पालमपुर : नौले धारे बचाने की अनूठी मुहिम


स्थानीय निकाय, प्रशासन और स्थानीय लोगों के इस साझा प्रयास ने पालमपुर में कामयाबी की नई कहानी लिखी है। जलवायु परिवर्तन, खेती की पद्धति में आये बदलाव, पानी के अकूत दोहन व अन्य कारणों से देश में पानी के स्रोत सूख रहे हैं लेकिन बढ़ती जनसंख्या के साथ पानी की माँग में इजाफा हो रहा है। ऐसे संगीन हालात से निपटने के लिये पालमपुर की इस कहानी को जमीन पर उतारना किफायती और फायदेमन्द सौदा हो सकता है।

लगभग 55, 673 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हिमाचल प्रदेश अपनी खुबसूरती के लिये विश्व भर में मशहूर है। यह राज्य हिमालय की गोद में बसा हुआ है। इसके उत्तर में धरती का स्वर्ग कहा जाने वाला जम्मू-कश्मीर, पश्चिम में पंजाब, दक्षिण पश्चिम में हरियाणा, दक्षिण पूर्व में उत्तराखण्ड और पूर्व में तिब्बत है। हिमाचल प्रदेश की आबादी लगभग 68,64,602 है। इसी राज्य में है पालमपुर। यह राज्य की कांगड़ा घाटी में स्थित है।

पालमपुर का नाम स्थानीय शब्द ‘पालुम’ से आया है जिसका मतलब होता है-पर्याप्त पानी। पालमपुर को पूर्वोत्तर भारत की चाय राजधानी भी कहा जाता है। पालमपुर का अस्तित्व वर्ष 1849 में आया था।

कुछ दशक पहले तक पालमपुर अपने नाम को चरितार्थ करता रहा था लेकिन बाद में जलवायु परिवर्तन के चलते धीरे-धीरे इस क्षेत्र का चरित्र बदलने लगा। यहाँ वार्षिक वर्षा 2800 मिलीमीटर हुआ करती थी वह भी घटकर 2100 मिलीमीटर हो गई। पानी की कमी और बदले मौसम के चलते खेती की पारम्परिक पद्धति बदलनी पड़ी। वनों की कटाई हुई और कैचमेंट एरिया का कुप्रबन्धन किया गया जिससे नौले धारे की क्षमता में भारी गिरावट आई। फिर एक समय ऐसा आया कि वहाँ पानी की किल्लत के संकेत दिखने लगे।

पालमपुर के स्प्रिंग से निकलने वाले पानी की मात्रा घटकर आधी हो गई तो लोगों ने यह महसूस किया कि नौले-धारे को अगर संरक्षित नहीं किया गया तो आने वाले समय में पानी की समस्या विकराल रूप ले सकती है। इस समस्या के निराकरण के लिये पालमपुर के नौले-धारे को बचाने की एक मुहिम चलाई गई जो अपने आप में एक उम्दा नजीर है।

जर्मन टेक्निकल को-अॉपरेशन की अगुवाई में पालमपुर के स्थानीय लोगों और खासकर महिलाओं ने मिलकर एक अभियान शुरू किया। शुरुआती दौर में तो इसका पुरजोर विरोध हुआ लेकिन धीरे-धीरे लोगों को भी समझ में आने लगा कि इससे उनका ही फायदा होने वाला है। पालमपुर क्षेत्र पालमपुर म्युनिसिपल काउंसिल (पीएमसी) के अन्तर्गत आता है। यहाँ पेयजल की सप्लाई बोहाल स्प्रिंग और नदियों से की जाती है।

बोहाल स्प्रिंग मरणासन्न स्थिति में चला गया था जो पालमपुर म्युनिसिपल काउंसिल के लिये भी चिन्ता का विषय था। पीएमसी के अफसरों ने भी यह महसूस किया कि बोहाल स्प्रिंग को बचाने के लिये सरकारी प्रयास नाकाफी होगा, इसके लिये समुदाय को जोड़ने की आवश्यकता है। इस सोच के पीछे वजह यह थी कि यह स्प्रिंग (इसका कैचमेंट एरिया 286 हेक्टेयर है) जिस जंगल में स्थित था, उस जंगल के पास ही बसाहट थी। लोग इसी जंगल से लकड़ियाँ लाते, इसी में खेती करते और पशुपालन के लिये भी इसी जंगल पर उनकी निर्भरता थी। लोगों ने वनों का बेतहाशा दोहन किया जिसका परिणाम यह निकला वन उजाड़ दिखने लगा।

उसी दौरान स्थानीय लोगों के एक वर्ग के विरोध के बावजूद वहाँ की महिलाओं ने मिलकर महिला मण्डल नामक संस्था की स्थापना की और उसको सरकारी मान्यता भी दिलवाई गई। हिमाचल प्रदेश के वन विभाग को भी इस मुहिम में शामिल किया गया क्योंकि नौले-धारे का कैचमेंट एरिया वन विभाग की जमीन के अन्तर्गत आता था। इस वन पर तीन गाँवों बोहाल, ओडी और मंडई के लोग निर्भर हैं।

महिला मण्डल की ओर से बनाई गई 10 सदस्यीय विलेज फॉरेस्ट डेवलपमेंट सोसाइटी (वीएफडीएस) और पालमपुर म्युनिसिपल काउंसिल ने वर्ष 2010 में एक समझौता किया जिसके अन्तर्गत बोहाल स्प्रिंग और उसके कैचमेंट एरिया को संरक्षित करने पर सहमति बनी। यह अनुबन्ध 20 वर्षों के लिये किया गया था। अनुबन्ध में पेमेंट फॉर इकोसिस्टम सर्विस का प्रावधान था।

यह भी बताते चलें कि पेमेंट फॉर इकोसिस्टम सर्विस, पालमपुर वाटर गवर्नेंस इनिशिएटिव का हिस्सा था। विलेज फॉरेस्ट डेवलपमेंट सोसाइटी और पालमपुर म्युनिसिपल काउंसिल के बीच किये गए अनुबन्ध में यह तय हुआ कि वनों के संरक्षण के लिये पालमपुर म्युनिसिपल काउंसिल हर वर्ष 10 हजार रुपए विलेज फॉरेस्ट डेवलपमेंट सोसाइटी को देगा। उधर, सोसाइटी ने वायदा किया कि वह वन के संरक्षण के साथ ही बोहाल स्प्रिंग और उसके कैचमेंट एरिया का भी संरक्षण करेगी। सोसाइटी ने ग्रामीणों को भी राजी किया कि वे हर वर्ष 100-100 रुपए दें ताकि वनों का संरक्षण किया जा सके।

इस तरह नौले-धारे को बचाने की अनोखी पहल शुरू की गई। विलेज फॉरेस्ट डेवलपमेंट सोसाइटी के लिये यह प्रयास आसान नहीं था। सोसाइटी की अध्यक्ष अन्नु देवी कहती हैं, ‘ग्रामीणों को लगता था कि इस अनुबन्ध से जंगलों में बाहरी हस्तक्षेप होगा। बाहरी लोग जंगलों का दोहन करेंगे जिससे नुकसान होगा और उनकी जीवनशैली पर भी इसका असर पड़ेगा। कई बार ग्रामीणों के साथ इस मुद्दे पर बहस भी हुई लेकिन बाद में उनका नजरिया भी बदला।’

वन संरक्षण के लिये महिला मण्डल की सदस्यों को शिमला वाटर कैचमेंट फॉरेस्ट एंड वाइल्डलाइफ सेंचुरी ले जाया गया। इस दौरे में वे सीख पाईं कि कैसे वन का संरक्षण किया जाना चाहिए।

पूरे मामले को लेकर जिस तरह गाँव के कुछ लोग सशंकित थे, उसी तरह पालमपुर म्युनिसिपल काउंसिल के कुछ पदाधिकारियों में भी इसको लेकर नकारात्मक नजरिया था। उनका विचार था कि बोहाल स्प्रिंग पालम म्युनिसिपल काउंसिल की भूमि से निकलता है इसलिये ग्रामीणों को रुपए नहीं देना चाहिए। काउंसिल के अधिकारी बताते हैं, ‘उन्हें बड़ी मुश्किल से विश्वास में लिया गया। इसके लिये शोध किये गए। शोध की रिपोर्ट देखने के बाद विरोध करने वाले पदाधिकारी राजी हुए।’

शुरुआती गतिरोधों को पार करने के बाद व्यवस्थित तरीके से काम शुरू हो गया और कुछ ही वर्षों में इसके परिणाम दिखने लगे। बोहाल स्प्रिंग से निकलने वाले पानी की मात्रा तो बढ़ी ही इसके कैचमेंट एरिया में सघन वन उग आये। जिला वन अधिकारी के.के. गुप्ता कहते हैं, ‘वन इतना सघन हो गया कि दिन में भी सूरज की रोशनी भीतर प्रवेश नहीं कर पाती है।’

पालमपुर म्युनिसिपल काउंसिल के वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा कि इस मॉडल पर काम करने का ख्याल उस विचार से आया कि स्थानीय समुदाय को अगर एहसास दिलाया जाये कि वे ही प्राकृतिक संसाधनों के मालिक हैं तो स्थानीय समुदाय संसाधनों का बेहतर प्रबन्धन कर सकते हैं।

विलेज फॉरेस्ट डेवलपमेंट सोसाइटी की सदस्यों ने कहा, ‘हमने वन में प्रवेश करने के लिये नियम बनाए ताकि लोगों को जलावन के लिये लकड़ियाँ और मवेशियों के चारा भी मिल जाये और वन को नुकसान भी न हो।’

सोसाइटी की एक सदस्य बताती हैं, ‘सबसे पहले हमने वन में मवेशियों की चराई को पूरी तरह प्रतिबन्धित कर दिया। वन को दो भागों में बाँटा और एक भाग में प्रवेश पूरी तरह वर्जित कर दिया। मवेशियों के चारे के लिये पत्तियाँ संग्रह करने के लिये दूसरे भाग को खुला रखा गया। दूसरे भाग में प्रवेश के लिये भी नियम बना। हमने सभी ग्रामीणों को हिदायत दी कि हर परिवार से केवल एक व्यक्ति वन में प्रवेश करेगा और वह भी निर्धारित समयावधि में ही।’ इतना ही नहीं, ग्रामीणों को यह भी कहा गया कि वे अपने परिवार के एक सदस्य को रोज वन संरक्षण कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिये भेजें। जो परिवार नहीं भेजता उस पर नकद जुर्माना लगाया जाता। बोहाल स्प्रिंग के रिचार्ज एरिया से पानी की निकासी पर भी प्रतिबन्ध लगाया गया। वन में अनधिकृत प्रवेश रोकने के लिये सिक्योरिटी गार्ड को भी तैनात किया गया।

स्थानीय निकाय, प्रशासन और स्थानीय लोगों के इस साझा प्रयास ने पालमपुर में कामयाबी की नई कहानी लिखी है। जलवायु परिवर्तन, खेती की पद्धति में आये बदलाव, पानी के अकूत दोहन व अन्य कारणों से देश में पानी के स्रोत सूख रहे हैं लेकिन बढ़ती जनसंख्या के साथ पानी की माँग में इजाफा हो रहा है। ऐसे संगीन हालात से निपटने के लिये पालमपुर की इस कहानी को जमीन पर उतारना किफायती और फायदेमन्द सौदा हो सकता है।

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading