नरसिंहपुर कैसे हुआ खुले में शौच की आदत से मुक्त

10 Nov 2017
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जिला-स्तर पर संसाधन टीम बनाई गई जिसमें सम्बन्धित विभागों के अधिकारियों और जाने-माने लोगों को शामिल करके समयबद्ध कार्यक्रम बनाया गया। ऐसा लक्ष्य तय किया गया कि आम लोगों को अभियान में इस तरह से शामिल किया जाए जिससे वे साफ-सुथरा माहौल बनाने में गौरव महसूस करें। इसकी शुरुआत घरों के सर्वेक्षण से हुई जिसमें यह पता लगा गया कि जिले के सभी घरों में शौचालय की सुविधा की स्थिति क्या है। इससे यह पता लगाने में मदद मिली कि कितना कार्य किया जाना बाकी है और मानव संसाधनों, सामान तथा धन के लिहाज से कितने संसाधनों की आवश्यकता होगी।

बरसात के मौसम में राधा बामनेले (28) को घुटने-घुटने गंदे पानी से गुजरकर शौच के लिये उपयुक्त स्थान ढूंढना पड़ता था। 4550 की आबादी वाली खुलरी पंचायत की महिलाओं की व्यथा-कथा भी कुछ भिन्न नहीं थी। मगर अब इन सभी लोगों को शौचालय की सुविधा उपलब्ध है और महिलाएँ बड़ी खुश हैं क्योंकि उन्हें ऐसा महसूस हो रहा है जैसे कोई बड़ा बोझ उनके सिर से उठ गया हो।

“आप कल्पना भी नहीं कर सकते कि जब हमारे घर में शौचालय नहीं था तो हमें कितनी बड़ी मुसीबत का सामना करना पड़ता था। अब साफ-सफाई के साथ रहने में बड़ा ही अच्छा अनुभव हो रहा है।” ये कहना है राधा का। उसकी सास द्रौपदी और ननद पार्वती भी कुछ इसी तरह की भावनाएँ व्यक्त करती हैं। उनका यह भी कहना है कि “हमें ऐसा महसूस होता है जैसे हमारी सेहत में भी काफी सुधार हुआ है।”

मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले की जिला पंचायत की मुख्य कार्यकारी अधिकारी प्रतिभा पॉल के अनुसार महिलाओं और बच्चों ने खुले में शौच से मुक्ति के अभियान को तेज करने और आगे बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभाई। वह यह भी बताती हैं, “ये लोग इस अभियान का सबसे ज्यादा फायदा भी उठा रहे हैं।”

चुनौतियाँ : 1050 गाँवों, 446 ग्राम पंचायतों और 6 ब्लॉक वाले इस जिले में जब स्वच्छ भारत मिशन के तहत अभियान चलाया गया तो जिले में शौचालय की सुविधा सिर्फ 31 प्रतिशत आबादी को उपलब्ध थी। कहना न होगा कि खुले में शौच करना बड़ी आम बात थी खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में।

लोगों का रवैया : लोगों की आम धारणा थी कि खुले में शौच करना तो एक ऐसी आदत है जो सदियों से चली आ रही है इसलिये यह बड़ी आम बात है और इसमें किसी तरह की बुराई भी नहीं है। यहाँ तक कि जिन परिवारों के पास अपने शौचालय थे उनके कुछ सदस्य आदत की वजह से शौच के लिये बाहर ही जाते थे। उनके मन में यह गलत धारणा घर कर गई थी कि रिहायशी मकान में या उसके आस-पास शौचालय बनाना अच्छा नहीं है। अगर कोई घर में शौचालय बना भी लेता था तो इसका उपयोग घर के बुजुर्ग या महिलाएँ ही करती थीं। यानी इसका इस्तेमाल सब लोग नियमित रूप से नहीं करते थे। इतना ही नहीं, उनकी यह भी मान्यता थी कि शौचालयों का निर्माण करना सरकार की जिम्मेदारी है इसलिये वे इस कार्य को प्राथमिकता नहीं देते थे। जहाँ तक गड्ढे वाले शौचालयों के निर्माण में उपयोग में लायी जाने वाली लीच पिट टेक्नोलॉजी का सवाल है उनका मानना था कि गड्ढा बहुत जल्द भर जाएगा और उसे खाली कराना बड़ा मुश्किल काम होगा। इसके विपरीत कुछ लोग तो यह भी मानते थे कि खुले में शौच करना आजादी के समान है।

सार्वजनिक स्थल : सार्वजनिक स्थानों जैसे होटलों और बस स्टैंड आदि में शौचालयों की सुविधा नाममात्र के लिये भी नहीं होती थी। नरसिंहपुर में कई छोटी चीनी मिलें होने और वहाँ की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि पर आधारित होने के कारण हर साल फसली मौसम में 1.5 लाख प्रवासी मजदूर यहाँ काम की तलाश में आते हैं। इन मजदूरों को शौचालय की सुविधा नहीं मिलती।

इसके अलावा नर्मदा नदी जिले में 170 किलोमीटर की दूरी तय करती है और इसके किनारे उसी तरह हैं जैसे खुले में शौच को आमंत्रण दे रहे हों। हर साल लाखों श्रद्धालु विभिन्न धार्मिक पर्वों और उत्सवों में भाग लेने इस इलाके में आते हैं और शौचालय की सुविधा न होने से खुले में शौच करने को मजबूर होते हैं।

दो राष्ट्रीय राजमार्ग नरसिंहपुर से होकर गुजरते हैं जिन पर काफी यातायात रहता है। लेकिन न तो यात्रियों के लिये और न ही वाहन चालकों के लिये शौचालय की कोई सुविधा अब तक उपलब्ध थी। ऐसी स्थिति में जिला प्रशासन को शौचालयों की माँग उत्पन्न करने के लिये भौगोलिक, सामाजिक और आर्थिक मसलों के साथ-साथ इस क्षेत्र में प्रशिक्षित जनशक्ति की कमी की समस्या का भी सामना करना पड़ा।

रणनीति : जहाँ तक अमल का सवाल है, प्रशासन ने यह बात सुनिश्चित की कि खुले में शौच की बुरी आदत के उन्मूलन का अभियान सामुदायिक नेतृत्व में आगे बढ़े और ‘पावन नरसिंहपुर’ अभियान में समग्र दृष्टिकोण अपनाते हुए नर्मदा नदी को स्वच्छ और पवित्र बनाए रखने की रणनीति अपनायी जाए।

इसके लिये जिला-स्तर पर संसाधन टीम बनाई गई जिसमें सम्बन्धित विभागों के अधिकारियों और जाने-माने लोगों को शामिल करके समयबद्ध कार्यक्रम बनाया गया। ऐसा लक्ष्य तय किया गया कि आम लोगों को अभियान में इस तरह से शामिल किया जाए जिससे वे साफ-सुथरा माहौल बनाने में गौरव महसूस करें। इसकी शुरुआत घरों के सर्वेक्षण से हुई जिसमें यह पता लगा गया कि जिले के सभी घरों में शौचालय की सुविधा की स्थिति क्या है। इससे यह पता लगाने में मदद मिली कि कितना कार्य किया जाना बाकी है और मानव संसाधनों, सामान तथा धन के लिहाज से कितने संसाधनों की आवश्यकता होगी।

इसके बाद अभियान के पहले चरण की शुरुआत जिले के सबसे अधिक आबादी वाले ब्लॉक में की गई। इसमें सामुदायिक दृष्टिकोण अपनाया गया और तीन महीने के भीतर खुले में शौच की कुप्रथा को समाप्त करने का लक्ष्य रखा गया। इससे जिला-स्तर पर अभियान चलाने के लिये काफी जानकारियाँ मिल गईं। इससे यह निर्धारित करना भी आसान हो गया कि हर विभाग ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुँच की अपनी शक्ति और क्षमता के अनुसार अभियान में क्या भूमिका निभाएगा।

जमीनी कार्यकर्ता : सामुदायिक जागरण के विशाल कार्य को पूरा करने के लिये 175 स्वच्छता प्रेरकों की एक टुकड़ी तैयार की गई जिन्हें लोगों को प्रेरित करने का समयबद्ध और ग्राम पंचायतवार कार्यक्रम सौंपा गया। इस टुकड़ी में मुख्य रूप से युवा शामिल थे जो समाज में बदलाव लाने को वचनबद्ध थे। उन्हें स्वच्छता सुविधाओं में सुधार और शौचालयों की माँग पैदा करने का दायित्व सौंपा गया था। इस तरह के युवाओं को जन समुदाय को प्रेरित करने की तरकीबों और साधनों से लैस किया गया था। उन्हें यह भी बताया गया था कि खुले में शौच की कुप्रथा को समाप्त करने के लिये किस तरह सामुदायिक निर्णय की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जाए। इस प्रक्रिया से अभियान का नेतृत्व करने की स्वाभाविक क्षमता रखने वाले पुरुषों, महिलाओं और बच्चों की पहचान करने में भी मदद मिली। उन्हें खुले में शौच की बुराई के बारे में लोगों के रवैये में बदलाव लाने और खुले में शौच के खिलाफ माहौल तैयार करने की प्रक्रिया की निगरानी करने की जिम्मेदारी भी सौंपी गई।

आपूर्ति श्रृंखला प्रबन्धन : सरकारी इंजीनियरों को निर्माण सामग्री और राजमिस्त्रियों की उपलब्धता आसान बनाने और शौचालयों के निर्माण में उच्च गुणवत्ता सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी सौंपी गई। पंचायती राज संस्थाओं के कार्यकर्ताओं को धन की आवश्यकता के बारे में शीघ्रता से सूचना देने और धन की उपलब्धता सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी सौंपी गई। इसके अलावा जिला और ब्लॉक-स्तर के नोडल अधिकारियों को ग्राम पंचायतों में माँग सृजन और सप्लाई चेन की निगरानी में तालमेल करने के लिये भेजा गया।

अग्रिम पंक्ति के कार्यकर्ताओं जैसे आँगनबाड़ी और आशाकर्मियों ने नेतृत्व का जिम्मा सम्भाला और खुले में शौच से मुक्त माहौल को बरकरार रखने के लिये महिला निगरानी समितियों को लगातार सुदृढ़ किया। बच्चों की निगरानी समितियाँ (यानी वानरसेना) परिवर्तन के कारगर माध्यम के रूप में उभर कर सामने आए और खुले में शौच करने वालों को हतोत्साहित करने के लिये सुबह-सवेरे तथा शाम को निगरानी करने का जिम्मा सम्भाला।

एकीकृत एजेंडा : जिला प्रशासन ने हर सम्भव सार्वजनिक स्थान पर स्वच्छता सुविधा उपलब्ध कराने के लिये एकीकृत कार्यक्रम तैयार किया। तमाम विभागों के सहयोग से, खासतौर पर राजस्व विभाग की मदद से यह सुनिश्चित किया गया कि सभी सार्वजनिक स्थानों, सड़क किनारे के रेस्टोरेंट/होटलों/ढाबों आदि में वहाँ आने वालों के लिये शौचालय हों ताकि उन्हें खुले में शौच न करना पड़े। चीनी मिल मालिकों और किसानों से कहा गया कि वे प्रवासी मजदूरों के लिये शौचालय बनाएँ और यह भी सुनिश्चित करें कि वे हमेशा इनका उपयोग करें। स्कूलों और आँगनबाड़ियों के शौचालयों को चालू रखने के लिये दोनों विभागों के जरिए इन्तजाम कराए गए। इससे यह सुनिश्चित करने में मदद मिली कि जिले में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को शौचालय की सुविधा उपलब्ध हो।

शिकायत निस्तारण : नोडल अधिकारियों को तैनात करके नियमित सूचना देने और उसकी समीक्षा करने की प्रणाली स्थापित की गई। अवरोधों की पहचान, शिकायतों के निपटारे और काम करने में आ रही बाधाओं को दूर करने के लिये नियमित रूप से समीक्षा बैठकों का आयोजन किया गया। समाधानों की खोज की गई और हर स्तर पर समय पर समाधान खोजे गए। व्हाट्स एप जैसे सोशल मीडिया साधनों का उपयोग करके बड़े कारगर तरीके से निगरानी की गई और रियल टाइम में मदद उपलब्ध कराई गई।

निगरानी और समीक्षा प्रणाली : विशिष्ट संकेतकों वाली निगरानी प्रणाली का ढाँचा तैयार किया गया जिसके माध्यम से गाँवों से जिला-स्तर पर सूचनाओं के स्पष्ट प्रवाह की लगातार निगरानी की गई। जिला नोडल अधिकारियों ने ब्लॉकों और गाँवों के लगातार दौरे किए और विभिन्न टीमों के कार्यनिष्पादन की समीक्षा की।

जन-समुदाय की निगरानी में सम्पूर्ण स्वच्छता दृष्टिकोण : राज्य भर में पिछले प्रयोगों और सीखने तथा पहले के हस्तक्षेपों के आधार पर खुले में शौच करने वालों के मन में घृणा और शर्म की भावना जगाने के लिये समुदाय-आधारित साधनों और तकनीकों की मदद ली जाए। इस विधि में प्रत्येक गाँव में स्वच्छता योजना पर अमल के लिये सामुदायिक-स्तर पर सामूहिक निर्णय को समाहित किया गया था।

इसके अलावा खुले में शौच को खत्म करने के लिये अनुकूल माहौल तैयार करने के लिये स्वच्छता प्रेरकों और अग्रिम पंक्ति के कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण दिया गया और लगातार ग्राम-स्तर पर लगाया गया ताकि ग्रामसभा से लेकर, स्कूलों और महिलाओं की बैठकों में खुले में शौच के खिलाफ माहौल मजबूत हो। इस सिलसिले में जो गतिविधियाँ शामिल की गईं उनमें स्कूलों, आँगनबाड़ियों और जनसमुदायों में कलश यात्रा, शान की यात्रा, शर्म की यात्रा, हल्लाबोल, पवन यात्रा और खुले में शौच से मुक्त खेलकूद प्रतियोगिताएँ शामिल थीं। इन सब में शौचालयों के इस्तेमाल और इस आदत को टिकाऊ बनाने पर जोर दिया गया और अभियान में स्थानीय नेतृत्व को सुदढ़ किया गया।

प्रेरक तत्व : सीईओ के अनुसार खुले में शौच से मुक्त जिले के लक्ष्य को प्राप्त करने का मिशन और ऐसा करने में सबसे आगे रहने के गर्व के साथ समाज में सबसे कठिन बदलाव लाने की एक मिसाल पेश करने की तत्परता ने समूची टीम को प्रेरित करके रखा। खुले में शौच से मुक्ति का मतलब था स्वास्थ्य, पौष्टिक आहार और विकास। टीम को इस बात की अच्छी जानकारी थी। इसके अलावा सभी स्तरों पर कार्यकर्ताओं ने अभियान में उत्साह से हिस्सा लिया।

दास्तान कामयाबी की


हिनोटिया गाँव : दुर्गाप्रसाद प्रसाद ठाकुर (60) इस बात से बड़े खुश हैं कि उनके परिवार ने नरसिंहपुर जिले के कारेली ब्लॉक में हिनोटिया गाँव को दो महीने के भीतर खुले में शौच की बुराई से मुक्ति दिलाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके गाँव में आस-पास का माहौल बड़ा साफ-सुथरा नजर आता है। लगभग सभी घरों की दीवारों पर रंग-बिरंगे नारे लिखे हुए हैं जिनमें सफाई के महत्त्व पर जोर दिया गया है। उनके साफ-सुथरे घर के अलावा गाँव की ओर जाने वाली सड़क और नहर के दोनों किनारे, जो पहले खुले में शौच के अच्छे ठिकाने माने जाते थे अब साफ हो गए हैं और वहाँ कोई गन्दगी नहीं है।

प्रतिभा बताती हैं कि जब स्थानीय निगरानी समिति बनाई गई तो इन दो इलाकों पर सबसे अधिक ध्यान दिया गया। ग्रामीणों ने समूचे गाँव में गश्त लगाने के लिये टोलियाँ बना लीं जो इन दो स्थानों पर खासतौर पर नजर रखते थे। ठाकुर अपने साथ एक छड़ी भी रखते थे और निगरानी टोली का नेतृत्व करते थे।

हमेशा की तरह इस बार भी महिलाओं और बच्चों ने गाँव को स्वच्छ बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। निगरानी समिति की सक्रिय कार्यकर्ता सुमन बाई ठाकुर ने बताया, “हम हमेशा महिलाओं की सुरक्षा और खुले में शौच करने पर होने वाली शर्मिंदगी को लेकर सब चिन्तित रहते थे। इसलिये हमने यह सुनिश्चित किया कि हर घर में एक शौचालय हो और हर एक को उसके इस्तेमाल का मौका मिले।”

आठवीं कक्षा के छात्र आकाश ठाकुर अपने साथ हमेशा हरे रंग की एक सीटी रखते हैं। अगर मैं किसी को स्वच्छता के नियमों का उल्लंघन करते देखता हूँ तो मैं सीटी बजाकर निगरानी दल में गाँव के सायनों को सूचित कर देता हूँ।

सातवीं की छात्रा निधि मेहरा बताती हैं कि गाँव के साफ-सुथरा होने पर उन्हें कितनी खुशी हो रही है। अब बच्चे बार-बार बीमार नहीं पड़ते जैसा कि पहले होता था।

मुन्नीबाई जिनके परिवार ने पानी की नियमित सप्लाई सुनिश्चित करने के लिये अपने खेत में शौचालय बनवाया है, बताती हैं कि किसी भी वक्त शौचालय इस्तेमाल करने की सुविधा से उन्हें बड़ी राहत मिली है। “ये बड़े सुविधाजनक और पूरी तरह सुरक्षित हैं।”

गाँव के सरपंच अरविंद मेहरा का कहना था कि गाँव के ज्यादातर लोगों ने इस अभियान में मदद दी, कुछ लोगों को खुले में शौच करने पर जुर्माना लगाने और पेंशन व दूसरे फायदे बन्द होने जैसी चेतावनी भी देनी पड़ी।

जनपद पंचायत के सदस्य विमलेश दुबे ने कहा कि अगर लोग किसी उद्देश्य के प्रति संकल्पबद्ध हो जाएँ तो किसी भी सामाजिक लक्ष्य को प्राप्त करना आसान हो जाता है- “शीर्ष अधिकारी से लेकर गाँव के बच्चे तक सभी इस प्रक्रिया में भागीदार थे और दो महीने के भीतर उन्होंने गाँव को खुले में शौच की बुराई से मुक्त कराके दिखा दिया।”

जनपद पंचायत के मुख्य कार्यपालक अधिकरी राजीव लंघाटे ने कहा कि चूँकि गाँव ने खुले में शौच से मुक्त ग्राम का दर्जा हासिल कर लिया है और लगातार निगरानी से इसे बनाए रखने के प्रयास किए जा रहे हैं। गाँव में ठोस और द्रव कचरे के प्रबन्धन के लिये विस्तृत परियोजना रिपोर्ट पहले ही तैयार कर ली गई है।

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