मत पियो या कम पियो?

17 Jan 2015
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Anupam Mishra
Anupam Mishra

एक समय स्वीडन के लोग अन्य देशों की तुलना में ज्यादा शराब नहीं पीते थे। लेकिन अब यहां प्रति व्यक्ति औसत वार्षिक खपत दस गुना बढ़ गई है। इसी अनुपात में बढ़ गई हैं शराब संबंधी समस्याएं।

यूरोप के देशों में शराब से संबंधित समस्याओं की कीमत कोई दो खरब यूरो यानी मोटे तौर पर 140 खरब रुपए मापी गई है। यह आंकड़ा विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक सर्वे से निकलकर आया है। इन देशों में अल्कोहल, शराब का सबसे बड़ा व्यापार करने वाली स्वीडन की एक कंपनी ‘सिस्टम बोलागेट’ ने अब खुद लोगों से अपील की है कि ‘अरे भाई शराब पीना कम करो।’

नशाबंदी की कोशिशें दुनिया भर में अलग-अलग ढंग से होती ही रहती हैं। कहीं यह एक धार्मिक आंदोलन का रूप लेता है तो कहीं नैतिक तो कहीं कभी इसका रूप राजनैतिक भी हो जाता है। लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है कि शराब का सबसे बड़ा व्यापार करने वाली कंपनी ने पूर्ण नशाबंदी की तो नहीं लेकिन शराब की मात्रा कमकरने की अपील की है!

इस कंपनी ने यूरोप के विभिन्न देशों में अखबार आदि के माध्यम से पूरे-पूरे पन्ने के विज्ञापन आदि जारी किए हैं। इन विज्ञापनों में कहा गया है:

”आपको यह जानकर अटपटा लगेगा कि शराब के कारोबार में लगी दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी होने के बावजूद हम यूरोप महाद्वीप में बढ़ती जा रही शराब की खपत से बहुत चिंतित हैं। दूसरे महाद्वीपों की तुलना में यूरोप के लोग लगभग दुगुनी शराब पी जाते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि लगभग छह लाख लोग हर वर्ष शराब के कारण होने वाली बीमारियों से मरते हैं। एक देश से दूसरे देश में थोड़ी बहुत परिस्थिति बदल जाती है। संस्कृति बदलने के कारण भी कुछ चीजें ऊपर नीचे हो जाती हैं। लेकिन कुल-मिलाकर पूरे यूरोप में शराब संबंधी समस्याएं बहुत गंभीर हैं और ये बड़ी तेजी से बढ़ चली है। यूरोप के ये देश एक संघ के रूप में सामने आए हैं, अपनी स्वायत्तता और नीतियां अपने-अपने ढंग से चलाते हुए। यहां अलग-अलग चीजों का उत्पादन शुल्क, आबकारी शुल्क अपने-अपने हिसाब से तय किया जाता है इसलिए तरह-तरह की शराब की कीमतों में भी उतार-चढ़ाव आ जाता है।“

”उत्तरी यूरोप के देशों में शराब का दाम अन्य पड़ोसी देशों की तुलना में ज्यादा है। यूरोपीय संघ बन जाने के कारण देशों की सीमाएं समाप्त हो गई हैं और इसलिए अब यूरोप में कोई भी, कहीं भी बिना रोक-टोक आ जा सकता है। इसलिए उत्तर यूरोप देशों के नागरिक अब अपने पड़ोसी देशों में जाकर भारी मात्रा में शराब के विभिन्न प्रकार थोक में खरीद कर अपने घरों में जमा करने लगे हैं।”

एक समय स्वीडन के लोग अन्य देशों की तुलना में ज्यादा शराब नहीं पीते थे। लेकिन अब यहां प्रति व्यक्ति औसत वार्षिक खपत दस गुना बढ़ गई है। इसी अनुपात में बढ़ गई हैं शराब संबंधी समस्याएं।

स्वीडन में शराब की कम खपत का वहां की संस्कृति से कोई लेना-देना नहीं है। कोई भी व्यक्ति शुक्रवार की रात को हमारे इस देश में आए तो उसे पक्का पता चल जाएगा। इसका मुख्य कारण ये है कि स्वीडन में शराब की बिक्री पर बहुत कड़ा नियंत्रण है। वह सीमित जगहों पर बिकती है। वह हर समय उपलब्ध नहीं होती और उसके दाम में करों की मात्रा काफी ज्यादा होती है। कम उम्र के बच्चों, किशोरों को यह बेची नहीं जाती।

इस कंपनी ने अपने पचास साल पूरे होने पर जारी किए गए विज्ञापन में कहा है: ”इस उम्र के आने पर, पचास साल पूरे होने पर हमें कुछ संकल्प लेना चाहिए, कुछ शुभेच्छा भी रखनी चाहिए! इसलिए इस कंपनी ने अपनी शुभेच्छा जाहिर की है कि स्वीडन के लोग, यूरोप के लोग भी कुछ सोचें और शराब संबंधित समस्याओं में कमी लाएं। यूरोप की आर्थिक व्यवस्था ऐसी बातों पर कोई ध्यान देती हो- इसका कोई सबूत नहीं है। लेकिन उसकी आर्थिक स्थिति नागरिकों की शारीरिक और मानसिक स्थिति से जुड़ी है- यह हमें नहीं भूलना चाहिए। शराब से जुड़ी समस्याओं ने इन देशों में कितना नुकसान किया है, इसका कोई ठीक-ठीक अंदाज नहीं मिलता लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन के ये आंकड़े बता रहे हैं कि हम कितने खरब रुपए बर्बाद किए चले जा रहे हैं। शराब में बहाए चले जा रहे हैं।“

शराब की इस कंपनी ने विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ मिलकर एक सुंदर पुस्तक भी प्रकाशित की है। इसकी प्रतियां कंपनी से मांगने पर निःशुल्क मिल जाती हैं। विज्ञापन में कंपनी का कहना है कि 290 पन्नों की यह पुस्तक सारे नागरिक तो पढ़ने से रहे। ये सभी बहुत व्यस्त जीवन जीने वाले लोग हैं। इसलिए कंपनी ने इन लोगों के लिए, अपने ग्राहकों के लिए पांच मिनिट की एक फिल्म भी तैयार की है। उसे उम्मीद है कि लोग इसे देखकर शराब की खपत में कुछ न कुछ कमी जरूर करेंगे।

जैसा कि शुरू में बताया गया है शराब की यह सबसे बड़ी कंपनी नशाबंदी न सही, लेकिन कम पीने की अपील करके क्या अपने पैर पर खुद कुल्हाड़ी चलाना चाहती है? शायद नहीं। कंपनी ने यह सब धुंआधार प्रचार अपने पचास साल पूरे होने पर किया है। इन बड़े महंगे विज्ञापन के अंत में कंपनी अपने पीने वाले ग्राहकों को यह आश्वासन भी देती है कि इसके बाद वह अगले पचास साल तक उन्हें ऐसा कोई उपदेश दुबारा नहीं देने वाली! कंपनी अपनी शताब्दी मनाते समय इस अपील को फिर से दोहराए तो अलग बात।

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