नैनीताल : प्रारम्भिक औपनिवेशिक काल

17 Oct 2019
0 mins read
प्रारम्भिक औपनिवेशिक काल।
प्रारम्भिक औपनिवेशिक काल।

3 मई, 1815 को ई.गार्डनर के कुमाऊँ कमिश्नर के रूप में तैनाती के तुरन्त बाद सम्पूर्ण कुमाऊँ में ब्रिटिश साम्राज्य का शिकंजा कस गया। 8 जुलाई, 1815 को जॉर्ज विलियम ट्रेल को कुमाऊँ का सहायक कमिश्नर बना दिया गया। ट्रेल 22 अगस्त, 1815 को अल्मोड़ा पहुँचे, तब कुमाऊँ के कमिश्नर गर्वनर जनरल के एजेंट, प्रशासन और राजस्व के मुखिया, न्यायाधीश के साथ सेना के अधिकारी भी थे, जबकि सहायक कमिश्नर को कलेक्टर, मजिस्ट्रेट और न्यायाधीश के अधिकार प्राप्त थे।

अंग्रेज भारत में व्यापार के लिए आए थे। उनके लिए भारत के समस्त प्राकृतिक संसाधन धन बटोरने का साधन मात्र थे। अंग्रेजों को भारत के संसाधनों का दोहन इंग्लैंड की उपजाऊ जमीन या खान के तौर पर करना था। उन्होंने वही किया भी। अंग्रेजों के लिए कुमाऊँ में धन संग्रह करने के मुख्य स्रोत यहाँ की जमीन और जंगल थे। अंग्रेजों के आने से पहले यहाँ कोई सुव्यवस्थित भू-व्यवस्था नहीं थी। जमीन और जंगलों का दस्तावेजीकरण नहीं हुआ था। कुमाऊँ में अंग्रेजी शासनकाल कायम होने से पहले यहाँ ग्रामीण क्षेत्रों में कर वसूली और पुलिस के कामों के लिए थोकदारी प्रथा प्रचलित थी। थोकदार हलके के पटवारी के मातहत काम करते थे। थोकदार आमतौर पर एक ही परिवार से होते थे। थोकदार का काम अपनी थोकदारी वाले गाँवों से कर वसूल कर राजकोष में जमा करना और अपने इलाके के अपराधों की सूचना पटवारी को देना होता था। इसके एवज में थोकदारों को खुद के कब्जे-काश्त की जमीन का कर और नजराने से छूट मिली हुई थी या उन्हें राजस्व वसूली के आधार पर भुगतान किया जाता था। भूमि के स्वामित्व के अधिकार किसी को प्राप्त नहीं थे।

थोकदार मूलतः सरकार और भूमिधारकों एवं कारोबारियों के मध्यस्थ थे। कुमाऊँ में उन्हें अलग-अलग नामों से जाना जाता था। नैनीताल जिले में उन्हें थोकदार कहते थे। एक दौर में राजस्व प्रबन्धन में थोकदारों की भूमिका अत्यन्त महत्वपूर्ण रही थी। थोकदारों को अपनी थोकदारी वाले गाँवों में शादी-ब्याह आदि अवसरों पर नजराना वसूलने का अधिकार प्राप्त था। कालान्तर में थोकदारों को दिए गए अधिकारों का दुरुपयोग होने लगा। थोकदारों ने प्रधानों को अप्रासंगिक बना दिया था। 1818 के ट्रेल के भूमि बंदोबस्त के दौरान भूमि धारकों एवं कारोबारियों ने इसके खिलाफ आवाज उठाई।

कुमाऊँ के कमिश्नर का पदभार ग्रहण करते ही ई.गार्डनर ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी का खजाना भरने की मंशा से 1815 में भूमि बंदोबस्त शुरू कर दिया। यह कुमाऊँ का पहला भूमि बंदोबस्त था। कुमाऊँ कमिश्नर के रूप में ई. गार्डनर का कार्यकाल छह महीने ही रहा। 1815 के आखिर में अब तक सहायक कमिश्नर रहे जॉर्ज विलियम ट्रेल को कुमाऊँ का नया कमिश्नर बना दिया गया। ट्रेल ने कमिश्नर बनते ही पूर्व कमिश्नर ई. गार्डनर के पद चिन्हों का अनुसरण करते हुए अपना पूरा ध्यान भूमि बंदोबस्त पर केन्द्रित किया। ट्रेल ने सन् 1817, 1818, 1820, 1822 तथा 1829 में कुल पाँच भूमि बंदोबस्त किए। 1818 के अपने दूसरे बंदोबस्त में ट्रेल ने थोकदारों के अधिकारों में कटौती कर इनके ज्यादातर अधिकार प्रधानों को सौंप दिए। 1819 में ट्रेल ने जमीन एवं पुलिस सम्बन्धी कार्यों के लिए पटवारियों की नियुक्ति की। तब पटवारी का वेतन पाँच रुपए प्रतिमाह तय किया गया। 1821 में ट्रेल ने थोकदारों से कर वसूली के अधिकार भी छीन लिए। अब थोकदार पटवारी के मुखबिर  बन कर रह गए थे। इसके बाद थोकदारों का काम अपने गाँवों की आपराधिक गतिविधियों एवं जनहानि की सूचना हलके के पटवारी को देना, अपराधियों को पकड़ने में पटवारियों की सहायता करना तथा कुलियों की व्यवस्था करना रह गया था। इसके एवज में थोकदारों को एक निश्चित मानदेय दिया जाता था। हालांकि एक ही परिवार से थोकदारों के चयन की परम्परा को जारी रखा गया। पर अब लापरवाही एवं दुर्व्यवहार की शिकायतों पर थोकदारों को हटाया जा सकता था। 1856 में थोकदारों से पुलिस सम्बन्धी कार्य भी वापस ले लिए गए थे।
 
1822 के ट्रेल के बंदोबस्त को अस्सी साला बंदोबस्त कहा गया। इस बंदोबस्त में पहली बार जमीन की नाप-जोख की गई। पहली बार गाँवों का भूमि रिकार्ड तैयार किया गया। गाँवों की सीमाएँ तय हुई। गाँव की सीमा के अन्दर की कब्जे-काश्त की जमीन को नापा गया, जो भूमि नापी गई तथा जिस भूमि पर मालगुजारी लगाई गई थी, उस भूमि को नाप भूमि कहा गया। जबकि वनों एवं गैर आबाद या बंजर भूमि को बेनाप भूमि कहा गया। बेनाप भूमि की मालिक सरकार हो गई। जमीन में काबिज काश्तकारों को किराएदार कहा गया, उनसे जमीन का किराया या मालगुजारी वसूल की जाती थी। ट्रेल के भूमि बंदोबस्त के वक्त नैनीताल वीरान जंगल था। सम्भवतः तब यहाँ टांकी, राजभवन और तल्लीताल आदि क्षेत्रों में चरवाहों के खत्ते रहे होंगे।
 
अंग्रेजी शासनकाल में कुमाऊँ में 1815 से 1902 तक कुल 11 भूमि बंदोबस्त हुए। इन बंदोबस्तों के बाद ही यहाँ भौमिक अधिकार तय हुए। इससे पहले यहाँ किसी को भी भौमिक अधिकार हासिल नहीं थे। सकल भूमि गोपाल की थी अर्थात समस्त भूमि का स्वामी राजा था। भूमि बंदोबस्त के सिलसिले में 1817 से 1829 के दौरान तत्कालीन कुमाऊँ कमिश्नर जॉर्ज विलियम ट्रेल स्वाभाविक तौर पर कई बार नैनीताल आए या नैनीताल से होकर आस-पास के गाँवों में गए। ट्रेल द्वारा किए गए भूमि बंदोबस्त में गैर आबाद भूमि को बेनाप की श्रेणी में रखा था। बेनाप जमीन की मालिक सरकार थी। ट्रेल के बंदोबस्त के आधार पर नैनीताल का यह समस्त भू-भाग निर्विवाद रूप से सरकार के स्वामित्व में था। 1863-73 के विकेट बंदोबस्त में भी केवल आबाद भूमि नापी गई। गैर आबाद भूमि को बेनाप भूमि कहा गया। बेनाप भूमि में राज्य सरकार का स्वामित्व था। भू-अभिलेखों में इस भूमि को ‘केसरेहिंद’ के रूप में दर्ज किया गया था।
 

TAGS

nainital lake, nainital zoo, nainital high court, nainital weather, nainital bank, nainital pin code, nainital news, nainital hotels, nainital bank recruitment, about nainital bank, about nainital in hindi, about nainital in english, about nainital district, about nainital lake, about nainital hill station, about nainital tourism, about nainital hill station in hindi, about nainital lake in hindi, about nainital tourist places, history of nainital in hindi, history of nainital bank, history of nainital lake, history of nainital, history of nainital hill station, history of nainital lake in hindi, history of nainital high court, history of nainital uttarakhand, history of nainital in hindi language, historical perspective of nainital, history of nainital hinid, nainital wikipedia hindi, historical perspective of nainital hindi, nainital in manaskhand.

 

Posted by
Attachment
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading