नर्मदा नदी की निर्मलता में योजनाओं की बाढ़

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विश्व जल दिवस पर विशेष


जल मानव सभ्यता के लिए सबसे जरूरी प्राकृतिक संसाधन है। इसलिए नदियों को मानव सभ्यता की पालक माना जाता है। बिजली, सिंचाई और आजीविका का आधार होने के कारण नदियाँ विकास की धुरी रही हैं। जल ग्रहण क्षेत्र की जमीन का दोषपूर्ण उपयोग एवं घटते वृक्ष आवरण की वजह से भू-क्षरण और प्रदूषण तेजी से बढ़ रहा है।

नर्मदा नदी जो कि मप्र के कई जिलों की लाइफ लाइन मानी जाती है। उस नर्मदा को हरियाली चुनरी यानी पौधारोपण की सौगात देने के लिए योजनाएँ तो बन रही हैं, किन्तु उसके क्रियान्वयन में दिक्कत है। वहीं निर्मलता के लिए कदम तो उठाए जा रह हैं, किन्तु उनके नतीजे सामने नहीं आ रहे हैं।

नर्मदा नदी के किनारों पर पौधों के रोपण में हो रही लापरवाही कई तरह के खतरों को जन्म दे रही है। क्योंकि नदी के किनारे इसके दुष्प्रभाव आसानी से देखे जा रहे हैं। इन कारणों से नदी पर आधारित आजीविकाएँ खतरे में हैं। साथ ही नदियों में बढ़ते प्रदूषण के कारण जनस्वास्थ्य में भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

जलग्रहण और नदी के किनारों के कटाव होने से बहकर आ रही गाद के कारण बाँधों की जल अवधारणा क्षमता में अप्रत्याशित कमी आ रही है। जलवायु परिवर्तन के कारण जलचक्र में आने वाले बदलाव के कारण संकट को लेकर वैज्ञानिक और नागरिक चिन्ता में हैं। म.प्र. की जीवनरेखा नर्मदा नदी के संरक्षण के लिए तात्कालिक एवं दीर्घकालिक उद्देश्यों पर कार्य करने की आवश्यकता है।

हिमविहीन नदियों के प्रवाह एवं जल की गुणवत्ता को प्रभावित करने में पौधारोपण और जलग्रहण क्षेत्र के उपचार की महत्वपूर्ण भूमिका है। इसी सोच को क्रियान्वित करने के लिए हरियाली चुनरी के नाम से वन विभाग ने एक योजना तैयार की है, इसके तहत करीब 7 हजार 163 हेक्टेयर में पौधों के रोपण की योजना है।

वानस्पतिक आवरण से ढँकना


नर्मदा नदी के लिए विशेष रूप से ये प्रयास किए जा रहे हैं कि उसे वानस्पतिक आवरण से ढँका जाए। जिससे कि क्षेत्र में समृद्धि हो। खासकर प्राकृतिक समृद्धि आ जाए, इसके लिए इस तरह की योजना बनाई गई है। योजना के क्रियान्वयन के लिए नर्मदा नदी और उसकी सहायक नदी के तटों पर कार्य करना प्रस्तावित है।

वर्तमान में उपलब्ध वन क्षेत्र का आकलन नहीं किया गया है, किन्तु नर्मदा नदी के तट के क्षेत्रों का अवलोकन किया गया है। इसमें शहडोल, जबलपुर, शिवनी, होशंगाबाद, भोपाल, इन्दौर, उज्जैन व खण्डवा के क्षेत्रों में वन विभाग की दृष्टि 386 वन कक्षों में 1 लाख हेक्टेयर से ज्यादा जगह है, लेकिन प्रारम्भिक तौर पर योजना में नदी के दोनों ओर 100-100 मीटर की पट्टी में पौधारोपण एवं जल संरक्षण के कार्य किए जाना है। 100 मीटर की चौड़ाई में आने वाले जमीन का भू-भाग 7163 हेक्टेयर है। इसमें बड़वाह, बड़वानी, देवास, धार, डिण्डोरी, पूर्व मण्डला, हरदा, जबलपुर, खण्डवा, खरगोन, नरसिंहपुर, उत्तर शिवनी, सिहोर व पश्चिमी मण्डला शामिल है।

योजना का उद्देश्य


नर्मदा व अन्य नदियों के तटीय क्षेत्रों में रासायनिक खाद व कीटनाशकों के उपयोग से विषैले तत्व वर्षा के पानी में घुलकर मृदा एवं नर्मदा के जल को दूषित कर रहे हैं। इसके लिए पौधारोपण व जल ग्रहण क्षेत्र का उपचार बेहद जरूरी है।

सम्भावित लाभ


1. पौधारोपण के माध्यम से भूमि के कटाव रोकने का प्रयास।2. पौधारोपण के माध्यम से उर्वरा शक्ति बढ़ाने की कोशिश।
3. नदी के किनारे बसे ग्रामों को निस्तारी बांस व जलाऊ लकड़ी उपलब्ध हो।
4. पशु चारे की आपूर्ति व नदी के तटीय क्षेत्रों का सौन्दर्यीकरण।
5. भू-क्षरण में कमी व बाँध से मिलने वाले लाभ में वृद्धि।
6. वन विभाग द्वारा इस योजना का क्रियान्वयन जनसहयोग व वन समिति के माध्यम से किया जाना है।

रणनीति


इस बारे में वन विभाग एक विशेष रणनीति बनाने जा रहा है। इसके तहत नदी के दोनों तट पर उपलब्ध वन भूमि व राजस्व विभाग की भूमि वन विभाग को सौंपी जाएगी। राजस्व भूमि पर पौधारोपण तथा जल ग्रहण के लिये उपचार किया जाएगा। योजना के क्रियान्वयन स्थल चयन करने के उपरान्त इसे विशेष क्षेत्र बनाया जाएगा। इसके लिए एक समिति गठित की जाएगी। जिसके अन्तर्गत कई जिम्मेदार लोग शामिल होंगे।

नर्मदा नदी पर अध्ययन करने का अवसर मिला। अब तक यह माना जा रहा था कि नर्मदा नदी के बारे में चिन्ता नहीं है, लेकिन 2013 में जब मामला ग्रीन ट्रिब्यूनल में पहुँचा, तब से म.प्र. सरकार के नदी और पर्यावरण तथा वन सहित अन्य जिम्मेदार विभाग केवल योजनाएँ बना रहे हैं। प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड में जरूर कुछ स्थानों पर काम किए हैं, किन्तु बाकी सभी विभाग योजना बनाकर उन्हें कागजों पर ही सीमित रखे हुए है। मैदानी स्तर पर हुई योजनाएँ आगे नहीं बढ़ पा रही है।

नर्मदा स्वच्छता पर ध्यान


जैसे कि अन्य नदियों की उपेक्षा होती रही है, उसी तरह से नर्मदा नदी की भी उपेक्षा हुई है। जब इस मामले में सम्बन्धित विभाग ने अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई तो मामला नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की भोपाल बैंच में पहुँचा है। जब से मामला भोपाल बैंच में है नर्मदा की स्वच्छता को लेकर प्रयास चल रहा है।

वर्ष 2013 में मामला ग्रीन ट्रिब्यूनल पहुँचा था। इसमें मप्र सरकार के हर विभाग को जिम्मेदार बनाया गया है। दरअसल नर्मदा की स्वच्छता के लिए घरेलू जल-मल नालों का पानी नर्मदा में पहुँचने से रोकना तथा जो पानी आ रहा है, उसे उपचार करना महत्वपूर्ण है। अल्प लागत में शौचालय बनाए जाए। शवदाह गृह का निर्माण हो, इस बात पर भी ध्यान दिया जा रहा है।

1300 करोड़ रुपए की योजना बनी


प्रदूषण रोकने के लिए वर्तमान में कई तरह की गतिविधि चल रही है। इन पर चर्चा भी की जा रही है। नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग द्वारा नर्मदा नदी के 52 तटीय शहरों एवं गाँवों को चिन्हित करके सिवेज और ठोस अपशिष्ट प्रबन्धन के लिए 1300 करोड़ की योजना बनाई गई है।

राज्य स्तर पर नर्मदा प्रोजेक्ट सेल बनाया गया है। प्रारम्भिक रूप से यह बात सामने आई है कि नर्मदा नदी के बेसिन में 54 नगरीय निकाय आते हैं। इसलिए इस मामले में नगरों की दूरी के आधार पर प्रथम व द्वितीय चरण में क्रमशः 24 व 30 नगरों को बाँटा गया है। राष्ट्रीय नदी संरक्षण कार्यक्रम के अन्तर्गत प्रथम चरण में 24 नगरों के लिए सलाहकार हेतु फर्म नियुक्त की जा रही है। सबसे बड़ी बात यह है कि इन स्थानों पर विभिन्न कार्यों के लिए 727 करोड़ रुपए की योजना स्वीकृत भी हो गई है।

प्रथम चरण में ये नगरीय निकाय है शामिल


जो 24 नगरीय निकाय शामिल हैं, उसमें अमरकंटक, डिण्डोरी, शहपुरा, मण्डला, बरेला, पनागर, भेड़ाघाट, जबलपुर, करेली, साईखेड़ा, बुदनी, रेहटी, नसरूलागंज, शाहगंज, होशंगाबाद, ओंकारेश्वर, कसरावद, बड़वाह, सनावद, मण्डलेश्वर, महेश्वर, धामनोद, अंजड़ और बड़वानी शामिल है। इन स्थानों पर शौचालय बनाने के लिए प्रक्रिया होना है। अमरकंटक में 500 जलवाहित व्यक्तिगत शौचालय बनना है। इसी प्रकार डिण्डोरी में 500, मण्डला में 1000, अंजड़ में 602, ओंकारेश्वर में 556, बुदनी में 826, रेहटी में 250, नसरूलागंज में 597, शाहगंज में 557, जबलपुर में 4000, करेली में 800, होशंगाबाद में 2625, बड़वाह में 500, सनावद में 500, मण्डलेश्वर में 745, महेश्वर में 696 शौचालय बनना है। कुल 15254 प्रथम चरण में बनाए जाना है जबकि द्वितीय चरण में 8003 व्यक्ति जलवाहित शौचालय बनाए जाना है।

योजनाओं की बाढ़, किन्तु हकीक़त अलग


नर्मदा नदी पर अध्ययन करने का अवसर मिला। अब तक यह माना जा रहा था कि नर्मदा नदी के बारे में चिन्ता नहीं है, लेकिन 2013 में जब मामला ग्रीन ट्रिब्यूनल में पहुँचा, तब से म.प्र. सरकार के नदी और पर्यावरण तथा वन सहित अन्य जिम्मेदार विभाग केवल योजनाएँ बना रहे हैं।

प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड में जरूर कुछ स्थानों पर काम किए हैं, किन्तु बाकी सभी विभाग योजना बनाकर उन्हें कागजों पर ही सीमित रखे हुए है। मैदानी स्तर पर हुई योजनाएँ आगे नहीं बढ़ पा रही है। इसका ख़ामियाज़ा यह है कि नर्मदा प्रदूषित होती जा रही है। लगातार नर्मदा नदी पर हो रहे अध्ययन से यही बात सामने आई है कि नर्मदा में चिन्ताएँ बढ़ी हैं। कारपोरेट सोशल रिस्पांसबिलिटी के तहत कई कम्पनियाँ पौधारोपण करने के लिए तैयार है, किन्तु उन्हें प्रशासन नर्मदा तट की जमीन पर पौधारोपण की अनुमति नहीं दे रहा है।

एक कम्पनी जो चाहती है नदी से फायदा


न केवल सरकारी बल्कि निजी क्षेत्र के लोग भी नर्मदा को बचाने के लिए योजना बना रहे हैं। भले ही वे इससे अपना और किसानों का फायदा करके नदी का भला करना चाहते हो, निजी क्षेत्रों ने कुछ हद तक योजना पर अमल भी शुरू कर दिया है।

कोलकाता के एक कम्पनी इस तरह का कारोबार शुरू भी कर चुकी है। नर्मदा नदी क्षेत्र के जो भी जिले हैं वहाँ पर इस तरह का प्रयास शुरू भी हो गया है। यह कम्पनी बाँस रोपण करो और नर्मदा बचाओ के नारे के साथ समृद्धि लाने की बात कह रही है। नर्मदा तट पर अमरकंटक से लेकर बड़वानी तक मप्र में जितने भी इलाके में नर्मदा बहती है उसकी पड़त यानी अनुपयोगी भूमि पर किसानों से बाँस रोपण करवाया जाएगा। बाँस रोपण के लिए बीज और पौधे उपलब्ध करवाए जाएँगे। साथ ही उत्पादन की उन्हें वैज्ञानिक तकनीक से प्रशिक्षित किया जाएगा।

सबसे बड़ी दिक्कत यह होती है कि बाँस खरीदेगा कौन इसके लिए किसानों से एक विशेष वादा किया है। उनका बाँस उनके गाँव से ही खरीद लिया जाएगा। वह भी समर्थन मूल्य पर। इस तरह यह कम्पनी किसानों को कहीं भी परेशान नहीं होने देगी। अभी हरदा आदि क्षेत्र में किसान इस तरह के लाभ से जुड़ चुके हैं। यहाँ तक कि किसानों की कम्पनी के साथ भागीदारी जैसी व्यवस्था की जाएगी। इसके लिये उन्हें 24 प्रतिशत बोनस भी दिया जाएगा।

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