 अन्य बहनों को शौचालय निर्माण हेतु प्रेरित करने के लिए इस रक्षासूत्र को बांधूगी।’’ शिवपुरी जिले में मर्यादा अभियान के तहत अगुवा बहिनी की अवधारणा लोगों को जागरूक करने एवं प्रेरित करने के लिए ज्यादा कारगर हो रही है।

समग्र स्वच्छता अभियान के शिवपुरी समन्वयक सत्यमूर्ति पांडेय याद करते हैं, ‘‘शिवपुरी में समग्र स्वच्छता अभियान की समीक्षा के लिए कलेक्टर के साथ आयोजित बैठक में कलेक्टर ने यह विचार दिया कि इसे स्वास्थ्य के मुद्दे के साथ जोड़ने के बजाय महिलाओं के सम्मान के साथ जोड़ना चाहिए एवं इसमें हमें महिलाओं को आगे लाना होगा। आखिरकार सबसे ज्यादा शर्मिंदगी एवं समस्याएं उन्हें ही झेलनी पड़ती है।’’ तत्कालीन कलेक्टर जॉन किंग्सली ए.आर. के सामने चुनौती थी कि गांव से सक्रिय महिलाओं को कैसे ढूंढ़ा जाए, जो इस अभियान की अगुवाई कर सकें? इस काम में जिला गरीबी उन्मूलन परियोजना से जुड़ी स्व-सहायता समूह की महिलाओं से उन्हें मदद मिली। परियोजना के जिला कार्यक्रम प्रबंधक गगन सक्सेना कहते हैं, ‘‘हमने इस काम के लिए मुंडेरी गांव को चुना। लगभग 700 परिवार वाले उस गांव में महज 4-5 घरों में शौचालय था। उस गांव में महिलाओं के 16 स्व-सहायता समूह बने हुए थे एवं उन समूह की एक-एक महिलाओं को लेकर ग्राम विकास समिति बनाई गई थी, जिसकी नियमित बैठक होती थी। उस समूह की 9 महिलाएं अभियान की अगुवाई करने के लिए राजी हो गई, जिन्हें अगुवा बहिनी नाम दिया गया। लोगों को कैसे समझाया, जाए, इसे लेकर जिला स्तर पर उन्हें प्रशिक्षण दिया गया और पिछले साल 2 अक्टूबर को अगुवा बहिनी की शुरुआत हो गई।’’

अगुवा बहिनी से जुड़ी मुंडेरी गांव की पुष्पा बताती हैं, ‘‘गांव में शौच के लिए पास के खेतों में या बरसाती नदी के पास शौच के लिए जाना पड़ता है। पास से जब कोई गुजरता है, तो महिलाएं मुंह फेर लेती हैं या फिर खड़ी हो जाती हैं। यह बहुत ही अपमानजनक है। हमने गांव की महिलाओं को यह बात बताई। कई महिलाएं इस बात से सहमत दिखी एवं उन्हें शौचालय की उपयोगिता अपने सम्मान की रक्षा के लिए जरूरी लगा। हमने 2 अक्टूबर गांव में स्थित आनंदी माता के मंदिर में लगभग 30 महिलाओं को इकट्ठा किया। मंदिर में देवी का शपथ लेकर अगुवा बहिनी महिलाओं ने सभी की कलाइयों पर रक्षा सूत्र बांधा एवं घोषणा कि जब तक शौचालय बनाकर घर के सभी लोग उसका उपयोग नहीं करेंगे, तब तक रक्षा सूत्र नहीं खोलेंगे।’’ इसके बाद गांव में मर्यादा बचाओ अभियान की रैली निकाली गई। मुंडेरी में आज से छह माह पहले तक महज 4 घरों में शौचालय था एवं कोई शौचालय बनाने को राजी नहीं था, पर अब 25 से ज्यादा शौचालय उपयोग में आने लगे हैं एवं लगभग 10 घरों में शौचालय बन रहे हैं। यहां तक कि गांव के सरपंच के घर पहले शौचालय नहीं था, पर अब उसने शौचालय बनवा लिया है।

महिलाओं की मर्यादा की बात मुंडेरी तक ही सीमित नहीं रही, बल्कि इसकी भनक आसपास के गांवों को भी लग गई और कुछ ही समय में आसपास के कई ग्राम पंचायतों में अगुवा बहिनी बनकर महिलाएं स्वयं के घरों में शौचालय बनवाने के साथ-साथ दूसरे को भी प्रेरित करने का काम करने लगी हैं। शौचालय बनाने के लिए मंदिर में शपथ लेना बाध्यकारी नहीं है, बल्कि यह प्रतीकात्मक है, जिसकी जिस ईश्वर में आस्था है, वह उनकी शपथ ले रहा है। पोहरी विकासखंड के बिलवारामाता ग्राम पंचायत में अगुवा बहिनी से जुड़ी महिलाओं ने 200 से ज्यादा महिलाओं को रक्षा सूत्र बांधकर अभियान को गति दी। इनमें से अधिकांश महिलाएं मुस्लिम थीं। अगुवा बहिनी कनिशा बानो कहती हैं, ‘‘बात महिलाओं की इज्जत की है। महिलाएं जिस धर्म को मानती हैं, उस धर्म के ईश्वर का शपथ ले रही हैं। ऐसा करने से हम पर नैतिक दबाव बनता है कि जितनी जल्दी हो सके, उतनी जल्दी शौचालय बनाकर ईश्वर के समक्ष ली गई प्रतीज्ञा को पूरी कर दें। रक्षा सूत्र हमें उस बात की लगातार याद दिलाता रहेगा।’’

राज्य सरकार द्वारा 1 अप्रैल से पूरे प्रदेश में लागू मर्यादा अभियान में रक्षा सूत्र बांधने या शपथ लेने जैसी कोई बात नहीं रखी गई है, पर शिवपुरी की अनूठी पहल महत्वपूर्ण है। यूनीसेफ का मानना है कि महिलाओं एवं बच्चों को बीमारियों से बचाने के लिए खुले में शौच करने की प्रवृत्ति को खत्म करना जरूरी है एवं यदि इसे मर्यादा से जोड़कर आगे बढ़ाया जा रहा है, तो निश्चित ही समग्र स्वच्छता में ज्यादा सफलता मिलेगी। ग्रामीण विकास विभाग की अपर मुख्य सचिव अरुणा शर्मा के अनुसार प्रथम चरण में प्रदेश के 5800 उन गांवों में मर्यादा अभियान चलाते हुए हितग्राही को आर्थिक मदद दी जा रही है, जहां नल-जल योजनाएं संचालित हैं।’’ इन गांवों के सभी घरों में शौचालय बनाने का लक्ष्य दिसंबर 2012 का रखा गया है। चूंकि शौचालय में पानी की जरूरत होती है, इसलिए नल-जल योजना से जुड़ते जाने वाले गांवों में मर्यादा अभियान को बढ़ाते हुए सभी घरों को शौचालययुक्त बनाने का लक्ष्य रखा गया है।

मध्यप्रदेश में खुले में शौच करने वाले परिवारों की स्थिति

कुल परिवार

69.99 फीसदी

कुल ग्रामीण परिवार

86.42 फीसदी

कुल अनुसूचित जनजाति के परिवार

90.8 फीसदी

कुल अनुसूचित जाति के परिवार

77.94 फीसदी

5 नीचले पायदान वाले जिले (खुले में शौच करने वाले परिवारों का प्रतिशत)

डिंडोरी

93.3 फीसदी

सीधी

91.8 फीसदी

टीकमगढ़

89.4 फीसदी

पन्ना

89.3 फीसदी

सिंगरौली

87.8 फीसदी

5 बेहतर स्थिति वाले जिले (खुले में शौच करने वाले परिवारों का प्रतिशत)

इंदौर

18.9 फीसदी

भोपाल

25.2 फीसदी

ग्वालियर

38.2 फीसदी

जबलपुर

41.7 फीसदी

उज्जैन

54.4 फीसदी

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