निर्मल गंगा की आशा में प्रधानमंत्री को एक चिट्ठी

26 Apr 2019
0 mins read

सेवा में,
प्रधानमंत्री जी

मैं एक जागरूक संस्था का जिम्मेदारी व्यक्ति हूं। मुझे पता है आप इस वक्त चुनाव प्रचार में बहुत व्यस्त होंगे। लेकिन फिर भी मेरे कुछ सवाल हैं, कुछ शिकायतें हैं और आपके कुछ वायदे हैं जो पूरे नहीं हुए हैं जिन्हे मैं आपको याद दिलाना चाहता हूँ। मुझे याद आ रहा है 2014 की आपकी कही वो बात जब आपने वाराणसी में कहा था ‘न मुझे किसी ने भेजा है, न मैं यहाँ आया हूँ। मुझे तो माँ गंगा ने बुलाया है!’ उसके बाद मुझ जैसे लाखों लोगों में आशा जगी थी कि आप हमारी पतित-पावनी गंगा को अविरल और निर्मल कर देंगे, जैसा कि आप कहते थे। 2014 से 2019 आ गया है आप गंगा के तीरे तो कई बार आये लेकिन गंगा को अविरल करने का हल कभी लेकर नहीं आये। गंगा आज पहले से भी ज्यादा प्रदूषण की गर्त में चली गई है। गंगा केवल नदी नहीं है ये हमारी संस्कृति है और हजारों सालों की सभ्यता की पहचान है। गंगा के बिना हम अपना अस्तित्व ही नहीं सोच सकते, गंगा आज कितनी ही मैली क्यों न हो? हमें आज भी विश्वास है कि गंगा में स्नान करने से हमारे पाप धुल जाते हैं। शायद ही ऐसा कोई हिंदू हो जिसके घर में गंगा जल न हो।

गंगा करोड़ों लोगों की जीवन रेखा है। उत्तराखंड के गोमुख से निकली छोटी-सी धारा पहाड़ से चलते हुये दर्जनों शहर से होकर गुजरती है। आज वही अविरल गंगा जिसके लिये भगीरथ ने कड़ी तपस्या की थी वो मैली होती जा रही है और हम तमाशबीन बनकर देख रहे हैं। आप देश के सबसे बड़े पद पर बैठे हैं। आप चाहें तो गंगा फिर से अविरल हो जायेगी। इसके लिये पहले की सरकारों ने भी नाम मात्र का योगदान किया था लेकिन आपमें हम सबको वो इच्छाशक्ति दिखी थी जो गंगा में जाने वाले सारे नालों को हटा सके। जो गंगा में हो रहे अवैध खनन को दूर कर सके। लेकिन मुझे अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि आपका वो वायदा सिर्फ वायदा ही बनकर रह गया।

आप जब प्रधानमंत्री बने तो आपने केन्द्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती को बनाया। जिन्होंने आगे चलकर कहा ‘2018 तक अगर गंगा साफ नहीं हुई तो वे जल समाधि ले लेंगी।’ 2018 आया भी और निकल भी गया लेकिन गंगा की स्थिति पहले से और बदतर हो गई है। हां इतना जरूर हुआ कि उनको इस कार्यभार से ही छुटकारा दे दिया गया। आप नमामि गंगे योजना को इतने जोर-शोर से लाये, लगा कि अब शायद कुछ हालात बदलेंगे। लेकिन नमामि गंगे योजना में पैसे आते रहे लेकिन गंगा साफ कहां हुई? उसका पता नहीं चला। हर वायदे के साथ मंच सजा और सम्मेलन हुये जिसमें करोड़ों रूपये गंगा के नाम पर उड़ा दिये गये। गंगा को साफ करने के लिए राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने भी कई निर्देश दिये लेकिन जाने क्यों आपकी सरकार ने कुछ सुना ही नहीं? राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने आदेश दिया था कि गंगा के किनारे से सभी उद्योग और होटलों को हटा देना चाहिये। जिससे उनकी गंदगी गंगा में न जाये। लेकिन एक रिपोर्ट बताती है कि गंगा में हर रोज 12,000 मिलियन लीटर मल उत्सर्जित किया जाता है। इसे जानकर आपको दुख नहीं होता? आपको अफसोस नहीं होता कि आपने वायदे पर कुछ फीसदी काम किया होता तो हमे विश्वास बना रहता कि गंगा अभी नहीं तो कुछ सालों में जरूर साफ होगी।

गंगा के प्राकृतिक रूप को हमें दासता की जंजीरों में जकड़े रहने वाले अंग्रेजों ने भी नहीं छेड़ा था लेकिन आपने उस पर इतने बांध बना दिये और कई बनाने वाले हैं कि अब किसी भी दिन गंगा अपना प्रकोप दिखा सकती है। आपको पता भी है 2013 की उत्तराखंड त्रासदी से अभी लोग उभरे भी नहीं है। आपके इस खतरे भरी योजना से तो गंगा और भी मर जायेगी। गंगा को बचाने के लिये कई संतों ने अपनी जान दे दी। हाल ही का उदाहरण मातृ सदन के संत सानंद का है। जो गंगा को बचाने के लिये 111 दिन का अनशन करते रहे और फिर आखिर में प्राण गंवा दिये और आपने क्या किया बस एक सांत्वना देने वाला ट्वीट। अनशन शुरू करने से पहले और मरने के कुछ दिन पहले उन्होंने अपनी तीसरी और आखिरी चिट्ठी आपको लिखी थी। पहली चिट्ठी का मजमून शिकायत भरा था। जिसमें लिखा था ‘2014 के लोकसभा चुनाव तक तो तुम स्वयं को मां गंगा का समझदार, लाडला और मां के समर्पित बेटे होने की बातें करते थे। मां के आशीर्वाद से वो चुनाव जीतकर अब तुम लालची, विलासिता के समूह में फंस गये हो।’
आपने तीनों चिट्ठियों में से किसी का जवाब नहीं दिया। पता है आपको जब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे तब भी स्वामी सानंद गंगा की रक्षा के लिये अनशन करते थे लेकिन इतना लंबा अनशन कभी नहीं चला। स्वामी सानंद की वजह से ही मनमोहन सिंह ने तीन डैम परियोजनाओं को रद्द कर दिया था। क्या आप चाहते तो ये अनशन नहीं रूकवा सकते थे? आप कोशिश करते तो क्या गंगा साफ नहीं हो पाती। आप कम से कम एक बार उनको विश्वास तो दिलाते लेकिन आपने ऐसा नहीं किया। आपने 2014 से लेकर अब तक संसद में न जाने कितने विधेयक और कानून पारित कराए। लेकिन आपने गंगा के लिये कभी संसद में बात नहीं की। गंगा के लिये तो कोई दल भी विरोध नहीं करता लेकिन आप तो उन विधेयकों को लाने में व्यस्त थे जो आपको चुनाव जिता सके।

स्वामी सानंद ने अपनी आखिरी चिट्ठी में गंगा के लिये कुछ अहम बातें लिखी थीं जिन पर आपको विचार करना चाहिये था। उसकी पहली अहम बात थी कि 2014 में गंगा महासभा ने जो मसौदा तैयार किया था उसका विधेयक लाकर कानून बनाना चाहिये। दूसरी मांग थी कि अलकनंदा, मंदाकिनी, पिंडर पर बन रहे डैम को बंद कर देना चाहिये। तीसरी मांग थी कि हरिद्वार कुंभ क्षेत्र में कटाई, खनन और चमड़ा-बूचड़खानों को बंद होना चाहिये। स्वामी सानंद की चौथी मांग में लिखा था कि जून 2019 तक गंगा परिषद का गठन कर देना चाहिये। इस चिट्ठी के बाद उमा भारती उनसे मिलने भी गई थीं लेकिन उसका कुछ फायदा नहीं हुआ। अब भी नमामि गंगे योजना चल रही है लेकिन वो वैसी ही रूकी हुई है जैसे कि गंगा का मैला पानी। स्वामी सानंद की इन मांगों में ऐसी क्या खराबी है जिसे आप पूरा नहीं कर पा रहे हैं? वो तो बस गंगा का अस्तित्व बचाना चाहते थे।

 

गंगा को साफ करने की पहली पहल 1984 में राजीव गांधी ने की थी। उन्होंने गंगा एक्शन प्लान शुरू किया था लेकिन वो बस प्लान ही बना रहा। गंगा की सफाई के लिये कुछ कड़े कदम नहीं उठाये गये। उसके बाद मनमोहन सरकार ने भी गंगा को बचाने के लिये बेसिन अथाॅरिटी लाई थी लेकिन आपने आते ही उसे रद्द कर दिया और नमामि गंगे योजना को ला दिया। जिसके विज्ञापन पर पैसे तो आपने खूब लगाये लेकिन गंगा को साफ करने में नहीं। यदि वही पैसा गंगा की सफाई में लगता तो शायद गंगा आज साफ होती। गंगा किनारे लगभग 66 शहर ऐसे हैं जिनके नाले सीधे गंगा नदी में खुलते हैं। हरिद्वार के गंगा घाटों पर भी कूड़े का ढेर जमा रहता है। गंगा के बारे में कहा जाता है कि गंगा इतनी पवित्र है कि इसमें हर चीज को शुद्ध करने की क्षमता है। लेकिन अब गंगा में मल और गंदगी इतनी बढ़ गई है कि गंगा हर चीज को शुद्ध नहीं कर पा रही है। मैं आपको बताता हूँ एक रिपोर्ट का आंकड़ा, जो गंगा के आस-पास के शहरों के बारे में है। जो बताता है कि गंगा के किनारे 72 शहरों में घाट के पास ही डंप साइट बने हुये हैं, जहां पर शहर का पूरा कूड़ा फेंका जाता है। ये स्थिति बेहद बुरी है। मुझे कहने की कोई जरूरत नहीं है कि कानपुर और आपके संसदीय क्षेत्र बनारस में गंगा कितनी गंदी हैं?

राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण का मानना है कि गंगा इतनी गंदी हो गई है कि गोमुख से ऋषिकेश तक ही इसका पानी पीने योग्य है। हरिद्वार, जहां ज्यादातर लोग गंगा जल लेने ही आते हैं। उस जल में अब जहरीले तत्व आ चुके हैं। आपने प्रयागराज के कुंभ में 3000 करोड़ रूपये का उपयोग किया। वहां सफाई की भी अच्छी व्यवस्था थी गंगा साफ करने के लिये लोगों को लगाया गया था। लेकिन कुंभ खत्म होने के बाद वो व्यवस्था भी लुप्त हो गई। आप व्यवस्था को स्थाई क्यों नहीं रख रहे हैं? अगर यही हाल रहा तो आज गंगा हरिद्वार में मैली कही जा रही है। कल को ऋषिकेश और देवप्रयाग के बारे में भी ऐसा कुछ कहना पड़ सकता है। स्वामी सानंद की मौत के बाद भी गंगा पर आप कुछ नहीं बोले। अब मातृ सदन के एक और संत आत्माबोधानंद 184 दिनों से अनशन पर बैठे हैं। उनकी भी वही मांगे हैं जो प्रोफेसर जीडी अग्रवाल की थीं। उन्होंने तो ये भी कह दिया है कि अगर आप 2 मई तक इन 4 मांगों को नहीं मानते तो 3 मई से जल त्याग देंगे। मेरी आपसे हाथ जोड़कर विनती है गंगा और इन समर्पित संतों की हमें जरूरत है, इनको बचा लीजिये। गंगा प्रदूषण, खनन और डैम के कुचक्र में फंस गई है। विशेषज्ञ कहते हैं कि आपकी इच्छाशक्ति ही अब गंगा को साफ करने की नहीं है। मेरी अपील है आपसे, उनकी बातों को झुठला दीजिये और जो अब तक नहीं हुआ वो अब कर दीजिये। गंगा आपकी भी मां है और मेरी मां भी।

स्वच्छ गंगा की उम्मीद में।

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading