नदी

31 Mar 2011
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न बैठो चुप
न सोचो हो गया सब कुछ
अभी कहाँ हुआ सृजन?
अभी तो रचना है एक संसार
जो होगा तुम्हारा
अभी तो तुम्हारा उद्गम है
नन्हीं नदी की तरह।
बहा दो राह के रोड़ो को
चलो तुम भी पत्थरों में
अपनी राह बुनते हुए
करो कम करने की कोशिश
समन्दर का खार,
आत्मसात कर बुरों को
बना दो अच्छा
नन्हीं नदी की तरह।
न कहो मिल गया सब कुछ
अरे! अभी कहाँ आराम
यहाँ तुम्हें चलना है निरन्तर
मिटाते प्यास लोगों की
नन्हीं नदी की तरह।

जल


यो वः शिवतमो रसस्तस्य भाजयतेह नः उशतीखि भातरः
(गंगा जल में भगवान शिव की मोक्षदायी कृपाएं बह रही है)
बेशक शिव की मोक्षदायिनी कृपाएं
बह रही है कल-कल धाराओं में
तुम्हीं से है, अंकुरण, जीवन, पतझर
तुम्हीं तो हो सृष्टा, सहगामी, संहारक
सृष्टि का आरम्भ में
तुम्हीं थे चहुँओर
जब नहीं रहेगा सब कुछ
तुम ही रहोगे हर ओर
दहाड़ मारता, पछाड़ खाता
विद्रोह जब होगा शान्त
देखना, उस दिन कोई नहीं होगा...
कोई नहीं होगा जो
तुम्हारा ही चुल्लू भर अंश
तुम्हें सौंप, प्रस्तुत करे अपनी आस्था
आस्था बनी रहे इसलिए
जरूरी है नीलकण्ठ बने रहना
वरना, तुम ही रहोगे
कोई और न होगा
न तुम्हें सहलाने को...
न तुमसे बतियाने को...

सवाल


जैसा सुना था ठीक वैसा ही पाया तुम्हें भोजताल
अतुल जलराशि, जहाँ तक देख पाता हूँ
तुम्हीं नजर आते हो, धीर गम्भीर
अपने सृष्टा की तरह, प्रजापालक।
हर शाम तुम में उतरता है थका हारा दिनकर।
सुबह के साथ वह फिर निकलता है
फेरी पर होकर तरोताजा।
उस आग उगलते सूरज से परेशान हो कर ही
अजय आया था तुम्हारी गोद में
डुबकियाँ मारने, गोते लगाने
मगर तुमने नहीं लौटाया उसे
तुम्हारे आगे घंटों बहती रही दो जोड़ी आँखें
बेबस निगाहें हर लहर पर टिकी रही
मगर शांत बने रहे तुम, जैसे कुछ हुआ ही न हो
जीवन देने वाले भगवान से
लाश दिलवाने की प्रार्थनाएँ की जाती रही
फिर भी नहीं पसीजे तुम, कैसे प्रजापालक हो?
दिनकर को तो कभी नहीं रोकते
फिर उस घर के सूरज को क्यों रोक लिया अपने भीतर कहो तो?

बड़ी झील


झील, तुम बुला लेती हो रोज।
तुम्हारे किनारे जमती है महफिल
अपनी काँटा पकड़े घंटों
तुम्हारे पहलू में बैठा मैं
कब अकेला रहता हूँ?
लहरें तुम्हारी बतियाती है कितना,
जैसे घंटों कहकहे लगाता है यार अपना।
झील, तुम्हारे होते
कब अकेला रहता हूँ मै भला?

उम्मीद


सूरज अस्त हो चला है
झील की गोद में उतरा सूरज
निकल पड़ा है कहीं ओर फैलाने उजास
दिनकर कल फिर आएगा और
रोशनी से भर देगा दिन..
सूरज के आने तक
अंधेरे से लड़ो तुम
रोशनी के उगने तक
दीपक सा जलो तुम।

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