नैनीताल में बैरन

21 Oct 2019
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नैनीताल में बैरन
नैनीताल में बैरन

पीटर बैरन उर्फ पिलग्रिम तत्कालीन पश्चिमोत्तर प्रान्त के रोजा (शाहजहाँपुर) के निवासी थे। हालांकि बैरन पेशे से मूलतः शराब के व्यवसायी थे, पर उन्हें प्रकृति से बेहद प्यार था। वे हिमालय के पुराने घुमक्कड़ थे। लेखक थे। कई सालों से हिमालय की यात्रा करते चले आ रहे थे। इन यात्राओं के दौरान बैरन ने हिमालय की विराटता, महानता और सुन्दरता को बेहद नजदीक से देखा और अनुभव किया था। पीटर बैरन हमेशा की तरह 1841 में भी हिमालयी क्षेत्र की यात्रा पर निकले।

हिमालय के बर्फीले इलाकों की 15 सौ मील की यात्रा के बाद नवम्बर, 1841 को बैरन अल्मोड़ा पहुँचे। उन दिनों कुमाऊँ कमिश्नर का मुख्यालय अल्मोड़ा था। अल्मोड़ा में बैरन के एक दोस्त जे.एच. बैटन, सीनियर डिप्टी कमिश्नर के पद पर कार्यरत थे। बैरन ने नैनीताल के पहले दौरे के दौरान अपने तीसरे साथी बैटन की पहचान स्पष्ट तौर पर जाहिर नहीं की है। उन्होंने अपने इस साथी को सांकेतिक भाषा में W लिखा है। जबकि वेरल को कैप्टन C कहा है। बैटन और बैरन आपस में करीबी रिश्तेदार भी थे। बैरन के बैटन की पहचान को उजागर नहीं करने के पीछे सम्भवतः यही कारण रहा हो। पर बैरन द्वारा बाद में दिए गए विवरणों से आभास होता है कि उन्होंने W शब्द का उपयोग सम्भवतः जे.एच.बैटन के लिए ही किया था। बैरन के दूसरे कैप्टन वेलर, लोक निर्माण विभाग में कुमाऊँ के अधिशासी अभियन्ता के पद पर तैनात थे। उन दिनों कैप्टन वेलर ने खैरना के पास कोसी नदी में अपना कैंप लगाया था। पीटर बैरन अपने दोस्त सीनियर डिप्टी कमिश्नर जे.एच.बैटन के साथ कैप्टन वैलर के कोसी स्थित कैंप पहुँचे। जहाँ तीनों मित्रों ने झील को खोजने की योजना बनाई। वे झील तक पहुँचने का सही मार्ग खोजने में सफल नहीं हो सके। उन्होंने झील तक पहुँचने के लिए किसी स्थानीय मार्ग-निर्देशक की सहायता लेने का निर्णय लिया, पर उन्हें मार्ग-निर्देशक मिलना भी असम्भव हो गया। पीटर बैरन का मानना था कि सम्भव है कि आस-पास के ग्रामीणों को इस तालाब की जानकारी हो, पर वे बताते नहीं थे।

पूछने पर भी सही जानकारी नहीं देते थे। आखिरकार उन्हें एक गाइड मिल तो गया, लेकिन वह उन्हें नैनीताल का सही मार्ग बताने के बजाय गुमराह करना चाहता था। बैरन का मानना था कि इसके पीछे नैनीताल की झील के प्रति स्थानीय निवासियों के अंतर्मन में धार्मिक विश्वास की भावना रही हो। बैरन के अनुसार स्थानीय निवासियों में नैनीताल की झील और पहाड़ियों के प्रति बेहद सम्मान था। सम्भवतः इसी वजह से स्थानीय लोग अंग्रेजों को नैनीताल लाना पसंद नहीं करते हों। चूंकि पीटर बैरन हिमालयी क्षेत्रों के घुमक्कड़ थे, उन्होंने घाट-घाट का पानी पिया था, उन्हें बेवकूफ बनाना आसान नहीं था। जब उन्हें इस बात का आभास हो गया कि गाइड गुमराह करने का प्रयास कर रहा है। उन्होंने एक तरकीब आजमाई। गाइड को एक भारी पत्थर दिया और कहा कि इस पत्थर को नैनीताल पहुँचाओ, इसे गिरने और टूटने मत देना। क्योंकि नैनीताल में पत्थर नहीं हैं, इसलिए यह पत्थर हमें वहाँ चाहिए। पत्थर के भारी बोझ से छुटकारा पाने की गरज से एकाएक गाइड के मुँह से यह शब्द निकल गया कि नैनीताल में पत्थरों की कोई कमी नहीं है। जाहिर है कि बिना उस जगह को देखे गाइड को यह जानकारी होना सम्भव नहीं था। एक मील चलने के बाद पीटर बैरन ने गाइड से पत्थर छोड़ देने को कहा। इसके बाद गाइड उन्हें सही रास्ते पर ले गया। अंततः 18 नवम्बर, 1841 को खैरना से कफुल्टा, जाख, चौरसा होते हुए सेंट-लू के रास्ते पीटर बैरन उर्फ पिलग्रिम अपने दो साथियों के साथ नैनीताल पहुँचने में सफल हो गए।

18 नवम्बर की रात तीनों मित्रों ने एक टेंट में बिताई। बैरन ने नैनीताल की मधुरिम हरियाली के दृश्य निहारे तो वे उल्लास एवं प्रसन्नता से उछल पडे। नैनीताल के अद्वितीय एवं अनुपम सौन्दर्य से आकर्षित होकर बैरन ने यहाँ नगर बसाने की ठान ली। बैरन ने खुद अपने और मित्रों के मकान बनाने के लिए नैनीताल में तीन जगहों पर जमीन चिन्हित की। अगले दिन 19 नवम्बर को जल्दी ही दुबारा इस जगह पर आने के इरादे के साथ तीनों लोग अपने-अपने गंतव्यों को लौट गए। सम्भव है कि कुमाऊँ के तत्कालीन कमिश्नर जॉर्ज विलियम ट्रेल के अलावा उस दौरान कुमाऊँ में रह रहे किसी अन्य यूरोपीय नागरिक ने 18 नवम्बर, 1841 से पहले इस तालाब को नहीं देखा हो, पर पीटर बैरन और उनके साथी बैरन और कैप्टन वेलर नैनीताल पहुँचने वाले पहले यूरोपीय हरगिज नहीं थे। नैनीताल के पहले दौरे के बारे में पिलग्रिम ने अपनी किताब ‘नोट्स ऑफ वॉन्डरिंग्स इन द हिमाला’ में लिखा है कि उन्होंने शिमला, मसूरी, अल्मोड़ा, लोहाघाट आदि जगहों को देखा है और वह हिमालय की अधिकांश पहाड़ियों की यात्रा कर चुके हैं, उनकी दृष्टि में नैनीताल का इलाका अत्यधिक खूबसूरत है। उनकी हिमालय की 15 सौ मील की यात्रा में नैनीताल सबसे खूबसूरत जगह थी।

पीटर बैरन ने लिखा है कि-सात पहाड़ियों के बीच छिपे तालाब को ढूँढ़ना मुश्किल है। पहाड़ियों से पानी आकर तालाब में गिरता है। तालाब के एक छोर में पतला सा निकास है। तालाब के साथ लगा एक खेतनुमा मैदान है, जिसमें बाँज आदि के पेड़ हैं। यहाँ क्रिकेट का मैदान या रेस कॉर्स बन सकता है। तालाब के दोनों तरफ तेज ढालदार पहाड़ियाँ हैं, जिनमें घना जंगल है। एक छोटा सा पेड़ गिर गया था, जिसकी लम्बाई एक सौ दो फीट थी। तालाब से लगे पहाड़ बड़े सुन्दर एवं मनमोहक हैं। यहाँ तमाम तरह के जंगली जानवर घूमते रहते हैं। 18 नवम्बर की रात जंगली जानवरों को अपने कैंप से भगाने में उन्हें बहुत दिक्कतें हुईं।

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