नासिक जनपद के पक्षी - एक संरक्षण निर्देशिका

5 Jan 2017
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पुस्तक, नासिक जनपद के पक्षी : एक संरक्षण निर्देशिका
पुस्तक, नासिक जनपद के पक्षी : एक संरक्षण निर्देशिका

वन्य जीवन एवं प्रकृति संरक्षण के प्रति जन जागरण शिक्षा और प्रशिक्षण के महत्त्वपूर्ण कार्य में लम्बे समय से रत विश्वरूप ब्रह्मव्रत राहा द्वारा लिखित, अजित बोर्जे द्वारा संकलित तथा पक्षी अध्ययन के प्रसिद्ध केन्द्र बाम्बे नैचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (मुम्बई) के उपनिदेशक डॉ. विभुप्रकाश द्वारा सम्पादित यह पुस्तक नासिक जनपद के पक्षियों के बहाने पक्षी-निहारण और संरक्षण के सूत्र निर्देशित करने वाली आकर्षक पुस्तक है।

पुस्तक का प्रवर्तन एक प्राकृतिक दृश्य की पृष्ठभूमि पर अंकित श्री परमहंस योगानंद के उद्धरण से होता हैः ‘‘पक्षियों के गीत सुनो; अनुभव करो कि उनके गीतों के माध्यम से ईश्वर दिव्य आनन्द की अनुभूति के साथ आप तक पहुँचने के लिये प्रयासरत है। अपनी चेतना को विस्तार दो जब तक कि पेड़, पहाड़, पक्षी और पवन उसमें समाहित न हो जाएँ। अपने आस-पास फैली निस्तब्धता में लीन हो जाओ।’’ यह सन्देश उस उद्देश्य की अभिव्यक्ति है जिसके लिये यह पुस्तक लिखी गई। प्रकृति की ओर लौटिए, पक्षी निहारण का आनन्द लीजिए और इसमें कोई कठिनाई हो तो इस पुस्तक से मार्गदर्शन प्राप्त कीजिए। कम-से-कम नासिक जनपद में पक्षी निहारण के लिये उपयुक्त मार्गदर्शन इस पुस्तक से प्राप्त होगा ही।

पुस्तक का मुख्य कलेवर नासिक जनपद में पाये जाने वाली लगभग 350 पक्षी प्रजातियों में से 251 का चित्र सहित विवरण है। प्रस्तुति के लिये एक अनूठी पद्धति का अनुसरण किया गया है जिससे पक्षी निहारण का आनन्द लेने के इच्छुक व्यक्तियों को प्रत्येक पक्षी के सम्बन्ध में काफी विस्तृत, स्पष्ट और प्रामाणिक जानकारी प्राप्त हो सकती है। इसके लिये पक्षियों के पर्यावास अनुसार तीन खण्ड बनाए गए हैंः वन पर्यावास के पक्षी, घास क्षेत्र के पक्षी तथा आर्द्र क्षेत्र के पक्षी।

प्रत्येक पक्षी प्रजाति के लिये एक अलग पृष्ठ रखा गया है इस पृष्ठ के तीन चौथाई से अधिक बड़े भाग में पक्षी का सुन्दर, रंगीन चित्र दिया गया है जो लेखक द्वारा उसके 10 वर्ष से अधिक काल की श्रम-साधना का परिणाम हैं। पक्षी का पर्यावास चित्र की पृष्ठभूमि से तो यह स्पष्ट होता है। उसके नीचे एक रंगीन पट्टी बनाकर भी इंगित किया गया है।

वन्य पर्यावरण के लिये हरी, घास क्षेत्र के लिये भूरे रंग की और आर्द्र क्षेत्र के लिये नीले रंग की पट्टी बनाई गई है। पट्टी में पक्षी का अंग्रेजी नाम, स्थानीय नाम तथा वैज्ञानिक नाम दिया गया है। इस पट्टी के नीचे एक काले रंग की पतली पट्टी और बनाई गई है जिसमें संकेत रूप में 5 जानकारियाँ दी गई हैं। यह कि वह पक्षी स्थानीय पक्षी है या प्रवजनकारी, वह दुर्लभ पक्षी है या आमतौर पर आसानी से दिखाई पड़ जाने वाली, यह जिले के किस भाग में देखा जा सकता है- पूरब, पश्चिम, उत्तर या दक्षिण और वन्य जीवन अधिनियम के किस उन लक्षणों का वर्णन किया गया है जिनके आधार पर इसे पहचाना जा सकता है।

अंग्रेजी में लिखे इस विवरण का मराठी में नारायण भुरे द्वारा कृत सुन्दर अनुवाद भी दिया गया है। इससे पुस्तक की उपादेयता बहुत बढ़ गई है। लेखक ने यह भी बताया है कि उस पक्षी का यह फोटोग्राफ उन्होंने कब और कहाँ लिया था। इससे पक्षी अवलोकनार्थ उन्हें कब कहाँ ढूँढना चाहिए यह जानने में मदद मिलती है।

प्रत्येक पर्यावास के पक्षियों से परिचय कराने के पहले लेखक ने उस पर्यावास के विषय में दो-दो पृष्ठों में उनकी विशेषताओं, प्रकारों, मानव के लिये इनके लाभों, पक्षियों और जन्तुओं के लिये लाभों, स्वयं पर्यावास के लिये चुनौतियों आदि के विषय में गहन जानकारी दी है। और यह बताया है कि नासिक जनपद में ये कहाँ-कहाँ विद्यमान हैं। पक्षियों के इन पर्यावासों की जानकारी पृष्ठ 5-6 पर मानचित्र द्वारा भी दी गई है।

यह प्रयास किया गया है कि कम-से-कम पृष्ठों में पक्षियों के विषय में अधिक-से-अधिक जानकारी दी जा सके। इसके लिये चित्र बनाकर उनका स्पष्ट विवरण दिया गया है। जैसे पृष्ठ-8 पर पक्षी शरीर के बाह्य अंगों का नामांकित चित्र और विभिन्न आहारों के लिये अनूकूलित उनकी चोंचों के चित्र। पक्षी परिवारों के वर्गीकरण की दृष्टि से नाम और उनके विवरण भी 6 पृष्ठों (10-15) पर दिये गए हैं।

इस पुस्तक में दी गई पक्षियों सम्बन्धी सामान्य जानकारी सामान्य व्यक्ति की पक्षियों में रूचि जगाती है, पक्षी अवलोकन के लिये प्रोत्साहित करती है और पक्षी संरक्षण के लिये मार्गदर्शन करती है।

पुस्तक के अन्त में दी गई संरक्षण सम्बन्धी सचित्र टिप्पणियाँ, व्यावहारिक मार्गदर्शन करती हैं। पहली टिप्पणी ‘लघु भी हो सकती है सुन्दर’ यह इंगित करती है कि पक्षी संरक्षण के लिये आवश्यक नहीं है कि बड़े-बड़े पक्षी शरणस्थल और राष्ट्रीय पार्क बनाए जाएँ। छोटे-छोटे जीव संरक्षण क्षेत्रों में भी बहुत जैवविविधता को पनपाया जा सकता है।

इस सन्दर्भ में वे NCSIR और वन विभाग के सौजन्य से नासिक जनपद में विकसित किये गए कुछ जीव संग्रहण स्थलों का उल्लेख करते हैं। इनमें शामिल हैं ओझर घास क्षेत्र, नन्दुमाधेश्वर, गंगापुर डैम, महिन्द्रा एंड महिन्द्रा गेस्ट हाऊस इगतपुरी तथा बोर्गाड संरक्षण रिजर्व। दूसरी टिप्पणी वन्य जीवन के लिये खतरों के सम्बन्ध में है। इसमें शामिल हैं जनसंख्या वृद्धि, वन-कटाई, रैव-दहन, दावानल, गैर कानूनी खनन, आर्द्रभूमि क्षेत्रों की शान्ति भंग करना, जल प्रदूषण, घास भूमि पर्यावासों का विनाश, आवारा कुत्ते, पतंग उड़ाना आदि।

पुस्तक में लेखक द्वारा कुछ पक्षियों की एक विशेष बीमारी की ओर भी विशेषज्ञों का ध्यान दिलाया गया है जिसमें पक्षियों के पंजों और टाँगों में मस्से हो जाते हैं जिससे उन्हें डालियों पर बैठने में कठिनाई होती है।

अन्त में लेखक ने अपने प्रयासों के उदाहरण देकर यह बताने की कोशिश की है कि इस दिशा में कार्य करने वाले लोग क्या-क्या कर सकते हैं। पृष्ठ 370 पर उन्होंने नासिक जनपद के उन पक्षियों की सूची दी है जो विलुप्त होने के खतरे की विभिन्न अवस्थाओं में है। पृष्ठ 326 पर उन्होंने बताया है कि किस प्रकार इनमें से एक पक्षी मालढ़ोक को बचाने के लिये किये गए प्रयासों के बावजूद यह विलोपन की कगार पर पहुँच गया है और इसलिये इस दिशा में तुरन्त प्रयासों की अनिवार्यता पर बल दिया है।

गिद्धों के लिये किये गए विशिष्ट प्रयासों के क्रम में उन्होंने विभिन्न जनपदों में उनका सतत निगरानी और हर्सल में बनाए गए गिद्धों के रेस्तुराँ का उल्लेख किया है। पकड़े गए पक्षियों को मुक्त कराना, बीमार, घायल पक्षियों का इलाज करके उन्हें मुक्त करना, पक्षियों के लिये हानिकारक प्रथाओं के प्रति जागरूकता तथा विभिन्न विधियों (जैसे पक्षी विज्ञानियों से विमर्श; पक्षियों पर आधारित विभिन्न प्रतियोगिता; क्षेत्र भ्रमण कार्यक्रमों आदि का आयोजन। इस पुस्तक में जन-जागरण, समाचार पत्रों में लेख और फीचर, आदि कुछ रणनीतियाँ दिये गए हैं जिन्हें पक्षी संरक्षण प्रेमी अपना सकते हैं।

कुछ जानकारियाँ रोचकता के लिये जोड़ी गई हैं जैसे- पक्षियों के सम्बन्ध में कुछ रोचक तथ्य (पृ. 347)।

पुस्तक में नासिक जनपद के 341 पक्षियों की एक सूची भी पुस्तक में दी गई हैं। स्पष्ट है इनमें से कुछ का विवरण पुस्तक में नहीं है। आशा है उनके विषय में शीघ्र ऐसी ही सुन्दर जानकारी प्राप्त हो सकेगी।

पुस्तक को उपयोगी और सुगम, सुबोध बनाने के लिये पारिभाषिक शब्दों का एक संक्षिप्त संकलन व्याख्या सहित दिया गया है। पक्षी अवलोकनकर्त्ताओं की सुविधा के लिये पुस्तक के अन्त में इसमें वर्णित सभी पक्षियों की सूची वर्णमाला क्रम में उनके अंग्रेजी, मराठी और वैज्ञानिक नामों के साथ अलग-अलग दी गई है। इस प्रकार की पुस्तक भारत के सभी जनपदों के पक्षियों के विषय में तैयार की जानी चाहिए और इन्हें हिन्दी भाषा में भी उपलब्ध कराया जाना चाहिए।

आर्ट पेपर पर रंगीन चित्रों के साथ छपी सजिल्द पुस्तक का 750 रू. मूल्य अधिक तो नहीं कहा जा सकता लेकिन इस कारण यह पुस्तक एक सन्दर्भ ग्रंथ बनकर रह गई है। अच्छा हो इसे सामान्य जन के लिये इन्टरनेट पर मुफ्त उपलब्ध करा दिया जाये। लेखक और प्रकाशक को इस अनुपम सन्दर्भ ग्रंथ के लिये साधुवाद।

पुस्तक - Birds of Nashik District : A Conservation Guide
लेखक - विश्वरूप राहा
प्रकाशक - नेचर कंजर्वेशन सोसायटी ऑफ नासिक 13, हेमंत विहार, वीर सावरकर नगर, गंगापुर रोड नासिक - 422013
पृष्ठ सं. - 111, सजिल्द
मूल्य - रु. 750.00


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