नदी का व्यापार
भारत की नदियों का देश के आर्थिक एवं सांस्कृतिक विकास में प्राचीनकाल से ही महत्वपूर्ण योगदान रहा है। सिन्धु तथा गंगा नदियों की घाटियों में ही विश्व की सर्वाधिक प्राचीन सभ्यताओं - सिन्धु घाटी तथा आर्य सभ्यता का आविर्भाव हुआ। यदि मानव सभ्यता के विकास पर गौर करें तो इसका विकास नदियों के ही किनारे हुआ है।पाषाण सभ्यता से लेकर आधुनिक सभ्यता के दौरान मानव समाज के सामाजिक एवं आर्थिक विकास में नदियों की प्रमुख भूमिका रही है। आज भी देश की सर्वाधिक जनसंख्या एवं कृषि का जमाव नदी घाटी क्षेत्रों में पाया जाता है। प्राचीन काल में व्यापारिक एवं यातायात की सुविधा के कारण देश के अधिकांश नगर नदियों के किनारे ही विकसित हुए थे तथा आज भी देश के लगभग सभी धार्मिक स्थल किसी न किसी नदी से सम्बद्ध है।

नदियां मानव जीवन के सामाजिक, आध्यात्मिक और आर्थिक प्रायोजन के साधन रहे हैं। जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त अनेक कर्मकाण्ड और धार्मिक रीति-रिवाज नदियों के ही किनारे संपन्न होते हैं। आज भी सिंचाई, मछलीपालन, नौकाविहार, मोती तथा सीप उद्योग लाखों परिवारों के आजीविका के साधन हैं जो नदियों से संभव हो रहा है। विडंबना है कि आधुनिक सभ्यता ने सबसे ज्यादा असभ्यता नदियों के ही प्रति प्रदर्शित की है, विकास की दौड़ हमारी पुरानी परंपरा और संस्कृति को लगातार निगल रही है। विकास की यह रफ्तार प्रकृति के साथ-साथ नदियों को भी तबाह कर रही है। सोचनीय है कि ऐसे विकास का अर्थ ही क्या जिसकी परिणति विनाश हो?

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