नेपाल पुनर्निर्माण के तात्कालिक एवं दीर्घकालिक उपाय

नेपाल को सम्भलने में वक्त से ज्यादा उसके साथ विश्व समुदाय समेत खासकर भारत जैसे पड़ोसी को लगातार खड़े रहने की जरूरत पड़ेगी। नेपाल में अवस्थापना और तकनीकी सुविधाओं की खस्ताहाली का अन्दाजा इसी से लगाया जा सकता है कि भूकम्प के 48 घण्टे बीतने के बाद भी रेस्क्यू टीमें हिमालय की तलहटी और ऊँची पहाड़ी चोटियों पर बसे कई गाँवों तक नहीं पहुँच सकी हैं...नेपाल को भूकम्प ने ऐसा त्रासद जख्म दिया है, जिसका दर्द कई सालों तक नासूर बनकर चुभता रहेगा। कहते हैं वक्त हर घाव को भर देता है, लेकिन नेपाल को सम्भलने में वक्त से ज्यादा उसके साथ विश्व समुदाय समेत खासकर भारत जैसे पड़ोसी को लगातार खड़े रहने की जरूरत पड़ेगी। जमीन के भीतर से उठे जलजले ने एक तिहाई आबादी को प्रभावित किया है। दरअसल, पहले ही मजबूत अवस्थापना सुविधाओं की कमी से जूझ रहे नेपाल के लिए इस आपदा से उबर पाना आसान नहीं है।

अभी तमाम देश नेपाल को मदद देने में जुटे हुए हैं, लेकिन यह तात्कालिक और आपात सहायता है और जिसकी इस देश को फिलहाल सबसे ज्यादा जरूरत भी है। नेपाल में अवस्थापना और तकनीकी सुविधाओं की खस्ताहाली का अन्दाजा इसी से लगाया जा सकता है कि भूकम्प के 48 घण्टे बीतने के बाद भी रेस्क्यू टीमें हिमालय की तलहटी और ऊँची पहाड़ी चोटियों पर बसे कई गाँवों तक नहीं पहुँच सकी हैं।

नेपाल संसाधनों की कमी के चलते इस तरह की किसी बड़ी आपदा को लेकर खुद को तैयार भी नहीं रख सका था। भारत, चीन समेत कई देश नेपाल के लोगों को बचाने में जुटे हुए हैं, लेकिन बारिश, दुर्गम पहाड़ियाँ, दुरूह इलाकों तक जल्द से जल्द पहुँच पाना आसान नहीं है। सम्भव है कि जैसे-जैसे राहत टीमें भीतरी और मुश्किल इलाकों में पहुँचें, वैसे-वैसे मरने वालों की संख्या में इजाफा हो।

पीड़ितों के समक्ष सबसे ज्यादा दिक्कत तो खाने-पीने और दवा को लेकर आ रही है। कई टेण्टों में खाना और पानी के लिए लोग लड़-भिड़ रहे हैं। बहरहाल, नेपाल को अपने पैरों पर खड़ा होने में लम्बा समय लगेगा। हमारे पड़ोसी देश को नए सिरे से खड़ा करने के लिए एक बड़ी कार्ययोजना और दीर्घकालिक सहयोग की जरूरत भी पड़ेगी। इसके लिए भारत और नेपाल के पड़ोसी देशों के अलावा यूएन समेत तमाम अन्तरराष्ट्रीय संस्थाओं को आगे आना होगा, नहीं तो पहले से ही गरीबी से जूझ रहा यह देश इस झटके के बाद बर्बादी के कगार पर पहुँच जाएगा। खासकर भारत को नेपाल को खड़ा करने में बड़े भाई की भूमिका निभानी ही होगी।

लेकिन नेपाल के साथ ही साथ केन्द्र सरकार को बिहार और भारतीय इलाकों में हुई तबाही की तरफ भी ध्यान देना चाहिए। खासकर बिहार में, जो पिछले दिनों कोसी क्षेत्र में आए भयावह तूफान में बर्बाद हो चुका है और भूकम्प के बाद यह स्थिति और भी जटिल हो गई है। बिहार के इस इलाके को भी केन्द्र और राज्य सरकार में पूरे तालमेल से परस्पर सहयोग की दरकार है।

दरअसल, नेपाल और भारत में हुई इस त्रासदी पर सोचे जाने की आवश्यकता है। यह सही है कि भूकम्प भूगर्भीय कारणों से आते हैं। पहले भी बड़े भूकम्प देश-दुनिया के तमाम हिस्सों में आ चुके हैं, लेकिन इन सब के बीच इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि कुदरत से बेलगाम छेड़छाड़ के चलते इसके दुष्परिणाम भी सामने आने लगे हैं। प्रकृति के साथ खिलवाड़ करने का ही असर है कि मौसम में बदलाव होने लगा है, प्राकृतिक असन्तुलन बढ़ा है।

मनुष्य प्रकृति का जितना बुरी तरह दोहन करने में जुटा हुआ है, प्रकृति भी उससे उतनी ही रुष्ट होती दिख रही है। बिना मौसम बरसात और ओला वृष्टि का मामला हो या फिर भूकम्प का, हमें प्रकृति के साथ सन्तुलन बनाकर चलना पड़ेगा अन्यथा वह दिन दूर नहीं होगा, जब प्रकृति हमें अपने साथ खिलवाड़ तो क्या, कुछ भी करने लायक शायद नहीं छोड़ेगी।

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