नमामि गंगे मिशन का आगे बढ़ता सफर


गंगा नदी में पिछले तीन साल से कई स्तर और कई तरह के प्रोजेक्ट्स चल रहे हैं। जिसमें नदी की सफाई से लेकर जैव विविधता संरक्षण से घाटों को बेहतर करने के अभियान शामिल हैं। इस बीच पाँच राज्यों में गंगा के किनारे के हजारों गाँव खुले में शौचमुक्त घोषित कर दिये गए हैं तो नदी के किनारे के इलाकों में वन विकसित करने के काम चल रहे हैं; ये सारे ही काम अगले कुछ बरसों में गंगा की तस्वीर पूरी तरह बदल सकेंगे। नमामि गंगे कार्यक्रम गंगा नदी को बचाने का एक एकीकृत प्रयास है। इसके अन्तर्गत व्यापक तरीके से गंगा की सफाई करने को प्रमुखता दी गई है।

नमामि गंगे परियोजना पर काम जारी है। पवित्र, पुण्यसलिला गंगा नदी की सफाई का महाअभियान आगे बढ़ रहा है। प्रधानमंत्री ने वाराणसी में एक बड़े सीवेज परिशोधन संयंत्र की आधारशिला रखकर लक्ष्य की ओर बड़ा कदम बढ़ाया है। गंगा नदी में पिछले तीन साल से कई स्तर और कई तरह के प्रोजेक्ट्स चल रहे हैं, जिसमें नदी की सफाई से लेकर जैव विविधता संरक्षण से घाटों को बेहतर करने के अभियान शामिल हैं। इस बीच पाँच राज्यों में गंगा के किनारे के हजारों गाँव खुले में शौचमुक्त घोषित कर दिये गए हैं तो नदी के किनारे के इलाकों में वन विकसित करने के काम चल रहे हैं; ये सारे ही काम अगले कुछ बरसों में गंगा की तस्वीर पूरी तरह बदल सकेंगे। नमामि गंगे कार्यक्रम गंगा नदी को बचाने का एक एकीकृत प्रयास है। इसके अन्तर्गत व्यापक तरीके से गंगा की सफाई करने को प्रमुखता दी गई है।

नमामि गंगे मिशन के तहत कुल 160 परियोजनाओं को मंजूरी दी गई जिसकी लागत 12,500 करोड़ रुपए है जबकि गंगा की सफाई के लिये 20,000 करोड़ रुपए की परियोजना तय की गई थी। इसके तहत रिवर फ्रंट का विकास, सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित करना, घाट और शवदाहगृह बनाना शामिल है। अभी तक एक चौथाई परियोजनाएँ पूरी हुई हैं।

परिवहन मंत्री श्री नितिन गडकरी को जल संसाधन और नमामि गंगे का भी प्रभार मिलने से काम में आ रही अड़चनें तो दूर होनी चाहिए बल्कि अन्तर-मंत्रालयीय तालमेल में तेजी आ जानी चाहिए। यही वजह है कि उन्होंने जल मंत्रालय का पदभार सम्भालते ही कहा कि गंगा का काम सिर्फ एक विभाग का नहीं है, यह कई मंत्रालयों से जुड़ा है। उन्होंने कहा कि वह टास्क फोर्स बनाकर इससे निपटने की कोशिश करेंगे। कहा जा रहा है कि किसी-न-किसी रूप में परियोजना से अवगत होने के कारण उन्हें इसकी बारीकियों को समझने में ज्यादा समय नहीं लगेगा।

प्रधानमंत्री का बड़ा कदम


प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने 22 सितम्बर, 2017 को वाराणसी के रमना में 50 एमएलडी क्षमता वाले सीवेज परिशोधन संयंत्र (एसटीपी) की आधारशिला रखी। यह संयंत्र हाइब्रिड एन्यूटी- मॉडल पर आधारित है। सीवेज क्षेत्र में पहली बार हाइब्रिड एन्यूटी मॉडल का उपयोग किया जा रहा है। नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत निर्मल गंगा के लक्ष्य को हासिल करने के लिये यह एक बड़ा कदम है। 153.16 करोड़ रुपए की लागत वाले इस संयंत्र के निर्माण, परिचालन व रख-रखाव का कार्य एक कॉन्सोर्टियम को दिया गया है जिसकी अगुवाई एस्सेल इन्फ्रा प्रोजेक्ट्स लिमिटेड नामक कम्पनी कर रही है। भारत सरकार द्वारा अनुमोदित हाइब्रिड एन्यूटी मॉडल के तहत केन्द्र सरकार इस परियोजना का 100 प्रतिशत खर्च वहन करेगी। इस मॉडल के तहत एसटीपी का विकास, परिचालन और रख-रखाव स्थानीय-स्तर पर बनाई गई एक स्पेशल पर्पज वेहिकल (एसपीवी) करेगी। इस मॉडल के अनुसार लागत की 40 प्रतिशत राशि का भुगतान निर्माण के दौरान किया जाएगा। शेष 60 प्रतिशत राशि का भुगतान अगले 15 वर्षों के दौरान वार्षिक तौर पर किया जाएगा जिसमें परिचालन और रख-रखाव (ओ एंड एम) का खर्च भी शामिल होगा। इस मॉडल की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि वार्षिक और परिचालन व रख-रखाव (ओ एंड एम) के दोनों भुगतानों को एसटीपी के प्रदर्शन के साथ जोड़ा गया है। इससे संयंत्र का बेहतर प्रदर्शन, स्वामित्व और बेहतर जवाबदेही सुनिश्चित की गई है।

गंगा के किनारे के हजारों गाँव खुले में शौच से मुक्त


पिछले महीने केन्द्रीय ग्रामीण विकास और पेयजल व स्वच्छता मंत्री श्री नरेंद्र सिंह तोमर ने घोषणा की कि गंगा के किनारे के पाँच राज्यों- उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड और पश्चिम बंगाल के 4460 से अधिक गाँव खुले में शौच से मुक्त हो गए हैं। ये काम नमामि गंगे प्रोजेक्ट के तहत हुआ है। गंगा ग्राम विकसित करने की दिशा में पाँच राज्यों- उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड और पश्चिम बंगाल में गंगा किनारे बसी 1674 ग्राम पंचायतों की पहचान की गई है। पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय ने इन ग्राम पंचायतों में शौचालय बनाने के लिये 578 करोड़ रुपये जारी किये हैं। इस धनराशि से 15 लाख 27 हजार 105 शौचालय बनाए जाने हैं। इनमें से आठ लाख 53 हजार 397 शौचालय बनकर तैयार हो चुके हैं।

सीवर ट्रीटमेंट क्षमता वृद्धि


पाँच राज्यों - उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड और पश्चिम बंगाल में 63 सीवेज प्रबन्धन प्रोजेक्ट्स क्रियान्वयन के दौर में हैं। इन राज्यों में 12 नए सीवेज प्रबन्धन प्रोजेक्ट्स लांच कर दिये गए हैं। इनकी क्षमता को 1187.33 एमएलडी तक पहुँचाने के लिये काम जारी है।

जैव विविधता संरक्षण


गंगा की जैव विविधता को बरकरार रखने के लिये कई जैव-विविधता संरक्षण प्रोजेक्ट्स पर काम चल रहा है, इनमें जैव-विविधिकरण और गंगा पुनर्जीवन, गंगा नदी में मछली और मत्स्य संरक्षण, गंगा डॉल्फिन संरक्षण शिक्षा कार्यक्रम शुरू हो चुके हैं। देहरादून, नरोरा, इलाहाबाद, वाराणसी और बैरकपुर में जैव-विविधता धरोहर संरक्षण के पाँच केन्द्र विकसित किये जा रहे हैं।

वनारोपण


भारतीय वन्यजन्तु संस्थान, केन्द्रीय अन्तर्देशीय मत्स्य रिसर्च संस्थान और पर्यावरण शिक्षा संस्थान के जरिए गंगा के किनारे के इलाकों में वनारोपण अभियान शुरू किया जा चुका है। देहरादून के वन शोध केन्द्र द्वारा तैयार विस्तृत प्रोजेक्ट रिपोर्ट के आधार पर पाँच सालों के लिये गंगा के किनारों पर (2016-2021) 2300 करोड़ रुपए की लागत से वनारोपण चल रहा है।

औषधीय पौधों के विकास की योजना उत्तराखण्ड के सात जिलों में चल रही है। जन भागीदारी पर भी विशेष बल दिया जा रहा है और जनता का जुड़ाव भी बढ़ रहा है।

जन-जागरुकता


इसके लिये इवेंट्स, वर्कशॉप, सेमिनार और कांफ्रेस के जरिए जन-जागरुकता अभियान के तहत कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। रैलियों, अभियानों, प्रदर्शनियों, श्रमदान, स्वच्छता कार्यक्रमों, प्रतियोगिताओं, पौधारोपण अभियान और टीवी, रेडियो और प्रिंट मीडिया के जरिए जागरुकता अभियान चलाए जा रहे हैं। वहीं इसके लिये डिजिटल और सोशल मीडिया के भी तमाम प्लेटफॉर्म्स का उपयोग हो रहा है।

नदियों के किनारों का विकास


नदी के किनारे को विकसित करने के लिये 28 परियोजनाओं, 182 घाटों और 118 श्मशान स्थलों की मरम्मत, आधुनिकीकरण तथा निर्माण की 33 परियोजनाओं पर काम चल रहा है। 11 स्थानों पर नदी की सतह और घाटों के आस-पास सतह की सफाई और वहाँ से निकाले गए कचरे को नष्ट करने का काम जारी है। नमामि गंगे प्रोजेक्ट के तहत उत्तराखण्ड में गंगा के किनारे बनने वाले 70 घाटों में 35 का निर्माण सिंचाई विभाग करेगा। नेशनल मिशन क्लीन गंगा (एनएमसीजी) ने पहले सभी 70 घाटों के निर्माण का जिम्मा निजी संस्था वेबकॉज को दिया था। प्रोजेक्ट के तहत उत्तराखण्ड में गंगा को साफ रखने के लिये नदी के किनारे कुल 70 शवदाह-स्नानगृह (घाट) बनाए जाने हैं। इसमें भी अब राज्य सरकार की भूमिका अहम हो गई है।

नदियों की सतह की सफाई


11 घाटों और नदियों की सतह पर इकट्ठा कूड़े का निस्तारण और सफाई इस सफाई योजना के तहत पिछले वर्ष इलाहाबाद, कानपुर, वाराणसी, मथुरा, वृन्दावन और पटना में ट्रेश स्कीमर से सफाई का कार्य निगमित सामाजिक उत्तरदायित्व के तहत शुरू किया गया था। इस दौरान टनों मात्रा में कचरा इकट्ठा कर निर्धारित स्थानों पर पहुँचाया गया। इसके बहुत अच्छे परिणाम देखने को मिले। आने वाले समय में अन्य चयनित शहरों में भी ट्रेश स्कीमर से नदी की सतह की सफाई शुरू की जाएगी।

सात आईआईटी से मदद


सात आईआईटी (कानपुर, दिल्ली, मद्रास, बम्बई, खड़गपुर, गुवाहाटी और रुड़की) के कंसोर्टियम द्वारा गंगा के लिये एक व्यापक नदी घाटी प्रबन्धन योजना तैयार की जा रही है। यह योजना गंगा की पारिस्थितिकी के समग्र पुनरुद्धार तथा इसके पारिस्थितिकीय विज्ञान स्वास्थ्य के सुधार के लिये पर्याप्त उपाय करने के उद्देश्यों के साथ तैयार की जा रही है जिसमें नदी घाटी में प्रतिस्पर्धी जल प्रयोग के मुद्दे पर पर्याप्त विचार किया गया है। इसकी समग्रता को चार पारिभाषित अवधारणाओं के सन्दर्भ में समझा जा सकता है- ‘अविरल धारा’ (निरन्तर प्रवाह), ‘निर्मल धारा’ (प्रदूषणरहित प्रवाह), भूपारिस्थितिकी संस्था और पारिस्थितिकी संस्था।

प्रदूषण फैलाने वाली इकाइयों पर रोक


गंगा किनारे स्थित 760 ऐसी औद्योगिक इकाइयों की पहचान की गई है जिनसे निकलने वाले कचरे से नदी सर्वाधिक प्रदूषित होती है। ऐसी 562 इकाइयों में कचरा निगरानी यंत्र लगाए गए हैं। प्रदूषण फैलाने वाली 135 औद्योगिक इकाइयों को बन्द करने के नोटिस जारी कर दिए गए हैं। शेष इकाइयों को अपने यहाँ कचरा निगरानी व्यवस्था को तय समय में लगाने को कहा गया है। गंगा को प्रदूषण-मुक्त बनाने के उद्देश्य से मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ ने कानपुर तथा कन्नौज जनपदों में चल रही चमड़ा उद्योग इकाइयों को चरणबद्ध तरीके से शिफ्ट करने के निर्देश भी दिए हैं।

अन्य देशों से भी सहयोग


गंगा नदी को स्वच्छ और निर्मल बनाने के लिये दुनियाभर में उपलब्ध सर्वश्रेष्ठ जानकारी और संसाधन प्राप्त करने के प्रयासों के अलावा उन देशों से भी सहयोग लेने में संकोच नहीं किया जा रहा है जिन्हें नदी की सफाई में विशेषज्ञता हासिल है। ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, जर्मनी, फिनलैंड और इजराइल जैसे देशों ने गंगा संरक्षण में सहयोग देने की इच्छा जताई है।

पहली बार स्थानीय निकायों का सहयोग


स्वच्छ गंगा अभियान में पहली बार स्थानीय निकायों का सक्रिय सहयोग लिया जा रहा है। विशेषज्ञ इस पहल को अच्छा कदम बताते हैं और मानते हैं कि यह कार्ययोजना इस बार अवश्य सफल होगी। पहले केन्द्र गंगा सफाई के लिये राज्य सरकारों को धनराशि देता था। इस बार यह राशि राज्य सरकारों की बजाय सीधे स्थानीय निकायों को दी जा रही है। इससे न केवल उनकी भागीदारी बढ़ी है बल्कि उन्हें जिम्मेदारी का भी एहसास हो रहा है। इसके अच्छे नतीजे भी आने लगे हैं। स्थानीय-स्तर पर गंगा संरक्षण कार्यबल का गठन एक ठोस कदम की शुरुआत है। इससे गाँव के युवा को जहाँ रोजगार मिलेगा वहीं ग्रामीणों का भी भरपूर सहयोग मिलेगा। हालाँकि ये भी देखना होगा कि नगरपालिकाएँ सीवेज ट्रीटमेंट संयंत्रों को चलाने में पूरी रुचि लें।

राज्य सरकारों का सहयोग जरूरी


नमामि गंगे की सफलता के लिये राज्य सरकारों का सहयोग भी उतना ही आवश्यक है। उत्तर प्रदेश में नई सरकार के आने पर काम में जरूर तेजी आई। हालाँकि काम इतना आसान नहीं क्योंकि गोमती आमतौर पर गन्दे नाले में तब्दील हो गई लगती है। पीलीभीत के गोमद ताल, माधवटांडा से लेकर सीतापुर, हरदोई, लखनऊ बहराइच, जौनपुर व बनारस से पहले कैथीधार पर जाकर गंगा से मिलने वाली गोमती अपने 325 किलोमीटर लम्बे मार्ग में कहीं भी साफ नहीं।

उत्तर भारत की नदियाँ


यमुना में मिलने वाली हिंडन पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बहने वाली महत्त्वपूर्ण नदी है। ये सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, नोएडा, ग्रेटर नोएडा जिलों से गुजरती हुई, दिल्ली के नीचे यमुना नदी में मिल जती है। हिंडन की लम्बाई करीब 400 किलोमीटर है। इसका जलागम क्षेत्र 7083 वर्ग किलोमीटर है। हिंडन एक बड़े जलागम क्षेत्र और घनी आबादी वाले औद्योगिक नगरों को जल निकास व्यवस्था प्रदान करती है। पिछले कुछ बरसों से प्रदूषण के कारण ये नदी भी चर्चा में है। इसके अलावा उत्तर भारत में कहीं भी चले जाइए। आमतौर पर बरसात के सीजन के अलावा सभी छोटी नदियाँ नाले में बदल गई हैं तो कहीं पतली धारा में। माना जाता है कि उनकी इस हालत के लिये कहीं बाँध और बैराज जिम्मेदार हैं तो कहीं बड़े पैमाने पर औद्योगिक प्रदूषण।

नर्मदा की हालत


गंगा के बाद देश की दूसरी पवित्र नदी नर्मदा है। उसे उसी तरह पूजा जाता है जिस तरह गंगा को। अमरकंटक से शुरू होकर विंध्य व सतपुड़ा की पहाड़ियों से होते हुए अरब सागर में मिलने वाली नर्मदा का कुल 1,289 किमी की यात्रा में केवल दोहन हुआ है जिसने इस पवित्र और निर्मल नदी की दुर्दशा कर दी है। नर्मदा नदी के तट पर बसे नगरों और बड़े गाँवों के पास के लगभग 100 नाले नर्मदा नदी में मिलते हैं। शहर का गन्दा पानी नदी में मिलता है। अब तो उद्गम इलाके अमरकंटक में भी नर्मदा प्रदूषित दिखती है। कई स्थानों पर गन्दगी खतरनाक स्तर को पार कर रही है। हालाँकि मध्य प्रदेश में राज्य सरकार नर्मदा को साफ करने के अभियान में लगी हुई है। बैतूल जिले के मुलताई से निकल सूरत तक जाकर अरब सागर में मिलने वाली सूर्य पुत्री ताप्ती नदी का हाल भी अच्छा नहीं। तमसा बहुत पहले विलुप्त हो चुकी है।

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