नर्मदा जल से मंदाकिनी को मिलेगी संजीवनी

Published on
3 min read

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की सख्ती से बंधी उम्मीद

नर्मदा को मंदाकिनी से जोड़ने के इन प्रयासों की राह इतनी आसान नहीं है। बरगी डायवर्सन की 196 किलोमीटर लंबी मुख्य नहर में से अभी महज 25 किलोमीटर तक ही पानी पहुंचा है। इससे सतना जिले की 1.59 लाख हेक्टेयर खेती लायक जमीन के कमांड क्षेत्र में आने की उम्मीद है। राह की सबसे बड़ी बाधा स्लीमनाबाद के पास 12 किलोमीटर लंबी टनल का निर्माण है। यही वह टनल है जो नर्मदा कछार के पानी को सोन बेसिन में लाएगी। वर्ष 2016 तक टनल निर्माण का नया टारगेट रखा गया है लेकिन यह भी महज एक तारीख ही है। सतना। 08/05/14/ चित्रकूट की पुण्य सलिला मंदाकिनी को रीचार्ज करने के प्रयास यदि कामयाब रहे तो पवित्र नदियों में शुमार नर्मदा का जल भी प्रयागराज इलाहाबाद के संगम तक पहुंच जाएगा। भारी प्रदूषण और अंधाधुंध पक्के निर्माण के कारण फिलहाल मोक्षदायिनी मंदाकिनी के प्राण संकट में हैं। उद्गम स्थल सती अनुसुइया आश्रम से रामघाट के बीच तकरीबन 25 किलोमीटर के फासले पर नदी तट के नैसर्गिक जल स्रोत दिन-ब-दिन सूखते जा रहे हैं।

यही जल स्रोत इस धार्मिक और पौराणिक महत्व की नदी की प्रमुख प्राकृतिक विशेषता रहे हैं। मंदाकिनी का अस्तित्व बचाए रखने के मामले में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की सख्ती के बाद अब इस मसले पर सरकारी कवायद में भी तेजी आई है। ग्रीन ट्रिब्यूनल ने मंदाकिनी की रिचार्जिंग के लिए जल संसाधन विभाग के चीफ इंजीनियर को डीटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) के साथ 26 मई को तलब किया है।

क्या है योजना

मंदाकिनी को नर्मदा जल से संजीवनी देने की सरकारी योजना के तहत नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण ने बरगी डैम की दाईं तट नहर के पानी को मंदाकिनी में छोड़ने की संभावनाओं की भौतिक उपयुक्तता का अध्ययन कराया है। ग्रीन ट्रिब्यूनल ने भी चित्रकूट क्षेत्र के पिंडरा टेल प्वाइंट के पानी को एक स्थानीय नदी (झूरी) में छोड़ने की व्यवस्था सुनिश्चित किए जाने के निर्देश दिए हैं।

टेल प्वाइंट से मंदाकिनी नदी को जोड़ने वाली यह पहाड़ी नदी लगभग 7 किलोमीटर का फासला तय करती है और फिर मोहकम घाट में मंदाकिनी नदी पर जाकर मिल जाती है। माना जाता है कि नर्मदा जल मिलने से जहां मंदाकिनी सदानीरा हो सकती है, वहीं धार्मिक और पौराणिक लिहाज से भी इस नदी का महत्व और भी बढ़ जाएगा। मंदाकिनी की तरह नर्मदा नदी का भी अपना पौराणिक पहचान और धार्मिक महत्व है।

संगम में समागम

सब कुछ ठीक ठाक रहा तो बरगी डैम की दाईं तट नहर से जिले के पिंडरा टेल प्वाइंट और वही से झूरी नदी के माध्यम से मोहकम घाट पर नर्मदा का पवित्र जल मंदाकिनी में पहुंचाया जाएगा। यही मंदाकिनी आगे उत्तर प्रदेश के कर्वी से होते हुए महाकवि गोस्वामी तुलसीदास के जन्मस्थल राजापुर में यमुना नदी में मिल जाती है। यही यमुना आगे जाकर इलाहाबाद में गंगा से मिल कर संगम बनाती है। नर्मदा जल से मंदाकिनी को संजीवनी देने की इस सरकारी परिकल्पना से जहां मंदाकिनी सदानीरा हो जाएगी वहीं नर्मदा जल के संगम में समागम एक इतिहास लिखेगा।

मगर राह नहीं आसान

जानकारों की मानें तो नर्मदा को मंदाकिनी से जोड़ने के इन प्रयासों की राह इतनी आसान नहीं है। बरगी डायवर्सन की 196 किलोमीटर लंबी मुख्य नहर में से अभी महज 25 किलोमीटर तक ही पानी पहुंचा है। इससे सतना जिले की 1.59 लाख हेक्टेयर खेती लायक जमीन के कमांड क्षेत्र में आने की उम्मीद है।

राह की सबसे बड़ी बाधा स्लीमनाबाद के पास 12 किलोमीटर लंबी टनल(सुरंग) का निर्माण है। यही वह टनल है जो नर्मदा कछार के पानी को सोन बेसिन में लाएगी। वर्ष 2016 तक टनल निर्माण का नया टारगेट रखा गया है लेकिन यह भी महज एक तारीख ही है। इस मामले में सीएजी (कैग) की आपत्तियां भी किसी से छिपी नहीं हैं। कैग की मानें तो बरगी डैम अपनी नहरों को तकनीकी तौर पर भरपूर पानी देने की स्थिति में नहीं है।

उधर, मंदाकिनी को जीवनदान देने जैसे नाजुक मामले में उत्तर प्रदेश सरकार का रवैया निराश करता है। जबकि यूपी में एशिया की सबसे बड़ी पाठा पेयजल योजना इसी मंदाकिनी नदी के भरोसे है। कहना न होगा कि मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के सैकड़ों किलोमीटर सरहदी और बियाबान जंगली इलाके की गिरिजन आबादी के बीच महज मंदाकिनी ही जीवन रेखा है।

संबंधित कहानियां

No stories found.
India Water Portal - Hindi
hindi.indiawaterportal.org