नदीपात्र के लिये अनुकूलतम हाइड्रोमीट्रिक नेटवर्क की आवश्यकता और व्यवस्था (Need and provision of optimum stream gauging network for a river basin)


सारांश:


किसी भी क्षेत्र में जलापूर्ति सूचना के लिये सम्पूर्ण सप्तक के पानी से संबंधित आँकड़ों की आवश्यकता होती है, जो पानी और मौसम संबंधित स्टेशनों के समूह नेटवर्क द्वारा एकत्रित किए जाते हैं। जल सूचना प्रणाली किसी भी क्षेत्र की जल संसाधन की योजना, रूपरेखा और प्रबंधन के लिये अपेक्षित आंकड़े उपलब्ध कराती है, जिसमें क्षेत्र के बाढ़ बचाव, प्रचालन और प्रबंधन के उपाय सम्मिलित हैं। नदी के धारा प्रवाह आंकड़े जलापूर्ति स्टेशनों के नेटवर्क द्वारा पूरे जलाशय के लिये एकत्रित किये जाते हैं और साथ ही नदीचरण व तलछट रुकाव का आंकड़े भी एकत्रित किये जाते हैं। जलापूर्ति नेटवर्क एक पूर्ण जल मौसमविज्ञान नेटवर्क की उप प्रणाली गठित करता है। नदीपात्र का हाइड्रोमीट्रिक नेटवर्क प्रायः विकासपरक प्रक्रिया द्वारा विकसित होता है। उभरती हुई देशी और विदेशी आवश्यकताओं को समय-समय पर पूरा करने के लिये एक अवधि के दौरान नेटवर्क को विकसित किया गया है। ऐसे उदाहरण हैं बाढ़ नियंत्रण, जल विद्युत विकास, जल प्रदूषण नियंत्रण, सूखा प्रबंधन, विश्वव्यापी पर्यावरण नियंत्रण हेतु योगदान इत्यादि। हाइड्रोमीट्रिक नेटवर्क की रूपरेखा बनाने के लिये नदीपात्र के आकार व प्रकार की जरूरत के साथ साधारणीयता और दोहरे परिहार की आवश्यकता होती है। तंत्र की रूपरेखा एक गतिशील प्रतिक्रिया है जिसका नदीपात्र की संरचना परिस्थितियों के बदलने में अहम योगदान है। हाइड्रोमीट्रिक नेटवर्क की निरंतरता बजटीय आवंटन पर भी बहुत निर्भर करती है। इसी वजह से हाइड्रोमीट्रिक तंत्र एक समय पर बहुत अनुकूलतम होता है, पर जरूरी नहीं है कि बाद में भी अनुकूलतम हो। ऊपर बताए हुए कारणों की वजह से ही तंत्र को समय-समय पर संशोधित करने की जरूरत है। इसी संदर्भ में यह लेख आधुनिक समय के औजार और तकनीकों के अनुकूलतम हाइड्रोमीट्रिक नेटवर्क के अध्ययन के लिये लिखा गया है। यह अध्ययन बताता है कि किस तरीके से यह मुद्दा ग्रहणशील अभिगम एवं उपलब्ध पात्र के मौजूदा ज्ञान, प्रयोगसिद्ध मानदंड व विश्लेषणात्मक विधियों द्वारा हल किया जा सकता है। अनुकूलतम हाइड्रोमीट्रिक नेटवर्क की समस्याओं और संभावनाओं की पहचान के लिये महाराष्ट्र की वास्तविक नदीपात्र का उदाहरण लिया गया है, जिसका नाम अपर भीमा पात्र है। किस तरह यह मानदंड इस अध्ययन के लिये महत्त्वपूर्ण है तथा नेटवर्क अनुकूलता के लिये मानक मानदंड को विस्तृत रूप से बताया गया है।

Abstract


Water data, in its entire gamut, collected through a network of hydrometeorological stations, cater to the hydrological information needs of a region. Such a network comprise of stream gauging sites, often referred as hydrometric stations, and other climatological stations to record meteorological parameters such as rainfall, wind speed, temperature, evaporation and the like, Hydrological Information System (HIS) for a region provides the data required for planning design and management of water resources of the area, including operation and management of flood protection measures in inundation prone areas. Stream flow data, including river stages and sediment discharges are collected through a network of hydrometric stations covering the entire basin. A hydrometric network forms a subsystem of the full-fledged hydrometeorological network for the basin. Hydrometric network for a river basin is developed, often in practice by an evolutionary process. Sites are added over a period of time to meet the emerging national and international needs from time to time. Examples of such needs include: flood mitigation, hydropower development, water pollution control, drought management, contribution towards global environmental monitoring etc. Hydrometric network design is guided by aspects such as type and size of the basin, sustainability and duplication avoidance. Network design also happens to be a dynamic process, which has to take into account the changing physical situations in the basin concerned. Sustainability of a network is also dependent on budgetary allocation for the task. Thus, a hydrometric network that was optimum at a particular point of time may cease to be not so later. Considerations, as detailed above, call for periodic re-evaluation of the network, and make amends as needed in the above context, this paper investigate the modern-day tools and techniques for hydrometric network optimization. The study shows that the issue can be tackled by an eclectic approach involving existing knowledge about the basin, empirical criteria and analytical methods. The paper elaborates the different criteria involved. The figure delineates a schematic showing diverse methods criteria used for network optimization. Problems and prospects associated with identifying an optimal hydrometric network for a basin are illustrated with the help of a real life river basin in Maharashtra, namely Upper Bhima basin up to Ujjani site. The standard criteria for network optimization are detailed ; and how such criteria are important for the case study brought out.

प्रस्तावना


किसी भी क्षेत्र में जलापूर्ति सूचना के लिये सम्पूर्ण सप्तक के पानी से संबंधित आंकड़ों की आवश्यकता होती है, जो पानी और मैासम संबंधित स्टेशनों के समूह या नेटवर्क द्वारा एकत्रित किये जाते हैं। यह नेटवर्क हाइड्रोमीट्रिक स्टेशन और अन्य जलवायु संबंधित स्टेशनों (जो कि मौसम संबंधित मानकों जैसे वर्षा, वायुगति, तापमान आदि के आंकड़े दर्ज करते हैं) को सम्मिलित करता है। जल सूचना प्रणाली किसी भी क्षेत्र की जल संसाधन की योजना, रूपरेखा और प्रबंधन के लिये अपेक्षित आंकड़े उपलब्ध कराती है, जिसमें क्षेत्र की बाढ़, बचाव, प्रचालन और प्रबंधन के उपाय सम्मिलित हैं। जलापूर्ति नेटवर्क एक पूर्ण जल मौसमविज्ञान नेटवर्क की उप-प्रणाली गठित करता है।

समय-समय पर उभरती हुई जरूरतों के आधार पर नदीपात्र के लिये हाइड्रोमीट्रिक नेटवर्क की विकास प्रक्रिया होती है। बाढ़ नियंत्रण और रोकथाम, जल विद्युत के विकास, जल की गुणवत्ता की निगरानी और नियंत्रण, सूखा प्रबंधन, सार्वभौम पर्यावरण निगरानी की दिशा में योगदान आदि इस तरह की जरूरते होती हैं।

उपरोक्त संदर्भ में, यह प्रबंध हाइड्रोमीट्रिक नेटवर्क अनुकूलन करने के लिये आधुनिक उपकरण और तकनीकों का अध्ययन करता है। इस समस्या को नदीपात्र के बारे में मौजूदा ज्ञान, अनुभवजन्य मापदंड और विशेषणात्मक तरीकों के माध्यम से हल करने की जरूरत है। नेटवर्क को अनुकूलतम करने के विभिन्न तरीकों का विवरण यह प्रबंध देता है इष्टतम हाइड्रोमीट्रिक नेटवर्क की पहचान करने की समस्याओं और संभावनाओं के एक उदाहरण से स्पष्ट करते हैं, जैसे कि नमूना अध्ययन अपर भीमा बेसिन के लिये किया है।

सामग्री एवं विधि


विचारणीय बातें: हाइड्रोमीट्रिक नेटवर्क में स्टेशनों का वर्गीकरण इस प्रकार है प्राथमिक, माध्यमिक और विशेष उद्देश्य नदी सिस्टम के लिये लंबी अवधि की प्रवाह श्रेणी उत्पन्न करने के लिये प्राथमिक स्टेशनों का उपयोग होता है। माध्यमिक स्टेशन अनिवार्यतः अल्पावधि स्टेशन है। प्राथमिक स्टेशन और माध्यमिक स्टेशनों के बीच में प्रवाह संबंधि विशेषताएं उत्पन्न होने के बाद माध्यमिक स्टेशनों को बंद किया जा सकता है। विशेष उद्देश्य स्टेशनों को परियोजना अथवा विशेष जाँच के डिजाइन और योजना बनाने के लिये स्थापित किया जाता है। ऐसे स्टेशनों को एक बार उद्देश्य समाप्त होने के बाद बंद कर सकते हैं। एक हाइड्रोमीट्रिक नेटवर्क डिजाइन के लिये जो कार्यवाई अपेक्षित है, उनको नीचे दिया गया है:

हाइड्रोमीट्रिक सूचना सिस्टम के परिचालन में शामिल संगठनों का शासनादेश भूमिका और उद्देश्यों का पुनर्विलोकन;, माध्यमिक और अन्य पार्श्व सूचनाओं का संग्रह करना, नेटवर्क के उद्देश्यों को इकट्ठा करना, वर्तमान नेटवर्क का मूल्यांकन करना, मौजूदा जल-संबंधी आंकड़ों का पुनर्विलोकन, स्थित नेटवर्क की कमियों की समीक्षा करना, स्टेशनों को प्राथमिकता देना, नेटवर्क स्टेशनों का मूल्यांकन करना और चालू रखने के लिये लागत अनुमान, संशोधित नेटवर्क का पुनर्विलोकन करना, चरणबद्ध कार्यान्वयन की योजना तैयार करना, स्टेशनों का अनुमानित स्थान तय करना और स्थल सर्वेक्षण शुरू करना, हर तीन वर्ष आवधिक समीक्षा के लिये एक रूपरेखा तैयार करना।

एक हाइड्रोमीट्रिक नेटवर्क की रूपरेखा बनाने में नीचे दी गई बातों का पालन किया जाता है:

हर एक जलवायु विज्ञान संबंधी क्षेत्र के लिये कम से कम एक प्राथमिक स्टेशन की जरूरत है, मुख्य नदी में, जहाँ प्रवाह अधिकतम है वहाँ एक प्राथमिक स्टेशन की अनिवार्यता है, एक नदी पर दो स्टेशनों के बीच की दूरी 30 किमी. से ज्यादा होनी उचित है, जब एक सहायक नदी मुख्य नदी में मिलती है, तब संगम के बाद नेटवर्क, स्टेशन का स्थान निर्देश कर सकता है, एक नदी अगर एक देश/राज्य पार करके दूसरे देश/राज्य में बहती है तो, उसकी सीमा पर प्रवाह मापन करने की आवश्यकता है, एक नदी में, अनुप्रवाह क्षेत्र के लिये कई स्टेशनों की जरूरत हो सकती है, छोटी स्वतंत्र नदियों के लिये अलग दृष्टिकोण अपनाए जाने की आवश्यकता हो सकती है।

 

सारणी 1- हाइड्रोमीट्रिक नेटवर्क के न्यूनतम घनत्व के बारे में WMO के दिशा निर्देश

संख्या क्षेत्र के प्रकार मुश्किल मानदंड स्थिति के लिये            

न्यूनतम नेटवर्क क्षेत्र (किमी.2)

मानदंड के लिये प्रति स्टेशन

1. शीतोष्ण और उष्णकटिबंधीय जोनों के प्लाट क्षेत्र

1,000-2,000

3,000-10,000

2. शीतोष्ण और उष्णकटिबंधीय जोनों के पहाड़ी क्षेत्र

300-1,000b

1,000-5000c

3. शुष्क क्षेत्र

5,000-20,000d

--

1. श्रेणी में अंतिम आंकड़ा असाधारण कठिन परिस्थितियों के लिये सहन किया जाना चाहिए।

2. असाधारण कठिन परिस्थितियों में 10000 (किमी.2) तक विस्तार कर सकते हैं।

3. असाधारण कठिन परिस्थितियों में 15000 (किमी.2) तक विस्तार कर सकते हैं।

4. महान मरुस्थलों को शामिल नहीं किया है।

 

न्यूनतम नेटवर्क: विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) ने हाइड्रोमीट्रिक स्टेशनों के न्यूनतम नेटवर्क के लिये दिशा निर्देशों को अनुभवसिद्ध रीति के रूप में माना जाता है, लेकिन अंतिम नेटवर्क उसके उद्देश्यों नदी प्रवाह की विशेषताएं वित्त की उपलब्धता इत्यादि बातों पर आधारित होना जरूरी है।

 

सारणी 2- भौगोलिक इकाइयों पर आधारित हाइड्रोमीट्रिक स्टेशनों के अनुशासित न्यूनतम घनत्व

भौगोलिक इकाई  

स्टेशन प्रति न्यूनतम घनत्व (किमी 2)

तटीय

2,750

पहाड़ी

1,000

आंतरिक मैदान

1,875

पहाड़ी/लहरदार

1,875

छोटे द्वीप

300

द्रवीय/शुष्क

20,000

स्रोत: WMO नं. 168, हाइड्रोलॉजिकल प्रथाओं के लिये गाइड (1994)

 

नेटवर्क अनुकूलन मानदंड


रेखाचित्र: हाइड्रोमीट्रिक नेटवर्क की पर्याप्तता का मूल्यांकन करने के लिये पर्याप्त नियमों की पहचान एक जटिल कार्य है (चित्र 1) इस रेखाचित्र से मालूम होता है कि हाइड्रोमीट्रिक इष्टतमीकरण, ग्रहणशील अभिगम एवं उपलब्ध पात्र का मौजूदा ज्ञान, प्रयोगसिद्ध, मानदंड विश्लेषणातमक पद्धति के द्वारा हल किया जा सकता है।

ज्ञान: नेटवर्क इष्टतमीकरण समस्या हल करने के लिये वर्तमान नेटवर्क के अभिलक्षण राज्य क्षेत्र और जलवायु संपत्तियों इत्यादि पर विचार किया जाना चाहिए। इस प्रक्रिया में राज्य क्षेत्र का ज्ञान, पर्वत चित्र, जियों-मॉर्फोलॉजिकल संपत्ति संबंधी विशेषतायें इत्यादि बहुत ही आधारभूत है। बाढ़ लघुकरण उद्देश्यों के लिये ऐतिहासिक जल प्लावित जगहों का ज्ञान बहुत ही उपयोगी होता है। शहरी और औद्योगिक क्षेत्रों के स्थान के बारे में भी विचार करने की आवश्यकता है। स्पष्ट रूप से ज्ञान विवरण के आधार पर नेटवर्क इष्टतमीकरण करने के साथ अनुभाविक और विश्लेषणात्मक प्रणालियों के परिणामों पर ध्यानपूर्वक विचार करने की आवश्यकता है।

विश्लेषणात्मक मानदंड


कई आंकड़ा-संबंधी प्रणालियाँ हाइड्रोमीट्रिक नेटवर्क मूल्यांकन और इष्टतमीकरण के लिये विद्यमान हैं। उदाहरण के लिये, क्लस्टरिंग तकनीक और एन्ट्रोपी-आधारित क्रियाविधि शामिल हैं। ऐसे स्थानों पर प्रवाह जिनका मापन करने का प्रबंध नही है, वहाँ स्थानिक बहाव का मूल्यांकन करने के लिये जिओ-स्टेटिस्टिकल विधि साधारणतः इस्तेमाल करते हैं। सामान्यीकृत न्यूनतम वर्ग रूपरेखा (generalised least squares) एक सामान्यतः इस्तेमाल की जाने वाली विधि है।

आनुभविक नियम


आनुभविक नियमों से भी हाइड्रोमीट्रिक स्टेशनों का स्थान निर्धारित किया जा सकता है। उदाहरणार्थ, एक स्टेशन ऐसी जगह पर होना चाहिए, जहाँ कर्मचारियों के पहुँचने का रास्ता हो, जहाँ मानवकृत टंकियाँ हो, वहाँ जलाशय की अन्तर्वाह और बहिर्वाह की निगरानी करने के लिये नदी में जलाशय के ऊपर और नीचे स्टेशनों की जरूरत है।

अनुप्रयोग


ऊपरी भीमा बेसिन में स्थित हाइड्रोमीट्रिक नेटवर्क का इष्टतमीकरण करने के लिये उपर्युक्त विस्तृत सिद्धांतों का इस्तेमाल किया गया है। यह नदीपात्र महाराष्ट्र के पश्चिम क्षेत्र में स्थित है (लेटिट्यूड 170 53’ N से 190 24’ N तक और लॉन्गिट्यूड 730 20’ P से 750 18’ E तक) बेसिन का क्षेत्रफल 14.712 किमी2 है। उजनी तक नदी की लंबाई 275 किमी. है। पूर्णतः बेसिन में 68 सबबेसिन स्थित है। अध्ययन क्षेत्र में 25% पहाड़ी प्रदेश, 55% पठार और बाकी समतल है (चित्र 2)।

Fig-2ऊपरी भीमा नदी की सहायक नदियाँ घोड़ और मुला-मुठा हैं। इस बेसिन में 13 तालुक स्थित हैं, जो पुणे के तीन जिलों, अहमदनगर और सोलापुर मंडलों में विभाजित है। अपर भीमा बेसिन अत्यन्त औद्योगीकृत और नगरीय हैं। इसके परिणामस्वरूप प्रदेश में जल परिमाण और गुणवत्ता समस्या उत्पन्न हुई हैं। इस बेसिन का औसत वार्षिक जल मूल्यांकन 75,940 लाख मी3 माना जाता है। अपर भीमा बेसिन में 14 मुख्य और लघुतर बाँध स्थित हैं। मुख्य बाँध हैं: पावना, घोड़, मुलशी, खड़कवासला, चस्कामन और उजनी। सारणी 3 में हाइड्रोमीट्रिक नेटवर्क का विवरण दिया गया है। वर्तमान नेटवर्क में 14 स्टेशन हैं (चित्र 3)।

वर्तमान नेटवर्क की प्रारंभिक समीक्षा से यह मालूम होता है कि 6 स्टेशन, अस्खेड़ा, चस्कामन, दत्तावाड़ी, रक्षेवीडी, शिरूर और वेग्रे बाँधों के बैकवॉटर से प्रभावित हैं, लेकिन इन 6 स्टेशनों को दूसरी वैकल्पिक व्यवस्था के बिना बंद करना अनुचित माना जाता है।

नेटवर्क का एक विश्लेषणात्मक अध्ययन किया गया, जिसके लिये सामान्यीकृत न्यूनतम वर्ग रूपरेखा [Generalised Least Squares (GLS)] का इस्तेमाल किया। इस अध्ययन से यह स्थापित हुआ कि घोड़ नदी में शिरूर स्टेशन शायद बंद किया जा सकता है। मानसून औसत दैनिक प्रवाह के अभिकलन के लिये बेसिन क्षेत्रफल और औसत दैनिक मानसून वृष्टि को इस्तेमाल किया और एक GLSS मॉडल विकसित किया (सारणी 4)।

 

सारणी 3 - अपर भीमा बेसिन का हाइड्रोमीट्रिक नेटवर्क

क्र.सं.

स्टेशन एरिया

स्थापित

नदी/उपनदी

कैचमेन्ट (किमी2)

 

1

अहमदाबाद

1996

घोड़

1523

2

अस्खेड़ा

1983

भामा

239

3

बुधवाडि

1981

कुंडालिका

152

4

चस्कमान

1973

भीमा

389

5

दत्तावाडि

1982

मुठा

741

6

कष्टी

1984

घोड़

4392

7

खमगांव

1985

मुला-मुठा

2833

8

निघोज

1991

इन्द्रायणी

832

9

परगांव

1982

भीमा

6251

10

पोड़

1984

मुला

474

11

पिंपले-गुरव

1997

पावना

507

12

रक्षेवाडी

1984

भीमा

3280

13

शिरूर

1984

घोड़

3204

14

वेग्रे

1994

मुठा

91

 

 

सारणी 4- प्रभाव के अनुसार क्रमानुसार किया गया और अपर भीमा बेसिन का हाइड्रोमीट्रिक स्टेशनों का विवरण

श्रेणी

स्टेशन

सामान्यकृत कुक्स स्टेटिस्टिक्स

1

वेग्रे

4.050

2

शिरूर

1.312

3

पौड़

0.848

4

कष्टी

0.413

5

खमगँव

0.308

6

बुधवाड़ी

0.279

7

परगँव

0.073

8

निघोजे

0.060

9

अश्केड़ा

0.028

10

पिंपले-गुरव

0.016

11

अहमदाबाद

0.011

12

रक्षेवाड़ि

0.008

13

चस्कामन

0.005

14

दत्तावाड़ी

0.001

 

दत्तवाड़ी स्टेशन पुणे नगर में स्थित है। इसके कारण, इस स्टेशन को बंद करना अनुचित माना गया। रिडन्डसी विश्लेषण से यह स्थापित हुआ कि चस्कामन स्टेशन से अनेक जानकारी हाइड्रोमीट्रिक सूचना HISS को दी जाती है, इसलिये इस स्टेशन को भी जारी रखने की आवश्यकता है। मल्टी-क्राइटेरिया विश्लेषण के आधार पर शिरूर और रक्षेवाड़ी स्टेशनों को नेटवर्क से समाप्त करने की सिफारिश की गई है। ये स्टेशन बैकवाटर समस्याओं से भी प्रभावित हैं। इस प्रकार यह स्थापित होता है कि अपर भीमा बेसिन में 12 स्टेशनों का एक इष्टतम नेटवर्क हो सकता है।

निष्कर्ष


हाइड्रोमीट्रिक नेटवर्क डिजाइन एक गतिशील प्रक्रिया है, जिसके लिये बदलती हुई भौतिक स्थितियों को ध्यानपूर्वक देखना आवश्यक है। बजटीय आवंटन पर भी नेटवर्क स्टेशनों की संरक्षणता आश्रित होती है। इस प्रकार एक नेटवर्क जो भी इष्टतम है, वह कुछ सालों के बाद ऐसा नहीं हो सकता है। इन बातों को ध्यान में रखते हुए नेटवर्क का पुनर्विलोकन नियमित अवधि पर किए जाने की आवश्यकता है। यह सिफारिश की जाती है कि हर तीन साल में नेटवर्क का सर्वेक्षण करना चाहिए।

संदर्भ
1. के.ज. और वि.अ.शा., अपर भीमा बेसिन के लिये धारागेज और वर्षा मानक नेटवर्क की इष्टतमीकरण, तकनीकी रिपोर्ट, 4797 (2010).

2. भारत सरकार, हाइड्रोलॉजिकल इन्फॉरमेशन सिस्टम - डिजाइन मैनुअल (2001).

3. मोस एम ई एवं टास्कर जी डी, हाइड्रोलॉजिकल नेटवर्क डिजाइन प्रौद्योगिकीय के एक अंतर तुलना, हाइड्रोलॉजिकल साइंसेज (1991).

4. टास्कर जी डी एवं स्टडींचर जे.आर. एन ऑप्रेशनल जीएलएस मॉडल फॉर हाइड्रोलॉजिक रिग्रेशन, एल्सवेयर साइंसेज, पब्लिशर्स, जर्नल ऑफ हाइड्रोलाजी, 111 (1989) 361-375.

5. WMO, ड्रोलॉजिकल प्रथाओं के लिये गाइड WMO, नं. 168 (1974).

6. WMO, इड्रोलॉजिकल नेटवर्क डिजाइन के लिये अवधारणाएं और तकनीक, WMO, नं. (1982) 580.

सम्पर्क


एफ टी मैथ्यू, राहुल सु. जगताप एवं काजल जैन, FT Mathew, Rahul S Jagtap & Kajal Jain
केन्द्रीय जल और विद्युत अनुसंधानशाला, पुणे 411024 (महाराष्ट्र), Central Water and Power Research Station, Pune 4110024 (Maharashtra)


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