नैनीताल बना बंगाल कमाण्ड का मुख्यालय

13 Feb 2020
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नैनीताल बना बंगाल कमाण्ड का मुख्यालय
नैनीताल बना बंगाल कमाण्ड का मुख्यालय

एक अप्रैल, 1895 को भारत की सम्पूर्ण सेना को मिलाकर आधिकारिक रूप से भारतीय सेना का गठन हुआ। प्रधान सेनापति के नियंत्रण में देश के उत्तरी, दक्षिणी, पूर्वी और पश्चिमी क्षेत्रों के लिए मुम्बई, पंजाब, मद्रास और बंगाल नाम से सेना के चार कमाण्ड बने। चार स्वतंत्र ब्रिगेड और आठ डिवीजन बनाए गए। कुछ समय बाद प्रेसीडेंसी सेना के तीन कमाण्डों को भी भारतीय सेना में विलय कर दिया गया। नैनीताल को बंगाल कमाण्ड का मुख्यालय बनाया गया। नैनीताल में सेना के बंगाल कमाण्ड के डिप्टी एडजुटेंट जनरल बैठते थे। भारत के क्वॉर्टर मास्टर जनरल का दफ्तर भी यहीं था। नैनीताल जिले के वजूद में आने से पहले कुमाऊँ के सहायक आयुक्त की अदालत भी छावनी परिषद में लगती थी। उस दौरान हरकारे यहाँ से कलकत्ता डाक ले जाते थे।

13 अप्रैल, 1895 को सरकार ने एफ.ई.जी.मैथ्यूज कमेटी बनाई। इसी साल 1 मई को मैथ्यूज कमेटी ने रिपोर्ट दी। 22 अप्रैल, 1895 को नॉर्थ वेस्टर्न प्रोविंसेस एण्ड अवध सरकार के सचिव जे.जी.एच.ग्लास ने शासनादेश संख्या-2609W.A. सन 1895 द्वारा राजभवन की स्थिति की जाँच के लिए पी.डब्ल्यू.डी. के चीफ इंजीनियर जे.एस.ब्रेसफोर्ड की अध्यक्षता में एक और पाँच सदस्यीय जाँच कमेटी बना दी। इस कमेटी में लोक निर्माण विभाग के चीफ इंजीनियर जे.एस. ब्रेसफोर्ड, अधीक्षण अभियंता लेफ्टिनेंट कर्नल आर.आर. पुलफोर्ड, सी.पेरिन, जे.आर.सी. निकोल्स एवं डब्ल्यू.बी.गॉर्डन शामिल थे। अधिशासी अभियंता एफ.ओ.ऑएरटेल को इस कमेटी का सचिव बनाया गया था। बाद में भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण के उपाधीक्षक आर.डी.ओल्डहम को भी इस कमेटी में शामिल कर लिया गया। इस कमेटी ने 11 मई, 1895 को अपनी विस्तृत जाँच रिपोर्ट सरकार को सौंपी। रिपोर्ट में आर.डी.ओल्डहम को छोड़कर बाकी सभी सदस्यों की राय थी कि राजभवन को खतरा नहीं है। कतिपय सुरक्षा इंतजामों को अमल में लाने से राजभवन को सुरक्षित किया जा सकता है। पुराने राजभवन के बारे में कमेटी द्वारा दी गई इस रिपोर्ट में आर.डी.ओल्डहम असहमत थे। उन्होंने इस रिपोर्ट में हस्ताक्षर नहीं किए। 13 मई, 1895 को ओल्डहम ने इस सम्बन्ध में अलग से अपनी टिप्पणी भी दी। 23 मई, 1895 को नॉर्थ वेस्टर्न प्रोविंसेस एण्ड अवध की सरकार ने नगर पालिका बोर्ड, नैनीताल की ‘सीवरेज एण्ड ड्रैनेज’ उपविधियों को स्वीकृति प्रदान कर दी। ओल्डहम ने 24 मई, 1895 को अनपी लिखित मत भिन्नत प्रकट की थी। आर.डी.ओल्डहम की राय थी कि बरसात के दिनों में पुराने राजभवन को खतरा है। राजभवन की सुरक्षा के लिए सुझाए जा रहे उपाय बेहद खर्चीले हैं।

28 मई, 1895 को नगर पालिका बोर्ड के चेयरमैन सी.एच.रॉबट्र्स ने कमिश्नर को भेजी अपनी एक रिपोर्ट में कहा कि नगर पालिका 1880 से 1895 के बीच शेर-का-डांडा पहाड़ी में स्थित भवनों के करों में छूट और सुरक्षा कामों में डेढ़ लाख रुपए खर्च कर चुकी है। भवन स्वामियों के विरोध की वजह से क्षेत्र में बागवानी, फूलबाड़ी, बरामदे और चबूतरों को कवर करने से पूरी तरह नहीं रोका जा सका। विशेषज्ञों की राय के बाद उम्दा नाला तंत्र बनाने की शर्त के साथ कुछ नए मकानों के निर्माण की इजाजत दी गई। क्षेत्र में सघन पौधरोपण किया गया। 1880 के भू-स्खलन के बाद घर और भवन परिसरों के नालों को लेकर नगर पालिका के नई उपविधियाँ बनाई गई। इसी दरम्यान नगर पालिका बोर्ड के सदस्य एफ.ई.जी.मैथ्यूज ने स्नोव्यू की पहाड़ियों को लेकर अपनी निजी जाँच रिपोर्ट दी।

8 जून, 1895 को नॉर्थ वेस्टर्न प्रोविंसेस सरकार ने भू-गर्भ विज्ञानी आर.डी.ओल्डहम से राजभवन के बारे में स्पष्ट राय माँगी। 11 जून, 1895 को डियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया के उप अधीक्षक आर.डी.ओल्डहम ने अपनी जाँच रिपोर्ट में स्नोव्यू पहाड़ी में स्थित राजभवन को असुरक्षित करार दे दिया। 15 जून, 1895 को नॉर्थ वेस्टर्न प्रोविंसेस एण्ड अवध के पी.डब्ल्यू.डी.सचिव ने भारत सरकार के पी.डब्ल्यू.डी सचिव को पत्र भेजा। पत्र में जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के निदेशक मिस्टर ग्राइसबैक से राजभवन को तत्काल कोई खतरा नहीं है, जबकि आर.डी.ओल्डहम इस राय से असहमत हैं। इसलिए राजभवन की जाँच भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण के निदेशक से कराई जानी जरूरी है। जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के निदेशक मिस्टर ग्राइसबैक ने 30 जून, 1895 को आर.डी.ओल्डहम की इस राय पर अपनी पूर्ण सहमति व्यक्त की। मिस्टर ग्राइसबैक की राय के बाद राजभवन को खाली करने का अन्तिम निर्णय ले लिया गया।

21 जून, 1895 को सेन्ट्रल प्रोविंसेस के चीफ इंजीनियर जे.एस.ब्रेसफोर्ड ने राजभवन को लेकर रिपोर्ट दी। ब्रेसफोर्ड कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर 1895 के बाद नैनीताल में भूकम्प एवं भू-धसाव की जाँच के लिए आब्जेर्वेशन पीलर लगाए गए। 1895 में लोक निर्माण विभाग के अधिशासी अभियंता मिस्टर हेन्सलोव की पहल पर चीना पहाड़ी की ढलाव में पत्थरों कोक रोकने के लिए सुरक्षा दीवारें बनाई गई। यह प्रयोग सफल सिद्ध हुआ।

10 जुलाई, 1895 को नॉर्थ वेस्टर्न प्रोविंसेस एण्ड अवध सरकार के सचिव ने नैनीताल की सुरक्षा को लेकर विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किए। इसमें कहका गया कि शेर-का-डांडा पहाड़ी की सुरक्षा के सम्बन्ध में अब तक गठित सभी छह विशेषज्ञ जाँच कमेटियों की संस्तुतियों को लागू करने के लिए म्युनिसिपल कमेटी ने बाकायदा उपविधियाँ तैयार कर ली है। म्युनिसिपल कमेटी की उपविधियों के जरिए सभी संस्तुतियों को लागू कर दिया गया है। कहा है कि पहाड़ी कि हिफाजत के लिए भविष्य में भी समय-समय पर विशेषज्ञों की राय ली जानी चाहिए। आदेश में कहा गया कि शेर-का-डांडा पहाड़ी के सुरक्षित क्षेत्रों में भवन निर्माण की अनुमति अपरिहार्य परिस्थितियों में सरकार द्वारा ही दी जाएगी। यह भी उल्लेख किया गया कि नैनीताल में ‘गंदा नाला’ सिस्टम के मुकाबले ‘बेहतरीन नाला सिस्टम’ वाले मकानों की स्थित कहीं बेहतर है। आदेश में शेर-का-डांडा पहाड़ी में घास काटने, पत्थर निकालने, खुदान, टेनिस कोर्ट निर्माण और बागवानी पर सख्त पाबंदी की हिमायत की गई। निजी परिसरों में नाला तंत्र विकसित करने और नगर के सम्पूर्ण जल संग्रहण क्षेत्र में साईप्रस के पौधों का सघन पौधरोपण किए जाने का आदेश दिया गया। पौधरोपण की जिम्मेदारी केन्द्रीय वृत्त के वन संरक्षक को सौंपी गई।

नॉर्थ वेस्टर्न प्रोविंसेस एण्ड अवध की सरकार ने शासनादेश संख्या 1936/XI 44B दिनाँक 10 जुलाई, 1895 द्वारा पी.डब्ल्यू.डी. के अधिशासी अभियंता एच.एस.वाइल्डब्लड को शेर-का-डांडा पहाड़ी के सुरक्षात्मक कार्यों, नालों को व्यवस्थित ढंग से बनाने और सभी घरों के बरसाती पानी को अनिवार्य रूप से नालों से जोड़ने की विशेष जिम्मेदारी सौंपी गई। 20 जुलाई, 1895 को सरकार ने फ्लैट्स तथा मल्लीताल बाजार के पीछे क्रोस्थवेट अस्पताल के पास से नए सार्वजनिक पार्क होते हुए नई सड़क और पर्दा दीवार बनाने के लिए 15 हजार रुपए स्वीकृत किए। इस सड़क तथा पर्दा दीवार के निर्माण में 4267 रुपए खर्च हुए थे।

 एच.एस.वाइल्डब्लड ने 1895 के अंत तक 91,892 रुपए की लागत से शेर-का-डांडा क्षेत्र में छह मील और बड़ा नाला सिस्टम में तीन मील लम्बे छोटे-बड़े नाले बना दिए थे। 1 अक्टूबर, 1895 को एच.एस. वाइल्डब्लड ने अयारपाटा पहाड़ी के बारे में नगर पालिका बोर्ड को अपनी राय दी। 1895 की शुरुआत में मिडिल माल रोड के निर्माण कराए जाने पर विमर्श हुआ, लेकिन 20 दिसम्बर 1895 को इस प्रस्ताव को स्थगित कर दिया गया। 1895 में नगर पालिका बोर्ड ने नैनीताल रेलवे योजना के सम्बन्ध में एक प्रस्ताव पारित किया। प्रस्ताव में नैनीताल रेलवे योजना के लिए रूहेलखण्ड एण्ड कुमाऊँ रेलवे कम्पनी द्वारा नैनीताल झील से पानी लेने के अनुरोध पर सहमति व्यक्त की गई। पालिका ने कहा कि रेलवे कम्पनी के लिए नैनी झील से पानी लेने पर उसे कोई आपत्ति नहीं तहै। पर जनरल थॉमसन ने रेलवे लाइन बिछाने के लिए सरकार से जो रियायतें माँगी, सरकार उन रियायतों को देने के लिए तैयार नहीं थी। अंततः 1895 के आखिर में नैनीताल रेलवे की यह योजना ठंडे बस्ते के हवाले हो गई।

इस वर्ष नैनीताल में वैज्ञानिक विधि से पौधरोपण शुरू हुआ। नगर पालिका क्षेत्र के वन को दो हिस्सों में विभक्त कर दिया गया। एक हिस्से में हरे वृक्षों के काटने पर सख्त पाबंदी लगा दी गई। शेर-का-डांडा पहाड़ी की सुरक्षा के मद्देनजर 24 दिसम्बर, 1895 को सरकार ने ‘मिडिल माल’ का निर्माण कार्य रोकने के आदेश जारी किए। इस बीच पुराना राजभवन जुलाई 1890 से जनवरी 1895 के बीच सात से दस इंच तक नीचे को खिसक गया था। राजभवन को खाली करने के बाद भी 1895 से 1899 तक प्रत्येक सप्ताह राजभवन में आ रही दरार का रिकार्ड कायम किया जाता रहा। राजभवन में साल-दर-साल दरारें बढ़ती गई। अन्ततः 1899 में पुराना राजभवन को तोड़ दिया गया।

1895 में लेफ्टिनेंट गवर्नर ने लोक निर्माण विभाग के अधिशासी अभियन्ता, कुमाऊँ डिवीजन मिस्टर जी.जे.जोसफ को म्युनिसिपल बोर्ड का सदस्य मनोनीत कर दिया। लेफ्टिनेंट गवर्नर ने म्युनिसिपल कमेटी के तत्कालीन स्वरूप पर नाराजगी भी व्यक्त की। कहा कि डिप्टी कमिश्नर को म्युनिसिपल कमेटी के अध्यक्ष का दायित्व सौंपा जाना उचित नहीं है। चूँकि डिप्टी कमिश्नर अत्यन्त व्यस्ततम अधिकारी हैं, अपनी व्यस्तताओं के चलते वे म्युनिसिपल कमेटी के प्रशासन को पर्याप्त समय नहीं दे सकते हैं। खासकर अपने भ्रमण काल के दौरान म्युनिसिपल कमेटी को समय दे पाना डिप्टी कमिश्नर के लिए सम्भव नहीं है।

उस दौर में नवम्बर से मार्च तक म्युनिसिपल कमेटी यहाँ नहीं रहती थी। नैनीताल में एक मजिस्ट्रेट के अलावा और कोई यूरोपियन नहीं रहता था। मजिस्ट्रेट भी कई बार अपनी कोर्ट लेकर भाबरी क्षेत्र में चले जाया करते थे। वे बीच में कभी-कभार नैनीताल का दौरा कर लिया करते थे। इस दौरान म्युनिसिपल कमेटी के कामों की समुचित निगरानी नहीं हो पाती थी। म्युनिसिपल कमेटी के पास काफी धन रहता था। निगरानी के अभाव में म्युनिसिपल कमेटी के पैसे की फालतू खर्ची बढ़ जाती थी। बाद के सालों में जाड़ों के दिनों में यहाँ नए कामों पर पाबंदी लगा दी गई। 1895 में पुराने क्रिकेट पैवेलियन भवन को तोड़ दिया गया। इसके लिए सरकार ने 17 दिसम्बर, 1895 को पहली किश्त के रूप में 61 रुपए 11 आना सात पैसे स्वीकृत किए।

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