नेपाल में भूकम्प : अब बुनियादी सुविधाओं की चुनौती

काठमाण्डू (भाषा)। नेपाल में भीषण भूकम्प में बचने वालों ने प्रकृति के उस खौफनाक मंजर की दास्तान बयाँ की जिसने घरों, मन्दिरों और ऐतिहासिक स्मारकों को पल भर में मलबे में बदलकर रख दिया। 2,000 से ज्यादा लोगों की जान लील लेने वाले भूकम्प से बचे लोगों के सामने अब आश्रय, भोजन और साफ स्वच्छता की बुनियादी जरूरतों को पूरा किए जाने की चुनौती है। हिमालय की गोद में बसे इस देश को 7.9 तीव्रता के शक्तिशाली भूकम्प ने हिलाकर रख दिया। सड़कों में बड़ी-बड़ी दरारें आ गई है और पुराने भवनों के ढह जाने के कारण हजारों लोगों को विस्थापित होना पड़ा और इस वजह से खुले आसमान के नीचे लोगों को सर्द रात गुजारनी पड़ी। बाद में भी हल्के झटके आते रहने के कारण लोग सो भी नहीं पाए।

बचावकर्मियों ने नेपाल के टूट चुके घरों और भवनों के टनों मलबे में आज भी लोगों को ढूँढने का अभियान जारी रखा। देश में आए भूकम्प में 2350 लोगों की मौत हो चुकी है जिसमें पाँच भारतीय शामिल हैं। इसमें छह हजार से ज्यादा लोग जख्मी हुए हैं।कई कामगारों सहित बड़ी संख्या में यहाँ आए भारतीयों ने कहा कि उन्हें भोजन और साफ-सफाई जैसी बुनियादी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। कोलकाता से यहाँ आए एक श्रमिक ने कहा कि कल जो हुआ उसे देखकर हम स्तब्ध हैं। यह बेहद दुखद है...भोजन पानी नहीं रहने के कारण मेरा पूरा परिवार दिक्कतों का सामना कर रहा है और लगभग सारी दुकानें बन्द है। उन्होंने कहा कि कम से कम 500-1,000 कामगार यहाँ आए हैं और हाँ, अब हम वापस जाना चाहते हैं। पता नहीं हम कैसे घर लौटेंगे। बिजली नहीं रहने के कारण कोई सूचना नहीं है। हम जानते हैं कि भारत से बचाव के लिए कुछ विमान आए है। हम वहाँ तक पहुँचने की कोशिश कर रहे हैं और फिर घर चले जाएँगे।

भारत ने राहत और बचाव अभियान तेज कर दिया है। भारतीय वायु सेना ने 550 से ज्यादा भारतीयों को निकाला है। कोलकाता के रहने वाले एक और श्रमिक ने कहा कि हम सब यहाँ काम करते हैं और करीब एक साल में भारत जाते हैं। हम वापस जाना चाहते हैं लेकिन नेटवर्क सम्बन्धी दिक्कतों के कारण परिवार से बातचीत नहीं हो पाई है। फ्रीलांस फोटोग्राफर थॉमस न्एबो उस समय काठमाण्डू के थामेल जिले में एक कॉफी दुकान में बैठे थे जब उन्हें हल्का झटका महसूस हुआ और यह धीरे-धीरे बढ़ता गया। उन्होंने सीएनएन से कहा कि यह क्षेत्र भूकम्प से अनजान नहीं है। कई लोगों को लगा कि छोटा-मोटा भूकम्प है, गुजर जाएगा। लेकिन वह बात नहीं थी। उसी दौरान मलबे में दबी एक महिला को निकलने की कोशिश करते हुए देखा। लोगों को जैसे ही बड़े झटके का अहसास हुआ सड़कों पर निकलने के लिए वे भागे। लोग भागे जा रहे थे, भागे जा रहे थे। कुछ भी बचने की कोई उम्मीद नहीं थी। स्थिति यह है कि घायलों को अस्पताल में जगह नहीं मिल पा रही है। लोग अभी भी अपने घरों में जाने से डर रहे हैं।

भूकम्प के कारण कई मन्दिर ध्वस्त


काठमाण्डू घाटी व उसके आसपास के इलाकों में आए नेपाल के सबसे भयंकर भूकम्प में ऐतिहासिक काष्ठमण्डप समेत कई मन्दिर ध्वस्त हो गए या बुरी तरह क्षतिग्रस्त हुए हैं। काष्ठमण्डप, पंचतले मन्दिर, नौ मंजिला बसन्तपुर दरबार, दशावतार मन्दिर और कृष्णा मन्दिर समेत कई मन्दिर भूकम्प से ध्वस्त हो गए। काष्ठमण्डप, जिससे काठमाण्डू नाम रखने की प्रेरणा मिली, लकड़ियों से बना 16वीं शताब्दी का स्मारक है। काठमाण्डू, भक्तपुर और ललितपुर में ज्यादातर ऐसे स्मारकों को खो बैठे जिन्हें विश्व धरोहर का दर्जा दिया गया था। उन्हें मूल स्वरूप में नहीं लौटाया जा सकता। भूकम्प ने बसन्तपुर दरबार चौक के मन्दिरों को करीब 80 फीसदी नष्ट कर दिया है।

नेपाल के प्रधानमन्त्री ने नागरिकों से रक्तदान करने की अपील की


प्रधानमन्त्री सुशील कोइराला ने रविवार को नेपाल के लोगों से अपील की कि रक्तदान करें क्योंकि विनाशकारी भूकम्प में छह हजार से ज्यादा जख्मी लोगों के इलाज के लिए अस्पतालों में इसकी सख्त जरूरत है। कोइराला ने कैबिनेट की बैठक की अध्यक्षता करने के बाद व्यवसायियों से कहा कि खाद्य आपूर्ति की कमी को दूर करने के लिए बड़ी दुकानें खोलें। सरकार ने अस्पताल के नजदीक सभी दवा दुकानों को सामान्य तरीके से काम करने के निर्देश दिए। माईरिपब्लिका डॉट कॉम के मुताबिक सरकारी निर्देशों की अवहेलना करने पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी।

बैठक के बाद सरकार ने प्रधानमन्त्री आपदा राहत कोष में योगदान करने की भी अपील की। उधर बचावकर्मियों ने नेपाल के टूट चुके घरों और भवनों के टनों मलबे में आज भी लोगों को ढूँढने का अभियान जारी रखा। देश में आए भूकम्प में 2350 लोगों की मौत हो चुकी है जिसमें पाँच भारतीय शामिल हैं। इसमें छह हजार से ज्यादा लोग जख्मी हुए हैं।

भूकम्प ने नेपाल से छीने ऐतिहासिक स्मारक


भूकम्प ने देश के सांस्कृतिक इतिहास को झकझोर दिया और ऐतिहासिक धरहरा मीनार सहित देश की कई धरोहरों को नष्ट कर दिया। उन्नीसवीं सदी की नौ मंजिला इस मीनार को यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थल का दर्जा हासिल था और यह मीनार काठमाण्डू घाटी का नजारा पेश करती थी। वर्ष 1832 में नेपाल के तत्कालीन प्रधानमन्त्री भीमसेन थापा ने यह मीनार बनवाई थी जिसे वर्ष 1934 में 8.3 तीव्रता के नेपाल के इतिहास के सबसे भयंकर भूकम्प से भी बहुत नुकसान हुआ था। इसे बाद में फिर से बनाया गया और लोगों के लिए खोला गया लेकिन इस बार यह मीनार भूकम्प के झटके का सामना नहीं कर पाई और पूरी तरह से धराशाई हो गई।

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