नाराज हैं कंपनियां : मॉड बार्लो

31 Aug 2010
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पानी के हक के लिए चले अभियान में सर्वाधिक चर्चित नाम है। आंदोलनकारी और लेखिका मॉड बार्लो का। कनाडा के सब से बड़े नागरिक संगठन काउंसिल ऑफ कैनेडियंस की अध्यक्ष हैं वे। यह संगठन अहिंसा और सिविल नाफरमानी में विश्वास करता है। दस विश्वविद्यालयों ने उन्हें सामाजिक सक्रियता के लिए मानद डॉक्टरेट से सम्मानित किया है। मुक्त व्यापार विरोधी होने के कारण कैथोलिक बिशप्स कांफ्रेंस से निकाले गए टोनी क्लार्क के साथ ‘वैकल्पिक नोबेल’ कहे जाने वाला ‘राइट लाइवलीहुड’ पुरस्कार भी उन्हें दिया गया है। चाहे बोलीविया के कोचाबांबा शहर की पानी व्यवस्था के खिलाफ चला आंदोलन हो या केरल के प्लाचीमाड़ा के ग्रामीणों का एक शीतल पेय कंपनी के खिलाफ चला आंदोलन जो भूगर्भ जल दोहन कर रही थी। या फिर उत्तरी अमेरिकी महाद्वीप में बोतलबंद पानी के विरुद्ध जन अभियान। मॉड बार्लो इन सभी आंदोलनों की सक्रिय समर्थक हैं। ‘नीला सोनाः दुनिया के पानी की कंपनियों द्वारा लूट के विरुद्ध लड़ाई’ नामक पुस्तक उन्होंने टोनी क्लार्क के साथ मिलकर लिखी है। उनसे अफलातून की बातचीत के कुछ अंशः

 

संयुक्त राष्ट्र के फैसले का क्या महत्त्व है?


• मुझे लगता है कि यह फैसला दुनिया भर में पानी के लिए चलने वाले आंदोलनों को नई आशा और शक्ति देगा। मेरे देश-कनाडा के घटिया पेय जल की परिस्थिति से पीड़ित समुदाय ने इस प्रस्ताव का इस्तेमाल कनाडा सरकार से सुरक्षित पीने के पानी की माँग के लिए कर दिया है। अपने जल-अधिकारों के लिए संघर्षरत लोग और समुदाय जब इसका प्रयोग करेंगे तभी यह अधिकार वास्तविकता बन पाएगा।

आज पानी का एक वैश्विक उद्योग कायम हो चुका है। इस उद्योग पर भीमकाय कंपनियां हावी हैं। जिन्हें निजीकरण में महारत हासिल है। दूसरी तरफ पानी को सार्वजनिक धरोहर माना जा रहा है। पानी उद्योग की कंपनियों की इस प्रस्ताव पर क्या प्रतिक्रिया थी?

पानी की कंपनियां इस प्रस्ताव के पास होने से नाराज हैं। इन कंपनियों के ऊपरी ओहदे पर रह चुके जेरार्ड संयुक्त राष्ट्र के महासचिव के सलाहकार मंडल में शामिल थे। उन्होंने महासचिव को लिखा कि इस प्रस्ताव का कानूनी आधार नहीं है। और इस प्रक्रिया को रोकने के लिए उन्हें स्वयं हस्तक्षेप करना चाहिए।

 

जल-स्वराज का लक्ष्य पाने के लिए अब अगला कदम क्या होगा?


• तय करना होगा कि जल-अधिकारों के लिए संघर्षरत समूह इस प्रस्ताव का प्रयोग करें और एक बाध्यकारी अंतर्राष्ट्रीय समझौते की दिशा में कदम बढ़ाएं। इसके साथ-साथ हमें सरकारों और नगर पालिकाओं के पानी को न सिर्फ मानवाधिकार बल्कि सार्वजनिक धरोहर के रूप में घोषित कराने की दिशा में पहल करनी होगी, जिसका संरक्षण सदा के लिए हो।

 

 

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