मूर्ति विसर्जन पर रोक का सच

वाराणसी में दिनांक 22 सितम्बर 2015 को मध्यरात्रि देश के शीर्ष सन्तों में एक, लम्बे समय से माँ गंगा की अविरलता-निर्मलता हेतु 'गंगा सेवा अभियानम्' द्वारा चलाए जा रहे आन्दोलन के सार्वभौम संयोजक, 'स्वामिश्री अविमुक्तेश्वरानन्द: सरस्वती जी द्वारा गंगा जी में गणेश मूर्तियों के विसर्जन की माँग को लेकर किये जा रहे शान्तिपूर्ण सत्याग्रह के समर्थन में एकत्रित साधू, सन्तों, बटुकों एवं धार्मिक आस्थावान काशी की जनता पर पुलिसिया बर्बरता, लाठीचार्ज किया गया। जिसमें स्वयं स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द जी गम्भीर रूप से घायल हुए।

स्वामी जी के अनुसार सरकार गंगा को बाँधों में जकड़े, नाले सीधे गंगा में बहाये, गंगा के जल का मनमाना दोहन करे तो ठीक और हम सदियों पुरानी धार्मिक मान्यताओं का निर्वहन भी नहीं कर सकते। इसी आधार पर स्वामी जी ने शान्तिपूर्ण सत्याग्रह आरम्भ किया। इस निन्दनीय घटना ने वाराणसी प्रशासन की विवेकहीनता को परिलक्षित किया। प्रशासन द्वारा स्वामी जी से वार्तालाप करके मध्यमार्ग निकालना चाहिए था। क्योंकि अभी तो इस वर्ष माँ दुर्गापूजनोत्सव की मूर्तियों का पूजन व विसर्जन होना बाक़ी है।

यहाँ यह ध्यान देने योग्य है कि माँ गंगा की निर्मलता में बाधक कारण में 80% भागीदारी नालों को गिराये जाने की है, 15% भागीदारी औद्योगिक रसायनों की एवं मात्र 5% पूजन सामग्रियों के विसर्जन की है। अतः पहले 95% समस्या का निदान सरकार को करना चाहिए। इसके लिये आवश्यक है कि सरकार पहले बाँधों से माँ गंगा को मुक्त करे, गंगा में नाले गिरने, औद्योगिक अवजल डालने पर विराम लगाए।

सिलसिलेवार समझते हैं मूर्ति विसर्जन पर प्रतिबन्ध के प्रावधान को:


वर्ष 2010 में ग्लोबल ग्रीन्स ने हाइकोर्ट में PIL किया। अधिवक्ता सुधांशु श्रीवास्तव ने बहस किया परिणामतः वर्ष 2011 में हाईकोर्ट द्वारा मूर्ति विसर्जन पर रोक लगाई गई; लेकिन यह एफिडेविट देने पर की, दुर्गापूजा की मूर्तियाँ इकोफ्रेंडली हों तथा प्लास्टर ऑफ़ पेरिस एवं रासायनिक रंगों से मुक्त हों; उस वर्ष मूर्तियों के विसर्जन की छूट प्रदान की गई।

2012 में ग्लोबलग्रीन्स ने हाईकोर्ट के माध्यम से मूर्तियों के विसर्जन से पूर्व एवं बाद में वाटर टेस्टिंग कराया।

प्रयाग महाकुम्भ से पूर्व हुए हाईकोर्ट की सुनवाई में महाकुम्भ में पॉलिथिन पर बैन लगा एवं दुर्गापूजा की मूर्ति विसर्जन से पूर्व एवं बाद के वाटर टेस्टिंग की रिपोर्ट की समीक्षा की गई। जिसमे प्रदूषण का स्तर दुगने से भी अधिक पाये जाने के कारण हाईकोर्ट ने एफिडेविट देकर मूर्तियों के विसर्जन के प्रावधान को वर्ष 2013 से समाप्त कर दिया तथा यमुना में विसर्जन पर रोक के साथ साथ गंगा जी में भी दुर्गा पूजा की मूर्तियों के विसर्जन पर रोक लगा दिया। यह आदेश पूरे उत्तर प्रदेश के लिये दिया। परन्तु वाराणसी को विसर्जन की समुचित व्यस्था न हो पाने के कारण छूट प्रदान की गई जिसकी अवधि अब समाप्त हो गई है।

यहाँ पर ध्यान देने योग्य बात यह है कि ग्लोबल ग्रीन्स के प्रयास से इलाहाबाद हाईकोर्ट का आदेश केवल दुर्गापूजा की मूर्तियों के विसर्जन के लिये ही है।

16 सितम्बर 2015 को यमुना नदी भयावह प्रदूषण के मद्देनज़र नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल (एनजीटी) ने कुछ निर्देश जारी किये हैं, जिनके तहत नदी में उन्हीं मूर्तियों के विसर्जन की इजाजत दी गई है जो बायोडिग्रेडेबल चीजों से बनी हों। प्लास्टर ऑफ पेरिस, प्लास्टिक जैसे दूसरे टॉक्सिक एलिमेंट से बनी मूर्तियों के विसर्जन पर रोक बरकरार रहेगी। एनजीटी अध्यक्ष जस्टिस स्वतंत्र कुमार की अगुवाई वाली बेंच ने अपने आदेश में कहा है कि विसर्जन के लिये यह आवश्यक है की तैयार की जा रही मूर्तियाँ ईकोफ्रेंडली हों।

पूजा समितियों ने भी सहयोग करते हुए 27 सितम्बर 2015 को दिल्ली में गणेश प्रतिमाओं का सांकेतिक विसर्जन किया। मूर्तियों को यमुना में डुबा कर निकाल लिया गया।

मूर्तियों के निर्माण के सम्बन्ध में यह है NGT की गाइडलाइन:


19 दिसम्बर वर्ष 2013 में पीओपी से मूर्तियों के निर्माण पर एनजीटी ने रोक लगा रखी है। लेकिन इसके बावजूद भी पीओपी से मूर्तियों का निर्माण जारी है।

मूर्ति बनाने वाले सभी शिल्पकारों को आगाह करें कि भविष्य में पीओपी, सिंथेटिक की मूर्ति न बनाएँ और न ही बेचें। निश्चित ऊँचाई की इको-फ्रेंडली मूर्तियों का निर्माण करें। मूर्तियों पर सिर्फ प्राकृतिक रंगों का ही इस्तेमाल करें। मूर्ति के विसर्जन के लिये अलग से विसर्जन कुंड बनाए जाएँ। शासन इस सम्बन्ध में जागरुकता अभियान भी चलाएँ..।

उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि न तो इलाहाबाद हाइकोर्ट ने दुर्गापूजा के सिवा किन्ही अन्य प्रतिमाओं के विसर्जन पर रोक लगाई गई है, न ही NGT द्वारा इको फ्रेंडली मूर्तियों के विसर्जन पर रोक है। ऐसे में वाराणसी प्रशासन की आतुरता आश्चर्यजनक है।

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