मसला-ए-देवसारी बाँध - निर्माण की कसरत और विरोध जारी

17 Feb 2018
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देवसारी में बाँध का विरोध करते ग्रामीण
देवसारी में बाँध का विरोध करते ग्रामीण


दिनेश मिश्र, महिपत सिंह, जीवनचन्द्र, कपूरचन्द्र, मुन्नी देवी, केदार दत्त, देवकी देवी, हेम मिश्र एवं देवसारी भू स्वामी संघर्ष समिति से जुड़े लोगों का कहना है कि पिंडर नदी पर बनने जा रहा देवसारी बाँध एकदम लोगों के अहित में होगा। बता दें कि यह बयान मात्र नहीं है बल्कि प्रस्तावित 252 मेगावाट के देवसारी बाँध की हकीकत है।

आखिर जो भी बाँध बनने जा रहे हैं या निर्माणाधीन हैं उनका अन्त तक लोग विरोध क्यों करते हैं? ऐसा शायद सरकारें अब तक नहीं समझी है। या यूँ कहें कि सरकारों तक ठीक-ठीक जानकारी स्थानीय स्तर तक नहीं पहुँच पाती है। ऐसा भी कह सकते हैं कि बाँध जरूरी है और लोग सिर्फ-व-सिर्फ वोट बैंक की कठपुतलियाँ हैं। खैर! और बहुत कुछ है जो राजनीतिक स्वार्थों पर टिका हुआ है। मगर इस संवाददाता ने ग्राउण्ड जीरो पर ग्रामीणों की मंशा को जानने का प्रयास किया है। जिसका लब्बोलुआब यह है कि लोग पहले सुरक्षा और जीविका की माँग करते हैं। लोग चहते हैं कि बाँध की सम्पूर्ण जानकारी उन्हें हिन्दी में पहले उपलब्ध करवाई जाये। जन-सुनवाई में लोगों की बातों को सुना जाये। जो बाँध बनने से पूर्व नहीं किया जा रहा है।

उत्तराखण्ड के जनपद चमोली के अर्न्तगत देवसारी जलविद्युत परियोजना का लोग विरोध कर रहे हैं। इस बाँध से सम्बन्धित पुनर्वास से जुड़ी जन-सुनवाइयों का लोगों ने जमकर विरोध किया पर सरकारी कागजातों में इस विरोध का कोई जिक्र तक नहीं आया है।

फाटो में लोगों की जो भीड़ दिखाई दे रही है वह विरोध में अधिक थी और समर्थन में थी ही नहीं। जो लोग विरोध नहीं कर रहे थे, उनमें यह जानने की जिज्ञासा थी कि बाँध कैसे बनेगा, बाँध बनने से हो रहे मानवीय व पर्यावरणीय नुकसान की भरपाई सरकारें कैसी करेंगी, देवसारी बाँध के चपेट में आ रही पाँच मेगावाट की देवाल जलविद्युत परियोजना की सुरक्षा कैसे होगी जैसे तमाम सवालों के समाधान को जानने के लिये कुछ लोग जन-सुनवाई में पहुँचे थे, पर इन सवालों का उन्हें जवाब नहीं मिला तो वे बाद में यही कहने लग गए कि ऐसी परियोजनाओं का विरोध होना ही चाहिए जिसकी कोई पारदर्शिता नहीं है।

उल्लेखनीय हो कि उत्तराखण्ड के चमोली जिले के पिंडरगंगा नदी पर 252 मेगावाट की एक जलविद्युत परियोजना प्रस्तावित है। साल 2009 से लोगों के विरोध के कारण यह परियोजना बन्द पड़ी थी। 2017 में फिर से इस बाँध को निर्माण करने की सरकार ने तैयारी कर दी है। लोगों ने बताया कि मौजूदा समय में देवसारी बाँध के लिये बिना किसी तरह की पूर्व सूचना दिये देवसारी बाँध से प्रभावित होने वाली निजी भूमि की जन-सुनवाई 20 दिसम्बर, 2017 से आरम्भ की गई थी।

थराली में जन-सुनवाई के लिये चेपड़ो, सुनला, गड्कोट, चिडिंगा, देवाल, तल्ला गाँवों के लोग जमा हुए। पर उस वक्त एक भी सक्षम अधिकारी उपस्थित नहीं हुआ। बहुत देर बाद जिले और शासन स्तर के वे सक्षम अधिकारी जब इस जन-सुनवाई में पहुँचे तो दस मिनट में उन्होंने जन-सुनवाई निपटा दी। लोगों को ना तो बोलने दिया और ना ही लोगों को बाँध के बारे में कोई स्पष्टता बताई।

हालात यूँ थे कि पुलिस चाक-चौबन्द थी। इस पर लोगों ने जमकर विरोध किया। लोग जानना चाह रहे थे कि निर्माण करने वाली कम्पनी ने इस बाँध के लिये कब सर्वेक्षण किया, प्रभावितों की सूची क्या है? लोगों का विरोध देख चमोली के एडीएम ने कहा कि वे गाँव स्तर पर जनसुनवाई करेंगे।

दो दिन बाद साहब के कहे हुए पर आगे की जन-सुनवाइयाँ आरम्भ हो गईं। इनका भी हश्र वही हुआ जो मुख्य जन-सुनवाई में हुआ। जिले के अधिकारी चेपड़ो और साहू गाँव पहुँचे और वहाँ भी मात्र दस मिनट में जन-सुनवाई निपटा दी। 22 दिसम्बर 2017 को पदमल्ला, तलौर गाँव में जनसुनवाई करने जिले के एडीएम, तहसीलदार बाँध निर्माण करने वाली कम्पनी के अधिकारियों के साथ पहुँचे। वहाँ लोगों ने उनका घेराव कर दिया। लोगों ने उन पर बिना सहमति के बाँध बनाने का आरोप लगाया। यहाँ तक कि ग्रामीणों ने बाँध निर्माण को तुरन्त निरस्त करने की माँग कर दी। ग्रामीण उनसे जानना चाह रहे थे कि यह क्षेत्र भूकम्प, दैविक आपदा, जैवविविधता और धार्मिक दृष्टि से अतिसंवेदनशील है। क्या इस परियोजना से यह सुरक्षित हो सकता है? ऐसे तमाम सवाल उत्तराखण्ड में बनने जा रही सभी जलविद्युत परियाजनाओं से जुड़े हैं। यहाँ हम 252 मेगावाट की देवसारी जलविद्युत परियोजना के मसलों को प्रस्तुत कर रहे हैं।

ज्ञात हो कि वर्ष 2009 देवसारी बाँध परियोजना सम्बन्धी पर्यावरणीय आकलन रिपोर्ट व पर्यावरण प्रबन्धन योजना लोगों को ना तो दी गई ना ही समझाई गई। वैसे भी विगत वर्षों इसी परियोजना से सम्बन्धित दो जन-सुनवाइयाँ रद्द हुई हैं। फिर भी 20 जनवरी 2011 को पिंडरगंगा के तट पर चेपड़ो गाँव में हुई तीसरी जनसुनवाई भी कागजी खानापूर्ति बताई जा रही है।

स्थानीय लोगों ने बताया कि ग्रामीण जब बात रखते हैं तो उन्हें कम बोलने की सलाह दी जाती है और तुरन्त पुलिस पहरा बढ़ा दिया जाता है। ताकि आम नागरिक मंच तक ना पहुँच सके। होता भी ऐसा ही है। मंच से बाँध के समर्थन और विरोध में हाथ खड़े करने की आवाज दी जाती है। फोटो खिंचवाई जाती है। फोटो पर जितने हाथ खड़े दिखाई देते हैं उन्हें सरकारी अमला समर्थन मान लेता है। कह सकते हैं कि यह पूरी तरह का एक सफल नाटक जनसुनवाई का ही होता है।

ताज्जुब हो कि इस अन्तराल में जन-सुनवाई में पहुँचे प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी, जिला प्रशासन के अधिकारी यथा स्थिति से खिसक जाते हैं। अब ग्रामीण उक्त जन-सुनवाई को जानने को लेकर सम्बन्धित विभाग व बाँध निर्माण करने वाली कम्पनी को पत्र भेजते हैं। भेजे गए किसी पत्र का जवाब भी नहीं मिलता है।

जन-सुनवाई को लेकर अब सरकारी नाटक कुछ दिन के लिये थम जाता है और उधर देवसारी भू स्वामी संघर्ष समिति एवं माटू जनसंगठन मिलकर तीन अप्रैल 2017 को ‘लोक जनसुनवाई’ का आयोजन करते हैं। इस दौरान भारी भीड़ जमा होकर यह नारा उछालती कि वे पिंडरगंगा को अविरल बहने दो। जनाब यदि ऐसा है तो बाँध का विरोध तो जारी ही है। यह खबरें भी मीडिया की सुर्खियाँ बनी। मगर जिम्मेदार लोगों व अधिकारियों के कान तक जूं नहीं रेंगी। इधर 2013 तक आते-आते पिंडरगंगा घाटी में आपदा के कारण यहाँ की परिस्थिति पूरी तरह बदल गई है। गाँवों में भूस्खलन की घटनाएँ बढ़ी हैं। पिंडर नदी का रुख बदल गया है।

हालांकि साल 2009 से 2017 तक बाँध का निर्माण रुका ही रहा। अब 2017 में फिर से निर्माण करने वाली सतलुज जलविद्युत निगम और सरकार उठ खड़ी हुई कि देवसारी बाँध का निर्माण करना होगा। जबकि स्थानीय स्तर पर हालात जस-के-तस बने हुए हैं। यही नहीं जब पिछली जन-सुनवाइयों में और वन आकलन समिति की बैठकों में देवसारी बाँध के पीछे कैल नदी पर स्थित पाँच मेगावाट की देवाल परियोजना का मुद्दा सामने आया कि यह परियोजना देवसारी बाँध के जलाशय में डूब रही है। इस पर देवसारी बाँध के परियोजना प्रयोक्ता (सतलुज जल विद्युत निगम) का तर्क है कि वे एक दीवार बनाकर देवाल परियोजना को सुरक्षित कर देंगे।

इस बयान पर भी जानकार सवाल खड़े कर रहे हैं कि पिंडरगंगा का हजारों क्यूबिक मिट्रिक टन पानी को मात्र एक दिवाल से रोका जा सकता है? ऐसे तमाम सवालों के जवाब बाँध प्रभावितों को नहीं मिल पा रहे हैं। फलस्वरूप इसके नवम्बर, 2017 में पिंडर घाटी के हिमनी गाँव पहुँचे राज्य के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने भी घोषणा कर दी कि पाँच नहीं 252 मेगावाट का बाँध चाहिए। जिसका पूरी घाटी में जबरदस्त विरोध हुआ।

काबिलेगौर हो कि 13 अगस्त 2013 को माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तराखण्ड के सभी बाँधों की किसी भी तरह की स्वीकृत पर रोक लगा दी थी। पर्यावरण मंत्रालय की विशेषज्ञ समिति ने धोखे से हुई जन-सुनवाई को गलत माना और लोगो द्वारा उठाए सवालों को जन-सुनवाई में अंकित करने को कहा। यह भी कहा गया कि पर्यावरण स्वीकृति के बिना बाँध का निर्माण अवैध ही माना जाएगा। महत्त्वपूर्ण यह है कि गाँव को अभी तक वन अधिकार कानून 2006 के अन्तर्गत अधिकार भी नहीं दिये गए हैं। ऐसे में पुनर्वास सम्बन्धी मसलों पर निर्णय लेना कितना गलत है और कितना सही है। पर लोगों की सुरक्षा और जीविका के मसले सरकारें नहीं सुलझा पाई हैं।
 

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